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मौखरि वंश

सूची मौखरि वंश

मौखरि वंश का शासन गुप्त राजवंश के पतन के बाद स्थापित हुआ था। गया जिले के निवासी मौखरि लोग जो चक्रवर्ती गुप्त राजवंश के समय गुप्तवंश के लोगों के सामन्त थे। मौखरि वंश के लोग उत्तर प्रदेश के कन्‍नौज में तथा राजस्थान के बड़वा क्षेत्र में तीसरी सदी में फैले हुए थे। मौखरि वंश के शासकों को उत्तर गुप्त वंश के चौथे शासक कुमारगुप्त के साथ युद्ध हुआ था जिसमें ईशान वर्मा ने मौखरि वंश से मगध को छीन लिया था। मौखरि वंश के सामन्त ने अपनी राजधानी कन्‍नौज बनाई। कन्‍नौज का प्रथम मौखरि वंश का सामन्त हरिवर्मा था। उसने ५१० ई. में शासन किया था। उसका वैवाहिक सम्बन्ध उत्तर वंशीय राजकुमारी हर्षगुप्त के साथ हुआ था। ईश्‍वर वर्मा का विवाह भी उत्तर गुप्त वंशीय राजकुमारी उपगुप्त के साथ हुआ था। यह कन्‍नौज तक ही सीमित रहा। यह राजवंश तीन पीढ़ियों तक चलता रहा। हरदा लेख से स्पष्ट होता है कि सूर्यवर्मन, ईशानवर्मन का छोटा भाई था। अवंति वर्मा सबसे शक्‍तिशाली तथा प्रतापी राजा था। इसके बाद मौखरि वंश का अन्त हो गया। डॉक्टर जायसवाल के अनुसार मौखरी वर्तमान गया जिले मे बसी हुई मौहरी जाति के पूर्वज थे। आज मौहरी वैश्यजातीय हैं परन्तु हरहा अभिलेख से पता चलता है की मौखरी छत्रिय थे। गया के मौखरी कान्यकुब्ज के मौखरी का भी उल्लेख मिलता है जिसमे हरीवर्मा,आदित्यवर्मा, ईश्वरवर्मा के नाम मिलते हैं .

3 संबंधों: ईशानवर्मन, गुप्त राजवंश, कुमारगुप्त

ईशानवर्मन

ईशानवर्मन् कन्नौज का मौखरी राजा था। उसके पहले के तीन राजा अधिकतर उत्तरयुगीन मगध गुप्तों के सामंत रहे थे। ईशानवर्मन् ने उत्तर गुप्तों का आधिपत्य कन्नौज से हटाकर अपनी स्वतंत्रता घोषित की। उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि उसने आंध्रों को परास्त किया और गौड़ों को अपनी सीमा के भीतर रहने को मजबूर किया। इसमें संदेह नहीं कि यह प्रशस्ति मात्र प्रशस्ति है क्योंकि ईशानवर्मन् के आंध्रों अथवा गौड़ राजा के संपर्क में आने की संभावना अत्यंत कम थी। गौड़ों और मौखरियों के बीच तो स्वयं उत्तरकालीन गुप्त ही थे जिनके राजा कुमारगुप्त ने, जैसा उसके अभिलेख से विदित है, ईशानवर्मन को परास्त कर उसके राज्य का कुछ भाग छीन लिया था। .

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गुप्त राजवंश

गुप्त राज्य लगभग ५०० ई इस काल की अजन्ता चित्रकला गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्‍ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त वंश पर सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉ जयसवाल ने इन्हें जाट बताया है।इसके अलावा तेजराम शर्माhttps://books.google.co.in/books?id.

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कुमारगुप्त

कुमारगुप्त नाम के गुप्त राजवंश के दो शासक थे:-.

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मौखरी राजवंश

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