मयखाने (मधुशाला) में शराब पिलाने का काम करने वाले/वाली को साकी कहते हैं। कई ग़जलों और नज्मों में इसका जिक्र किया गया है, मसलन जगजीत जी द्वारा गायी गयी ग़जल "ढल गया आफताब ऐ साकी" में और "जवाँ है रात साकिया शराब ला शराब ला " || कई शायरों ने "साकी" को, स्त्री रूप में कल्पना करके उसकी सुन्दरता को मय (शराब) के साथ अपनी रचनाओं में जगह दी है | मसलन एक नज्म है," आँख को ज़ाम समझ बैठा था, अन्जाने में.., साकिया होश कहाँ था तेरे दीवाने में..!!" .
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