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उत्क्रम समस्या

सूची उत्क्रम समस्या

सैद्धान्तिक भौतिकी में उत्क्रम समस्या (English: Hierarchy Problem हाइरार्की समस्या) दुर्बल नाभिकीय व गुरुत्व बलों के मध्य विशाल भिन्नता है। भौतिक वैज्ञानिक अभी तक इसको समझा पाने में असमर्थ हैं, जैसे - दुर्बल बल, गुरुत्व से 1032 (१०३२) गुणा प्रबल क्यों हैं। .

6 संबंधों: दुर्बल अन्योन्य क्रिया, फर्मी अन्योन्यक्रिया, सैद्धान्तिक भौतिकी, गुरुत्वाकर्षण, गुरुत्वीय स्थिरांक, कण भौतिकी

दुर्बल अन्योन्य क्रिया

दुर्बल अन्योन्य क्रिया (अक्सर दुर्बल बल व दुर्बल नाभिकीय बल के नाम से भी जाना जाता है) प्रकृति की चार मूलभूत अन्योन्य क्रियाओं में से एक है, अन्य चार अन्योन्य क्रियाएं गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया और प्रबल अन्योन्य क्रिया हैं। यह अन्योन्य क्रिया, उप-परमाणविक कणों के रेडियोधर्मी क्षय और नाभिकीय संलयन के लिए उत्तरदायी है। सभी ज्ञात फर्मिऑन (वे कण जिनका स्पिन अर्द्ध-पूर्ण संख्या होती है) यह अन्योन्य क्रिया करते हैं। कण भौतिकी मेंमानक प्रतिमान के अनुसार दुर्बल अन्योन्य क्रिया Z अथवा W बोसॉन के विनिमय (उत्सर्जन अथवा अवशोषण) से होती है और अन्य तीन बलों की भांती यह भी अस्पृशी बल माना जाता है। बीटा क्षय रेडियोधर्मिता का एक उदाहरण इस क्रिया का सबसे ज्ञात उदाहरण है। W व Z बोसॉनों का द्रव्यमान प्रोटोन व न्यूट्रोन की तुलना में बहुत अधीक होता है और यह भारीपन ही दुर्बल बल की परास कम होने का मुख्य कारण है। इसे दुर्बल बल कहने का कारण इस बल का अन्य दो बलों विद्युत चुम्बकीय व प्रबल की तुलना में इसका मान का परिमाण की कोटि कई गुणा कम होना है। अधिकतर कण समय के साथ दुर्बल बल के अधीन क्षय होते हैं। क्वार्क फ्लेवर परिवर्तन भी केवल इस बल के अधीन ही होता है। .

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फर्मी अन्योन्यक्रिया

कण भौतिकी में, फर्मी अन्योन्यक्रिया (Fermi's interaction) (जिसे बीटा क्षय का फर्मी सिद्धांत भी कहा जाता है) 1933 में एन्रीको फर्मी द्वारा प्रस्तावित बीटा क्षय की व्याख्या है। इस सिद्धान्त के अनुसार चार फर्मीऑन एक ही शीर्ष पर एक साथ अन्योन्य क्रिया करते हैं। उदाहरण के लिए, इस अन्योन्य क्रिया में न्यूट्रॉन का क्षय, न्यूट्रॉन के निम्न कणों से सीधे संयुग्मन में दर्शाया गया है.

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सैद्धान्तिक भौतिकी

सैद्धान्तिक भौतिकी भौतिकशास्त्र की उस शाखा को कहते हैं जिसमें किसी प्राकृतिक परिघटना को युक्तिसंगत करने, समझाने और प्रागुक्त करने के लिए भौतिक वस्तुओं और निकायों के सारग्रहण और गणितीय मॉडल को काम में लिया जाता है। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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गुरुत्वीय स्थिरांक

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के प्रयोग के लिए गुरुत्वाकर्षक स्थिरांक ''G'' बहुत जरूरी है गुरुत्वीय स्थिरांक एक भौतिक नियतांक है जिसे 'G' के चिन्ह से दर्शाया जाता है। इसका प्रयोग दो वस्तुओं के बीच में गुरुत्वाकर्षक बल का मान निकालने के लिए किया जाता है। यदि एक वस्तु का द्रव्यमान (मास) m1 किलोग्राम है और दूसरी वस्तु का m2 किलोग्राम है तथा उन दोनों में दूरी r मीटर है, तो उनके बीच में गुरुत्वाकर्षक बल F का मान निम्नलिखित सूत्र से निकाला जाता है - यहाँ G गुरुत्वाकर्षक स्थिरांक है। इसका मान इस प्रकार है - .

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कण भौतिकी

कण भौतिकी, भौतिकी की एक शाखा है जिसमें मूलभूत उप परमाणविक कणो के पारस्परिक संबन्धो तथा उनके अस्तित्व का अध्ययन किया जाता है, जिनसे पदार्थ तथा विकिरण निर्मित हैं। हमारी अब तक कि समझ के अनुसार कण क्वांटम क्षेत्रों के उत्तेजन (excitations) हैं। दूसरे कणों के साथ इनकी अन्तःक्रिया की अपनी गतिकी है। कण भौतिकी के क्षेत्र में अधिकांश रुचि मूलभूत क्षेत्रों (fundamental fields) में है। मौलिक क्षेत्रों और उनकी गतिशीलताओ के सार को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसिलिये कण भौतिकी में अधिकतर स्टैंडर्ड मॉडल (Standard Model) के मूल कणों तथा उनके सम्भावित विस्तार के बारे में अध्यन किया जाता है। .

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