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वोट का अधिकार

सूची वोट का अधिकार

राजनीति के इतिहास में वोट का हक आया, तो एक क्रांति हुई। इसको लाने में रूसो जैसे विद्वानों की भूमिका तो थी, किन्तु उस समय के व्यापारियों की भूमिका कम नहीं थी। कारखाने लगने लगे थे, पैदावार बढ़ने लगी थी, पड़ोसी देश के व्यापारी को माल बेचने से अकूत मुनाफाखोरी का रास्ता खुल गया था। लेकिन एक देश के व्यापारी को दूसे देश के व्यापारी से मिलने का रास्ता बन्द था। देशों की सीमाओं पर राजा के सिपाहियों का चुस्त पहरा था। यह पहरा व्यापारी की मुनाफाखोरी में बाधक बन रहा था। इसी अवस्था में रूसो की सोशल कॉन्ट्रैक्ट नामक पुस्तक आई, जिसने राज्य के बारे में एक नई अवधारणा को जन्म दिया। 'राजा पैदा होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि राजा के घर में पैदा हो'। इस विचार ने राजदरबाारियों को यह सपना दिखाया कि उनके घर में पैदा हुआ बच्चा राजा हो सकता है। इस विचार ने व्यापारियों को यह सपना दिखाया कि व्यापारियों को परादेशीय सीधा सम्बन्ध बनाने की स्वतंत्रता देने वाले किसी भी व्यक्ति को राजा बनाया जा सकता है। उसे चुनाव लड़ाकर जितवाया जा सकता है और यह प्रचारित किया जा सकता है कि चुनाव जीतने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति है, जनता के हितों का वास्तविक प्रवक्ता है।....यही व्यक्ति जन्मजात राजा है। क्रांति और शाजिस के इस मिश्रित घटना से राजशाही का अंत हो गया। दो देशों के व्यापारियों का आपसी मेल-जोल आसान हो गया। चुनावी लोकतंत्र आ गया। प्रजा के बेटे को राजा बनने का रास्ता खुल गया। राजनैतिक सत्ता वंशवाद से मुक्त हो गई, वे लोग आजाद हो गए, जो चुनाव लड़ सकते थे, या जो किसी दूसरे को चुनाव लड़वाकर उसे सत्ता की आभासी बागडोर सौंप सकते थे और सत्ता की वास्तविक बागडोर अपने हाथ में रख सकते थे। यह घटना अठ्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द की है। लगभग 200 साल बाद, बीसवीं सदी के अंतिम दशक में भी कुछ ऐसा ही घटा। जिसे लोग विश्व व्यापार समझौता कहते हैं, वास्तव में यह एक तरह का इतिहास का दोहराव था। इस नई व्यवस्था में दो देशों के व्यापारी ही इकट्ठा नहीं हुए, कुछ अमीर उपभोक्ता भी इस गठबंधन में शामिल हो गए। इस बार दो देशों के व्यापारियों की सहज मुलाकात की मांग ही नहीं की गई, इस बार यह मांग भी की गई कि विदेश का व्यापारी चार लाख रूपये में कार बेचने के लिए देश में आया है, देश का एक उपभोक्ता उस कार को खरीदने के लिए तैयार है। ऐसी स्थिति में आयात व निर्यात कर लगाकर चार लाख की कार को पांच लाख की बनाने वाली सरकार कौन होती ह? देशी उपभोक्ता व विदेशी व्यापारी जब मियां-बीबी की तरह राजी हो गए तो सरकार काजी की तरह दुबक गई। राज्य की प्रभुसत्ता का बड़ा हिस्सा विश्व व्यापार संगठन जैसे वैश्विक संगठनों के पास स्थानांतरित हो गया। यह व्यापारियों व उपभोक्ताओं का परादेशीय गठबंधन है, जिसके सामने सरकार असहाय है। इसके बाद शुरू हुआ विश्व बाजार का, विश्व अर्थव्यवस्था का, विश्व उपभोग का और विश्व आय अर्जित करने का एक नया सिलसिला। इसी घटना के साथ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के नाम से एक नई सत्ता प्रकाश में आई और शासन की आर्थिक नीतियां तय करने का अधिकार इन कम्पनियों ने अपने हाथ में ले लिया। यद्यपि इसमें हाथ की सफाई का पूरा ध्यान दिया गया। इस बात का ध्यान रखा गया कि आम जनता को यही लगना चाहिए कि देश में पहले की तरह ही चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि ही शासन कर रहे हैं और वही लोग नीतियां बना रहे हैं। इससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के संचालकों को बड़ी सुरक्षा हो गई, क्योंकि जब रोजगार देने का श्रेय लेना होगा तो यह श्रेय कम्पनी चलाने वालों को मिलेगा और जब बेरोजगारी की जिम्मेदारी लेनी होगी, तो इस पाप को नेताओं के कंधे पर डाल कर हटा जा सकता है। जनता अपनी आर्थिक तकलीफ के लिए अपने देश के नेताओं से लड़ती रहेगी और चुनाव में पार्टियों का तख्ता पलट करके अपना गुस्सा उतारती रहेगी। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का लाभ उठाने वाले विश्वव्यापारी व विश्वउपभोक्ता दूर बैठ कर यह तमाशा देखते रहेंगे। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी, कुपोषण से छटपठाते लोगों को देख कर मजा लेने वाले लोग इस बात पर पूरी नजर रखे हुए हैें कि जिस तरह व्यापारियों व अमीर उपभोक्ताओं ने विश्वव्यापी संगठन बना लिया, उसी प्रकार कहीं सभी देशों के पीड़ित लोग देशों की सीमाएं तोड़ कर कोई वैश्विक पार्टी न बना लें। इन्हें डर है कि अगर व्यापारियों के वैश्विक संगठन के सामने विश्व भर के पीडिताेंे की विश्वव्यापी पार्टी बन गई तो- नेताओं को पैसे की ताकत से कठपुतली बना कर नचाना सम्भव नहीं रह जाएगा, मनमानी मुनाफाखोरी सम्भव नहीं हो पाएगी, विश्व व्यापार व्यवस्था के कारण गरीबों की हुई क्षति की भरपाई करने के लिए विश्वव्यापारियों को भी अपने मुनाफे में से विश्व स्तरीय कर देना पड़ेगा...

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