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अनिल करनजय और बासुदेब दाशगुप्ता

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

अनिल करनजय और बासुदेब दाशगुप्ता के बीच अंतर

अनिल करनजय vs. बासुदेब दाशगुप्ता

अनिल करनजय (27 जून 1940 - 18 मार्च 2001) एक पूर्ण भारतीय कलाकार थे। पूर्व बंगाल में जन्म लेनेवाले करनजय ने बनारस में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिवार 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के बाद बस गया। एक छोटे बच्चे के रूप में वे मिट्टी के साथ खेलने, खिलौने और तीर बनाने में काफी समय बिताते थे। उन्होंने बहुत जल्दी ही जानवरों और पौधों का चित्र बनाना या जिस भी वस्तु ने उन्हें प्रेरित किया उसका चित्र बनाना भी शुरू कर दिया। 1956 में उन्होंने बंगाल स्कूल के एक गुरु और नेपाली मूल के करनमान सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय कला केन्द्र का पूर्णकालिक छात्र बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया. बासुदेब दाशगुप्ता (३१ दिसम्बर १९३८---३१ अगस्त २००५) (বাসুদেব দাশগুপ্ত) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के एक प्रमुख कहानीकार एवम उपन्यासकार हैं। सन १९६५ में प्रकाशित उनकी कहानी 'रन्धनशाला' को बांग्ला साहित्य की कालजयी रचना माना जाता है। वह पूर्वी बंगाल के मदारिपुर में पैदा हुये एवम पर्टिशन के समय भारत चले आये। अशोक्नगर रिफिउजि कलोनि में घर मिलने प्र वहिं बस गये, बि एड पढें और आजिवन वहिं कल्याण्गढ विद्यामन्दिर में पढाये। बीच में मार्क्सबाद के प्रति आकृष्ट हुये परन्तु क्रमश राजनीति से निर्मोह हो गये। अत्यधिक मादक सेवन एवम पीने के लत के कारण उनका स्वास्थ्य ढल गया और बिमार रहने लगे। .

अनिल करनजय और बासुदेब दाशगुप्ता के बीच समानता

अनिल करनजय और बासुदेब दाशगुप्ता आम में 6 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): देबी राय, भूखी पीढ़ी, मलय रॉय चौधुरी, शक्ति चट्टोपाध्याय, समीर रायचौधुरी, सुबिमल बसाक

देबी राय

देबी राय (४-८-१९४०) (দেবী রায়)बांग्ला भाषा के प्रख्यात कवि एवम अनुवादक हैं। भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) के प्रतिष्ठातायों में वह प्रधान हैं एवम आन्दोलनके बुलेटिन के सम्पादक रहे हैं। उन्होनें तिस से भी ज्यादा कवितापुस्तके लिखें। बांग्ला आधुनिक कविता के वह प्रथम निम्नबर्ग के कवि हैं। .

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भूखी पीढ़ी

भूखी पीढ़ी (Hungry generation, बांग्ला: হাংরি আন্দোলন (हंगरी आन्दोलन)) मूलतः अमेरिकी साहित्य से प्रेरित बांग्ला साहित्य में उथलपुथल मचा देनेवाला एक आन्दोलन रहा है। यह साठ के दशक मे बिहार के पटना शहर मे कवि मलय रायचौधुरी के घर पर एकत्र देबी राय, शक्ति चट्टोपाध्याय और समीर रायचौधुरी के मस्तिष्क से उजागर होकर कोलकाता शहर जा पंहुचा जहाँ उनहोंने नवम्बर १९६१ को एक मेनिफेस्टो (घोषणापत्र) के जरिये आन्दोलन की घोषणा की। बाद में आन्दोलन में योगदान देनेवाले कवि, लेखक एवं चित्रकार थे उतपलकुमार बसु, सन्दीपन चट्टोपाध्याय, बासुदेब दाशगुप्ता, सुबिमल बसाक, अनिल करनजय करुणानिधान मुखोपाध्याय्, सुबो आचारजा, विनय मजुमदार, फालगुनि राय, आलो मित्रा, प्रदीप चौधुरि और सुभाष घोष सहित तीस सदस्य। भुखी पीढी के मैनिफेस्टो गोष्ठी के सदस्यों ने साप्ताहिक बुलेटिन एवं पत्रिका के माध्यम से अपने नये नन्द्नतत्व प्रसारित किये एवं सारे भारत मे हलचल मचा दी। उन लोगों के नयेपन से कोलकाता के साहित्य प्रसाशकगण क्षुब्ध हुये। सितम्बर १९६४ को आन्दोलन के ११ सदस्यो के विरुद्ध अश्लीलता के आरोप मे मुकदमा दायर हुया। मलय रायचौधुरी के लिखे हुये कविता प्रचण्ड बैद्युतिक क्षुतार को निम्न अदालत ने अश्लील करार देक्रर एक माह का काराद्ण्ड का आदेश दिया। उच्च अदालत ने कविता को अश्लील नहीं पाया एवं मलय को बाइज्जत बरी किया। मुकदमे के कारण सारे जगत मे आन्दोलन को प्रचार मिला। भारत एवं बिश्व के प्रमुख सम्बाद तथा सहित्य पत्रिकाओं मे उनके कॄति के चर्चे हुये। वर्तमान में आन्दोलनकारीयो पर शोधकार्य हो रहे है। उनके मेनिफेस्टो आदि ढाका बांग्ला अकादेमि तथा अमरिका के विश्वविद्यालयों में सुरक्षित किये गये है। गिरफ़्तारी एवं आन्दोलन में भाग लेने वाले कवि और लेखकगण जो गिरफतार हुये थे वे लोग अपनी नौकरी से निकाले गये थे। गिरफ़्तारी के समय उन लोगों को रस्सी बांधकर, हाथों में हथकड़ी पहनाकर बीच बाजार से आदालत तक पैदल ले जाया गया था। अध्यापक उत्त्म दाश एवं डक्टर विष्णुच्र्ण दे, जिन्होंने इस आन्दोलन पर शोधकार्य किया है, उनका कहना है कि यह आन्दोलन भारत के उत्तर-उपनिवेशबादी समाज का प्रतिफलन है। आन्दोलन के कवि एवं लेखक भाषा में अनुप्रबेश किये हुये उपनिबेशिय मनन-चिन्तन को झकझोर देने में जुटे रहे। कोलकाता प्रशासन के लिये यह दुश्चिन्ता पैदा करने में कामियाब हो गया था। .

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मलय रॉय चौधुरी

मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .

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शक्ति चट्टोपाध्याय

शक्ति चट्टोपाध्याय (जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५) (শক্তি চট্টোপাধ্যায়) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र समीर रायचौधुरी के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में जेते पारि किन्तु केनो जाबो काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किय गया था। .

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समीर रायचौधुरी

समीर रायचौधुरी समीर रायचौधुरी (१-११-१९३३) (সমীর রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक, कहानीलेखक एवम दार्शनिक हैं। भुखी पीढी आन्दोलन के प्रथम मेनिफेस्टो घोषणाकारीयों में वह प्रधान थे। हवा ४९ साहित्यपत्र के वह सम्पादक रहे हैं। उन्होनें अंग्रेजि भाषा में भी कविता एवम कहानियों के संकलन सम्पाद्न किये हैं। उनके लिखे खुलजा सिमसिम कहानी संकलन को अधुनान्तिक कहा गया है। .

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सुबिमल बसाक

सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

अनिल करनजय और बासुदेब दाशगुप्ता के बीच तुलना

अनिल करनजय 9 संबंध है और बासुदेब दाशगुप्ता 10 है। वे आम 6 में है, समानता सूचकांक 31.58% है = 6 / (9 + 10)।

संदर्भ

यह लेख अनिल करनजय और बासुदेब दाशगुप्ता के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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