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सुपद्मव्याकरण

सूची सुपद्मव्याकरण

सुपद्मव्याकरण, आचार्य पद्मनाभदत्त द्वारा रचित एक संस्कृत व्याकरण ग्रन्थ है। पाणिनि के उत्तरवर्ती वैयाकरणों में आचार्य पद्मनाभदत्त का महत्त्वपूर्ण स्थान है।सुपद्मव्याकरण पाणिनीय अष्टाध्यायी के अनुकरण पर रचित एक लक्षण ग्रन्थ है। यह व्याकरण बंगाली वर्णमाला के अक्षरों में, विशेषकर बंगाल निवासियों के भाषाषाज्ञान के लिए लिखा है। पद्मनाभदत्त ने बंग प्रान्तीयों के लिए संस्कृत व्याकरण की जटिलता को दूर करके, सुगम्य बनाने के लिए बंगाली लिपि में सुपद्मव्याकरण की रचना की। उनका प्रमुख उद्देश्य संस्कृत व्याकरण का स्पष्ट तथा सरलतम ढंग से ज्ञान कराना तथा भाषा के विकास में आए नए-नए शब्दों का संस्कृतिकरण करना था, जो आज भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। उन्होने सुपद्मव्याकरण के अलावा प्रयोगदीपिका, उणादिवृत्ति, धातुकौमुदी, यङलुगादिवृत्ति, परिभाषावृत्ति आदि अन्य व्याकरणिक ग्रन्थ भी रचे। .

14 संबंधों: देवनागरी, पद्मनाभदत्त, पाणिनि, बंगाल, बंगाली लिपि, महाभाष्य, मालवा, संस्कृत व्याकरण, संस्कृत व्याकरण का इतिहास, वैयाकरण, गणपाठ, गुजरात, काशिकावृत्ति, अष्टाध्यायी

देवनागरी

'''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि .

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पद्मनाभदत्त

आचार्य पद्मनाभदत्त एक वैयाकरण थे। पाणिनि के उत्तरवर्ती वैयाकरणों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके द्वारा रचित 'सुपद्मव्याकरण' का व्याकरण ग्रन्थों में स्थान महत्त्वपूर्ण है। सुपद्मव्याकरण पाणिनीय अष्टाध्यायी के अनुकरण पर रचित एक लक्षण ग्रन्थ है। यह व्याकरण बंगाली वर्णमाला के अक्षरों में, विशेषकर बंगाल निवासियों के भाषाज्ञान के लिए लिखा है। पद्मनाभदत्त ने बंग प्रान्तीयों के लिए संस्कृत व्याकरण की जटिलता को दूर करके, सुगम्य बनाने के लिए बंगाली लिपि में सुपद्मव्याकरण की रचना की। इन्हों ने केवल व्याकरणिक ग्रन्थों का ही प्रणयन नहीं किया बल्कि साहित्यिक ग्रन्थों की भी रचना की। पद्मनाभदत्त का प्रमुख उद्देश्य संस्कृत व्याकरण का स्पष्ट तथा सरलतम ढंग से ज्ञान कराना तथा भाषा के विकास में आए नए-नए शब्दों का संस्कृतिकरण करना था, जो आज भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। .

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पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

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बंगाल

बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .

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बंगाली लिपि

'कॉ' पर मात्राएं लगाने पर स्वरूप बांग्ला लिपि (বাংলা লিপি) पूर्वी नागरी लिपि का एक परिमार्जित रूप है जिसे बांग्ला भाषा, असमिया या विष्णुप्रिया मणिपुरी लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है। पूर्वी नागरी लिपि का संबंध ब्राम्ही लिपि के साथ है। आधुनिक बांग्ला लिपि को चार्ल्स विल्किंस द्वारा 1778 में आधार दिया गया जब उन्होंने इस लिपि के लिए पहली बार टाइपसेट का प्रयोग किया। असमिया एवं मणिपुरी लिखते समय कमोबेश इसी लिपि का प्रयोग थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, र अक्षर (बांग्ला/मणिपुरी: র; असमिया: ৰ) एवं व (बांग्ला: अनुपलब्ध; असमिया/मणिपुरी: ৱ) में भाषानुसार अंतर दिखते हैं। .

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महाभाष्य

पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखी जिसे व्याकरणमहाभाष्य का नाम दिया (महा+भाष्य (समीक्षा, टिप्पणी, विवेचना, आलोचना))। व्याकरण महाभाष्य में कात्यायन वार्तिक भी सम्मिलित हैं जो पाणिनि के अष्टाध्यायी पर कात्यायन के भाष्य हैं। कात्यायन के वार्तिक कुल लगभग १५०० हैं जो अन्यत्र नहीं मिलते बल्कि केवल व्याकरणमहाभाष्य में पतंजलि द्वारा सन्दर्भ के रूप में ही उपलब्ध हैं। संस्कृत के तीन महान वैयाकरणों में पतंजलि भी हैं। अन्य दो हैं - पाणिनि तथा कात्यायन (१५० ईशा पूर्व)। महाभाष्य में शिक्षा (phonology, including accent), व्याकरण (grammar and morphology) और निरुक्त (etymology) - तीनों की चर्चा हुई है। .

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मालवा

1823 में बने एक एक ऐतिहासिक मानचित्र में मालवा को दिखाया गया है। विंध्याचल का दृश्य, यह मालवा की दक्षिणी सीमा को निर्धारित करता है। इससे इस क्षेत्र की कई नदियां निकली हैं। मालवा, ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग से गठित यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है। मालवा का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है। यद्यपि इसकी राजनीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस छेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति एंव भाषा का विकास हुआ है। मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है। इसे प्राचीनकाल में 'मालवा' या 'मालव' के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में मध्यप्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई ४९६ मी.

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संस्कृत व्याकरण

संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('वेदांग' देखें)। व्याकरण के मूलतः पाँच प्रयोजन हैं - रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह। व्याकरण के बारे में निम्नलिखित श्लोक बहुत प्रसिद्ध है।- - जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ ? .

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संस्कृत व्याकरण का इतिहास

संस्कृत का व्याकरण वैदिक काल में ही स्वतंत्र विषय बन चुका था। नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात - ये चार आधारभूत तथ्य यास्क (ई. पू. लगभग 700) के पूर्व ही व्याकरण में स्थान पा चुके थे। पाणिनि (ई. पू. लगभग 550) के पहले कई व्याकरण लिखे जा चुके थे जिनमें केवल आपिशलि और काशकृत्स्न के कुछ सूत्र आज उपलब्ध हैं। किंतु संस्कृत व्याकरण का क्रमबद्ध इतिहास पाणिनि से आरंभ होता है। व्याकरण शास्त्र का वृहद् इतिहास है किन्तु महामुनि पाणिनि और उनके द्वारा प्रणीत अष्टाधयायी ही इसका केन्द्र बिन्दु हैं। पाणिनि ने अष्टाधयायी में 3995 सूत्रें की रचनाकर भाषा के नियमों को व्यवस्थित किया जिसमें वाक्यों में पदों का संकलन, पदों का प्रकृति, प्रत्यय विभाग एवं पदों की रचना आदि प्रमुख तत्त्व हैं। इन नियमों की पूर्त्ति के लिये धातु पाठ, गण पाठ तथा उणादि सूत्र भी पाणिनि ने बनाये। सूत्रों में उक्त, अनुक्त एवं दुरुक्त विषयों का विचार कर कात्यायन ने वार्त्तिक की रचना की। बाद में महामुनि पतंजलि ने महाभाष्य की रचना कर संस्कृत व्याकरण को पूर्णता प्रदान की। इन्हीं तीनों आचार्यों को 'त्रिमुनि' के नाम से जाना जाता है। प्राचीन व्याकरण में इनका अनिवार्यतः अधययन किया जाता है। नव्य व्याकरण के अन्तर्गत प्रक्रिया क्रम के अनुसार शास्त्रों का अधययन किया जाता है जिसमें भट्टोजीदीक्षित, नागेश भट्ट आदि आचार्यों के ग्रन्थों का अधययन मुख्य है। प्राचीन व्याकरण एवं नव्य व्याकरण दो स्वतंत्र विषय हैं। .

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वैयाकरण

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गणपाठ

गणपाठ पाणिनि के व्याकरण के पाँच भागों में से एक है। इसमें २६१ शब्दों का संग्रह है। पाणिनीय व्याकरण के चार अन्य भाग हैं- अष्टाध्यायी, शिवसूत्र, धातुपाठ तथा उणादिसूत्र। 'गण' का अर्थ है - समूह। जब बहुत से शब्दों को एक ही कार्य करना हो तो उनमें से प्रथम या प्रमुख शब्द को लेकर उसमें 'आदि' जोड़कर काम चला लिया जाता है। जैसे भ्वादि गण (.

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गुजरात

गुजरात (गुजराती:ગુજરાત)() पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। राजस्थान और मध्य प्रदेश इसके क्रमशः उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य हैं। महाराष्ट्र इसके दक्षिण में है। अरब सागर इसकी पश्चिमी-दक्षिणी सीमा बनाता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर दादर एवं नगर-हवेली हैं। इस राज्य की राजधानी गांधीनगर है। गांधीनगर, राज्य के प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र अहमदाबाद के समीप स्थित है। गुजरात का क्षेत्रफल १,९६,०७७ किलोमीटर है। गुजरात, भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। कच्छ, सौराष्ट्र, काठियावाड, हालार, पांचाल, गोहिलवाड, झालावाड और गुजरात उसके प्रादेशिक सांस्कृतिक अंग हैं। इनकी लोक संस्कृति और साहित्य का अनुबन्ध राजस्थान, सिंध और पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ है। विशाल सागर तट वाले इस राज्य में इतिहास युग के आरम्भ होने से पूर्व ही अनेक विदेशी जातियाँ थल और समुद्र मार्ग से आकर स्थायी रूप से बसी हुई हैं। इसके उपरांत गुजरात में अट्ठाइस आदिवासी जातियां हैं। जन-समाज के ऐसे वैविध्य के कारण इस प्रदेश को भाँति-भाँति की लोक संस्कृतियों का लाभ मिला है। .

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काशिकावृत्ति

संस्कृत व्याकरण के अध्ययन की दो शाखाएँ हैं - नव्य व्याकरण, तथा प्राचीनव्याकरण। काशिकावृत्ति प्राचीन व्याकरण शाखा का ग्रन्थ है। इसमें पाणिनिकृत अष्टाध्यायी के सूत्रों की वृत्ति (संस्कृत: अर्थ) लिखी गयी है। इसके सम्मिलित लेखक जयादित्य और वामन हैं। सिद्धान्तकौमुदी से पहले काशिकावृत्ति बहुत लोकप्रिय थी, फिर इसका स्थान सिद्धान्तकौमुदी ने ले लिया। आज भी आर्यसमाज के गुरुकुलों मे इसी के माध्यम से अध्ययन होता है। .

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अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी .

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