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बिश्वेश्वर नाथ रेऊ

सूची बिश्वेश्वर नाथ रेऊ

लैइब्ररी बिश्वेश्वर नाथ रेऊ (१८९०-१९६६) जोधपुर रियासत के इतिहास विभाग, पुरातत्व विभाग, सरदार संग्रहालय, पुस्तक प्रकाश (पांडुलिपि पुस्तकालय) तथा सुमेर पुस्तकालय के अध्यक्ष थे। महामहोपाध्याय पंडित रेऊ ने एक इतिहासकार, पुरालेखवेत्ता, मुद्राशास्त्रज्ञ तथा संस्कृतज्ञ के रूप में अपनी छाप छोड़ी। पंडित रेऊ लिखित मारवाड़ का इतिहास सुप्रसिद्ध है। .

7 संबंधों: दशरथ शर्मा, दुर्गादास राठौड, परमार भोज, मारवाड़, मोतीलाल बनारसीदास, राष्ट्रकूट राजवंश, ऋग्वेद

दशरथ शर्मा

दशरथ शर्मा (१९०३, चूरु, राजस्थान - १९७६) एक भारतविद् एवं भारत के राजस्थान क्षेत्र के इतिहास पर जाने-माने विद्वान थे। आप भाष्याचार्य हरनामदत्त शास्त्री के पौत्र तथा विद्यावाचस्पति विद्याधर शास्त्री के अनुज थे। .

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दुर्गादास राठौड

दुर्गादास राठौड़ (दुर्गा दास राठौड़) (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718) भारत के मारवाड़ क्षेत्र के राठौड़ राजवंश के एक मंत्री थे। वे महाराजा जसवंत सिंह के निधन के बाद कुँवर अजित सिंह के सरांक्षक बने। उन्होंने मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब को भी चुनौती दी और कई बार ओरंग़ज़ब को युद्ध में पीछे हटने ओर संधि के लिए मजबूर किया और कई बार युद्ध में हराया। .

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परमार भोज

राजा भोज की प्रतिमा (भोपाल) भोज पंवार या परमार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। भोज ने बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की जिससे सिद्ध होता है कि उनमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। उन्होंने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है। कहा जाता है कि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था, तब उसका नाम भोजपाल नगर था, जो कि कालान्तर में भूपाल और फिर भोपाल हो गया। राजा भोज ने भोजपाल नगर के पास ही एक समुद्र के समान विशाल तालाब का निर्माण कराया था, जो पूर्व और दक्षिण में भोजपुर के विशाल शिव मंदिर तक जाता था। आज भी भोजपुर जाते समय, रास्ते में शिवमंदिर के पास उस तालाब की पत्थरों की बनी विशाल पाल दिखती है। उस समय उस तालाब का पानी बहुत पवित्र और बीमारियों को ठीक करने वाला माना जाता था। कहा जाता है कि राजा भोज को चर्म रोग हो गया था तब किसी ऋषि या वैद्य ने उन्हें इस तालाब के पानी में स्नान करने और उसे पीने की सलाह दी थी जिससे उनका चर्मरोग ठीक हो गया था। उस विशाल तालाब के पानी से शिवमंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग का अभिषेक भी किया जाता था। राजा भोज स्वयं बहुत बड़े विद्वान थे और कहा जाता है कि उन्होंने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं जो अब भी विद्यमान हैं। इनके समय में कवियों को राज्य से आश्रय मिला था। उन्होने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली। भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। सरस्वतीकंठाभरण, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी। जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था- (आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।) जब उनका देहान्त हुआ तो कहा गया - (आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी हैं और सभी पंडित खंडित हैं।) .

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मारवाड़

मारवाड़ राजस्थान प्रांत के पश्चिम में थार के मरुस्थल में आंशिक रूप से स्थित है। मारवाड़ संस्कृत के मरूवाट शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौत का भूभाग.

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मोतीलाल बनारसीदास

मोतीलाल बनारसीदास (MLBD) भारत का प्रसिद्ध प्रकाशन समूह है। यह संस्कृत तथा भारतविद्या से सम्बन्धित स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन के लिये विख्यात है। इसका आरम्भ सन् १९०३ से हुआ। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नै, बंगलुरू, पटना, वाराणसी और पुणे में इनका प्रकाशन-कार्य संस्थित है। अब तक इस समूह ने ५००० से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। .

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राष्ट्रकूट राजवंश

राष्ट्रकूट (ರಾಷ್ಟ್ರಕೂಟ) दक्षिण भारत, मध्य भारत और उत्तरी भारत के बड़े भूभाग पर राज्य करने वाला राजवंश था। .

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ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

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