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प्रतिजन

सूची प्रतिजन

प्रतिजन प्रतिरक्षाविज्ञान में, प्रतिजन (antigen) किसी जीवधारी के शरीर में उपस्थित वे अणु हैं जो रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करते हैं। दूसरे शब्दों में, कोई भी पदार्थ जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिपिण्ड उत्पन्न करने में सहायक होता है, उसको प्रतिजन कहते हैं। http://www.microbiologyinfo.com/antigen-properties-types-and-determinants-of-antigenicity/ श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी.

4 संबंधों: प्रतिपिंड, प्रतिरक्षा प्रणाली, प्रतिरक्षा विज्ञान, अणु

प्रतिपिंड

प्रत्येक प्रतिपिंड एक विशिष्ट प्रतिजन से जोड़ता है, पारस्परिक रूप से जिस प्रकार ताला और चाबी एक दुसरे से जुड़ते हैं। प्रतिपिंड (एंटीबॉडी), (इम्युनोग्लोबुलिन(immunoglobulins), संक्षिप्ताक्षर में आईजी (Ig)) के नाम से भी जाने जाते हैं, गामा रक्तगोलिका (globulin) प्रोटीन हैं, जो मेरुदण्डीय प्राणियों के रक्त या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों में पाए जाते हैं, तथा इनका प्रयोग प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा बैक्टीरिया तथा वायरस (विषाणु) जैसे बाह्य पदार्थों को पहचानने तथा उन्हें बेअसर करने में किया जाता है। ये आम तौर पर पांच संरचनात्मक ईकाइयों से मिल कर बने हैं-जिनमे से प्रत्येक की दो बड़ी व भारी श्रृंखलाएं तथा दो छोटी व हल्की श्रृंखलाएं होती हैं-जो एक साथ मिल कर, उदाहरण के लिए, एक इकाई के साथ मोनोमर्स (monomers), दो इकाईयों के साथ डाइमर्स (dimers) और पांच इकाईयों के साथ मिल कर पेंटामर्स (pentamers) बनाती हैं। प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) एक प्रकार की सफ़ेद रक्त कोशिका से निर्मित होते हैं जिन्हें प्लाविका कोशिका (प्लाज़्मा सेल) कहा जाता है। प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) भारी श्रृंखलाएं तथा प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) भी कई विभिन्न प्रकार के हैं, जो सामूहिक रूप से अलग-अलग प्रकार के आइसोटाइप (isotypes) बनाते हैं, जो उनकी भारी श्रृंखला पर आधारित होते हैं। स्तनधारियों में पांच विभिन्न प्रकार के प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) ज्ञात हैं, जो अलग अलग कार्य करते हैं, तथा वे विभिन्न प्रकार के बाह्य पदार्थ से लड़ने के लिए उचित प्रतिरक्षा (इम्यून) प्रतिक्रिया को जानने में सहायता करते हैं।इलिओनोरा मार्केट, नीना पापावासिलियो (2003) पलोस (PLoS) जीवविज्ञान1(1): e16.

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प्रतिरक्षा प्रणाली

A scanning electron microscope image of a single neutrophil (yellow), engulfing anthrax bacteria (orange). प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) किसी जीव के भीतर होने वाली उन जैविक प्रक्रियाओं का एक संग्रह है, जो रोगजनकों और अर्बुद कोशिकाओं को पहले पहचान और फिर मार कर उस जीव की रोगों से रक्षा करती है। यह विषाणुओं से लेकर परजीवी कृमियों जैसे विभिन्न प्रकार के एजेंट की पहचान करने मे सक्षम होती है, साथ ही यह इन एजेंटों को जीव की स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों से अलग पहचान सकती है, ताकि यह उन के विरुद्ध प्रतिक्रिया ना करे और पूरी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य करे।। हिन्दुस्तान लाइव। २४ नवम्बर २००९ रोगजनकों की पहचान करना एक जटिल कार्य है क्योंकि रोगजनकों का रूपांतर बहुत तेजी से होता है और यह स्वयं का अनुकूलन इस प्रकार करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली से बचकर सफलतापूर्वक अपने पोषक को संक्रमित कर सकें। शरीर की प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी आने से रोग में प्रवेश कर जाते हैं। प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी को इम्यूनोडेफिशिएंसी कहते हैं। इम्यूनोडेफिशिएंसी या तो किसी आनुवांशिक रोग के कारण हो सकता है, या फिर कुछ खास दवाओं या संक्रमण के कारण भी संभव है। इसी का एक उदाहरण है एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) जो एचआईवी वायरस के कारण फैलता है। ठीक इसके विपरीत स्वप्रतिरक्षित रोग (ऑटोइम्यून डिजीज) एक उत्तेजित ऑटो इम्यून सिस्टम के कारण होते हैं जो साधारण ऊतकों पर बाहरी जीव होने का संदेह कर उन पर आक्रमण करता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (इम्म्यूनोलॉजी) का नाम दिया गया है। इसके अध्ययन में प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी सभी बड़े-छोटे कारणों की जांच की जाती है। इसमें प्रणाली पर आधारित स्वास्थ्य के लाभदायक और हानिकारक कारणों का ज्ञान किया जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली के क्षेत्र में खोज और शोध निरंतर जारी हैं एवं इससे संबंधित ज्ञान में निरंतर बढोत्तरी होती जा रही है। यह प्रणाली लगभग सभी उन्नत जीवों जैसे हरेक पौधे और जानवरों में मिलती मिलती है। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई प्रतिरोधक (बैरियर) जीवों को बीमारियों से बचाते हैं, इनमें यांत्रिक, रसायन और जैव प्रतिरोधक होते हैं। .

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प्रतिरक्षा विज्ञान

प्रतिरक्षाविज्ञान (Immunology) जीवचिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है जिसमें सभी प्राणियों के सभी प्रतिरक्षा तंत्रों का अध्ययन किया जाता है। रूसी जीवविज्ञानी इल्या इलिच मेखनिकोव ने प्रतिरक्षा विज्ञान पर अध्ययन को बढ़ाया और उन्हें इस कार्य के लिए १९०८ में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। प्रतिरक्षा विज्ञान की चिकित्सा के कई विषयों में विशेष रूप से अंग प्रत्यारोपण, ऑन्कोलॉजी, वायरोलॉजी, बैक्टीरियोलॉजी, पैरासिटोलॉजी, मनोचिकित्सा, और त्वचाविज्ञान के क्षेत्र में अनुप्रयोग हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई घटक आमतौर पर प्रकृति में सेलुलर होते हैं और किसी विशिष्ट अंग से जुड़े नहीं होते हैं; बल्कि पूरे शरीर में स्थित विभिन्न ऊतकों में एम्बेडेड या परिसंचारी होते हैं। .

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अणु

साधारण चीनी का अणु - इसमें १२ कार्बन (काला रंग), २२ हाइड्रोजन (सफ़ेद रंग) और ११ आक्सीजन (लाल रंग) के परमाणु एक दुसरे से जुड़े हुए होते हैं अणु पदार्थ का वह छोटा कण है जो प्रकृति के स्वतंत्र अवस्था में पाया जाता है लेकिन रासायनिक प्रतिक्रिया में भाग नहीं ले सकता है। रसायन विज्ञान में अणु दो या दो से अधिक, एक ही प्रकार या अलग अलग प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणु मजबूत रसायनिक बंधन के कारण आपस में जुड़े रहते हैं और अणु का निर्माण करते हैं। अणु की संकल्पना ठोस, द्रव और गैस के लिये अलग अलग हो सकती है। अणु पदार्थ के सबसे छोटे भाग को कहते हैं। यह कथन गैसो के लिये ज्यादा उपयुक्त है। उदाहरण के लिये, ओक्सीजन गैस उसके स्वतन्त्र अणुओ का एक समूह है। द्रव और ठोस में अणु एक दूसरे से किसी ना किसी बन्धन में रह्ते है, इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है। कई अणु एक दूसरे से जुडे होते है और एक अणु को अलग नहीं किया जा सकता है। अणु में कोई विद्युत आवेश नहीं होता है। अणु एक ही तत्व के परमाणु से मिलकर बने हो सकते हैं या अलग अलग तत्वों के परमाणु से मिलकर। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एंटीबॉडी, प्रतिरक्षी

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