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अन्नप्राशन संस्कार और द्विज

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अन्नप्राशन संस्कार और द्विज के बीच अंतर

अन्नप्राशन संस्कार vs. द्विज

जब शिशु के दाँत उगने लगे, मानना चाहिए कि प्रकृति ने उसे ठोस आहार, अन्नाहार करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। स्थूल (अन्नमयकोष) के विकास के लिए तो अन्न के विज्ञान सम्मत उपयोग का ज्ञान जरूरी है यह सभी जानते हैं। सूक्ष्म विज्ञान के अनुसार अन्न के संस्कार का प्रभाव व्यक्ति के मानस पर स्वभाव पर भी पड़ता है। कहावत है जैसा खाय अन्न-वैसा बने मन। इसलिए आहार स्वास्थ्यप्रद होने के साथ पवित्र, संस्कार युक्त हो इसके लिए भी अभिभावकों, परिजनों को जागरूक करना जरूरी होता है। अन्न को व्यसन के रूप में नहीं औषधि और प्रसाद के रूप में लिया जाय, इस संकल्प के साथ अन्नप्राशन संस्कार सम्पन्न कराया जाता है। . द्विज शब्द 'द्वि' और 'ज' से बना है। द्वि का अर्थ होता है दो और ज (जायते) का अर्थ होता है जन्म होना अर्थात् जिसका दो बार जन्म हो उसे द्विज कहते हैं। द्विज शब्द का प्रयोग हर उस मानव के लिये किया जाता है जो एक बार पशु के रुपमे माता के गर्भ से जन्म लेते है और फिर बड़ा होने के वाद अच्छी संस्कार से मानव कल्याण हेतु कार्य करने का संकल्प लेता है। द्विज शब्द का प्रयोग किसी एक प्रजाती या केवल कोइ जाती विशेष के लिये नहि किया जाता हैं। मानव जब पैदा होता है तो वो केवल पशु समान होता है परन्तु जब वह संस्कारवान और ज्ञानी होता है तव ही उसका जन्म दुवारा अर्थात असली रुपमे होता है। जन्म से कोहि भी ब्राह्मण नहीं होता अपितु अपने अच्छे कर्म और ज्ञान प्राप्त करने के वाद कोई भी ब्राह्मण बन जाता हैं। .

अन्नप्राशन संस्कार और द्विज के बीच समानता

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अन्नप्राशन संस्कार और द्विज के बीच तुलना

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संदर्भ

यह लेख अन्नप्राशन संस्कार और द्विज के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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