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सॉरन किअर्केगार्ड

सूची सॉरन किअर्केगार्ड

सोरेन किर्केगार्द का जन्म 15 मई,1813 को कोपेनहेगन में हुआ था। अस्तित्ववादी दर्शन के पहले समर्थक हलाकि उन्होने अस्तित्ववाद शब्द का प्रयोग नहीं किया। किर्केगार्द का देहांत 4 नवंबर 1855 को हुआ। .

18 संबंधों: डेनमार्क, तत्त्वमीमांसा, नीतिशास्त्र, पाश्चात्य दर्शन, फ्रेडरिख शेलिंग, मानस शास्त्र, मार्टिन लुथर, मार्टिन हाइडेगर, लुडविग विट्गेंस्टाइन, सौन्दर्यशास्त्र, हिप्पो का ऍगस्टीन, ज़ाक देरिदा, ज्ञानमीमांसा, ईसाई धर्म, इमानुएल काण्ट, कोपनहेगन, अरस्तु, अस्तित्ववाद

डेनमार्क

डेनमार्क या डेनमार्क राजशाही (डैनिश: Danmark या Kongeriget Danmark) स्कैंडिनेविया, उत्तरी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी भूसीमा केवल जर्मनी से मिलती है, जबकी उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर इसे स्वीडन से अलग करते हैं। यह देश जूटलैंड प्रायद्वीप पर हज़ारों द्वीपों में फैला हुआ है। डेनमार्क ने लंबे समय तक बाल्टिक सागर को जाने वाले मार्गों को नियंत्रित किया है और इस जलराशी को डैनिश खाड़ी के नाम से जाना जाता है। इसके छोटे आकार के विपरीत इसकी समुद्री सीमा बहुत लम्बी है लगभग ७,३१४ किमी। डेनमार्क अधिकांशतः एक समतल देश है और समुद्र तल से अधिकतम ऊँचाई वाला स्थान केवल १७० मीटर ऊँचा है। फ़रो द्वीप समूह और ग्रीनलैंड डेनमार्क के अधीनस्थ है। २००८ के वैश्विक शांति सूचकांक के अनुसार डेनमार्क, आइसलैंड के बाद विश्व का सबसे शांत देश है। २००८ के ही भ्रष्टाचार दृष्टिकोण सूचकांक के अनुसार यह विश्व के सबसे कम भ्रष्ट देशों में से है और न्यूज़ीलैंड और स्वीडन के साथ पहले स्थान पर है। मोनोक्ल पत्रिका के २००८ के एक सर्वेक्षण के अनुसार इसकी राजधानी कॉपनहेगन रहने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नगर है। वर्ष २००९ में देश की अनुमानित जनसंख्या ५५,१९,२५९ है। .

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तत्त्वमीमांसा

तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), दर्शन की वह शाखा है जो किसी ज्ञान की शाखा के वास्तविकता (reality) का अध्ययन करती है। परम्परागत रूप से इसकी दो शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्ड विद्या (Cosmology) तथा सत्तामीमांसा या आन्टोलॉजी (ontology)। तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-.

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नीतिशास्त्र

नीतिशास्त्र (ethics) जिसे व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान और आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शन की एक शाखा हैं। यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं। नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं.

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पाश्चात्य दर्शन

अध्ययन की दृष्टि से पश्चिमी दर्शन तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं- 1.

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फ्रेडरिख शेलिंग

फ्रेडरिख शेलिंग फ्रेडरिख विल्हेल्म जोसेफ फॉन शेलिंग (Friedrich Wilhelm Joseph Von Schelling; (27 जनवरी 1775 – 20 अगस्त 1854) जर्मनी का दार्शनिक था। लगातार परिवर्तित होने की प्रकृति के कारण शेलिंग के दर्शन को समझना कठिन समझा जाता है। .

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मानस शास्त्र

साइकोलोजी या मनोविज्ञान (ग्रीक: Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",ψυχήसाइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -λογία-लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health).

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मार्टिन लुथर

यह लेख मार्टिन लुथर के बारे में है। मार्टिन लूथर किंग या 'मार्टिन लूथर किंग जूनियर' अलग व्यक्ति हैं। ---- मार्टिन लूथर मार्टिन लूथर (Martin Luther) (१४८३ - १५४६) इसाई धर्म में प्रोटेस्टवाद नामक सुधारात्मक आन्दोलन चलाने के लिये विख्यात हैं। वे जर्मन भिक्षु, धर्मशास्त्री, विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, पादरी एवं चर्च-सुधारक थे जिनके विचारों के द्वारा प्रोटेस्टिज्म सुधारान्दोलन आरम्भ हुआ जिसने पश्चिमी यूरोप के विकास की दिशा बदल दी। .

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मार्टिन हाइडेगर

मार्टिन हाइडेगर एक जर्मन दार्शनिक थे | वह 26 सितंबर, 1889 को पैदा हुआ था। वे 26 मई, 1976 को निधन हो गया। वे वर्तमान काल के प्रसिद्ध अस्तित्ववादी दार्शनिक है किन्तु वे अपने सिद्धांत को अस्तित्ववादी सिद्धांत कहलाने से इंकार करते है। वह जर्मनी के छोटे से कस्बे में पैदा हुआ था और रोमन कैथोलिक वातावरण मे पला था। उसने अपनी दार्शनिक शिक्षा पहले तो नव कांटवादी विल्हेम व रिकेट के निर्देशन में प्राप्त की बाद में वे हसरेल के संपर्क मे आये। .

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लुडविग विट्गेंस्टाइन

लु़डविग विट्गेंश्टाइन लुडविग विट्गेंश्टाइन (Ludwig Josef Johann Wittgenstein') (26 अप्रिल 1889 - 29 अप्रैल 1951) आस्ट्रिया के दार्शनिक थे। उन्होने तर्कशास्त्र, गणित का दर्शन, मन का दर्शन, एवं भाषा के दर्शन पर मुख्यतः कार्य किया। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी के महानतम दार्शनिकों में होती है। उनके जीते जी एक ही पुस्तक प्रकाशित हो पाई - Tractatus Logico-Philosophicus। बाद की प्रकाशित पुस्तकों में Philosophical Investigations काफी चर्चित रही। विट्गेंश्टाइन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे हैं। विट्गेंश्टाइन के पिता कार्ल एक यहूदी थे जिन्होंने बाद में प्रोटेस्टेंट धर्म अपना लिया था। .

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सौन्दर्यशास्त्र

प्रकृति में सर्वत्र सौन्दर्य विद्यमान है। सौंदर्यशास्त्र (Aesthetics) संवेदनात्म-भावनात्मक गुण-धर्म और मूल्यों का अध्ययन है। कला, संस्कृति और प्रकृति का प्रतिअंकन ही सौंदर्यशास्त्र है। सौंदर्यशास्त्र, दर्शनशास्त्र का एक अंग है। इसे सौन्दर्यमीमांसा ताथा आनन्दमीमांसा भी कहते हैं। सौन्दर्यशास्त्र वह शास्त्र है जिसमें कलात्मक कृतियों, रचनाओं आदि से अभिव्यक्त होने वाला अथवा उनमें निहित रहने वाले सौंदर्य का तात्विक, दार्शनिक और मार्मिक विवेचन होता है। किसी सुंदर वस्तु को देखकर हमारे मन में जो आनन्ददायिनी अनुभूति होती है उसके स्वभाव और स्वरूप का विवेचन तथा जीवन की अन्यान्य अनुभूतियों के साथ उसका समन्वय स्थापित करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है। .

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हिप्पो का ऍगस्टीन

ऍगस्टीन (354 ई॰ - 430 ई॰) एक इसाई दार्शनिक थे। इनका जन्म 13 नवम्बर संन 354 में रोमन अफ्रीका के नुमिडिया प्रांत के थागास्ते नमाक शहर में हुआ था। इनके द्वारा लैटिन भाषा में लेखी गयी प्रमुख किताबे थी - दे सिविअताते दी (अंग्रेजी में इसे सिटी ऑफ़ गॉड के नाम से जाना जाता हैं) और कंफेशंस। .

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ज़ाक देरिदा

ज़ाक देरिदा (15 जुलाई 1930 – 8 अक्टूबर 2004) अल्जीरिया में जन्में एक फ्रांसीसी दार्शनिक थे जिन्हें विरचना (deconstruction) के सिद्धान्त के लिए जाना जाता है। उनके विशाल लेखन कार्य का साहित्यिक और यूरोपीय दर्शन पर गहन प्रभाव पड़ा है। Of Grammatology उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है। .

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ज्ञानमीमांसा

ज्ञानमीमांसा (Epistemology) दर्शन की एक शाखा है। ज्ञानमीमांसा ने आधुनिक काल में विचारकों का ध्यान आकृष्ट किया। दर्शनशास्त्र का ध्येय सत् के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। आधुनिक काल में देकार्त (1596-1650 ई) का ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत:सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता: संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है। इस नींव पर उसने, अपने विचार में, परमात्मा और सृष्टि के अस्तित्व को सिद्ध किया। देकार्त की विवेचन-विधि नई थी, परंतु पूर्वजों की तरह उसका अनुराग भी तत्वज्ञान में ही थाु। जॉन लॉक (1632-1704 ई) ने अपने लिये नया मार्ग चुना। सदियों से सत् के विषय में विवाद होता रहा है। पहले तो यह जानना आवश्यक है कि हमारे ज्ञान की पहुँच कहाँ तक है। इसी से ये प्रश्न भी जुड़े थे कि ज्ञान क्या है और कैसे प्राप्त होता है। यूरोप महाद्वीप के दार्शनिकों ने दर्शन को गणित का प्रतिरूप देना चाहा था, लॉक ने अपना ध्यान मनोविज्ञान की ओर फेरा "मानव बुद्धि पर निबंध" की रचना की। यह युगांतकारी पुस्तक सिद्ध हुई, इसे अनुभववाद का मूलाधार समझा जाता है। जार्ज बर्कले (1684-1753) ने लॉक की आलोचना में "मानवज्ञान" के नियम लिखकर अनुभववाद को आगे बढ़ाया और डेविड ह्यूम (1711-1776 ईदृ) ने "मानव प्रकृति" में इसे चरम सीमा तक पहुँचा दिया। ह्यूम के विचारों का विशेष महत्व यह है कि उन्होंने कांट (1724-1804 ईदृ) के "आलोचनवाद" के लिये मार्ग खोल दिया। कांट ने ज्ञानमीमांसा को दर्शनशास्त्र का केंद्रीय प्रश्न बना दिया। किंतु पश्चिम में ज्ञानमीमांसा को उचित पद प्रप्त करने में बड़ी देर लगी। भारत में कभी इसकी उपेक्षा हुई ही नहीं। गौतम के न्यायसूत्रों में पहले सूत्र में ही 16 विचारविषयों का वर्णन हुआ है, जिसके यथार्थ ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है। इनमें प्रथम दो विषय "प्रमाण" और "प्रमेय" हैं। ये दोनों ज्ञानमीमांसा और ज्ञेय तत्व ही हैं। यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों में भी प्रथम स्थान "प्रमाण" को दिया गया है। .

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ईसाई धर्म

'''ईद्भास/क्रॉस''' - यह ईसाई धर्म का निशान है ईसाई धर्म (अन्य प्रचलित नाम:मसीही धर्म व क्रिश्चियन धर्म) एक इब्राहीमीChristianity's status as monotheistic is affirmed in, amongst other sources, the Catholic Encyclopedia (article ""); William F. Albright, From the Stone Age to Christianity; H. Richard Niebuhr; About.com,; Kirsch, God Against the Gods; Woodhead, An Introduction to Christianity; The Columbia Electronic Encyclopedia; The New Dictionary of Cultural Literacy,; New Dictionary of Theology,, pp.

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इमानुएल काण्ट

इमानुएल कांट (1724-1804) जर्मन वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री एवं दार्शनिक थे। उसका वैज्ञानिक मत "कांट-लाप्लास परिकल्पना" (हाइपॉथेसिस) के नाम से विख्यात है। उक्त परिकल्पना के अनुसार संतप्त वाष्पराशि नेबुला से सौरमंडल उत्पन्न हुआ। कांट का नैतिक मत "नैतिक शुद्धता" (मॉरल प्योरिज्म) का सिद्धांत, "कर्तव्य के लिए कर्तव्य" का सिद्धांत अथवा "कठोरतावाद" (रिगॉरिज्म) कहा जाता है। उसका दार्शनिक मत "आलोचनात्मक दर्शन" (क्रिटिकल फ़िलॉसफ़ी) के नाम से प्रसिद्ध है। इमानुएल कांट अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुये कि मनुष्य को ऐसे कर्म और कथन करने चाहियें जो अगर सभी करें तो वे मनुष्यता के लिये अच्छे हों। .

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कोपनहेगन

कोपनहेगन (डैनिश: København), डेनमार्क की राजधानी और सबसे बड़ा नगर है, जिसकी नगरीय जनसंख्या ११,६७,५६९ (२००९) और महानगरीय जनसंख्या १८,७५,१७९ (२००९) है। कोपेनहेगन जीलण्ड और अमागर द्वीपों पर बसा हुआ है। इस क्षेत्र के प्रथम लिखित दस्तावेज ११वीं सदी के हैं और कोपनहेगन १५वीं सदी के आरम्भ में और क्रिस्चियन चतुर्थ के शासनकाल में डेनमार्क की राजधानी बना। वर्ष २००० में ओरेसण्ड सेतु के पूरा होने के साथ ही कोपनहेगन ओरेसण्ड क्षेत्र का केन्द्र बन गया है। इस क्षेत्र में, कोपनहेगन और स्वीडन का माल्मो नगर मिलकर एक आम महानगरीय क्षेत्र बनने की प्रकिया में है। ५० किमी के अर्धव्यास में २७ लाख लोगों के साथ, कोपनहेगन उत्तरी यूरोप के सबसे सघन क्षेत्रों में से एक है। नॉर्डिक देशों में कोपनहेगन सर्वाधिक पधारा जाने वाला देश है जहाँ पर २००७ में १३ लाख विदेशी पर्यटक आए। कोपनहेगन को बारम्बार एक ऐसे नगर के रूप में पहचान मिली है जहाँ का जीवन स्तर विश्व में सर्वश्रेष्ठ में से एक है। यह दुनिया के सबसे पर्यावरण-अनुकूल नगरों में से एक माना जाता है। भीतरी बन्दरगाह का पानी इतना साफ़ है की उसमें तैरा जा सकता है और प्रतिदिन ३६% निवासी साइकिल से काम पर जाते हैं, यानी की प्रतिदिन ११ लाख किमी की साइकिल यात्रा यहाँ की जाती है। यहाँ कोपेनहेगन विश्वविद्यालय, इंस्टिट्यूट फ़ॉर थियोरेटिकल फ़िजिक्स (१९२० ई.), रॉयल डैनिश जीओग्राफ़िकल सोसायटी (१८७६ ई.), अनेक शिक्षण एवं गवेषणा संस्थाएँ तथा तीन प्रमुख संग्रहालय हैं। यहाँ के रॉयल पुस्तकालय में लगभग १५,००,००० पुस्तकें हैं। नगर में अनेक प्रमोद वन, झीलें एवं भव्य भवन हैं जिनका निर्माण क्रिश्चियन चतुर्थ (१५८८-१६४८ ई.) तथा फ्रेंडरिक पंचम (१७४६-१७६६ ई.) के शासनकाल में हुआ था। .

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अरस्तु

अरस्तु अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।  उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है। .

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अस्तित्ववाद

किर्कगार्द, दास्त्रावस्की, नीत्शे तथा सार्त्र (बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे) अस्तित्ववाद (एग्जिस्टेशन्शिएलिज़्म / existentialism) एक ऐसी विचारधारा है जिसमें अस्तित्व को तत्व से ऊपर समझा जाता है। इसके अनुसार मानव अपने पर्यावरण की निर्जीव वस्तुओं से आत्मबोध का उत्तरदायित्व पूर्णतया स्वयं लेता है। अतः उसे अपने पर्यावरण में तत्वज्ञान की अपेक्षा नहीं होती। 1940 व 1950 के दशक में अस्तित्ववाद पूरे यूरोप में एक विचारक्रांति के रूप में उभरा। यूरोप भर के दार्शनिक व विचारकों ने इस आंदोलन में अपना योगदान दिया है। इनमें ज्यां-पाल सार्त्र, अल्बर्ट कामू व इंगमार बर्गमन प्रमुख हैं। कालांतर में अस्तित्ववाद की दो धाराएं हो गई।.

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