लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

अति तरलता

सूची अति तरलता

हिलियम II सतह से 'रेंगते हुए' अपना 'स्तर' स्वयं ढूंढ़ लेती है। कुछ समय बाद देखेंगे कि चित्र में दिखाये गये दोनों पात्रों में द्रव हिलियम का स्तर एकसमान हो जायेगा। अति तरलता (Superfluidity) पदार्थ की वह अवस्था है जिसमें पदार्थ ऐसा व्यवहार करता है जैसे वह शून्य श्यानता का द्रव हो। मूलतः यह गुण द्रव हिलियम में पाया गया था किन्तु अति-तरलता का गुण खगोलभौतिकी, उच्च ऊर्जा भौतिकी, तथा क्वाण्टम गुरुत्व के सिद्धान्तों में भी में भी देखने को मिलता है। यह परिघटना बोस-आइंस्टाइन संघनन से सम्बन्धित है। किन्तु सभी बोस-आइंस्टाइन द्राव (condensates) अति तरल नहीं कहे जा सकते हैं और सभी अति तरल बोस-आइंस्टाइन द्राव नहीं होते। श्रेणी:द्रव गतिकी श्रेणी:पदार्थ प्रावस्थाएँ श्रेणी:उदीयमान प्रौद्योगिकी.

7 संबंधों: द्रव, दृग्विषय, बोस-आइंस्टाइन संघनन, श्यानता, हिलियम, खगोलभौतिकी, कण भौतिकी

द्रव

द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होता। द्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। प्रकृति में सभी रासायनिक पदार्थ साधारणत: ठोस, द्रव और गैस तथा प्लाज्मा - इन चार अवस्थाओं में पाए जाते हैं। द्रव और गैस प्रवाहित हो सकते हैं, किंतु ठोस प्रवाहित नहीं होता। लचीले ठोस पदार्थों में आयतन अथवा आकार को विकृत करने से प्रतिबल उत्पन्न होता है। अल्प विकृतियों के लिए विकृति और प्रतिबल परस्पर समानुपाती होते हैं। इस गुण के कारण लचीले ठोस एक निश्चित मान तक के बाहरी बलों को सँभालने की क्षमता रखते हैं। प्रवाह का गुण होने के कारण द्रवों और गैसों को तरल पदार्थ (fluid) कहा जाता है। ये पदार्थ कर्तन (shear) बलों को सँभालने में अक्षम होते हैं और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रवाहित होकर जिस बरतन में रखे रहते हैं, उसी का आकार धारण कर लेते हैं। ठोस और तरल का यांत्रिक भेद बहुत स्पष्ट नहीं है। बहुत से पदार्थ, विशेषत: उच्च कोटि के बहुलक (polymer) के यांत्रिक गुण, श्यान तरल (viscous fluid) और लचीले ठोस के गुणों के मध्यवर्ती होते हैं। प्रत्येक पदार्थ के लिए एक ऐसा क्रांतिक ताप (critical temperature) पाया जाता है, जिससे अधिक होने पर पदार्थ केवल तरल अवस्था में रह सकता है। क्रांतिक ताप पर पदार्थ की द्रव और गैस अवस्था में विशेष अंतर नहीं रह जाता। इससे नीचे के प्रत्येक ताप पर द्रव के साथ उसका कुछ वाष्प भी उपस्थित रहता है और इस वाष्प का कुछ निश्चित दबाव भी होता है। इस दबाव को वाष्प दबाव कहते हैं। प्रत्येक ताप पर वाष्प दबाव का अधिकतम मान निश्चित होता है। इस अधिकतम दबाव को संपृक्त-वाष्प-दबाव के बराबर अथवा उससे अधिक हो, तो द्रव स्थायी रहता है। यदि ऊपरी दबाव द्रव के संपृक्तवाष्प-दबाव से कम हो, तो द्रव अस्थायी होता है। संपृक्त-वाष्प-दबाव ताप के बढ़ने से बढ़ता है। जिस ताप पर द्रव का संपृक्त-वाष्प-दबाव बाहरी वातावरण के दबाव के बराबर हो जाता है, उसपर द्रव बहुत तेजी से वाष्पित होने लगता है। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point) कहते हैं। यदि बाहरी दबाव सर्वथा स्थायी हो तो क्वथनांक से नीचे द्रव स्थायी रहता है। क्वथनांक पर पहुँचने पर यह खौलने लगता है। इस दशा में यह ताप का शोषण करके द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है। क्वथनांक पर द्रव के इकाई द्रव्यमान को द्रव से पूर्णत: गैस में परिवर्तित करने के लिए जितने कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे द्रव के वाष्पीभवन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। विभिन्न द्रव पदार्थों के लिए इसका मान भिन्न होता है। एक नियत दबाव पर ठोस और द्रव दोनों रूप साथ साथ एक निश्चित ताप पर पाए जा सकते हैं। यह ताप द्रव का हिमबिंदु या ठोस का द्रवणांक कहलाता है। द्रवणांक पर पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को ठोस से पूर्णत: द्रव में परिवर्तित करने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अक्रिस्टली पदार्थों के लिए कोई नियत गलनांक नहीं पाया जाता। वे गरम करने पर धीरे धीरे मुलायम होते जाते हैं और फिर द्रव अवस्था में आ जाते हैं। काँच तथा काँच जैसे अन्य पदार्थ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। एक नियत ताप और नियत दबाव पर प्रत्येक द्रव्य की तीनों अवस्थाएँ एक साथ विद्यमान रह सकती हैं। दबाव और ताप के बीच खीचें गए आरेख (diagram) में ये नियत ताप और दबाव एक बिंदु द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। इस बिंदु को द्रव का त्रिक् बिंदु (triple point) कहते हैं। त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दाबों पर द्रव अस्थायी रहता है। यदि किसी ठोस को त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दबाव पर रखकर गरम किया जाए तो वह बिना द्रव बने ही वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, अर्थात् ऊर्ध्वपातित (sublime) हो जाता है। द्रव के मुक्त तल में, जो उस द्रव के वाष्प या सामान्य वायु के संपर्क में रहता है, एक विशेष गुण पाया जाता है, जिसके कारण यह तल तनी हुई महीन झिल्ली जैसा व्यवहार करता है। इस गुण को पृष्ठ तनाव (surface tension) कहते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल यथासंभव न्यूनतम होता है। किसी दिए आयतन के लिए सबसे कम क्षेत्रफल एक गोले का होता है। अत: ऐसी स्थितियों में जब कि बाहरी बल नगण्य माने जा सकते हों द्रव की बूँदे गोल होती हैं। जब कोई द्रव किसी ठोस, या अन्य किसी अमिश्रय द्रव, के संपर्क में आता है तो भी संपर्क तल पर तनाव उत्पन्न होता है। साधारणत: कोई भी पदार्थ केवल एक ही प्रकार के द्रव रूप में प्राप्त होता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जैसे हीलियम गैस को द्रवित करके दो प्रकार के हीलियम द्रव प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी प्रकार पैरा-ऐज़ॉक्सी-ऐनिसोल (Para-azoxy-anisole) प्रकाशत: विषमदैशिक (anisotropic) द्रव के रूप में, क्रिस्टलीय अवस्था में तथा सामान्य द्रव के रूप में भी प्राप्त हो सकता है। .

नई!!: अति तरलता और द्रव · और देखें »

दृग्विषय

दियासलाई की तिल्ली का जलना एक ऐसी घटना है जिसे देखा जा सकता है; अत: यह एक परिघटना है। observed as appearing differently. दृग्विषय या परिघटना (phenomenon, बहुवचन phenomena, phainomenon, phainein क्रिया से) कोई वह चीज़ हैं जो स्वयं प्रकट होती हैं। भले सदैव नहीं, पर आम तौर पर दृग्विषयों को "चीजें जो दृष्टिगोचर होती हैं" या संवेदन-समर्थ जीवों के "अनुभव" समझे जाते हैं, या वे जो सैद्धान्तिक रूप से हो सकते हैं। यह शब्द इमानुएल काण्ट के द्वारा आधुनिक दार्शनिक प्रयोग में आया, जिन्होंने इसे मनस्विषय के विपरीत बताया। दृग्विषय के विपरीत, मनस्विषय अन्वेषण के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अभिगम्य नहीं हैं। काण्ट Gottfried Wilhelm Leibniz के दर्शन के इस भाग से बेहद प्रभावित थे, जिसमें, दृग्विषय और मनस्विषय पारस्पारिक तकनीकी शब्द थे। श्रेणी:तत्वमीमांसा की अवधारणाएँ.

नई!!: अति तरलता और दृग्विषय · और देखें »

बोस-आइंस्टाइन संघनन

क्वाण्टम फेज ट्रांजीशन बोस-आइंस्टाइन द्राव या बोस-आइंस्टाइन संघनित (Bose–Einstein condensate (BEC)) पदार्थ की एक अवस्था जिसमें बोसॉन की तनु गैस को परम शून्य (0 K या −273.15 °C) के बहुत निकट के ताप तक ठण्डा कर दिया जाता है। इस स्थिति में अधिसंख्य बोसॉन निम्नतम क्वाण्टम अवस्था में होते हैं और क्वाण्टम प्रभाव स्थूल पैमाने पर भी दिखने लगते हैं। इन प्रभावों को 'स्थूल क्वाण्टम परिघटना' (macroscopic quantum phenomena) कहते हैं। पदार्थ की इस अवस्था की सबसे पहले भविष्यवाणी 1924-25 में सत्येन्द्रनाथ बोस ने की थी। किन्तु बाद में किये गये प्रयोगों से जटिल अन्तरक्रिया का पता चला। श्रेणी:पदार्थ श्रेणी:विचित्र पदार्थ.

नई!!: अति तरलता और बोस-आइंस्टाइन संघनन · और देखें »

श्यानता

उपर के द्रव की श्यानता नीचे के द्रव की श्यानता से बहुत कम है। श्यानता (Viscosity) किसी तरल का वह गुण है जिसके कारण वह किसी बाहरी प्रतिबल (स्ट्रेस) या अपरूपक प्रतिबल (शीयर स्ट्रेस) के कारण अपने को विकृत (deform) करने का विरोध करता है। सामान्य शब्दों में, यह उस तरल के गाढे़पन या उसके बहने का प्रतिरोध करने की क्षमता का परिचायक है। उदाहरण के लिये, पानी पतला होता है एवं उसकी श्यानता वनस्पति तेल की अपेक्षा कम होती है जो कि गाढा़ होता है। .

नई!!: अति तरलता और श्यानता · और देखें »

हिलियम

तरलीकृत हीलियम शुद्ध हीलियम से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हिलियम (Helium) एक रासायनिक तत्त्व है जो प्रायः गैसीय अवस्था में रहता है। यह एक निष्क्रिय गैस या नोबेल गैस (Noble gas) है तथा रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) भी है। इसका परमाणु क्रमांक २ है। सभी तत्वों में इसका क्वथनांक (boiling point) एवं गलनांक (melting point) सबसे कम है। द्रव हिलियम का प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठण्डा करने के लिये किया जाता है; जैसे अतिचालक तारों को १.९ डिग्री केल्विन तक ठण्डा करने के लिये। हीलियम अक्रिय गैसों का एक प्रमुख सदस्य है। इसका संकेत He, परमाणुभार ४, परमाणुसंख्या २, घनत्व ०.१७८५, क्रांतिक ताप -२६७.९०० और क्रांतिक दबाव २ २६ वायुमंडल, क्वथनांक -२६८.९० सें.

नई!!: अति तरलता और हिलियम · और देखें »

खगोलभौतिकी

खगोलभौतिकी (Astrophysics) खगोल विज्ञान का वह अंग है जिसके अंतर्गत खगोलीय पिंडो की रचना तथा उनके भौतिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। कभी-कभी इसे 'ताराभौतिकी' भी कह दिया जाता है हालाँकि वह खगोलभौतिकी की एक प्रमुख शाखा है जिसमें तारों का अध्ययन किया जाता है। .

नई!!: अति तरलता और खगोलभौतिकी · और देखें »

कण भौतिकी

कण भौतिकी, भौतिकी की एक शाखा है जिसमें मूलभूत उप परमाणविक कणो के पारस्परिक संबन्धो तथा उनके अस्तित्व का अध्ययन किया जाता है, जिनसे पदार्थ तथा विकिरण निर्मित हैं। हमारी अब तक कि समझ के अनुसार कण क्वांटम क्षेत्रों के उत्तेजन (excitations) हैं। दूसरे कणों के साथ इनकी अन्तःक्रिया की अपनी गतिकी है। कण भौतिकी के क्षेत्र में अधिकांश रुचि मूलभूत क्षेत्रों (fundamental fields) में है। मौलिक क्षेत्रों और उनकी गतिशीलताओ के सार को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसिलिये कण भौतिकी में अधिकतर स्टैंडर्ड मॉडल (Standard Model) के मूल कणों तथा उनके सम्भावित विस्तार के बारे में अध्यन किया जाता है। .

नई!!: अति तरलता और कण भौतिकी · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

अतितरलता

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »