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बीकानेर के दर्शनीय स्थल

सूची बीकानेर के दर्शनीय स्थल

नगर के मध्य में एक जैन मंदिर है जिसके मध्य से पाँच मार्ग निकले हैं, जो अन्य सड़कों से मिलते हुए शहरपनाह के किसी एक दरवाजे से जा मिलते हैं। कोट दरवाजे के बाहर अलखगिरि मतानुयायी लच्छीराम का बनवाया हुआ 'अलखसागर' नाम का प्रसिद्ध कुआं है, जो बीकानेर के सबसे अच्छे कुओं में से एक माना जाता हैं। अन्य कुओं की संख्या १४ है, जो बहुधा बहुत गहरे हैं। इन कुओं में अधिकांश जल सुस्वादु तथा पीने योग्य है। महाराजा अनूपसिंह का बनवाया हुआ 'अनोपसागर' कुआं भी उल्लेखनीय है। नगर के बाहर के तालाबों में महाराजा सूरसिंह का बनवाया हुआ 'सूरसागर' सबसे अच्छा माना जाता है। .

32 संबंधों: चूरू, देशणोक, देवीकुंड, बीकानेर, नाल, बीकानेर, नौहर, पलाणा, पाखा, पांचु, पूनरासर बालाजी, बीकानेर, बीकानेर किला, मोरखाणा, रतनगढ़, राजगढ़, लालगढ़ महल, लाखासर, श्री कोलायत जी, श्रीगंगानगर, सरदार शहर, सालासर, सुजानगढ़, सूरतगढ़, हनुमानगढ़, जांगलू, जैन मंदिर, बीकानेर, जेगला, वासी -वरसिंहसर, वैष्णव मंदिर, बीकानेर, गजनेर, गुसाईंसर बड़ा, कोड़मदेसर, छापर

चूरू

चूरू भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के मरुस्थलीय भाग का एक नगर एवं लोकसभा क्षेत्र है। इसे थार मरुस्थल का द्वार भी कहा जाता है। यह चूरू जिले का जिला मुख्यालय है। चूरू की स्थापना 1620 ई. में चूहरू जाट ने की थी। .

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देशणोक

बीकानेर से १६ मील दक्षिण में इसी नाम के रेलवे स्टेशन के पास बसा हुआ यह स्थान बीकानेर के महाराजाओं के लिए बड़ा पूज्य है। यहां पर राठौड़ों की पूज्य देवी करणी जी का मंदिर है। ऐसी प्रसिद्धि है कि करणी जी की कृपा और सहायता से ही राठौड़ों का अधिकार स्थापित हुआ था। यहां पर चारणों की बस्ती है और वे ही करणी जी के पुजारी हैं।.

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देवीकुंड, बीकानेर

नगर के पांच मील पूर्व में देवीकुंड है। यहां राव कल्याणसिंह से लेकर महाराजा डूंगरसिंह तक के राजाओं और उनकी रानियों और कुंवरों आदि की स्मारक छत्रियाँ बनी है जिनमें से कुछ तो बड़ी सुन्दर है। पहले के राजाओं आदि की छत्रियां दुलमेरा से लाए हुए लाल पत्थरों की बनीं है, जिनके बीच में लगे हुए मकराना के संगमरमरों पर लेख खुदे हैं। बाद की छत्रियां पूरी संगमरमर की बनी हैं। कुछ छत्रियों की मध्य शिलाओं पर अश्वारुढ़ राजाओं की मूर्तियां खुदी है, जिनके आगे कतार में क्रमानुसार उनके साथ सती होनेवाली राणियों की आकृतियां बनी है। नीचे गद्य और पद्य में उनकी प्रशंसा के लिए लेख खुदे हैं जिनसे कुछ-कुछ हाल के अतिरिक्त उनके स्वर्गवास का निश्चित समय ज्ञात होता है। इसमें महाराजा राजसिंह की छत्री उल्लेखनीय है क्योंकि उनके साथ जल मरने वाले संग्रामसिंह नामक एक व्यक्ति का उल्लेख है। इसी स्थान पर सती होने वाली अंतिम महिला का नाम दीपकुंवारी था, जो महाराजा सूरत सिंह के दूसरे पूत्र मोती सिंह की स्री थी तथा अपने पति की मृत्यु पर १८२५ ई० में सती हुईं थी। उसकी स्मृति में अब भी प्रतिवर्ष भादों के महीने में यहां मेला लगता है। उसके बाद और कोई महिला सती नहीं हुई, क्योंकि सरकार के प्रयत्न से यह प्रथा खत्म हुई। राजपरिवार के लोगों के ठहरने के लिए तालाब के निकट ही एक उद्यान और कुछ महल बने हुए हैं। देवीकुंड और नगर के मध्य में, मुख्य सड़क के दक्षिण भाग में महाराजा डूंगरसिंह का बनवाया हुआ शिव मंदिर है। इसके निकट ही एक तालाब, उद्यान और महल है। इस मंदिर का शिवलिंग ठीक मेवाड़ के प्रसिद्ध एक लिंग जी की मूर्ति के सदृष्य है। यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण मास में भारी मेला लगता है। इस स्थान को शिववाड़ी कहते हैं।.

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नाल, बीकानेर

बीकानेर से ८ मील पश्चिम में इसी नाम के रेलवे स्टेशन के निकट यह गांव है। इसके चारो ओर झाड़ियों और वृक्षों से अच्छादित सात-आठ छोटे-छोटे तालाब हैं। इसमें से एक तालाब के किनारे, जिसे केशोलय कहते हैं, एक लाल पत्थर का कीर्तिस्तंभ लगा है। यह १७वीं शताब्दी का ज्ञात होता है। इसके लेख से यह ज्ञात होता है कि इसका निर्माण प्रतिहार केशव ने बनवाया था। दूसरा उल्लेखनीय लेख यहां के बाघोड़ा जागीरदार के निवास स्थान के द्वार पर लगा हुआ है ज़ो ६ मई १७०५ ई० रविवार का है। इसमें उक्त वंश के इन्द्रभाण की मृत्यु तथा उसकी स्री अमृतदे के सती होने का पता चलता है। नाल से दो मील दक्षिण में एक स्थान है, जिसे नाल का कुआं कहते हैं। यहां सात लेख हैं जिनमें ६ तो १६वीं शताब्दी तथा एक १७वीं शताब्दी का हैं। उल्लेखनीय स्थलों में यहां के मंदिरों, दो कुओं और एक तालाब का नाम लिया जाता है। मंदिर सब एक ही स्थान में एक दीवार से घिरे हैं, जिनमें पार्श्वनाथ और दादूजी के मंदिर उल्लेखनीय है। दोनों लाल पत्थर के बने हुए है। पार्श्वनाथ की मूर्ति संगमरमर की है तथा नीचे एक लेख खुदा है। ये मंदिर १७वीं शताब्दी के बने है। इनके सामने जैसलमेर के पीले पत्थर की बनी हुई दो देवलियां है, जिनमें से एक पर अश्वारुढ़ व्यक्ति और सती की आकृतियां बनी हैं। इससे कुछ दूर चारदीवारी के पास एक सादे लाल पत्थर का कीर्तिस्तंभ लगा हुआ है।.

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नौहर

यह बीकानेर से ११८ मील उत्तर-पूर्व में बसा है। यहां एक जीर्ण-शीर्ण किले के चिह्म अभी तक विद्यमान है। इस स्थान से १६ मील पूर्व में गोगामेड़ी नामक स्थान पर गोगासिद्ध की स्मृति में भाद्रपद के कृष्णपक्ष में मेला लगता है। यह वर्तमान में हनुमानगढ़ ज़िले में स्थित है। इसकी उतरी सीमा हरियाणा के सिरसा जिले से तथा दक्षिण सीमा चुरू जिले से लगती है इसके पश्चिम में रावतसर व पूर्व में भादरा तहसील की सीमा लगती है.

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पलाणा

बीकानेर से १४ मील दक्षिण में इसी नाम के रेलवे स्टेशन के पास बसा हुआ यह स्थान कोयले की खान के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर १४८२ ई० की एक देवली (स्मारक) उल्लेखनीय है, जिससे जांगल देश में प्रथम अधिकार करने वाले राठौड़ों में से राव बीका के चाचा रिणमल के पुत्र मांड़ण की मृत्यु का पता चलता है।.

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पाखा

यह स्थान बीकानेर से लगभग २० मील दक्षिण में जेगला से करीब ४ मील पूर्व में है। यहां एक उल्लेखनीय छत्री है, जिसपर बीकानेर के राव जैतसी के एक पूत्र राठौड़ मानसिंह की मृत्यु और उसके साथ उसकी स्री कछवाही पूनिमादे के सती होने के विषय में १९ जून १५९६ ई० का लेख खुदा है। छत्री की बनावट साधारण है तथा उसका छज्जा और गुम्बद बहुत जीर्ण अवस्था में हैं।.

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पांचु

बीकानेर से ३६ मील दूर दक्षिण में बसा यह गांव ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां राव बीका के तीसरे चाचा ऊधा रिणमलोत के दो पुत्रों पंचायण तथा सांगा की देवलियां हैं, जो क्रमश: १५११ और १५२४ ई० की हैं। अनुमानत: पंचायण ने यह गांव बसाया था और उसी के नाम से इसकी प्रसिद्धि है।.

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पूनरासर बालाजी

पूनरासर राजस्थान प्रान्त का एक ग्राम है। पूनरासर बालाजी पूनरासर की पहचान है। पूनरास‍र धाम,हनुमानजी महाराज की असीम कृपावश सुदी‍र्घ भु-भाग मे विख्यात है | यह एक जागृत हनुमद स्थान है- हनुमानजी महाराज अपने भक्तो को सभी प्रकार के कष्टो से मुक्ति दिलाकर उन्हे भय मुक्त करते है | हनुमानजी महाराज के दरबार मे वर्ष पर्यन्त श्रधालुगन अपनी अर्जी प्रस्तुत करते है | कहा गया है जैसा भाव वैसा प्रभाव | हनुमानजी महाराज के इस भव्य एवम विशाल मन्दिर का इतिहास काफी प्राचीन रहा है | .

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बीकानेर

बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति गड़रिया था, जब राव बीका ने नेरा से एक शुभ जगह के बारे में पूछा तो उसने इस जगह के बारे में एक जवाब दिया उसने कहा की इस जगह पर मेरी एक भेड़ का मेमना ३ दिन तक भेड़ के साथ ७ सियारों के बीच एकला रहा और सियारों ने भेड़ और उसके बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुचायां और उसने इस बात के साथ एक शर्त रख दी की उसके नाम को नगर के नाम के साथ जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीका+नेर, बीकानेर पड़ा। अक्षय तृतीया के यह दिन आज भी बीकानेर के लोग पतंग उड़ाकर स्मरण करते हैं। बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की भुजिया मिठाई व जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के ५ द्वार आज भी आंतरिक नगर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट, गोगागेट व शीतलागेट इनके नाम हैं। बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांस २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊंचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है .

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बीकानेर किला

बड़ा किला अधिक नवीन है तथा इसका निर्माण महाराजा रायसिंह (१५८९-९४ AD) के समय हुआ था और शहरपनाह के कोट दरवाजे से लगभग ३०० गज की दूरी पर है। इसकी परिधि १०७८ गज है। भीतर प्रवेश करने के लिए दो प्रधान द्वार हैं, जिनके बाद फिर तीन या चार दरवाजे हैं। कोट में स्थान-स्थान पर प्राय: ४० फुट ऊँची बुर्जे हैं और चारों ओर खाई बनी हुई है, जो ऊपर ३० फुट चौड़ी होकर नीचे तंग होती गई है। इस खाई की गहराई २० से ५० फुट तक है। प्रसिद्ध है कि इस किले पर कई बार आक्रमण हुए पर शत्रु बल पूर्वक इस पर कभी अधिकार न कर पाए। किले का प्रवेश द्वार 'कर्णपोल' है। इसके आगे के दरवाजों में एक सूरज पोल है, जिसके दोनों पार्श्वो पर विशालकाय हाथी पर बैठी हुई दो मूर्तियां हैं, जो प्रसिद्ध वीर जयमल मेड़तिया (राठौड़) और पत्ता चूंड़ावत (सीसोदिया) की (जो चितौड़गढ़ में बादशाह अकबर के मुकाबले में वीरतापूर्वक लड़कर मारे गए थे) बतलाई जाती हैं। आगे बहुत बड़ा चौक है, जिसमें एक तरफ पंक्ति बद्ध मरदाने और जनाने महल हैं। ये महल बड़े भव्य एवं सुंदर बने हुए हैं। इन महलों के भीतर कई जगह कांच की पच्चीकारी और सुनहरी कलम आदि का बहुत सुन्दर काम है, जो भारतीय कला का उत्तम नमूना है। इन राजमहलो की दीवारों पर रंगीन पलस्तर किया हुआ है, जिससे उनका सौंदर्य बढ़ गया है। राजमहलों के निर्माण में बहुधा अब तक के प्राय: सभी महाराजाओं का हाथ रहा है। पहले के राजाओं के बनवाए हुए स्थानों में महाराजा रायसिंह का चौबारा, महाराजा गजसिंह का फूलमहल, चन्द्रमहल, गजमंदिर तथा कचहरी, महाराजा सूरतसिंह का अनुपमहल, महाराजा सरदार सिंह का बनवाया हुआ रत्नमंदिर और महाराजा डूंगर सिंह का छत्रमहल, चीनी बुर्ज, गनपत निवास, लाल निवास, सरदार निवास, गंगा निवास, सोहन भुर्ज (बुर्ज), सुनहरी भुर्ज (बुर्ज) तथा कोढ़ी शक्त निवास है। बाद के राजाओं ने भी समय समय पर नवीन भवन बनवाकर उनकी शोभा बढ़ा दी है। इन महलों में दलेल निवास और गंगा निवास नामक विशाल कक्ष मुख्य है। गंगा निवास में लाल रंग के खुदाई के काम हुए पत्थर लगे हैं। छत की लकड़ी पर भी खुदाई का काम है। इसका फर्श संगमरमर का बना है। किले के भीतर फारसी, संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी भाषा की हस्तलिखित पुस्तकों का एक बड़ा पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में संस्कृत पुस्तकों का बड़ा भारी संग्रह है, जिनमें से कई तो ऐसी हैं जो अन्यत्र नहीं हीं मिल सकतीं। मेवाड़ के महाराजा कुंभा (कुंभकर्ण) के संगीत ग्रन्थ का पूरा संग्रह भारत वर्ष के केवल इसी पुस्तकालय में है। किले के भीतर का शस्रागार भी देखने योग्य है। इसमें प्राचीन अस्र-शस्रों का अच्छा संग्रह है। वहीं एक कमरे में कई पीतल की मूर्तियां रक्खी हुई हैं, जो तैंतीस करोड़ देवता के नाम से पूजी जाती हैं। ये मूर्तियां महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण में रहते समय मुसलमानों के हाथ से बचाकर यहां पहुँचाई थी। किले के एक हिस्से में बीकानेर राज्य के उत्तरी भाग के रंगमहल, बड़ोपल आदि गांवों से प्राप्त पकी हुई मिट्टी की बनी बहुत प्राचीन वस्तुओं का बड़ा संग्रह है, जिसका श्रेय डाँ० टैसिटोरी को है। इस सामग्री को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-.

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मोरखाणा

यह स्थान बीकानेर से २८ मील दक्षिण-पूर्व में है। यहां का सुसाणीदेवी का मंदिर उल्लेखनीय है। यह मंदिर एक ऊँचे टीले पर बना है तथा इसमें एक तहखाना, खुला हुआ प्रांगण एवं बरामदा है। यह सारा जैसलमेरी पत्थरों का बना है और इसके तहखाने की बाहरी चाहरदीवारों पर देवताओं और नर्तकियों की आकृतियां खुदी है। इसी प्रकार द्वार भाग भी खुदाई के काम से भरा हुआ है। तहखाने के चारों तरफ एक नीची दीवार बनी है। प्रागंण पर छत है जो १६ खंभों पर स्थित है, जिनमें १२ तो चारों ओर घेरे में लगे हैं। शेष ४ मध्य में हैं। मध्य के चारों स्तंभ और तहखाने के सामने के दो स्तंभ घटपल्लभ शैली में बने हैं। घेरे में लगे हुए स्तंभ श्रीधर शैली के हैं। मध्य के स्तंभों में से एक पर बैठे हुए मनुष्य की आकृति खुदी है। तहखाने के सामने दांई तरफ के स्तंभ पर दो लेख खुदे हैं। एक तरफ का लेख स्पष्ट नहीं है तथा दूसरी तरफ का लेख ११७२ ई० का है तथा इसके ऊपरी भाग में एक स्री की आकृति बनी हुई है। .

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रतनगढ़

रतनगढ़ (रतनगड) भारत के महाराष्ट्र राज्य के रतन वाड़ी क्षेत्र में स्थित एक किला है, जहाँ से, कृत्रिम रूप से बने सबसे पुराने जलग्रहण क्षेत्रों में से एक क्षेत्र, भंडारदारा का अत्यंत मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ता है। यह किला लगभग 200 साल पुराना है। रतनगढ़ का शिखर एक ऐसी प्राकृतिक चट्टान से बना है जिसके ऊपरी सिरे में एक छेद है जिसे "सूई की आँख" कहते हैं। .

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राजगढ़

राजगढ़ बीकानेर से १३५ मील पूर्वोत्तर में बसा हुआ है। यह नगर १७६६ ई० में महाराजा गजसिंह ने अपने पुत्र राजसिंह के नाम पर बसाया था। यहां का किला महाराजा की आज्ञा से उसके मंत्री महता बख्तावरसिंह ने बनवाया था। .

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लालगढ़ महल

नगर के बाहर की इमारतों में लालगढ़ महल बड़ा भव्य है। इस महल का निर्माण महाराजा गंगा सिंह ने अपने पिता महाराजा लालसिंह की स्मृति में बनवाया था। सारा का सारा महल लाल पत्थर का बना है, जिसपर खुदाई का बड़ा उत्कृष्ट काम है। भीतर के फर्श बहुधा संगमरमर के हैं। महल काफी विशाल है तथा इसमें सौ से अधिक भव्य कमरे हैं। महल के अहाते में मनोहर उद्यान बने हैं, जिनमें कहीं सघन वृक्षों, कहीं लताओं और कहीं रंग-बिरंगे फूलों से भरी हुई हरियाली की घटा दर्शनीय है। इस महल में महाराजा लालसिंह की सुन्दर प्रस्तर-मूर्ति खड़ी है। महल के एक भाग में तरणताल है। इस महल के भीतर एक पुस्तकालय है जिसमें कई हस्तलिखित पुस्तकों का संग्रह है। इस महल के दीवारों पर सुंदर चित्रकारी है।.

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लाखासर

लाखासर राजस्थान के बीकानेर से ११० मील उत्तर में कुछ पूर्व की तरफ बसा है।गांव की स्थापना हरराज ने अपने पिता के नाम पर इसे बसाया था। ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान दो देवलियों के लिए प्रसिद्ध है। एक देवली १५४६ ई० की जो संभवत: राव बीका के चाचा लाखा रणमलोत की है। इसके निकट ही हरराज के पौत्र सुरसाण की १५९३ ई० में बनी देवली है। .

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श्री कोलायत जी

श्री कोलायत जी या कोलायत राजस्थान के शहर यह बीकानेर से लगभग ३० मील दक्षिण-पश्चिम में इसी नामके रेलवे स्टेशन के निकट बसा इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है। यहां इसी नाम से प्रसिद्ध एक तालाब है, जिसके किनारे कपिल मुनि का आश्रम माना जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है जिसमें लोग कपिल मुनि के आश्रम के दर्शनाथ आते हैं। पास ही धुनी नाथ का एक अन्य मंदिर है। पुष्कर के समान यहां के तालाब के किनारे बहुत से घाट और मंदिर बने हुए हैं, जो सघन पीपल के वृक्षों की शीतल छाया से आच्छादित हैं। कोलायत जी में बीकानेर का सबसे अच्छा एकीकृत टाउनशिप कपिलमुनी वाटिका जहां पर आधुनिक जीवन शैली की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं कपिल मुनि वाटिका के अंदर पार्क क्लब हाउस जैसी सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध है यहां पर पीने का शुद्ध पानी और ड्रेनेज की अच्छी व्यवस्था है यहां पर ग्रामीण क्षेत्र निर्माण संघ का प्रदेशकार्यालय भी है यहां पर कई धर्मशालाएँ एवं देव मंदिर भी विद्यमान हैं।श्री   .

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श्रीगंगानगर

गंगानगर राजस्थान का एक जिला है। श्रीगंगानगर शहर गंगानगर जिला का मुख्यालय है। यह राजस्थान प्रदेश का सबसे उत्तरी जनपद है जिसके उत्तर में फाजिल्का (पंजाब) एवं हनुमानगढ़, दक्षिण में बीकानेर तथा चू़रू (राजस्थान), तथा पश्चिम में पाकिस्तान है। पहले यह बीकानेर राज्य का एक भाग था। गंगानगर जनपद का प्रमुख प्रशासकीय केंद्र तथा विकासशील नगर भी है। इसका नामकरण बीकानेर के महाराज गंगासिंह के नाम पर हुआ है। यह जिले के सर्वाधिक समुन्नत तथा सिंचित कृषिक्षेत्र में स्थित होने के कारण प्रमुख व्यापारिक मंडी तथा यातायात केंद्र हो गया है। श्रीगंगानगर को राजस्थान का अन्न का कटोरा भी कहा जाता है | यहाँ जनपदीय प्रशासनिक कार्यालयों तथा न्यायालयों के अतिरिक्त कई स्नातक महाविद्यालय तथा अन्य सांस्कृतिक संस्थान हैं। यह नगर पूर्णतया 20वीं शताब्दी की देन है। प्रारंभिक दशाब्दियों में यह अज्ञात ग्राम रहा। लेकिन गंगा-नहर सिंचाई परियोजना द्वारा क्षेत्र में कृषि का विकास होने के कारण इसकी जनसंख्या अधिक बढ़ गई है। यहाँ 1945 में चीनी का कारखाना खोला गया। यहाँ एक औद्योगिक संस्थान की भी स्थापना हुई है। श्रीगंगानगर में श्री बुड्ढाजोहड़ गुरुद्वारा व लैला-मजनुं की मजार प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं | .

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सरदार शहर

सरदारशहर राजस्थान के चुरू जिले का एक कस्बा है। यह बीकानेर से ८५ मील पूर्वोत्तर में बसा है। महाराजा सरदार सिंह ने सिंहासनारुढ़ होने के पूर्व ही यहां पर एक किला बनवाया था। शहर के चारों तरफ टीलें हैं, जिससे इसका सौंदर्य बहुत बढ़ गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व रखने वाली एक छतरी भी है। यहाँ का गाँधी विद्या मंदिर प्रसिद्ध है। तथा यहां इच्छापुरन बालाजी मन्दिर भी प्रसिद्ध है इस के अलावा यहाँ घंटाघर भी प्रसिद्ध है और गांव बायला में माता जी (बाया जी) मन्दिर की ख्याति भी दूर दूर फैली हुई है। सरदारशहर तहसिल चुरू जिले की सबसे बी बड़ी तहसिल है। यह क्षेत्र चूरू लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तरगत आता है। यहां से मोहन लाल शर्मा, हजारीमल सारण,अशोक पींचा,केसरा बोहरा भी विधायक रह चुके है और वर्तमान विधायक भंवर लाल शर्मा है और ये 6 बार यहां से विधायक है। सरदार शहर से चन्दन मल वैद और भंवर लाल शर्मा केबिनेट मंत्री रह चुके हैं। .

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सालासर

सालासर गाँव.

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सुजानगढ़

सुजानगढ़ राजस्थान के थली क्षेत्र में स्थित चूरू जिले का एक नगर है। यह बीकानेर से ७२ मील पूर्व-दक्षिण में मारवाड़ की सीमा से मिला हुआ बसा है। इस स्थान का पुराना नाम 'खरबू जी का' कोट था। महाराजा सूरत सिंह ने १८३५ ई० में इस क्षेत्र को अधिकार में लेकर इसका नाम सुजानसिंह के नाम पर सुजानगढ़ रखा। यहां पुराना किला अब भी विद्यमान है। यहां २७ मंदिरें, 17 मस्जिदें और कई धर्मशालएं है।आजादी से पहले सुजानगढ़ जिला था।वैैैैकटैश्वर बालाजी का उतर भारत का सबसे खूबसूरत मन्दिर बना हुआ है। श्रेणी:राजस्थान के शहर.

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सूरतगढ़

सूरतगढ़ ताप विद्युत संयंत्र सूरतगढ़ बीकानेर से ११३ मील उत्तर में कुछ पूर्व की तरफ बसा है। यह श्रीगंगानगर जिले में है। यहां एक किला भी है। ई०१८०५ में महाराजा सूरत सिंह ने यहां नया किला बनवाया और इसका नाम 'सूरतगढ़' रखा। पूरा किला ईंटों का बना है जिसमें कुछ महत्व की वस्तुएं अब बीकानेर के किले में सुरक्षित है। इनमें हड़जोरा की पत्तियां, गरुड़, हाथी, राक्षस आदि की आकृतियां बनी है। इसी स्थान से शिव पार्वती, कृष्ण की गोवर्धन लीला तथा एक पुरुष एंव स्री की पकी हुई मिट्टी की बनी हुई मूर्तियां मिली हैं जो अब बीकानेर संग्रहालय में है। सूरतगढ़ क़स्बा एक और रेगिस्तान से घिरा तथा दूसरी और घग्घर नदी से सिंचित अत्यंत उपजाऊ जमीन से सराबोर है जहां एक और राजस्थान का पहला ताप विद्युत संयत्र है वहीं दूसरी और इंदिरा गांधी नहर से सिंचित उपजाऊ क्षेत्र है लहलहाती फसल इस कसबे के चारों और हरित आभा बिखेरती है .

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हनुमानगढ़

हनुमानगढ़ भारत के राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। यह उत्तर राजस्थान में घग्घर नदी के दाऐं तट पर स्थित है। हनुमानगढ़ को 'सादुलगढ़' भी कहते हैं। यह बीकानेर से 144 मील उत्तर-पूर्व में बसा हुआ है। यहाँ एक प्राचीन क़िला है, जिसका पुराना नाम 'भटनेर' था। भटनेर, 'भट्टीनगर' का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ भट्टी अथवा भट्टियों का नगर है। .

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जांगलू

सांखलों का यह महान किला जांगलू नामक प्रदेश में बीकानेर से २४ मील दक्षिण में है। ऐसा कहते हैं कि चौहान सम्राट पृथ्वीराज की रानी अजयदेवी दहियाणी ने यह स्थान बसाया था। सर्व प्रथम सांखले महिपाल का पुत्र रायसी रुण को छोड़कर यहां आया और गुढ़ा बांधकर रहने लगा और कुछ समय बाद यहां के स्वामी दहियों की छल से हत्या कर उसने यहां अधिकार जमा लिया। बाद में जांगलू का यह इलाका राव बीका के आधीन आ गया। यहां के सांखले राठौड़ों के विश्वास पात्र बन गए। यहां के प्राचीन स्थानों में पुराना किला, केशोलय और महादेव के मंदिर उल्लेखनीय हैं। पुराना किला वर्तमान गांव के निकट बना हुआ था जिसके अब कुछ भग्नावशेष विद्यमान है। चारों ओर चार दरवाजे के चिह्म अब भी पाए जाते हैं। बीच में ऊँचे उठे हुए घेरे के दक्षिण-पूर्व की ओर जांगलू के तीसरे सांखले खींवसी के सम्मान में एक देवली (स्मारक) बनी है, जो देखने में नवीन जान पड़ती है। किले के पूर्व में केशोलय तालाब है। इसके विषय में ऐसी प्रसिद्धि है कि दहियों के केशव नामक उपाध्याय ब्राह्मण ने यह तालाब खुदवाया था। तालाब के किनारे लगे पत्थर में केशव नाम खुदा है। तालाब के निकट ही अन्य पाँच देवलियां हैं। पुराने किले की तरफ गांव के बाहर महादेव मंदिर है, जो नवीन बना हुआ है। इसके भीतर एक किनारे पर प्राचीन शिवलिंग की जलेरी पड़ी है। मंदिर के अंदर ही दीवार पर संगमरमर का एक लेख खुदा है जिससे पता चलता है कि इस मंदिर का नाम पहले श्री भवानी शंकर प्रसाद था और इसे राव बीका ने बनवाया था तथा १८४४ ई० में महाराजा रत्नसिंह ने इसका जीणाçधार करवाया। जंगालू में तीन और मंदिर है।.

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जैन मंदिर, बीकानेर

नगर के मध्य में एक जैन मंदिर है जिसके मध्य से पाँच मार्ग निकले हैं, जो अन्य सड़कों से मिलते हुए शहरपनाह के किसी एक दरवाजे से जा मिलते हैं। कोट दरवाजे के बाहर अलखगिरि मतानुयायी लच्छीराम का बनवाया हुआ 'अलखसागर' नाम का प्रसिद्ध कुआं है, जो बीकानेर के सबसे अच्छे कुओं में से एक माना जाता हैं। अन्य कुओं की संख्या १४ है, जो बहुधा बहुत गहरे हैं। इन कुओं में अधिकांश जल सुस्वादु तथा पीने योग्य है। महाराजा अनूपसिंह का बनवाया हुआ 'अनोपसागर' कुआं भी उल्लेखनीय है। नगर के बाहर के तालाबों में महाराजा सूरसिंह का बनवाया हुआ 'सूरसागर' सबसे अच्छा माना जाता है। .

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जेगला

यह स्थान बीकानेर से २० मील दक्षिण में स्थित है। यहां पर उल्लेख योग्य गोगली सरदारों की दो देवलियां हैं। इनमें से अधिक प्राचीन ११ सिंतबर १५९० ई० की है तथा गोगली सरदार 'संसार' से संबध रखती है। 'संसार' के विषय में ऐसा प्रसिद्ध है कि वह बीकानेर के महाराजा रायसिंह तथा पृथ्वीराज की सेवा में रहे थे। बादशाह के समक्ष एक युद्ध में सिर काटे जाने पर भी उनका धड़ बहुत देर तक लड़ता रहा था। गोगली वंश के व्यक्ति अब भी जेगला, पीपेरा, देसलसर, सोनीयासर में रहते हैं।.

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वासी -वरसिंहसर

यह गांव बीकानेर से १५ मील दक्षिण में है। यहां पर एक कीर्तिस्तंभ है, जिसपर पैंतीस पंक्तियों का एक महत्वपूर्ण लेख है। इससे पाया जाता है कि जंगलकूप के स्वामी शंखुकुल के कुमारसिंह की पुत्री जैसलमेर के राजा कर्ण की स्री दूलह देवी ने यहां १३२४ ई० में एक तालाब खुदवाया था।.

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वैष्णव मंदिर, बीकानेर

वैष्णव मंदिर राजस्थान के शहर बीकानेर में लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर प्रमुख गिना जाता है। इस मंदिर का निर्माण राव लूणकर्ण ने करवाया था। इसके अतिरिक्त बल्लभ मतानुयायियों के रतन बिहारी और रसिक शिरोमणि के मंदिर भी उल्लेखनीय हैं। इनके चारों ओर अब सुंदर बगीचे हैं। रत्न-बिहारी का मंदिर राजा रत्नसिंह के समय में बना था। धूनीनाथ का मंदिर इसी नाम के योगी ने १८०८ ई० में बनवाया था, जो नगर के पूर्वी द्वार के पास स्थित है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य और गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं। नगर से एक मील दक्षिण-पूर्व में एक टीले पर नागणेची का मंदिर बना है। अपनी मृत्यु से पूर्व ही महिषासुर मर्दिनी का यह अट्टारह भुजावाली मूर्ति राव बीका ने जोधपुर से यहां लाकर स्थापित की थी। .

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गजनेर

गजनेर बीकानेर से लगभग २० मील दक्षिण-पश्चिम में बसा क्षेत्र है। यह महाराजा गजसिंह के समय आबाद हुआ था और बीकानेर राज्य के प्रसिद्ध तालाब गजनेर के नाम पर ही इसकी प्रसिद्धि है। यहां पर डूंगर निवास, लाल निवास, शक्त निवास और सरदार निवास नामक सुन्दर महल हैं। शीतकाल में बत्तखों, भड़तीतरों आदि के आ जाने के कारण कुछ दिनों के लिए यह उत्तम शिकारगाह बन जाता था। गजनेर के उद्यान में नारंगी और अनार के वृक्ष बहुतायत से हैं तथा कई प्रकार की सुंदर लताएं आदि भी हैं। तालाब का जल आरोग्यप्रद न होने के कारण इसका व्यवहार कम होता है। यहां पर निर्मित झील काफी सुंदर है। यह स्थल पूरे बीकानेर के सबसे सुंदर स्थलों में से एक है। वर्तमान में यह एक पर्यटन स्थल है, जहां एक वन्य जीवन अभयारण्य भी स्थित है। .

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गुसाईंसर बड़ा

गुसाईसर बड़ा श्री डुंगरगढ तहसील में एक गाँव है। मान्यता है कि यह गाँव सन ११११ में गुसाई जी महाराज ने बसाया था। यह राजस्थान, बीकानेर में श्री डुंगरगढ तहसील से उन्नीस किलोमीटर दूर लुणकरणसर रोड़ पर है और गांव में गोदारा जाट जाति के लोग ज्यादा है पुराना गांव खाखी बाबा धाम की जगह था इसको गुसाईं जी महाराज की आज्ञानुसार खाखीबाबा धाम से श्रीडुंगरगढ वह लुणकरनसर के बीच में बसाया गया है और बनाराम, कानाराम बींझाराम रावतराम और एक छोटा भाई और भतीजा रानाराम गोदारा जाट जाति काम परिवार था .

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कोड़मदेसर

कोड़मदेसर बीकानेर से १५ मील पश्चिम में एक छोटा सा गांव है, जो इसी नाम के तालाब और उसके किनारे स्थापित भैरव की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। भैरव की मूर्ति जांगलू में बसने के समय स्वंय राव बीका ने मंड़ोर से लाकर यहां स्थापित की थी। यहां पर १६वीं तथा १७वीं शताब्दी के चार लेख हैं। इनमें से सबसे प्राचीन लेख तालाब के पूर्व की ओर भैरव की मूर्ति के निकट के कीर्तिस्तंभ की दो ओर खुदा है। यह कीर्तिस्तंभ लाल पत्थर का है तथा इसके चारों ओर देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदी है। इस लेख से पाया जाता है कि १४५९ ई० में भाद्रपद सुदि को राव रिणमल के पुत्र राव जोधा ने यह तालाब खुदवाया और अपनी माता कोड़मदे के निमित्त कीर्तिस्तंभ स्थापित करवाया।.

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छापर

यह बीकानेर से ७० मील पूर्व में बसा है और ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्व का है। यह मोहिलों की दो राजधानियों में से एक थी। उनकी राजधानी द्रोणपुर थी। मोहिल, चौहानों की ही एक शाखा है, जिसके स्वामियों ने राणा का विरुद्ध धारण कर उक्त स्थानों के आस-पास के प्रदेश पर १५वीं शताब्दी तक राज्य किया। छापर में मोहिलों की बहुत सी देवलियाँ है जो १४वीं शताब्दी के पूर्वाध की हैं। यहां छापर नामक एक खारे पानी की झील भी है, जिससे पहले नमक बनाया जाता था। .

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बीकानेर का पर्यटन, बीकानेर का स्थापत्य

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