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अन्त्येष्टि क्रिया और कर्मकांड

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अन्त्येष्टि क्रिया और कर्मकांड के बीच अंतर

अन्त्येष्टि क्रिया vs. कर्मकांड

अंतिम संस्कार या अन्त्येष्टि क्रिया हिन्दुओं के प्रमुख संस्कारों में से एक है। संस्कार का तात्पर्य हिन्दुओं द्वारा जीवन के विभिन्न चरणों में किये जानेवाले धार्मिक कर्मकांड से है। यह हिंदू मान्यता के अनुसार सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है। अंतिम संस्कार हिन्दुओं के पृथ्वी पर बिताये गये जीवन का आखिरी संस्कार होता है जिसे व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात मृतक के परिजनों द्वारा संपन्न किया जाता है। आमतौर पर हिंदुओं को मरने के बाद अग्नि की चिता पर जलाया जाता है जिसमें शव को लकड़ी के ढेर पर रखकर पहले मृतात्मा को मुखाग्नि दी जाती है और तत्पश्चात उसके शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाता है। शवदाह के बाद मृतक की अस्थियाँ जमा की जाती है और उसे किसी जलस्त्रोत में, आमतौर पर गंगा में प्रवाहित की जाती है। जिसके बाद लगभग तेरह दिनों तक श्राद्धकर्म किया जाता है। मृतात्मा की शांति के लिये दान दिये जाते हैं और ब्राम्हण समुदाय को भोजन कराया जाता है। बाद में लोग पिंडदान के लिये काशी या गया में जाकर पिंडदान की प्रक्रिया पूरी करते हैं। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:चित्र जोड़ें. हिन्दुओं में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली पारम्परिक पूजा-ऋचा का क्रियात्मक रूप कर्मकांड कहलाता है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने एक पुस्तक में जहाँ कर्मकांडों का महत्व और औचित्य प्रतिपादित किया है वहीं वृन्दवानस्थ पंडित विजय प्रकाश शास्त्री जैसे कुछ विद्वानों के अनुसार वेद में कर्मकांड, उपासनाकांड और ज्ञानकांड - इन तीनों का वर्णन मिलता है। वेद के कुल एक लाख मंत्र हैं- चार हजार ज्ञान कांड के, सोलह हजार उपासना कांड के और सबसे ज्यादा अस्सी हजार कर्मकांड के हैं। इसलिए कर्मकांड को प्रधान स्थान प्राप्त है। इस प्रकार वेद के तीन भाग हैं। ‘‘तीन कांड एकत्व शान - वेद। वेद के कर्मकांड भाग में यज्ञादि विविध अनुष्ठानों का विशेष रूप से वर्णन मिलता है अतः यज्ञ कर्मकांड ही वेदों का मुख्य विषय है। वेदों का मुख्य विषय होने के कारण कर्मकांड में मंत्रों का प्रयोग (उच्चारण) किया जाता है। वेद मंत्रों के बिना कर्मकांड नहीं हो सकता और कर्मकांड के बिना मंत्रों का ठीक-ठीक सदुपयोग नहीं हो सकता। अतः स्पष्ट है कि वेद हैं तो कर्मकांड है और कर्मकांड है तो वेद हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण (2/04) में वर्णन आता है वेदास्तु यज्ञार्थ मभिप्रवृत्ताः। इस वचन से तथा भगवान मनु के दुदोह यज्ञ सिद्धयमि 1/23 इस वाक्य से स्पष्ट सिद्ध है कि वेदों का प्रादुर्भाव कर्मकांड, यज्ञ, अनुष्ठान के लिए हुआ है। जिस प्रकार वेद दुरूह हैं उसी प्रकार वेदांग भूत कर्मकांड भी अत्यंत दुरूह है। जिस प्रकार वेद में उपास्य देवता हैं उसी प्रकार कर्मकांड में भी उपास्य देवता हैं। जिस प्रकार वेद उपास्य वेद किसी पुरूष के द्वारा न बनाया हुआ। नित्य और अनादि है- पराशर स्मृति में वर्णन आता है। नकश्चिद्वेद च वेदसमन्र्ता चतुर्मुखः। नकश्चिद्वेदकर्ता च वेद स्मर्ता चतुर्मुखः।। वेद को बनाने वाला कोई नहीं है। चतुर्मुख ब्रह्मा ने वेद का स्मरण किया। ठीक उसी प्रकार यज्ञ अनुष्ठान, कर्मकांड भी अपौरूषेय, नित्य और अनादि हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंत्र ‘अग्निमीडे पुरोहितम’’ में यज्ञ (कर्मकांड) पद आया है अतः सिद्ध होता है कि वेद से भी प्राचीन कर्मकांड है। कर्मकांड वैदिक संस्कृति का प्रधान अंग है। कर्मकांड से ही समस्त मनुष्यों की कामनायें सिद्ध होती हैं। कर्मकांड, मनुष्यों की इच्छित कामना एवं कल्याण व लौकिक सुख-शांति तथा मन में संकल्पित अनेकानेक इच्छाओं को पूर्ण करता है। हमारे धर्माचार्यों ने मनुष्य के लिए जितने भी धर्म कहे हैं वे सभी कर्मकांड लक्षण से संयुक्त हैं| प्राचीन ऋषि महर्षियों ने शास्त्रों के अनुसार ही अपना जीवन यज्ञमय बनाया था। वे यज्ञ कर्मकांड द्वारा अपना और जगत का कल्याण किया करते थे। वस्तुतः कर्मकांड में अपूर्व शक्ति है। 'कर्मकांड से जो जिस वस्तु की प्राप्ति के लिए इच्छा करता है वह उसको वही वस्तु देता है।' ‘‘यो यदिच्छति तस्य तत्’’। (कठोपनिषद) 12/16 अतः स्पष्ट है कि संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो कर्मकांड के द्वारा प्राप्त न हो सके। कर्मकांड से केवल लौकिक, धनधान्य, संतति आदि वस्तुओं की ही नहीं अपितु पारलौकिक ‘मोक्ष’ आदि पदार्थों की भी प्राप्ति होती है। इस श्रेष्ठ कर्म के विधि-विधान भी अत्यंत कठिन हैं। कर्मकांड के तीन विशेष अंग है। 1.

अन्त्येष्टि क्रिया और कर्मकांड के बीच समानता

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अन्त्येष्टि क्रिया और कर्मकांड के बीच तुलना

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संदर्भ

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