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बन्ध (योग)

सूची बन्ध (योग)

हठयोग के सन्दर्भ में बन्ध अभिप्राय है - बन्धन, एक साथ मिलाना या पकड़। यह एक प्रकार की शारीरिक स्थिति है जिसमें शरीर के कुछ अवयव या अंगों को सिकोड़ा अथवा नियंत्रित किया जाता है। शरीर में प्राण के संचार हेतु ऊर्जा के अपव्यय को रोकने में बन्ध का उपयोग किया जाता है तथा अन्यत्र हानि पहुंचाए बिना ऊर्जा को यथास्थान ले जाने में बन्ध का उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना आवश्यक भी है। प्रमुख बन्ध ये हैं-.

1 संबंध: हठयोग

हठयोग

हठयोग चित्तवृत्तियों के प्रवाह को संसार की ओर जाने से रोककर अंतर्मुखी करने की एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है, जिसमें प्रसुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर नाड़ी मार्ग से ऊपर उठाने का प्रयास किया जाता है और विभिन्न चक्रों में स्थिर करते हुए उसे शीर्षस्थ सहस्त्रार चक्र तक ले जाया जाता है। हठयोग प्रदीपिका इसका प्रमुख ग्रंथ है। हठयोग, योग के कई प्रकारों में से एक है। योग के अन्य प्रकार ये हैं- मंत्रयोग, लययोग, राजयोग। हठयोग के आविर्भाव के बाद प्राचीन 'अष्टांग योग' को 'राजयोग' की संज्ञा दे दी गई। हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है। यह सिद्धों और बाद में नाथों द्वारा अपनाया गया। मत्स्येन्द्र नाथ तथा गोरख नाथ उसके प्रमुख आचार्य माने गए हैं। गोरखनाथ के अनुयायी प्रमुख रूप से हठयोग की साधना करते थे। उन्हें नाथ योगी भी कहा जाता है। शैव धारा के अतिरिक्त बौद्धों ने भी हठयोग की पद्धति अपनायी थी। .

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