ग्वालियर से दक्षिण में 20 किलोमीटर दूर एक पनिहार नामक एक एेतिहासिक स्थान है। राष्ट्रीय राजमार्ग तीन `एनएच-३` आगरा-मुंबई रोड किनारे मौजूद इस स्थान पर एक रेलवे स्टेशन और बस अड्डा भी मौजूद है। असल में इस स्थान का प्राचीन नाम पानीहार है, अर्थात पानी का हार या पानी की माला। १७ वीं शताब्दी से पहले यह इलाका काफी घने जंगलों से घिरा हुआ था। गांव के बीच से `नून` नामक एक नदी बहती है, गांव में प्रवेश करने से पहले ही यह नदी एक शंकु आकार पहाड़ी से टकराकर दो भागों में बंट जाती थी, इसके बाद पहाड़ी के दोनों ओर से बहते हुुए आगे करीब एक किलोमीटर तक दो अलग-अलग धाराओं में बहने के बाद फिर से एक हो जाती है। नदी के दो हिस्सों में बंटने और संगम स्थान के बीच हार या माला की अाकृति जमीन पर बनती है। इसी कारण इस स्थान का नाम पानीहार रखा गया। कालांतर में यह नाम बदलकर पहले पन्निआर, पनियार और वर्तमान में पनिहार हो गया। करीब ३०० साल पहले घने जंगलों के बीच पानी के हार के बीच नरवर राजा नल और दमयंती का पूर्व राज्य क्षेत्र से कुछ सरदार यहां आकर बसे थे, धीरे-धीरे आबादी बढती गई। आबादी की जरूरतों को देखते हुए लोग जंगल काटकर खेत बनाते गए। जंगल कम हुए तो लोग पानी के हार के बाहर भी खेती करने लगे। खेती के लिए जमीन के काफी बड़े भू-भाग को समतल किया जाने लगा। कई छोटे पहाड़ और टीलों को ग्रामीणों ने समतल कर दिया। इसी समतलीकरण में नदी की एक धारा का बड़ा हिस्सा खत्म हो गया। वर्तमान में नदी की इस धारा के अवशेष ही मौजूद बचे हैं। अब नदी सिर्फ अपनी एक ही धारा से होकर बहती है।.
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