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2017 कतर राजनयिक संकट और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

2017 कतर राजनयिक संकट और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर के बीच अंतर

2017 कतर राजनयिक संकट vs. २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर

अरब प्रायद्वीप जून 2017 में, कई देशों ने सऊदी अरब के नेतृत्व में कतर से अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये हैं। इन देशों ने संकट को समाप्त करने के लिए कतर से राजनयिक संबंध समाप्त किए, क्योंकि कतर आतंकवादी संगठनों का समर्थन करने, आंतरिक मामलों में दखल देने, और ईरान का समर्थन करने के कारण किया गया है। अन्य देशों ने भी इसके साथ संबंधों में कटौती की है, जिसमें बहरीन, मिस्र, यमन (हादी के नेतृत्व वाली सरकार), संयुक्त अरब अमीरात, लीबिया (हाउस के प्रतिनिधियों और सरकार के राष्ट्रीय एकॉर्ड), और मालदीव शामिल हैं। खाड़ी सहयोग परिषद के दो सदस्यों, कुवैत और ओमान ने कतर के खिलाफ सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सदस्यों का साथ नहीं दिया। कुवैत चाहता था कि कोई वार्ता कर के कोई मध्य का मार्ग निकल जाये और दोनों के मध्य तनाव कम हो जाये। ईरान ने भी तनाव कम करने हेतु वार्ता हो, इसका प्रयास किया था। . मध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरना का दौर २०१० मे आरंभ हुआ, इसे अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहतें हैं। अरब स्प्रिंग, क्रान्ति की एक ऐसी लहर थी जिसने धरना, विरोध-प्रदर्शन, दंगा तथा सशस्त्र संघर्ष की बदौलत पूरे अरब जगत के संग समूचे विश्व को हिला कर रख दिया। इसकी शुरूआत ट्यूनीशिया में १८ दिसमबर २०१० को मोहम्मद बउज़िज़ी (Md. Bouazizi) के आत्मदाह के साथ हुई। इसकी आग की लपटें पहले-पहल अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फैल गई। इन विरोध प्रदर्शनो के परिणाम स्वरूप कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा। बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, ईरक, सुडान, कुवैत, मोरक्को, इजरायल में भारी जनविरोध हुए, तो वही मौरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा तथा पलीस्तिन भी इससे अछूते न रहे। हालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी, परंतु इनके विरोध प्रदर्शनो के तौर-तरीके में कई समानता थी - हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली। अमूमन, शुक्रवार (जिसे आक्रोश का दिन भी कहा जाता) को विशाल एवं संगठित भारी विरोध प्रदर्शन होता, जब जुमे की नमाज़ अदा कर सड़कों पर आम नागरिक इकठ्ठित होते थे। सोशल मीडिया का अरब क्रांति में अनोखा एवं अभूतपूर्व योगदान था। एक बेहद ही ढ़ाँचागत तरीके से दूर-दराज के लोगों को क्रांति से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल हुआ। अरब सप्रिङ के क्रन्तिकारियों को सरकार, सरकार-समर्थित हथियारबंद लड़ाके एवं अन्य विरोधियों से दमन का सामना करना पड़ा, लेकिन ये अपने नारे 'Ash-sha`b yurid isqat an-nizam' (अंग्रेज़ी में - "the people want to bring down the regime"; हिन्दी में - 'जनता की पुकार-शासन का खात्मा हो') के साथ आगे बढ़ते रहें। अरब क्रांति ने पूरी दुनिया का आकर्षण अपनी ओर खींचा। तवाकोल करमान (Tawakkol Karman), यमनवासी, अरब स्प्रिङ के प्रमुख योद्धाओं में एक, २०११ शान्ति नोबल पुरस्कार विजेता थी। दिसमबर २०११ में 'टाईम' पत्रिका ने अरब विरोधियों को 'द परसन ऑफ द ईयर' (The Person of the Year) की खिताब से नवाजा। .

2017 कतर राजनयिक संकट और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर के बीच समानता

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2017 कतर राजनयिक संकट और २०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर के बीच तुलना

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संदर्भ

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