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त्वचा रोगों की सूची

सूची त्वचा रोगों की सूची

कोई विवरण नहीं।

15 संबंधों: त्वचा का रंग बदलना, त्वचाशोथ, दाद, फोड़ा, बिवाई, मुंहासे, रूसी भाषा, रोगों की सूची, सफेद दाग, घमौरी, खाज, गंजापन, कुष्ठरोग, छाल रोग, छाजन

त्वचा का रंग बदलना

त्वचा के हाइपोपिगमेंटेशन के तीन मुख्य प्रकार होते हैं: विटिलिगो, पोस्‍ट इनफ्लेमेटरी हाइपोपिगमेंटेशन तथा रंजकहीनता। विटिलिगो को अरंजक क्षेत्रों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। यह आमतौर पर सीमांकित एवं अक्सर सुडौल होते है जो मेलेनोसाइट्स (त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं) की कमी के कारण होते हैं। अरंजकता एक या दो स्थानों पर हो सकता है या ज्‍यादातर त्वचा की सतह को ढँक सकता है। विटिलिगो वाले क्षेत्रों में बाल सामान्यतः सफेद होते है। त्वचा के घाव वुड्स प्रकाश डालने पर उभरते हैं। प्रज्वलन या प्रदाह बाद की हाइपो रंजकता कुछ किस्म के प्रदाह विकारों के भरने (उदाहरण डर्मिटाइटिस), जलने एवं त्वचा संक्रमण के बाद होता है। यह चोट के निशानों तथा एट्रोफिक त्वचा से संबंधित है। त्वचा की रंजकता कम होती है, लेकिन विटिलिगो समान दूधिया सफेद नहीं होती है। कभी स्वतःस्फूर्त पुन:रंजकता हो सकती है। रंजकहीनता एक दुर्लभ ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेड विकार है जिसमें मेलेनोसाइट्स उपस्थित होता हैं लेकिन मेलेनिन नहीं बनाते (पदार्थ जो त्वचा को रंगता है)। वे विभिन्न रूपों के होते हैं। टाइरोसिनेस-निगेटिव रंजकहीनता में बाल सफेद होते हैं, त्वचा पीली, एवं आंखें गुलाबी होती है; नायस्‍टेग्‍मस् एवं अपवर्तन की त्रुटियाँ एक सामान्य बात हैं। उन्‍हें सूर्य के प्रकाश से बचना चाहिए, धूप के चश्मे का उपयोग करना चाहिए, दिन के समय सनस्क्रीन एस.पी.एफ़ >.

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त्वचाशोथ

हाथ का त्वचाशोथ केरोसिन के सम्पर्क में आने के कारण उत्पन्न त्वचाशोथ त्वचाशोथ या 'डर्मेटाइटिस' (Dermatitis) में त्वचा में लाली, शोथ, खुजलाहट आदि होती है। इसका कारण त्वचा की किसी परत या परतों में जलन उत्पन्न करने वाले घावों का होना है। त्वचाशोथ विश्व में सभी जगह, विशेषतया गरम, आर्द्र और उद्योग प्रधान देशों में तथा सभी उम्र के लोगों में हुआ करता है। स्त्रियों को यह रोग कम होता है। त्वचा शरीर का वह भाग है, जहाँ से रोग आसानी से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन इसकी रचना इतनी दृढ़ है कि अधिकतर आक्रामक विफल होकर लौट जाते हैं। त्वचाशोथ के तीन भेद हैं.

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दाद

बाहुओं पर दाद दाद या दद्रु कुछ विशेष जाति का फफूँदों के कारण उत्पन्न त्वचाप्रदाह है। ये फफूंदें माइक्रोस्पोरोन (Microsporon), ट्राकॉफाइटॉन (Trichophyton), एपिडर्मोफाइटॉन (Epidermophyton) या टीनिया जाति की होती है। दद्रु रोग कई रूपों में शरीर के अंगों पर आक्रमण करता है। खोपड़ी का दद्रु फफूंद द्वारा केश की जड़ में आक्रमण के कारण होता है। यह बालों और नववयस्कों में अधिक होता है। खोपड़ी पर गोल चकत्तियों में गंगाजल हो जाता है। केश जड़ के पास से टूट जाते हैं। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर केश के चारों ओर फफूंद जीवाणु का जाला सा दिखाई पड़ता है। इसकी चिकित्सा कठिन है। एक्स-किरणों से चिकित्सा की जाती है। दूसरे प्रकार का दद्रु दाढ़ी की दाद है (टीनिया बार्बी)। यह भी कठिनाई से जाता है। एक और प्रकार का दद्रु नाखून में होता है। त्वचा का दद्रु दाद या खाज नाम से प्रसिद्ध है। इसमें छोटे छोटे दानों का वृत्त प्रकट होता है, जिसके सूखने पर और बड़े वृत्त में दाने निकलते हैं। दानों में बड़ी खुजली और जलन होती है। बहुधा खुजलाने से घाव हो जाते हैं, जिनमें मवाद पड़ जाता है। दाद की चिकित्सा के लिए अनेक औषधियाँ प्राप्य हैं और नई औषधियों में लगाने और खाने की फफूंद नाशक दवाएँ भी अब प्राप्य हैं। .

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फोड़ा

फोड़ा या फुंसी एक बहुत ही गहरा संक्रमण कूपशोथ (बाल के कूप का संक्रमण) है, यह लगभग हमेशा स्टैफिलोकोकस और यूस नामक जीवाणु के कारण होता है जिससे चमड़ी के ऊपर पूस और मरी हुई कोष से दर्दनाक सूजन होने लगती है। कई अलग-अलग फोड़े जब एक साथ जमा हो जाते हैं, तो उसे नासूर कहा जाता है। .

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बिवाई

बिवाई पैरों की एड़ियों में होती हैं। इसे एड़ियों का फटना भी कहा जाता है। एक सामान्य सौंदर्य समस्या हो सकती है, लेकिन इससे गंभीर चिकित्सकीय समस्या भी पैदा हो सकती है। एड़ियों की बिवाई उस समय सामने आती है, जब एड़ियों के नीचे की बाहरी सतह की त्वचा कड़ी, सूखी और भुरभुरी हो जाती है। कभी-कभी तो बिवाई इतनी गहरी होती है कि उसमें दर्द होने लगता है और खून निकलने लगता है। फटी हुई एड़ियां पैरों की एक सामान्य समस्या है, जिसे बिवाई भी कहा जाता है। एड़ियों का फटना आमतौर पर सूखी त्वचा (जेरोसिस) के कारण होता है। जब एड़ी के चारों ओर की त्वचा मोटी हो जाती है (कैलस), तो समस्या अधिक गंभीर हो जाती है। .

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मुंहासे

मुहांसे मुंहासे या पिटिका (Pimples or Acne) त्वचा की एक स्थिति है जो सफेद, काले और जलने वाले लाल दाग के रूप में दिखते हैं। यह लगभग 14 वर्ष से शुरू होकर 30 वर्ष तक कभी भी निकल सकते हैं। ये निकलते समय तकलीफ दायक होते हैं व बाद में भी इसके दाग-घब्बे चेहरे पर रह जाते हैं। .

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रूसी भाषा

विश्व में रूसी भाषा का प्रसार रूसी भाषा (русский язык,रूस्किय् यज़ीक्) - पूर्वी स्लाविक भाषाओं में सर्वाधिक प्रचलित भाषा है। रूसी यूरोप की एक प्रमुख भाषा तो है ही, विश्व की प्रमुख भाषाओं में भी इस का विशेष स्थान है, हालाँकि भौगोलिक दृष्टि से रूसी बोलने वालों की अधिकतर संख्या यूरोप की बजाय एशिया में निवास करती है। रूसी भाषा रूसी संघ की आधिकारिक भाषा है। इसके अतिरिक्त बेलारूस, कज़ाकिस्तान, क़िर्गिस्तान, उक्राइनी स्वायत्त जनतंत्र क्रीमिया, जॉर्जियाई अस्वीकृत जनतंत्र अब्ख़ाज़िया और दक्षिणी ओसेतिया, मल्दावियाई अस्वीकृत जनतंत्र ट्रांसनीस्ट्रिया (नीस्टर का क्षेत्र) और स्वायत्त जनतंत्र गगऊज़िया नामक देशों और जनतंत्रों में रूसी भाषा सहायक आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार की गई है। रूसी भूतपूर्व सोवियत संघ के सभी १५ सोवियत समाजवादी जनतंत्रों की राजकीय भाषा थी। सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी इन सभी आधुनिक स्वतंत्र देशों में अपनी-अपनी राष्ट्रीय भाषाओं के साथ-साथ परस्पर आपसी व्यवहार के लिए सम्पर्क भाषा के रूप में रूसी भाषा का प्रयोग किया जाता है। इन १५ देशों में रहने वाले निवासियों में से भी अधिकांश की मातृभाषा रूसी ही है। विश्व के विभिन्न देशों में (इसराइल, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, तुर्की, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि) जहाँ कहीं भी भूतपूर्व सोवियत संघ या रूस के प्रवासी बसे हुए हैं, वहाँ कई जगहों पर रूसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं, रूसी भाषा में रेडियो और दूरदर्शन काम करते हैं तथा स्कूलों में रूसी सिखाई जाती है। कुछ वर्ष पहले तक पूर्वी यूरोपियाई देशों के स्कूलों में रूसी भाषा विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती थी। कुल मिला कर विश्व में रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या ३०-३५ करोड़ है, जिस में से 16 करोड़ लोग इसे अपनी मातृभाषा मानते हैं। इसके आधार पर रूसी संसार की भाषाओं में पाँचवे स्थान पर है और वह संयुक्त राष्ट्र (UN) की ५ आधिकारिक भाषाओं में से एक है। .

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रोगों की सूची

रोगों की इस सूची में रोगों के मुख्य वर्ग शामिल हैं।.

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सफेद दाग

सफेद दाग के रोगी के हाथ सफेद दाग (Leukoderma / ल्यूकोडर्मा) एक त्‍वचा रोग है। इस रोग से ग्रसि‍त लोगों के बदन पर अलग-अलग स्‍थानों पर अलग-अलग आकार के सफेद दाग आ जाते हैं। वि‍श्‍व में एक से दो प्रति‍शत लोग इस रोग से प्रभावि‍त हैं, लेकि‍न भारत में इस रोग के शि‍कार लोगों का प्रति‍शत चार से पांच है। राजस्‍थान और गुजरात के कुछ भागों में पांच से आठ प्रति‍शत लोग इस रोग से ग्रस्‍त हैं। शरीर पर सफेद दाग आ जाने को लोग एक कलंक के रूप में देखने लगते हैं और कुछ लोग भ्रम-वश इसे कुष्‍ठ रोग मान बैठते हैं। इस रोग से प्रभावि‍त लोग ज्‍यादातर हताशा में रहते हैं और उन्‍हें लगता है कि ‍समाज ने उन्‍हें बहि‍ष्‍कृत कि‍या हुआ है। इस रोग के एलोपैथी और अन्‍य चि‍कि‍त्‍सा-पद्धति‍यों में इलाज हैं। शल्‍यचि‍कि‍त्‍सा से भी इसका इलाज कि‍या जाता है, लेकि‍न ये सभी इलाज इस रोग को पूरी तरह ठीक करने के लि‍ए संतोषजनक नहीं हैं। इसके अलावा इन चि‍कि‍त्‍सा-पद्धति‍यों से इलाज बहुत महंगा है और उतना कारगर भी नहीं है। रोगि‍यों को इलाज के दौरान फफोले और जलन पैदा होती है। इस कारण बहुत से रोगी इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। डि‍बेर के वैज्ञानि‍कों ने इस रोग के कारणों पर ध्‍यान केंद्रि‍त कि‍या है और हि‍मालय की जड़ी-बूटि‍यों पर व्‍यापक वैज्ञानि‍क अनुसंधान करके एक समग्र सूत्र तैयार कि‍या है। इसके परि‍णामस्‍वरूप एक सुरक्षि‍त और कारगर उत्‍पाद ल्‍यूकोस्‍कि‍न वि‍कसि‍त कि‍या जा सका है। इलाज की दृष्‍टि‍से ल्‍यूकोस्‍कि‍न बहुत प्रभावी है और यह शरीर के प्रभावि‍त स्‍थान पर त्‍वचा के रंग को सामान्‍य बना देता है। इससे रोगी का मानसि‍क तनाव समाप्‍त हो जाता है और उसके अंदर आत्‍मवि‍श्‍वास बढ़ जाता है। .

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घमौरी

घमौरियाँ अक्सर पसीने की ग्रन्थियों का मुंह बन्द हो जाने के कारण हमारे शरीर पर छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं। इन दानों में खुजली व जलन होती है। सामान्य भाषा में हम इसे घमौरियाँ (Prickly heat या Miliaria) कहते हैं। गरम एवं आर्द्र (ह्युमिड) मौसम की दशा में घमैरी होती हैं। घमौरियाँ अक्सर हमारी पीठ, छाती, बगल व कमर के आसपास होती है। .

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खाज

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गंजापन

पुरुष पैटर्न का गंजापन गंजापन (Baldness) की स्थिति में सिर के बाल बहुत कम रह जाते हैं। गंजापन की मात्रा कम या अधिक हो सकती है। गंजापन को एलोपेसिया भी कहते हैं। जब असामान्य रूप से बहुत तेजी से बाल झड़ने लगते हैं तो नये बाल उतनी तेजी से नहीं उग पाते या फिर वे पहले के बाल से अधिक पतले या कमजोर उगते हैं। इसके चलते बालों का कम होना या कम घना होना शुरू हो जाता है और ऐसी हालत में सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि यह स्थिति गंजेपन की ओर जाती है। .

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कुष्ठरोग

कुष्ठरोग (Leprosy) या हैन्सेन का रोग (Hansen’s Disease) (एचडी) (HD), चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर, माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है। कुष्ठरोग मुख्यतः ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म और बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा-संबंधी (granulomatous) बीमारी है; त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। लोककथाओं के विपरीत, कुष्ठरोग के कारण शरीर के अंग अलग होकर गिरते नहीं, हालांकि इस बीमारी के कारण वे सुन्न तथा/या रोगी बन सकते हैं। कुष्ठरोग ने 4,000 से भी अधिक वर्षों से मानवता को प्रभावित किया है, और प्राचीन चीन, मिस्र और भारत की सभ्यताओं में इसे बहुत अच्छी तरह पहचाना गया है। पुराने येरुशलम शहर के बाहर स्थित एक मकबरे में खोजे गये एक पुरुष के कफन में लिपटे शव के अवशेषों से लिया गया डीएनए (DNA) दर्शाता है कि वह पहला मनुष्य है, जिसमें कुष्ठरोग की पुष्टि हुई है। 1995 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुमान के अनुसार कुष्ठरोग के कारण स्थायी रूप से विकलांग हो चुके व्यक्तियों की संख्या 2 से 3 मिलियन के बीच थी। पिछले 20 वर्षों में, पूरे विश्व में 15 मिलियन लोगों को कुष्ठरोग से मुक्त किया जा चुका है। हालांकि, जहां पर्याप्त उपचार उपलब्ध हैं, उन स्थानों में मरीजों का बलपूर्वक संगरोध या पृथक्करण करना अनावश्यक है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी पूरे विश्व में भारत (जहां आज भी 1,000 से अधिक कुष्ठ-बस्तियां हैं), चीन, रोमानिया, मिस्र, नेपाल, सोमालिया, लाइबेरिया, वियतनाम और जापान जैसे देशों में कुष्ठ-बस्तियां मौजूद हैं। एक समय था, जब कुष्ठरोग को अत्यधिक संक्रामक और यौन-संबंधों के द्वारा संचरित होने वाला माना जाता था और इसका उपचार पारे के द्वारा किया जाता था- जिनमें से सभी धारणाएं सिफिलिस (syphilis) पर लागू हुईं, जिसका पहली बार वर्णन 1530 में किया गया था। अब ऐसा माना जाता है कि कुष्ठरोग के शुरुआती मामलों से अनेक संभवतः सिफिलिस (syphilis) के मामले रहे होंगे.

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छाल रोग

छालरोग या सोरियासिस (अंग्रेज़ी:Psoriasis) एक चर्मरोग है। सामान्य भाषा में इसे अपरस भी कहते हैं। यह रोग एक असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। छाल रोग सामान्यतः बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह दीर्घकालिक विकार है जिसका अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। इसके सही कारणों की जानकारी नहीं है। अद्यतन सूचना से यह मालूम होता है कि सोरिआसिस निम्नलिखित दो कारणों से होता हैः.

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छाजन

छाजन त्वचा की एक स्थिति है जिससे सूखी, खुरदरी, अत्यंत खुजलीदार त्वचा के धब्बे पैदा होते हैं। छाजन सामान्यतः अति संवेदनशीलता, अलर्जी से उत्पन्न होता है जिससे कि सूजन पैदा होती है। सूजन से त्वचा में लालीपन, खुजली और खुरदरापन आ जाता है। छाजन से त्वचा में खुजलीदार, सूखे, लाल धब्बे पड़ते हैं। खुजली से गर्मी, तनाव या खरोंच लगने से स्थिति और अधिक बिगड़ जाती है। यह बच्चों और शिशुओं में अधिक पाया जाता है। तथापि अधिक आयु के बच्चों और अधेड़ों में भी छाजन देखा जा सकता है। ये धब्बे अधिकांश घुटनों के पीछे, कोहनी के मोड़ों पर, कलाईयों और गला, कलाईयों और पैरों पर पाए जाते हैं। शिशुओं के गालों पर दोदरों के रूप में आरंभ होते देखे जा सकते हैं। कुछ महीनों के पश्चात दोदरे हाथों और पैरों पर भी उभर आते हैं। छाजन उन लोगों में सामान्यतः अधिक पाया जाता है जिनको अस्थमा या तेज बुखार आ चुका होता है। यह उस व्यक्ति में भी पाया जाता है जिनके परिवार में छाजन परागत ज्वर या अन्य श्वसन अलर्जी का इतिहास होता है। इसके अनेक उपादान होते हैं और यह एक व्यक्ति से दूसरे के बीच अलग-अलग हो सकता हैः.

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