अखेनातेन और सामी भाषाएँ
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अखेनातेन और सामी भाषाएँ के बीच अंतर
अखेनातेन vs. सामी भाषाएँ
फारो अखेनातेन फारो अखेनातेन (१३५१-१३३४ ईपू) मिस्र के १८वें वंश का था। उसने मिस्र के प्राचीन धर्म पर प्रतिबन्ध लगाया और केवल अतेन नामी सूर्य की चक्रिका की उपासना का आदेश दिया। उसे पाश्चात्य विद्वान विश्व का पहला एकेश्वरवादी मानते हैं। पहले इसका नाम अमेनहोतेप ४ था। पर नया धर्म चलाने के पश्चात इसने यह बदलकर अखेनातेन कर दिया। अखेनातेन और उसका परिवार सूर्य की पूजा करता हुआनेफरतिति उसकी पहली पत्नी थी। मित्तानी राजकुमारी तदुक्षिपा उसकी दूसरी रानी बनी। एक अवधारणा यह है कि इसका धार्मिक परिवर्तन तदुक्षिपा के आगम की भ्रमित समझ पर आधारित था। सुभाष काक के अनुसार उसके सूर्य स्तोत्र और ऋग्वेद के सूर्य सूक्तों में महत्त्वपूर्ण सादृश्य है। अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र बाइबल के पूर्वविधान (Old Testament) में १०४वें स्तोत्र के रूप में मिलता है। उसकी मृत्यु पशचात उसके नये धर्म दबाया गया। कुछ विद्वान समझते हैं कि मूसा ने इसी के विचारों को दुबारा उठाना चाहा। यदि यह सिद्धान्त सही है तो यह विडम्बना है कि अखेनातन की परम्परा, जिसे यहूदी ईसाई और इसलामी धर्मों का पूर्वरूप माना जाता है, स्वयं इसकी विरोधी सनातन धर्म की परम्परा पर आधारित है। अखेनातेन, नेफरतिति और उनके बच्चे . प्राचीन काल की सामी भाषाओँ का फैलाव सामी भाषाएँ या सॅमॅटिक भाषाएँ २७ करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओँ का एक भाषा परिवार है जो स्वयं सामी-हामी भाषा-परिवार की एक उपशाखा है। यह भाषाएँ मध्य पूर्व, उत्तर अफ़्रीका और अफ़्रीका के सींग के क्षेत्रों में बोली जाती हैं। सब से अधिक बोली जाने वाली सामी भाषा अरबी है, जिसे २० करोड़ से अधिक लोग अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। इसके आलावा अम्हारिक (२.७ करोड़), तिग्रिन्या (६७ लाख), इब्रानी (५० लाख) और आरामाईक (२२ लाख) कुछ अन्य प्रचलित सामी भाषाएँ हैं।, Anatole Lyovin, Oxford University Press US, 1997, ISBN 978-0-19-508116-9 सामी भाषाओं को इतिहास में बहुत ही जल्दी लिखित रूप में देखा गया था। सन् ३००० ईसापूर्व में सुमेर सभ्यता द्वारा विकसित अंकन लिपि (क्यूनीफ़ॉर्म) का प्रयोग एब्लाई और अक्कादी भाषाओँ के लिए आरम्भ हो गया जो सामी भाषाएँ थीं। सामी भाषाएँ अब इब्रानी, सीरियाई, अरबी और गेएज़ लिपि में लिखी जाती हैं। इनमें अक्सर स्वरों को प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि अधिकतर सामी भाषाओं में अर्थ व्यंजनों से ही आता है। हिन्द-यूरोपीय भाषाओँ (जैसे कि हिन्दी) और सामी भाषाओं में एक बड़ा अंतर यह है कि हिन्द-यूरोपीय भाषाओं में ज़्यादातर हर शब्द की एक जड़ होती है जिसके आगे-पीछे अक्षर जोड़कर उसका अर्थ परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए 'लिख' जड़ में अक्षर जोड़कर 'लिखाई', 'लिखो', 'लिखना', 'लिखा', इत्यादि बनते हैं। सामी भाषाओं में जड़े आम तौर पर तीन व्यंजनों का समूह होती हैं जिनके बीच में स्वर भरकर उनका अर्थ परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए अरबी में: किताब (पुस्तक), कुतुब (पुस्तकें), कातिब (लेखक), कुत्ताब (कई लेखक), कतबा (उसने लिखा), याकतुबू (वह लिखता है)। इसमें क-त-ब के व्यंजनों के बीच में स्वर बदलकर मतलब बदले जा रहें हैं।, Nizar Y. Habash, pp.
अखेनातेन और सामी भाषाएँ के बीच समानता
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संदर्भ
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