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रोगों की सूची

सूची रोगों की सूची

रोगों की इस सूची में रोगों के मुख्य वर्ग शामिल हैं।.

21 संबंधों: चयापचय के रोग, त्वचा रोगों की सूची, नाक, कान और गले के रोग, नेत्ररोग, बालचिकित्सा, भ्रमि, मधुमेह, मनोविकार, मूत्ररोग विज्ञान, मूत्राशय और प्रॉस्टेट ग्रंथि के रोग, योनिशोथ, रतिरोग, श्वेत प्रदर, सिरदर्द, संक्रामक रोगों की सूची, स्त्री-रोग विज्ञान, जठरांत्ररोगविज्ञान, ग्रासनाल के रोग, कैंसर रोगों की सूची, अनार्तव, अग्न्याशय के रोग

चयापचय के रोग

चयापचयन या उपापचयन (metabolism) जीवन का प्रधान लक्षण तथा क्रिया है। प्रत्येक जीवित पदार्थ में प्रत्येक क्षण उपापचयन घटना घटती रहती है। 'चय' का अर्थ है एकत्र करना और 'अपचय' का अर्थ व्यय करना, बाँटना या बिखेरना है। चय क्रिया से ऊर्जा की उत्पत्ति और संग्रह होता है। इस ऊर्जा का पेशियों की क्रिया के, अथवा शारीरिक ताप के, रूप में व्यय होना अपचय है। जो कुछ आहार हम करते हैं - प्रोटीन, कारबोहाइड्रेट, वसा- उस सबका अत्यंत सूक्ष्म रूप में पाचन होकर शरीर की वस्तु को, जिसमें ऊर्जा एकत्र रहती है, फिर से बनाना चय है। ये परिवर्तन अनेक गूढ़ रासायनिक क्रियाओं के फल होते हैं, जिनके लिये ऑक्सीजन आवश्यक होता है। रक्त फुफ्फुसों में वायु से ऑक्सीजन लेकर प्रत्येक ऊतक तथा शरीर की कोशिका को पहुँचाता है। इन्हीं क्रियाओं से जहाँ एक ओर एक वस्तु बनती है वहाँ दूसरी ओर दूसरी वस्तु का भंजन होकर ऐसे अंतिम पदार्थ बन जाते हैं जिनका शरीर से फुफ्फुस, वृक्क, आंत्र तथा चर्म द्वारा त्याग होता है। प्रोटीन के पाचन से अंतिम पदार्थ ऐमिनो अम्ल बनते हैं, जिनके पुनर्विन्यास से शरीर में उपस्थित प्रोटीन बनता है। कुछ ऐमिनो अम्लां का भंजन भी होता है, जिससे यूरिया और यूरिक अम्ल बनकर मूत्र द्वारा शरीर से निकल जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट के पाचन से ग्लूकोज़ बनकर पेशियों में काम आता है और अंत को जल और कार्बन डाइआक्साइड के रूप में मूत्र, स्वेद तथा श्वास द्वारा बाहर निकल जाता है। ग्लूकोज़ ग्लाइकोजन के रूप में यकृत में एकत्र भी हो जाता है। ग्लूकोज़ ग्लाइकोजन के रूप में यकृत में एकत्र भी हो जाता है। वसा के कण शरीर में विस्तृत जालक-अंत: कला-तंत्र (Reticulo endothelial system) में एकत्र रहते हैं तथा विभाजित होकर जल और कार्बन डाइआक्सइड के रूप में शरीर से पृथक्‌ होते हैं। जल, खनिज लवण, एंजाइम (enzyme) तथा हारमोन उन सब गूढ़ रासयनिक प्रक्रियाओं के ठीक ठीक संचालन में विशेष सहायक होते हैं जिनके ये परिवर्तन परिणाम हैं। .

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त्वचा रोगों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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नाक, कान और गले के रोग

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नेत्ररोग

शरीर के अन्य अंगों की भाँति नेत्र भी रोगग्रस्त होते हैं। यह मानव नेत्र रोगों और विकारों की एक आंशिक सूची है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित वर्गीकरण, बीमारियों और चोटों में जाना जाता है, रोग और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी वर्गीकरण की सूची इस प्रकार है। .

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बालचिकित्सा

बाल बहुनिद्रांकन (Pediatric polysomnography) बालचिकित्सा (Pediatrics) या बालरोग विज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जो शिशुओं, बालों एवं किशोरों के रोगों एवं उनकी चिकत्सा से सम्बन्धित है। आयु की दृष्टि से इस श्रेणी में नवजात शिशु से लेकर १२ से २१ वर्ष के किशोर तक आ जाते हैँ। इस श्रेणी के उम्र की उपरी सीमा एक देश से दूसरे देश में अलग-अलग है। .

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भ्रमि

क्षैतिज प्रकाशगतिकीय अक्षिदोलन (nystagmus): भ्रमि का एक लक्षण यह भी हो सकता है। भ्रमि या वर्टिगो (Vertigo /ˈvɜː(ɹ)tɨɡoʊ/) एक प्रकार का घुमनी या चक्कर-आना (dizziness) है जिसमें व्यक्ति गति की अनुभूति होती है जबकि वास्तव में वह स्थिर होता है। यह अंतःकर्ण के प्रघाण तंत्र (vestibular system) की दुष्क्रिया (dysfunction) के कारण उत्पन्न होता है। भ्रमि की दशा में जी-मचलता (nausea) है और उल्टी होती है। खड़े रहने या चलने में कठिनाई होती है। भ्रमि, तीन तरह की होती है-.

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मधुमेह

डायबिटीज मेलेटस (डीएम), जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा का स्तर होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है।  यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है।  तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है। मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय  पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। मधुमेह के तीन मुख्य प्रकार हैं.

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मनोविकार

मनोविकार (Mental disorder) किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की वह स्थिति है जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करने पर 'सामान्य' नहीं कहा जाता। स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार असामान्‍य अथवा दुरनुकूली (मैल एडेप्टिव) निर्धारित किया जाता है और जिसमें महत्‍वपूर्ण व्‍यथा अथवा असमर्थता अन्‍तर्ग्रस्‍त होती है। इन्हें मनोरोग, मानसिक रोग, मानसिक बीमारी अथवा मानसिक विकार भी कहते हैं। मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है। .

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मूत्ररोग विज्ञान

पुरुष जननांग मूत्र रोग विज्ञान (Urology) आयुर्विज्ञान की वह शाखा है, जो दोनों लिंगों में मूत्रतंत्र तथा पुरूषों के जननांग के रोगों का ज्ञान कराती है। आजकल भ्रूणवैज्ञानिक, लाक्षणिक तथा नैदानिक कारणों से अधिवृक्क (adrenals) के रोगों को भी इसमें सम्मिलित किया जाने लगा है। .

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मूत्राशय और प्रॉस्टेट ग्रंथि के रोग

ये प्रॉस्टेट ग्रंथि में ही बन सकती हैं, अथवा वृक्क मूत्रवाहिनी या मूत्राशय की अश्मरियाँ प्रॉस्टेट ग्रंथीय मूत्रमार्ग में आकर रुक सकती है। मूत्रमार्ग या प्रत्यग्जघन (retropubic) मार्ग से अश्मरियों को निकाल देना चाहिए। श्रेणी:रोग.

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योनिशोथ

किसी भी कारण से महिलाओं को योनि में होनी वाली सूजन को योनिशोथ (Vaginitis) कहते है। इसे योनिपाक या योनिप्रदाह भी कहा जाता है। इस रोग में योनि के भीतर श्लेष्मिक कला सूज कर लाल हो जाती है जिससे इसके शुष्कता बढ़ जाती है एवं जलन के साथ पीड़ा होती है जो उठने बैठने से बढ़ जाती है। योनिशोथ होने पर योनि स्राव, खुजली और दर्द हो सकता है और अक्सर यह चिडचिड़ापन और योनिमुख के संक्रमण के कारण होता है। योनिशोथ आमतौर पर संक्रमण के कारण होता है। प्राय: 90% स्त्रियों में यह रोग पाया जाता है, इस कारण सामान्यत: उन्हें निम्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है .

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रतिरोग

रतिरोग (Venereal Diseases) या यौन संचारित रोग (sexually transmitted disease (STD)) रति या मैथुन के द्वारा उत्पन्न रोगों का सामूहिक नाम है। ये वे रोग हैं जिनकी मानवों या जानवरों में यौन सम्पर्क के कारण फैलने की अत्यधिक सम्भावना रहती है। यौन सम्पर्क में योनि सम्भोग, मुख-मैथुन, तथा गुदा-मैथुन आदि सम्मिलित हैं। यौन संचारित रोगों के बारे जानकारी में सैकड़ों वर्षों से है। इनमें (१) उपदंश (Syphilis), (२) सुजाक (Gonorrhoea), लिंफोग्रेन्युलोमा बेनेरियम (Lyphogranuloma Vanarium) तथा (४) रतिज व्राणाभ (Chancroid), (५) एड्स (AIDS) प्रधान हैं। .

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श्वेत प्रदर

श्वेत प्रदर या सफेद पानी का योनी मार्ग से निकलना Leukorrhea कहलाता है। यह हमेशा रोग का लक्षण नहीं होता। अधिकतर महिलाएं इस गलत फैमी में होती है कि सफेद पानी के जाने से शरिर में कमजोरी आती है, चक्कर आता है, बदन में दर्द होता है। शरिर से तेजस्विता चली जाती है ऐसी भारत अौर पडोस के देश के कुछ प्रांतोमे गलत मान्यता पूर्वकाल से प्रचलित है। (culture bound dhat syndrome in females) सफेद पानी का निकलना दो प्रमुख कारणोंसे होता है।.

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सिरदर्द

सिरदर्द या शिरपीड़ा (शिरपीड़ा (Headache) सिर, गर्दन या कभी-कभी पीठ के उपरी भाग के दर्द की अवस्था है। यह सबसे अधिक होने वाली तकलीफ है, जो कुछ व्यक्तियों में बार बार होता है। सिरदर्द की आमतौर पर कोई गंभीर वजह नहीं होती, इसलिए लाइफस्टाइल में बदलाव और रिलैक्सेशन के तरीके सीखकर इसे दूर किया जा सकता है। इसके अलावा कुछ घरेलू उपाय भी होते हैं, जिन्हें अपनाकर सिरदर्द से राहत मिल सकती है। .

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संक्रामक रोगों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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स्त्री-रोग विज्ञान

स्त्रीरोगविज्ञान (Gynaccology), चिकित्साविज्ञान की वह शाखा है जो केवल स्त्रियों से संबंधित विशेष रोगों, अर्थात् उनके विशेष रचना अंगों से संबंधित रोगों एवं उनकी चिकित्सा विषय का समावेश करती है। स्त्री-रोग विज्ञान, एक महिला की प्रजनन प्रणाली (गर्भाशय, योनि और अंडाशय) के स्वास्थ्य हेतु अर्जित की गयी शल्यक (सर्जिकल) विशेषज्ञता को संदर्भित करता है। मूलतः यह 'महिलाओं की विज्ञान' का है। आजकल लगभग सभी आधुनिक स्त्री-रोग विशेषज्ञ, प्रसूति विशेषज्ञ भी होते हैं। .

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जठरांत्ररोगविज्ञान

जठरांत्ररोगविज्ञान (Gastroenterology) चिकित्सा शास्त्र का वह विभाग है जो पाचन तंत्र तथा उससे सम्बन्धित रोगों पर केंद्रित है। इस शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक शब्द gastros (उदर), enteron (आँत) एवं logos (शास्त्र) से हुई है। जठरांत्ररोगविज्ञान पोषण नाल (alimentary canal) से सम्बन्धित मुख से गुदाद्वार तक के सारे अंगों और उनके रोगों पर केन्द्रित है। इससे सम्बन्धित चिकित्सक जठरांत्ररोगविज्ञानी (gastroenterologists) कहलाते हैं। .

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ग्रासनाल के रोग

ग्रासनाल (Oesophagus) के रोग निम्नलिखित विशेष रोग हैं: .

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कैंसर रोगों की सूची

कार्सिनोमा: ऐसा कैंसर जो कि त्वचा में या उन ऊतकों में उत्पन्न होता है, जो आंतरिक अंगों के स्तर या आवरण बनाते हैं। सारकोमा: ऐसा कैंसर जो कि हड्डी, उपास्थि, वसा, मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं या अन्य संयोजी ऊतक या सहायक में शुरू होता है। ल्युकेमिया: कैंसर जो कि रक्त बनाने वाले अस्थि मज्जा जैसे ऊतकों में शुरू होता है और असामान्य रक्त कोशिकाओं की भारी मात्रा में उत्पादन और रक्त में प्रवेश का कारण बनता है। लिंफोमा और माएलोमा: ऐसा कैंसर जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं में शुरू होता है। केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर: कैंसर जो कि मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ऊतकों में शुरू होता हैं। कैंसर लाइलाज बीमारी नहीं है.

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अनार्तव

अनार्तव (Amenorrhoea (BE), amenorrhea (AmE), या amenorrhœa) उस दशा का नाम है जिसमें प्रजनन योग्य आयु वाली स्त्रियों को मासिक स्राव नहीं होता। यह दशा शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कारणों से उत्पन्न हो सकती है। अंत:स्रावी ग्रथियाँ तथा प्रजनन अंगों के विकार और अन्य शरीरिक रोग भी इस दशा को उत्पन्न कर सकते हैं। चिकित्सा से यह दशा सुधर सकती है, परंतु इसके लिए इस दशा के कारण का पूर्ण अन्वेषण आवश्यक है। .

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अग्न्याशय के रोग

अन्य अंगों की भाँति अग्न्याशय में भी दो प्रकार के रोग होते हैं। एक बीजाणुओं के प्रवेश या संक्रमण से उत्पन्न होने वाले और दूसरे स्वयं ग्रंथि में बाह्य कारणों के बिना ही उत्पन्न होने वाले। प्रथम प्रकार के रोगों में कई प्रकार की अग्न्याशयार्तियाँ होती है। दूसरे प्रकार के रोगों में अश्मरी, पुटो (सिस्ट), अर्बुद और नाड़ीव्रण या फिस्चुला हैं। अग्न्याशयाति (पैनक्रिएटाइटिस) दो प्रकार की होती हैं, एक उग्र और दूसरी जीर्ण। उग्र अग्न्याशयाति प्रायः पित्ताशय के रोगों या आमाशय के व्रण से उत्पन्न होती है; इसमें सारी ग्रंथि या उसके कुछ भागों में गलन होने लगती है। यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है और इसका आरंभ साधारणतः 20 और 40 वर्ष के बीच की आयु में होता है। अकस्मात् उदर के ऊपरी भाग में उग्र पीड़ा, अवसाद (उत्साहहीनता) के से लक्षण, नाड़ी का क्षीण हो जाना, ताप अत्यधिक या अति न्यून, ये प्रारंभिक लक्षण होते हैं। उदर फूल आता है, उदरभित्ति स्थिर हो जाती है, रोगी की दशा विषम हो जाती है। जीर्ण रोग से लक्षण उपर्युक्त के ही समान होते हैं किंतु वे तीव्र नहीं होते। अपच के से आक्रमण होते रहते हैं। इसके उपचार में बहुधा शस्त्र कर्म आवश्यक होता है। जीर्ण रूप में औषधोपचार से लाभ हो सकता है। अश्मरी, पुटी, अर्बुद और नाड़ीव्रणों में केवल शस्त्र कर्म ही चिकित्सा का साधन है। अर्बुदों में कैंसर अधिक होता है। श्रेणी:रोग श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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