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समुद्रफेनी

सूची समुद्रफेनी

समुद्रफेनी (Cuttlefish) सेपाइडा जीववैज्ञानिक गण के समुद्री प्राणी होते हैं। ओक्टोपस, स्क्विड और नौटिलस के साथ समुद्रफेनियाँ शीर्षपाद (सेफ़ैलोपोड) जीववैज्ञानिक वर्ग के सदस्य हैं। समुद्रफेनियों की यह विषेशता है कि उनका शंख उनके शरीर के बाहर होने कि बजाये उनके शरीर के अंदर होता है। ऐरागोनाइट से बना यह भीतरी शंख खोखला होता है और समुद्रफेनी के शरीर को ढांचा प्रदान करने के साथ-साथ इसमें गैस भरकर समुद्रफेनी सहजता से समुद्र में ऊपर-नीचे की गहराईयों में जाने में सक्षम है। .

12 संबंधों: टेन्टेकल, नौटिलस, प्राणी, मोलस्का, शंख, शीर्षपाद, वर्ग (जीवविज्ञान), विद्रूप (समुद्री जीव), गण (जीवविज्ञान), कुल (जीवविज्ञान), अष्टबाहु, अकशेरुकी प्राणी

टेन्टेकल

प्राणी विज्ञान में टेन्टेकल (tentacle) किसी प्राणी के शरीर से लगा हुआ लचकीला और लम्बा उपांग होता है जिस से वह प्राणी चीज़ों को छू, सूँघ, चख़, पकड़, खींच या डस सके। आम तौर पर टेन्टेकल अकशेरुकी प्राणियों (invertebrates) में मिलते हैं और अक्सर यह जोड़ियों में होते हैं। .

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नौटिलस

नौटिलस (Nautilus) नौटिलिडाए जीववैज्ञानिक गण के समुद्री प्राणी होते हैं। ओक्टोपस, स्क्विड और समुद्रफेनी के साथ नौटिलस शीर्षपाद (सेफ़ैलोपोड) जीववैज्ञानिक वर्ग के सदस्य हैं। इन की दो गणों में कुल मिलाकर छह जीववैज्ञानिक जातियाँ अस्तित्व में है, हालांकि इन की अन्य जातियाँ भी हुआ करती थी जो अब विलुप्त हो चुकी हैं। इनके विषेश शंख आसानी से पहचाने जा सकते हैं और नौटिलस करोड़ों वर्षों से पृथ्वी के समुद्रों में बिना बदले रह रहे हैं। इस कारणवश इन्हें कभी-कभी 'जीवित जीवाश्म' (living fossils) भी कहा जाता है। .

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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मोलस्का

मोलस्का या चूर्णप्रावार प्रजातियों की संख्या में अकशेरूकीय की दूसरी सबसे बड़ी जाति है। ८०,००० जीवित प्रजातियां हैं और ३५,००० जीवाश्म प्रजातियां मौजूद हैं। कठिन खोल की मौजूदगी के कारण संरक्षण का मौका बढ़ जाता है। वे अव्वलन द्विदेशीय सममित हैं।इस संघ के अधिकांश जंतु विभिन्न रूपों के समुद्री प्राणी होते हैं, पर कुछ ताजे पानी और स्थल पर भी पाए जाते हैं। इनका शरीर कोमल और प्राय: आकारहीन होता है। वे कोई विभाजन नहीं दिखाते और द्विपक्षीय सममिति कुछ में खो जाता है। शरीर एक पूर्वकाल सिर, एक पृष्ठीय आंत कूबड़, रेंगने बुरोइंग या तैराकी के लिए संशोधित एक उदर पेशी पैर है। शरीर एक कैल्शियम युक्त खोल स्रावित करता है जो एक मांसल विरासत है चारों ओर यह आंतरिक हो सकता है, हालांकि खोल कम या अनुपस्थित है, आमतौर पर बाहरी है। जाति आम तौर पर ९ या १० वर्गीकरण वर्गों में बांटा गया है, जिनमें से दो पूरी तरह से विलुप्त हैं। मोलस्क का वैज्ञानिक अध्ययन 'मालाकोलोजी' कहा जाता है।ये प्रवर में बंद रहते हैं। साधारणतया स्त्राव द्वारा कड़े कवच का निर्माण करते हैं। कवच कई प्रकार के होते हैं। कवच के तीन स्तर होते हैं। पतला बाह्यस्तर कैलसियम कार्बोनेट का बना होता है और मध्यस्तर तथा सबसे निचलास्तर मुक्ता सीप का बना होता है। मोलस्क की मुख्य विशेषता यह है कि कई कार्यों के लिए एक ही अंग का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिए, दिल और गुर्दे प्रजनन प्रणाली है, साथ ही संचार और मल त्यागने प्रणालियों के महत्वपूर्ण हिस्से हैं बाइवाल्वस में, गहरे नाले दोनों "साँस" और उत्सर्जन और प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण है जो विरासत गुहा, में एक पानी की वर्तमान उत्पादन। प्रजनन में, मोलस्क अन्य प्रजनन साथी को समायोजित करने के लिए लिंग बदल सकते हैं। ये स्क्विड और ऑक्टोपोडा से मिलते जुलते हैं पर उनसे कई लक्षणों में भिन्न होते हैं। इनमें खंडीभवन नहीं होता। .

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शंख

नक्कासी किये हुए शंख शंख एक सागर के जलचर का बनाया हुआ ढाँचा है, जो कि ज्यादातर पेचदारवामावर्त या दक्षिणावर्त में बना होता है। यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है। यह धर्म का प्रतीक माना जाता है। यह भगवान विष्णु के दांए ऊपरी हाथ में शोभा पाता दिखाया जाता है। धर्मिक अवसरों पर इसे फूँक कर बजाया भी जाता है। (२) महाभारत में वर्णित राजा विराट के एक पुत्र का नाम भी शंख था। .

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शीर्षपाद

कुछ शीर्षपाद जन्तु शीर्षपाद या सेफैलोपोडा (Cephalopoda) अपृष्ठवंशी प्राणियों का एक सुसंगठित वर्ग जो केवल समुद्र ही में पाया जाता है। यह वर्ग मोलस्का (mollusca) संघ के अंतर्गत आता है। इस वर्ग के ज्ञात जीवित वंशों की संख्या लगभग १५० है। इस वर्ग के सुपरिचित उदाहरण अष्टभुज (octopus), स्क्विड (squid) तथा कटल फिश (cuttlefish) हैं। सेफैलोपोडा के विलुप्त प्राणियों की संख्या जीवितों की तुलना में अधिक है। इस वर्ग के अनेक प्राणी पुराजीवी (palaeozoic) तथा मध्यजीवी (mesozoic) समय में पाए जाते थे। विलुप्त प्राणियों के उल्लेखनीय उदाहरण ऐमोनाइट (Ammonite) तथा बेलेम्नाइट (Belemnite) हैं। सेफैलोपोडा की सामान्य रचनाएँ मोलस्का संघ के अन्य प्राणियों के सदृश ही होती हैं। इनका आंतरांग (visceral organs) लंबा और प्रावार (mantle) से ढका रहता है। कवच (shell) का स्राव (secretion) प्रावार द्वारा होता है। प्रावार और कवच के मध्य स्थान को प्रावार गुहा (mantle cavity) कहते हैं। इस गुहा में गिल्स (gills) लटकते रहते हैं। आहार नाल में विशेष प्रकार की रेतन जिह्वा (rasping tongue) या रैड्डला (redula) होता है। सेफोलोपोडा के सिर तथा पैर इतने सन्निकट होते हैं कि मुँह पैरों के मध्य स्थित होता है। पैरों के मुक्त सिरे कई उपांग (हाथ तथा स्पर्शक) बनाते हैं। अधिकांश जीवित प्राणियों में पंख (fins) तथा कवच होते हैं। इन प्राणियों के कवच या तो अल्प विकसित या ह्रसित होते हैं। इस वर्ग के प्राणियों का औसत आकार काफी बड़ा होता है। अर्किट्यूथिस (architeuthis) नामक वंश सबसे बड़ा जीवित अपृष्ठवंशी है। इस वंश के प्रिंसेप्स (princeps) नामक स्पेशीज की कुल लंबाई (स्पर्शक सहित) ५२ फुट है। सेफैलोपोडा, ह्वेल (whale), क्रस्टेशिआ (crustacea) तथा कुछ मछलियों द्वारा विशेष रूप से खाए जाते हैं। .

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वर्ग (जीवविज्ञान)

गण आते हैं वर्ग (अंग्रेज़ी: class, क्लास) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी गणों (ओर्डरों) से ऊपर और संघों (फ़ायलमों) के नीचे आती है, यानि एक वर्ग में बहुत से गण होते हैं और बहुत से वर्गों को एक फ़ायलम में संगठित किया जाता है। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक वर्ग में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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विद्रूप (समुद्री जीव)

विद्रूप या स्क्विड, टेउथिडा (Teuthida) गण के समुद्री शिरस्यपाद (cephalopods) जीव हैं, जिनकी लगभग 300 प्रजातियों पायी जाती हैं। अन्य सभी शिरस्यपादों की तरह विद्रूप का एक विशिष्ट सिर, द्विपक्षीय समरूपता, एक प्रावरण और बाहु होते हैं। विद्रूप के समुद्रीफेनी (cuttlefish) की तरह आठ बाहु और दो जोड़े स्पर्शक होते है। (केवल बड़े मीनपंख वाले विद्रूप समूह ही ज्ञात अपवाद हैं, जिनके दस बहुत लंबे लेकिन बराबर लंबाई के बाहु होते है।) .

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गण (जीवविज्ञान)

कुल आते हैं गण (अंग्रेज़ी: order, ऑर्डर; लातिनी: ordo, ओर्दो) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक गण में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के कुल आते हैं। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक कुल में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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कुल (जीवविज्ञान)

वंश आते हैं कुल (अंग्रेज़ी: family, फ़ैमिली; लातिनी: familia, फ़ामिलिया) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्राणियों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक कुल में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के वंश आते हैं। ध्यान दें कि हर प्राणी वंश में बहुत-सी भिन्न प्राणियों की जातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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अष्टबाहु

अष्टबाहु अष्टबाहु (आक्टोपस) मोलस्का संघ का एक समुद्री प्राणी है। इस रात्रिचर जीव को डेविलफिश भी कहते हैं। इसी संघ में घोंघा, सीप, शंख इत्यादि जीव भी हैं। अष्टबाहुओं की गणना शीर्षपाद वर्ग में की जाती हैं। शीर्षपाद वर्ग के जीवों की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं जो अन्य चूर्णप्रावारो (मोलस्कों) में नहीं पाई जातीं। मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: उनके शरीर की रचना तथा संगठन अन्य जातियों से उच्च कोटि की होती है। वे आकार में बड़े सुडौल, बहुत तेज चलनेवाले, मांसाहारी, बड़े भयानक तथा कूर स्वभाव के होते हैं। बहुतों में प्रकवच (बाहरी कड़ा खोल) नहीं होता। ये पृथ्वी के प्राय: सभी उष्ण समुद्रों में पाए जाते हैं। मसिक्षेपी (कटल फिश), कालक्षेपी (लोलाइगो), सामान्य अष्टबाहु, स्क्विड तथा मृदुनाविक (आर्गोनॉट) अष्टबाहुओं के उदाहरण हैं। पूर्ण वयस्क भीम (जाएँट) स्क्विड की लंबाई ५० फुट, नीचे के जबड़े ४ इंच तक लंबे और आंखों का व्यास १५ इंच तक होता है। अष्टबाहु का कोमल, गोलाकार या अंडाकार शरीर दस सेंटीमीटर से लेकर करीब बीस-पचीस फुट तक लंबा हो सकता है। इसमें कवच नहीं पाया जाता है या अविकसित होता है। इसकी आठ लचीली भुजाएँ होती है जिनके ऊपर भीतर की ओर अवृंत चूषक की दो पंक्तियाँ होती हैं। इन्हीं बाहुओं के सहारे यह आत्मरक्षा करता है या शिकार पकड़ता है। शत्रु के समीप आने पर यह काले द्रव का धुआँ अपनी मसीग्रन्थि से निकालता है जिससे इसकी रक्षा होती है। इसके सिर पर दो स्पष्ट नेत्र होते है और सिर के पश्च-अधरतल पर साइफन होता है। चीन और इटली में इसका भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग होता है। सभी अष्टबाहु जहरीले होते हैं परन्तु सिर्फ नीले छ्ल्ले वाले अक्टोपस का विष ही मनुष्य के लिए घातक होता है। यहां तक कि इसे दुनिया के सबसे विषधर जीवों में से एक माना जाता है। अष्टबाहु दुनिया का सबसे बुद्धिमान अकशेरुकी जीव माना जाता है। समुद्री जलचर विशेषज्ञों के एक दल ने अपने शोध के दौरान दो हजार से अधिक अष्टबाहु का अध्ययन किया। इस दल का नेतृत्व करने वाले विशेषज्ञ ओलिवर वेलेंसियक ने बताया कि अष्टबाहु अपने पहले तीन जोड़ी टेंटेकल का इस्तेमाल चीजों को पकड़ने में करता है। इसे इस तरह कह सकते हैं कि अष्टबाहु अपने अगले छह टेंटेकल को हाथ और सबसे पीछे वाले दो टेंटेकल को पैर की तरह इस्तेमाल करता है। अष्टबाहु की पकड़ उसकी देखने की शक्ति से जुड़ी होती है। जब अष्टबाहु की एक आंख कमजोर होने लगती है तो उसकी दूसरी तरफ की बाहें उसका सहारा बनती हैं। .

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अकशेरुकी प्राणी

कुछ अकशेरुक प्राणी अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate) उन प्राणियों को कहते हैं जिनमें मेरुदंड नहीं होता और न ही किसी अवस्था में मेरुदण्ड विकसित होता है। परिभाषा के अनुसार इसमें कशेरुक प्राणियों के अलावा सभी प्राणी आ जाते हैं। अकशेरुक प्राणियों के कुछ प्रमुख उदाहरण ये हैं - कीट, केकड़ा, झिंगा, घोंघा, ऑक्टोपस, स्टारफिश आदि। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सेपाइडा, कटल फिश

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