भूमिगत भूकंपीय तरंग माइक्रोजोनिंग का अर्थ सूक्ष्म वर्गीकरण करना होता है। इसमें सतह की जमीन की संरचना की जांच की जाती है। भूकंप के समय इमारत का भविष्य काफी कुछ तक जमीन की संरचना पर भी निर्भर करता है। यदि भवन किसी नमी वाली सतह पर बना है यानी रिज क्षेत्र या किसी ऐसी मिट्टी में जो लंबे समय तक पानी को सोखती है तो उसे खतरा अधिक होता है। वहां मिट्टी ढीली हो जाती है, अतः खतरा बढ़ जाता है। जहां मिट्टी शुष्क या बालू वाली हो, या पत्थर की चट्टानें नीचे हों, तो उसके भूकंप के समय अलग-अलग प्रभाव होते हैं। माइक्रोजोनिंग में क्षेत्र में प्रति २०० से ५०० मीटर की दूरी पर जमीन में ड्रिलिंग से छेद करके मिट्टी के नमूने एकत्र किए जाते हैं तथा उसकी वैज्ञानिक जांच के बाद तय किया जाता है कि वह स्थान कितना संवेदनशील हैं। विश्व के बहुत से बड़े शहरों की माइक्रोज़ोनिंग की जा चुकी है। भारत की राजधानी दिल्ली की माइक्रोजोनिंग भी की जा चुकी है तथा भूंकप के हिसाब से इसे नौ भागों में विभाजित किया जा चुका है। इनमें घनी आबादी वाले यमुनापार समेत तीन जोन सर्वाधिक खतरनाक हैं। पांच जोन मध्यम खतरे वाले हैं तथा सिर्फ एक जोन ही सुरक्षित है। शहरॊ में भवन निर्माण के दौरान माइक्रोजोनिंग के नतीजों के आधार पर भवनों में भूकंपरोधी तकनीक इस्तेमाल की जाए तो खतरे को काफ़ॊ हद तक कम किया जा सकता है। .
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