अधिनियम और कैबिनेट (सरकार)
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अधिनियम और कैबिनेट (सरकार) के बीच अंतर
अधिनियम vs. कैबिनेट (सरकार)
अधिनियम केन्द्र में संसद या राज्य में विधानसभा द्वारा पारित किसी विधान को कहते हैं। जब संसद या विधानसभा में किसी विषय को प्रस्तावित करते हैं तो उसे विधेयक या बिल कहते हैं। संसद या विधानसभा की सर्वसम्मति से पास होने के बाद उस बिल या विधेयक को अधिनियम का दर्जा मिल जाता है। श्रेणी:विधि श्रेणी:चित्र जोड़ें. किसी सरकार के उच्चस्तरीय नेताओं के समूह को कैबिनेट (cabinet) कहते हैं। प्रायः उन्हें 'मंत्री' (मिनिस्टर) कहा जाता है किन्तु कहीं-कहीं उन्हें 'सेक्रेटरी' भी कहा जाता है। कैबिनेट, इंग्लैंड की शासन व्यवस्था से विकसित शासन-व्यवस्था का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण अंग है। इसका प्रचलन प्राय: उनसभी देशों में है जो ब्रिटिश कामनवेल्थ के सदस्य हैं। कुछ अन्य देशों में भी यह व्यवस्था प्रचलित है। भारत के केंद्रीय एवं प्रादेशिक शासन का भी यह अंग है। सामान्य रूप में संसद की लोकसभा (अथवा प्रादेशिक शासन में विधानसभा) में जिस दल का बहुमत हो या जो बहुमत प्राप्त कर सकता हो, उस दल या दलों के समूह के सदस्यों में से चुने हुए राजनीतिज्ञों का यह एक निकाय है। इसको सदन नहीं चुनता, बल्कि वे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री द्वारा मनोनीत होते हैं। लोकसभा (अथवा विधानसभा) के द्वारा जनमत सरकार पर नियंत्रण रखता है और अपने बहुमत द्वारा लोकसभा (अथवा विधानसभा) सरकार पर नियंत्रण रखती है। किन्तु सरकार, कैबिनेट से बड़ा शासन निकाय है। सरकार में मंत्री, पार्लामेंटरी सचिव आदि वे सब सम्मिलित हैं जिनकी कार्यावधि राजनीतिक है। कैबिनेट अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण मंत्रियों का अधिक छोटा समुदाय है जो देश (अथवा प्रदेश) के शासन के संबंध में सारे महत्वपूर्ण मामलों में नीति का निर्धारण और निर्णय करता है। इसका आकार सरकार के विविध विभागों के कार्यभार के अनुसार घटता बढ़ता और देश-देश में बदलता रहता है। कैबिनेट के सभी सदस्य संसद् (व्यवस्थापिका सभा) के सदस्य होते हैं या नियुक्ति के थोड़े समय के बाद ही उन्हें सदस्य निर्वाचित हो जाना अनिवार्य होता है। भारत में कभी-कभी विधान परिषद् में सरकार द्वारा मनोनीत सदस्यों को भी मंत्रीमंडल में ले लिया जाता है पर यह अपवाद स्वरूप ही। सरकार तब तक ही पदस्थ रह सकती है जबतक लोकसभा (अथवा विधानसभा) में उसे बहुमत का बल प्राप्त हो। यदि किसी महत्वपूर्ण समस्या पर उसकी पराजय हो जाए या वह व्यवस्थापिका सभा का विश्वास खो दे तो उसके लिये पदत्याग करना आवश्यक है। दलों के सुसंगठित होने ओर कठोर अनुशासन का पालन करने के कारण कैबिनेट का उत्तरदायित्व घट गया है। शासित होने के स्थान पर कैबिनेट बहुमत के द्वारा व्यवस्थापिका सभा पर शासन करती है; तथापि जनता के मन को अभिव्यक्त करने के मंच के नाते, लोकसभा (विधानसभा) का महत्व बना हुआ है। किन्तु देखा जाता है कि जनमत का कैबिनेट पर अधिक सीधा नियंत्रण है। कैबिनेट को व्यवस्थापिका सभा के प्रति अपील का अधिकार है- दूसरे शब्दों में सभा को भंग करने का अधिकार है। किन्तु, इस अधिकार का उपयोग किसी विशेष अवसर पर जनमत की अनुकूल लहर का लाभ उठाने के लिये अथवा निश्चित समय से पहले ही आम चुनाव कराने के लिये होता है। कैबिनेट प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थिति प्रधानमंत्री (प्रदेशों में मुख्यमंत्री) की है। लास्की के शब्दों में वे बड़े अधिकारियों से उच्चतर किंतु निरंकुश शासक से कम है। सरकार के गठन का वह केंद्र है, उसके जीवन का केंद्र है, वह जो कुछ है उसके अनुरूप ही कैबिनेट को अपना रूप निर्धारित करना पड़ता है और वह उसके निर्देश में कार्य करती है। सर्वत्र प्रधानमंत्री (मुख्य मंत्री) वैधानिक प्रधान द्वारा मनोनीत होता है, वह चाहे राजा हो या राष्ट्रपति, गवर्नर जनरल हो या गवर्नर। व्यावहारिक रूप में यह मनोनयन राजनीतिक परिस्थितियों द्वारा है। मनोनीत व्यक्ति को अपने सहयोगियों को प्राप्त करने या लोकसभा को मान्य सरकार बनाने में समर्थ होना आवश्यक है। सामान्यत: बहुमतवाले दल के माने हुए नेता को सरकार बनाने के लिये निमंत्रित किया जाता है। उसमें वैधानिक प्रधान की रूचि-अरूचि का प्रश्न नहीं होता। किंतु विशेष परिस्थितियों में वैधानिक प्रधान सीमित निर्णय का ही प्रयोग कर सकता है। यह तब होता है जब प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री) अवकाश ग्रहण करता है या त्यागपत्र देता हे अथवा जब लोकसभा (विधानसभा) में कोई एक दल बहुमत में नहीं होता या राष्ट्रीय संकट के अवसर पर, जब एक दल की अपेक्षा सामान्त: मिली जुली सरकार अच्छी मानी जाती है। किंतु ऐसी अवस्थाओं में भी वैधानिक प्रधान का निर्णय नियंत्रित ही होता है। मनोनीत व्यक्ति के लिये ऐसी स्थिति में होना आवश्यक है कि वह ऐसी सरकार बना सके जो व्यवस्थापिका का समर्थन प्राप्त कर सके। कैबिनेट के सदस्यों से सर्वत्र अपेक्षा की जाती है कि वे संयुक्त रूप में काम करें। वह व्यवस्थापिका के, देश के और वैधानिक प्रधान के सामने अपने को एक संयुक्त रूप में प्रस्तुत करे। अत: पारस्परिक मतभेद कैबिनेट की बैठकों में गुप्त रूप से ठीक कर लिए जाते हैं। समस्त सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे कैबिनेट के सभी निर्णयों का अनुमोदन, यदि आवश्यक हो तो, भाषण और मतदान द्वारा करें। कैबिनेट का उत्तरदायित्व सामूहिक माना जाता है, यदि कोई मंत्री यदि अपने सहयोगियों के मत की अवहेलना कर स्वतंत्र रूप से कार्य करता है तो वह हटा दिया जाता है और त्यागपत्र देने पर विवश किया जाता है। कैबिनेट की एकता का प्रतीक और वैधानिक प्रधान से संपर्क रखने में मुख्य सूत्र प्रधान मंत्री (मुख्य मंत्री) को किसी सहयोगी से त्यागपत्र माँगने ओर कैबिनेट की एकता अक्षुण्ण बनाए रखने का अधिकार है। कैबिनेट प्रणाली वहाँ अधिक सफलतापूर्वक काम करती है जहाँ दो सुसंगठित दल हों- एक सत्तारूढ़ हो ओर दूसरा विरोध में हो और यह अनुभव करे कि यदि सरकार का पतन हुआ तो सरकार चलाने का उत्तरदायित्व उसपर आ सकता है। अत: वह पूरे उत्तरदायित्व के साथ शासन की कमजोरियों का उद्घाटन करता रहे। विरोधी पक्ष आलोचना के लिये आलोचना में नहीं पड़ता, प्रत्युत शासन का सुधार करने के विचार से ओर जनमत को अपने पक्ष में करने के लिये ताकि निर्वाचकों से दूसरे अवसर पर अपील करने में सफलता प्राप्त करे। विरोधी पक्ष के इस स्वरूप को संयुक्त राजशाही में मान्यता प्राप्त है और वह शासन तंत्र का उतना ही महत्वपूर्ण अंग है जितना बहुमतप्राप्त दल। परिणामत: वह 'हर मैजेस्टी' के विरोधी दल के नाम से पुकारा जाता है और उसके नेता को मान्यताप्राप्त जनसेवा का उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से निर्वाह करने के लिये सरकारी खजाने से नियमित वेतन मिलता है। इस परंपरा को भारत में भी अपनाया गया है ओर विरोध पक्ष के नेता को मंत्री के समान वेतन प्राप्त होता है। कैबिनेट सरकार वहाँ स्थायी नहीं हो पाती जहाँ दलों का बाहुल्य हो अथवा जहाँ ऐसे समूह हों जिन्हें 'स्प्लिंटर ग्रूप्स' कहा जाता है। .
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