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वृषपर्वा तारामंडल

सूची वृषपर्वा तारामंडल

वृषपर्वा (सिफ़ियस) तारामंडल वृषपर्वा या सिफ़ियस (अंग्रेज़ी: Cepheus) तारामंडल खगोलीय गोले के उत्तरी भाग में दिखने वाला एक तारामंडल है। दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने जिन ४८ तारामंडलों की सूची बनाई थी यह उनमें से एक है और अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में भी यह शामिल है। "वृषपर्वा" का नाम दैत्यों के एक राजा पर रखा गया है, जबकि अंग्रेज़ी नाम "सिफ़ियस" इथियोपिया के एक मिथिक राजा पर रखा गया है। .

26 संबंधों: चमक, डॅल्टा सॅफ़ॅई तारा, तारामंडल, तारों की श्रेणियाँ, द्वितारा, परिवर्ती तारा, प्रकाश-वर्ष, बहिर्ग्रह, बायर नामांकन, बेटा सॅफ़ॅई तारा, महानोवा, लाल बौना, लाल महादानव तारा, सर्पिल गैलेक्सी, सौर अर्धव्यास, विलियम हरशॅल, खगोलीय मैग्निट्यूड, खगोलीय गोला, खुला तारागुच्छ, आकाशगंगा, इथियोपिया, क्लाडियस टॉलमी, अल्फ़ा सॅफ़ॅई तारा, अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ, अंग्रेज़ी भाषा, उपदानव तारा

चमक

चमक, चमकीलापन या रोशनपन दृश्य बोध का एक पहलु है जिसमें प्रकाश किसी स्रोत से उभरता हुआ या प्रतिबिंबित होता हुआ लगता है। दुसरे शब्दों में चमक वह बोध है जो किसी देखी गई वस्तु की प्रकाश प्रबलता से होता है। चमक कोई कड़े तरीके से माप सकने वाली चीज़ नहीं है और अधिकतर व्यक्तिगत बोध के बारे में ही प्रयोग होती है। चमक के माप के लिए प्रकाश प्रबलता जैसी अवधारणाओं का प्रयोग होता है। .

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डॅल्टा सॅफ़ॅई तारा

डॅल्टा सॅफ़ॅई, जिसका बायर नाम भी यही (δ Cephei या δ Cep) है, वृषपर्वा तारामंडल में स्थित एक द्वितारा मंडल है जो पृथ्वी से क़रीब ८८७ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) उसके और पृथ्वी के बीच गैस और धूल की मौजूदगी के कारण ०.२३ कम दिखता है। इसमें ५.३६६३४१ दिनों के काल में चमक ३.४८ से ४.३७ मैग्निट्यूड के बीच बदलती रहती है, यानि यह एक परिवर्ती तारा है। इस तारे के आधार पर परिवर्ती तारों की एक विशेष श्रेणी बनाई गई थी जिसे सॅफ़ॅई परिवर्ती कहा जाता है। .

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तारामंडल

मृगशीर्ष या ओरायन (शिकारी तारामंडल) एक जाना-माना तारामंडल है - पीली धारी के अन्दर के क्षेत्र को ओरायन क्षेत्र बोलते हैं और उसके अंदर वाली हरी आकृति ओरायन की आकृति है खगोलशास्त्र में तारामंडल आकाश में दिखने वाले तारों के किसी समूह को कहते हैं। इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं नें आकाश में तारों के बीच में कल्पित रेखाएँ खींचकर कुछ आकृतियाँ प्रतीत की हैं जिन्हें उन्होंने नाम दे दिए। मसलन प्राचीन भारत में एक मृगशीर्ष नाम का तारामंडल बताया गया है, जिसे यूनानी सभ्यता में ओरायन कहते हैं, जिसका अर्थ "शिकारी" है। प्राचीन भारत में तारामंडलों को नक्षत्र कहा जाता था। आधुनिक काल के खगोलशास्त्र में तारामंडल उन्ही तारों के समूहों को कहा जाता है जिन समूहों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ में सहमति हो। आधुनिक युग में किसी तारों के तारामंडल के इर्द-गिर्द के क्षेत्र को भी उसी तारामंडल का नाम दे दिया जाता है। इस प्रकार पूरे खगोलीय गोले को अलग-अलग तारामंडलों में विभाजित कर दिया गया है। अगर यह बताना हो कि कोई खगोलीय वस्तु रात्री में आकाश में कहाँ मिलेगी तो यह बताया जाता है कि वह किस तारामंडल में स्थित है।, Neil F. Comins, pp.

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तारों की श्रेणियाँ

अभिजीत (वेगा) एक A श्रेणी का तारा है जो सफ़ेद या सफ़ेद-नीले लगते हैं - उसके दाएँ पर हमारा सूरज है जो G श्रेणी का पीला या पीला-नारंगी लगने वाला तारा है खगोलशास्त्र में तारों की श्रेणियाँ उनसे आने वाली रोशनी के वर्णक्रम (स्पॅकट्रम) के आधार पर किया जाता है। इस वर्णक्रम से यह ज़ाहिर हो जाता है कि तारे का तापमान क्या है और उसके अन्दर कौन से रासायनिक तत्व मौजूद हैं। अधिकतर तारों कि वर्णक्रम पर आधारित श्रेणियों को अंग्रेज़ी के O, B, A, F, G, K और M अक्षर नाम के रूप में दिए गए हैं-.

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द्वितारा

हबल दूरबीन से ली गयी व्याध तारे की तस्वीर जिसमें अमुख्य "व्याध बी" तारे का बिंदु (बाएँ, निचली तरफ़) मुख्य व्याघ तारे से अलग दिख रहा है द्वितारा या द्विसंगी तारा दो तारों का एक मंडल होता है जिसमें दोनों तारे अपने सांझे द्रव्यमान केंद्र (सॅन्टर ऑफ़ मास) की परिक्रमा करते हैं। द्वितारों में ज़्यादा रोशन तारे को मुख्य तारा बोलते हैं और कम रोशन तारे को अमुख्य तारा या "साथी तारा" बोलते हैं। कभी-कभी द्वितारा और दोहरा तारा का एक ही अर्थ निकला जाता है, लेकिन इन दोनों में भिन्नताएँ हैं। दोहरे तारे ऐसे दो तारे होते हैं जो पृथ्वी से इकठ्ठे नज़र आते हों। ऐसा या तो इसलिए हो सकता है क्योंकि वे वास्तव में द्वितारा मंडल में साथ-साथ हैं या इसलिए क्योंकि पृथ्वी पर बैठे हुए वे एक दुसरे के समीप लग रहे हैं लेकिन वास्तव में उनका एक दुसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है। किसी दोहरे तारे में इनमें से कौनसी स्थिति है वह लंबन (पैरलैक्स) को मापने से जाँची जा सकती है। .

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परिवर्ती तारा

द्वितारे में एक तारे के कभी खुले चमकने और कभी ग्रहण हो जाने से उसकी चमक परिवर्तित होती रहती है - नीचे की लक़ीर पृथ्वी तक पहुँच रही चमक को माप रही है परिवर्ती तारा ऐसे तारे को बोलते हैं जिसकी पृथ्वी तक पहुँचती हुई चमक बदलती रहती हो, यानि उसका सापेक्ष कान्तिमान बदलता रहता हो। इसकी दो वजहें हो सकती हैं -.

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प्रकाश-वर्ष

प्रकाश वर्ष (चिन्ह:ly) लम्बाई की मापन इकाई है। यह लगभग 950 खरब (9.5 ट्रिलियन) किलोमीटर के अन्दर होती है। यहां एक ट्रिलियन 1012 (दस खरब, या अरब पैमाने) के रूप में लिया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार, प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जो प्रकाश द्वारा निर्वात में, एक वर्ष में पूरी की जाती है। यह लम्बाई मापने की एक इकाई है जिसे मुख्यत: लम्बी दूरियों यथा दो नक्षत्रों (या ता‍रों) बीच की दूरी या इसी प्रकार की अन्य खगोलीय दूरियों को मापने मैं प्रयोग किया जाता है। .

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बहिर्ग्रह

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .

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बायर नामांकन

शिकारी तारामंडल के तारे, जिनमें बायर नामांकन के यूनानी अक्षर दिख रहे हैं बायर नामांकन तारों को नाम देने का एक तरीक़ा है जिसमें किसी भी तारामंडल में स्थित तारे को एक यूनानी अक्षर और उसके तारामंडल के यूनानी नाम से बुलाया जाता है। बायर नामों में तारामंडल के यूनानी नाम का सम्बन्ध रूप इस्तेमाल होता है। मिसाल के लिए, पर्णिन अश्व तारामंडल (पॅगासस तारामंडल) के तारों में से तीन तारों के नाम इस प्रकार हैं - α पॅगासाए (α Pegasi), β पॅगासाए (β Pegasi) और γ पॅगासाए (γ Pegasi)। .

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बेटा सॅफ़ॅई तारा

वृषपर्वा (सिफ़ियस) तारामंडल में 'β' के चिह्न द्वारा नामांकित तारा है बेटा सॅफ़ॅई, जिसका बायर नाम भी यही (β Cephei या β Cep) है, वृषपर्वा तारामंडल में स्थित एक तारा है। यह हमसे क़रीब ६९० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) लगभग +३.१४ है, हालांकि यह एक परिवर्ती तारा है जिसकी चमक ऊपर-नीचे होती रहती है। इस तारे के नाम पर परिवर्ती तारों की एक विशेष श्रेणी का नामकरण किया गया है जिसके सददास्यों को बेटा सॅफ़ॅई परिवर्ती तारे बुलाया जाता है। .

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महानोवा

केंकड़ा नॅब्युला - यह एक महानोवा विस्फोट का बचा हुआ बादल है हम से २१,००० प्रकाश-वर्ष दूर डब्ल्यू॰आर॰ १२४ नाम के वुल्फ़-राये श्रेणी के तारे के इर्द-गिर्द महानोवा अवशेष का नॅब्युला खगोलशास्त्र में महानोवा (सुपरनोवा) किसी तारे के भयंकर विस्फोट को कहते हैं। महानोवा नोवा से अधिक बड़ा धमाका होता है और इस से निकलता प्रकाश और विकिरण (रेडीएशन) इतना ज़ोरदार होता है के कुछ समय के लिए अपने आगे पूरी आकाशगंगा को भी धुंधला कर देता है लेकिन फिर धीरे-धीरे ख़ुद धुंधला जाता है। जब तक महानोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा। महानोवा के धमाके में सितारा अपने अधिकाँश भाग को ३०,००० किमी प्रति सैकिंड (यानि प्रकाश की गति का १०%) तक की रफ़्तार से व्योम में फेंकता है, जो अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में एक आक्रमक झटके की तरंग बन के फैलती है। इसके नतीजे से जो फैलता हुआ गैस और खगोलीय धूल का बादल बनता है उसे "महानोवा अवशेष" कहते हैं। .

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लाल बौना

ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे लाल बौने ही हैं - यह लाल बौने का चित्र एक चित्रकार ने अपनी कल्पना से बनाया है खगोलशास्त्र में लाल बौना या रॅड ड्वार्फ़ मुख्य अनुक्रम के एक छोटे और सूर्य की तुलना में ठन्डे, तारे को बोला जाता है जो "K" या "M" की श्रेणी का तारा होता है। इन तारों का रंग हमारे सूरज की तुलना में अधिक लाल होता है जिसकी वजह से इन्हें लाल बौना कहा जाता है। ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे इसी श्रेणी के हैं। इनका सतही तापमान ४,०००° कैल्विन के आसपास होता है। अकार में यह सूर्य के ५०% से लेकर ७.५% तक के होते हैं। इस से भी अगर छोटे हो तो सही अर्थ में तारा बन नहीं पाते और उसके बजाए भूरा बौना बन जाते हैं।, 6 February 2013, Jason Palmer, BBC, retrieved at 11 April 2013 .

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लाल महादानव तारा

स्वाती (आर्कत्युरस) भी दिखाया गया है लाल महादानव तारे वह महादानव तारे होते हैं जो 'K' या 'M' श्रेणी के तारे हों। यह ब्रह्माण्ड में व्यास (डायामीटर) के अनुसार सब से बड़े तारे होते हैं, हालांकि द्रव्यमान के अनुसार नहीं। आद्रा (बीटलजूस) ऐसे तारे का उदहारण है। जिन तारों का शुरू में द्रव्यमान 10 सौर द्रव्यमान से अधिक हो वह अपना हाइड्रोजन इंधन ख़त्म करने के बाद हीलियम का नाभिकीय संलयन (न्यूक्लीयर फ़्युज़न) करना आरम्भ कर देते हैं। इस चरण में वह लाल महादानव बन जाते हैं। इन तारों का सतही तापमान काफ़ी कम होता है (3500-4500 कैल्विन) और इनका आकार बहुत ही बड़ा हो जाता है। ज़्यादातर लाल दानवों का व्यास सूरज से 200-800 गुना अधिक होता है। इनका जीवनकाल लगभग 10 करोड़ वर्ष का होता है और ऐसे तारे अक्सर झुंडों में मिलते हैं। .

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सर्पिल गैलेक्सी

मॅसिये १०१ और एन॰जी॰सी॰ ५४५७ के नाम से भी जानी जाती है) एक सर्पिल गैलेक्सी है सर्पिल गैलेक्सी किसी सर्पिल (स्पाइरल) आकार वाली गैलेक्सी को कहते हैं, जैसे की हमारी अपनी गैलेक्सी, आकाशगंगा है। इनमें एक चपटा घूर्णन करता (यानि घूमता हुआ) भुजाओं वाला चक्र होता है जिसमें तारे, गैस और धूल होती है और जिसके बीच में एक मोटा उभरा हुआ तारों से घना गोला होता है। इसके इर्द-गिर्द एक कम घना गैलेक्सीय सेहरा होता है जिसमें तारे अक्सर गोल तारागुच्छों में पाए जाते हैं। सर्पिल गैलेक्सियों में भुजाओं में नवजात तारे और केंद्र में पुराने तारों की बहुतायत होती है। क्योंकि नए तारे अधिक गरम होते हैं इसलिए भुजाएं केंद्र से ज़्यादा चमकती हैं। दो-तिहाई सर्पिल गैलेक्सियों में भुजाएं केंद्र से शुरू नहीं होती, बल्कि केंद्र का रूप एक खिचे मोटे डंडे सा होता है जिसके बीच में केन्द्रीय गोला होता है। भुजाएं फिर इस डंडे से निकलती हैं। क्योंकि मनुष्य पृथ्वी पर आकाशगंगा के अन्दर स्थित है, इसलिए हम पूरी आकाशगंगा के चक्र और उसकी भुजाओं को देख नहीं सकते। २००८ तक माना जाता था के आकाशगंगा का एक गोल केंद्र है जिस से भुजाएँ निकलती हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों का यह सोचना है के हमारी आकाशगंगा भी ऐसी डन्डीय सर्पिल गैलेक्सियों की श्रेणी में आती है। .

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सौर अर्धव्यास

सौर अर्धव्यास (solar radius), जिसे \beginR_\odot\end के चिन्ह से दर्शाया जाता है, हमारे सूरज का अर्धव्यास (रेडियस) है जो ६.९५५ x १०५ किलोमीटर के बराबर है। खगोलशास्त्र में, सौर्य अर्धव्यास का तारों के अर्धव्यास बताने के लिए इकाई की तरह इस्तेमाल होता है। अगर किसी तारे का अर्धव्यास हमारे सूरज से बीस गुना है, जो कहा जाएगा के उसका अर्धव्यास २० \beginR_\odot\end है। ज़ाहिर है के सूरज का अपना अर्धव्यास १ \beginR_\odot\end है। .

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विलियम हरशॅल

विलियम हरशॅल (१७३८-१८२२) ने युरेनस ग्रह की खोज की थी) सर फ़्रॅडरिक विलियम हरशॅल (अंग्रेज़ी: Frederick William Herschel, जन्म: १५ नवम्बर १७३८, देहांत: २५ अगस्त १८२२) एक जर्मनी में पैदा हुए ब्रिटिश खगोलशास्त्री और संगीतकार थे। १९ वर्ष की उम्र में वे जर्मनी छोड़कर ब्रिटेन में आ बसे। उन्होंने ही युरेनस ग्रह की खोज की थी। यह दूरबीन द्वारा पहचाना गया पहला ग्रह था। उन्होंने इसके अतिरिक्त युरेनस के दो उपग्रहों की और शनि के दो उपग्रहों की भी खोज की। हालांकि वे अपनी खगोलशास्त्रिय गतिविधियों के लिए ज़्यादा विख्यात हैं, उन्होंने अपने जीवनकाल में २४ संगीत की टुकड़ियां भी लिखीं। .

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खगोलीय मैग्निट्यूड

खगोलशास्त्र में खगोलीय मैग्निट्यूड या खगोलीय कान्तिमान किसी खगोलीय वस्तु की चमक का माप है। इसका अनुमान लगाने के लिए लघुगणक (लॉगरिदम) का इस्तेमाल किया जाता है। मैग्निट्यूड के आंकडे परखते हुए एक ध्यान-योग्य चीज़ यह है के किसी वस्तु का मैग्निट्यूड जितना कम हो वह वस्तु उतनी ही अधिक रोशन होती है। पृथ्वी पर बैठे हुए दर्शक के लिए -.

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खगोलीय गोला

खगोलीय गोला पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक संकेन्द्रीय काल्पनिक गोला है, जिसे खगोलीय मध्य रेखा दो बराबर के अर्ध-गोलों में काटती है खगोलशास्त्र में खगोलीय गोला पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक काल्पनिक गोला है जो पृथ्वी के गोले के साथ संकेन्द्रीय (कॉन्सॅन्ट्रिक) होता है। इसके व्यास (डायामीटर) को पृथ्वी के व्यास से अधिक कुछ भी माना जा सकता है। पृथ्वी पर बैठकर आसमान में देख रहे किसी दर्शक के लिए कल्पना करना मुश्किल नहीं है के सारी खगोलीय वस्तुओं की छवियाँ इसी खगोलीय गोले की अंदरूनी सतह पर दिखाई जा रही हैं। अगर हम पृथ्वी की भू-मध्य रेखा के ऊपर ही खगोलीय मध्य रेखा और पृथ्वी के ध्रुवों के ऊपर ही खगोलीय ध्रुवों को मान कर चलें, तो खगोलीय वस्तुओं के स्थानों के बारे में बताना आसान हो जाता है। उदहारण के लिए हम कह सकते हैं के ख़रगोश तारामंडल खगोलीय मध्य रेखा के ठीक दक्षिण में है। .

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खुला तारागुच्छ

वृष तारामंडल में स्थित कृत्तिका तारागुच्छ (अंग्रेज़ी में "प्लीअडीज़") एक मशहूर खुला तारागुच्छ है खुला तारागुच्छ NGC 2244 खुले तारागुच्छे ("ओपन क्लस्टर") १०-३० प्रकाश वर्ष के चपटे क्षेत्र में फैले चंद सौ तारों के तारागुच्छे होते हैं। इनमे से अधिकतर तारे छोटी आयु वाले (कुछ करोड़ वर्षों पुराने) नवजात सितारे होते हैं। सर्पिल गैलेक्सियों (जैसे की हमारी गैलेक्सी, आकाशगंगा) में यह अक्सर भुजाओं में मिलते हैं। क्योंकि इनमें आपसी गुरुत्वाकर्षक बंधन उतना मज़बूत नहीं होता जितना के गोल तारागुच्छों के सितारों में होता है, इसलिए अक्सर इनके तारे आसपास के विशाल आणविक बादलों और अन्य वस्तुओं के प्रभाव में आकर भटक जाते हैं और तारागुच्छा छोड़ देते हैं। कृत्तिका तारागुच्छ (अंग्रेज़ी में "प्लीअडीज़") इस श्रेणी के तारागुच्छों का एक मशहूर उदहारण है। .

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आकाशगंगा

स्पिट्ज़र अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी आकाशगंगा के केन्द्रीय भाग की इन्फ़्रारेड प्रकाश की तस्वीर। अलग रंगों में आकाशगंगा की विभिन्न भुजाएँ। आकाशगंगा के केंद्र की तस्वीर। ऍन॰जी॰सी॰ १३६५ (एक सर्पिल गैलेक्सी) - अगर आकाशगंगा की दो मुख्य भुजाएँ हैं जो उसका आकार इस जैसा होगा। आकाशगंगा, मिल्की वे, क्षीरमार्ग या मन्दाकिनी हमारी गैलेक्सी को कहते हैं, जिसमें पृथ्वी और हमारा सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है। आकाशगंगा में १०० अरब से ४०० अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग ५० अरब ग्रह होंगे, जिनमें से ५० करोड़ अपने तारों से जीवन-योग्य तापमान रखने की दूरी पर हैं। सन् २०११ में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार आकाशगंगा में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं। हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग २२.५ से २५ करोड़ वर्ष लग जाते हैं। .

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इथियोपिया

इथियोपिया (गिइज़: ኢትዮጵያ, इत्योप्प्या) अफ्रीका के सींग में स्थित एक स्थल-रुद्ध देश है जो सरकारी तौर पर इथियोपिया संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में जाना जाता है। यह अफ़्रीका का दूसरा सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश है और इसमें 85.2 लाख से अधिक लोग बसे हुए हैं। क्षेत्रफल के हिसाब से यह अफ़्रीका का दसवाँ सबसे बड़ा देश है। इसकी राजधानी अदीस अबाबा है। इथियोपिया सूडान से दक्षिणपूर्व में, इरिट्रिया से दक्षिण में, जिबूती और सोमालिया से पश्चिम में, केन्या से उत्तर में और दक्षिण सूडान से पूर्व में स्थित है। यह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला स्थल-रुद्ध देश है। .

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क्लाडियस टॉलमी

टाँलेमी एक प्रख्यात ज्योतिर्विद थे। उन्होंने पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में चन्द्रमा को जो समय लगता है उसका निर्धारण किया। उन्होंने प्रकाश के नियम का भी प्रतिपादन किया। क्लाडियस टॉलमी एक प्रमुख भूगोलवेत्ता था। वह मिस्त्र का निवासी था। उसका जन्म टॉलेमस सरसी या पेलुसियम मे हुवा (जीवन काल ९० से १६८ ई. या १०० से १७८ ई.)। टॉलमी नें अपना अधिकांश गणित व प्र्क्षेप निर्माण सम्बन्धी सचना कार्य एवं पेक्षण सिकन्दरिया के महान पुस्तकालय में ३-४ दशकों में पूरे किए। उसने सिकन्दरिया के निकट के एक नगर नोरस से कई खगोलिए बेध किए। .

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अल्फ़ा सॅफ़ॅई तारा

वृषपर्वा (सिफ़ियस) तारामंडल में 'α' के चिह्न द्वारा नामांकित तारा है अल्फ़ा सॅफ़ॅई, जिसका बायर नाम भी यही (α Cephei या α Cep) है, वृषपर्वा तारामंडल में स्थित एक तारा है जो पृथ्वी से दिखने वाले सबसे रोशन तारों में से एक है। यह हमसे क़रीब ४९ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) लगभग +२.५ है। .

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अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ का चिह्न अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union (IAU)), पेशेवर खगोलशास्त्रियों का एक संगठन है। इसका केंद्रीय सचिवालय पैरिस, फ़्रांस में है। इस संघ का ध्येय खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनुसन्धान और अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है। जब भी ब्रह्माण्ड में कोई नई वस्तु पाई जाती है तो खगोलीय संघ द्वारा दिए गए नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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उपदानव तारा

तारों की श्रेणियाँ दिखने वाला हर्ट्ज़स्प्रुंग-रसल चित्र उपदानव तारा ऐसा तारा होता है जो मुख्य अनुक्रम के बौने तारों से तो अधिक चमकीला हो लेकिन इतनी भी चमक और द्रव्यमान न रखता हो के दानव तारों की श्रेणी में आ सके। यर्कीज़ वर्णक्रम श्रेणीकरण में इसकी चमक की श्रेणी "IV" होती है। वॄश्चिक तारामंडल का सर्गस नाम का तारा (जिसका बायर नाम "θ स्को" है) ऐसे एक चमकीले दानव का उदहारण है। .

नई!!: वृषपर्वा तारामंडल और उपदानव तारा · और देखें »

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