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अश्वरोम कृमि

सूची अश्वरोम कृमि

एक अन्य कीट पर जीवित Spinochordodes tellinii अश्वरोम कृमि या नेमाटोमॉर्फा (Nematomorpha या horsehair worms या Gordian worms), परजीव्याभ (parasitoid) जन्तुओं का एक संघ (फाइलम) है। ऊपरी तौर पर ये नेमाटोड कृमियों (सूत्रकृमि) से मिलते-जुलते हैं, इसल्लिये इन्हें 'नेमाटोफॉर्मा' कहते हैं। शरीर की रचना, परिपूर्ण पाचन पथ (digestive tract), उच्चर्म (cuticle) का अस्तित्व, सरल पेशीन्यास (musculature) और खंडभाजन (segmentation) के अभाव के कारण इन्हें प्राय: सूत्रकृमि प्रसृष्टि (phylum Nemathelminthes) के अंतर्गत समाविष्ट कर लिया जाता है। जीवितक (parenchyma) से भरी हुई रेखित देहगुहा, एकल तंत्रिका सूत्र (nerve cord), पृथक् प्रजननग्रंथि (gonad) और प्रजनन प्रणाली में नेमाटोडा (Nematoda) से इसकी भिन्नताएँ हैं, जिनके कारण उनकी प्रसृष्टि केशकृमि प्रजाति (Gordiaceae) बनती है। इन कृमियों का शरीर अतिशय लंबा, पतला और समांग बेलनाकार होता है। अग्रप्रांत भुथरा गोल (bluntly rounded), पश्चप्रांत फूला और कुंडलित होता है। लंबाई कुछ मिलीमीटर से लेकर एक गज तक या इससे भी अधिक हो सकती है। इनका बाह्यपृष्ठ अपारदर्शी और बहुत रंगीने होता है। शरीर भित्ति में (१) पतला उच्चर्म, जिसमें सूक्ष्म पिंडिका (papillae) होती है, (२) उच्चर्म का स्त्रावक अधिचर्म (epidermis), (३) अपूर्ण अन्वायाम (longitudinal) पेशियों की एकल परत और (४) देहगुहा पर अधिच्छद (epithelium) का अस्तर होता है, जिसमें ढीला जीवितक (loose parenchyma) होता है। तरुण कृमि में पाचनपथ पूर्ण होता है और पश्चप्रांत अवस्कर (cloaca) में समाप्त होता है, लेकिन प्रौढ़ कृमि में यह दोनों सिरों पर बंद होता है, या अपविकसित अवस्था में होता है। परिवहन, श्वसन, और उत्सर्गी (excretary) अंग नहीं होते। ग्रासनली (oesophagus) एक तंत्रिकावलय से घिरी होती है, जा एकल, मध्यअधर तंत्रिका रज्जु (midventral nerve cord) से संबद्ध होती है। दो सूक्ष्म आँखें होती हैं और अनेक संवेदी शूकाएँ (bristles) होती हैं। दोनों लिंग अलग अलग होते हैं और देह गुहा में प्रत्येक के साथ दो जननग्रंथियाँ होती हैं। जननवाहिनियाँ युग्मित होती हैं, प्रजननग्रंथियों से संबद्ध नहीं होती और अवस्कर में पहुँच जाती हैं। केशकृमि प्रजाति के प्रौढ़ जीव बहुधा तालाबों, शांतधाराओं और बरसाती पड़हों में रेंगते पाए जाते हैं। ये पानी में इतनी अधिक संख्या में रहते हैं कि पुराने समय में इन्हें घोड़े का रोयाँ, जो किसी प्रकार पानी में जीवित हो उठे, समझा गया। मादा जलीय वनस्पतियों पर छोटे छोटे अंडों की डोरी पिरोती है। अंडों से लार्वा निकलकर इधर उधर तैरते हैं और एक विचित्र वेधक अंग से जलीय कीड़ों, बहुधा में फ्लाई (May fly), के लार्वा में वेधन कर जाते हैं। वहाँ से प्रौढ़ होने के पूर्व ही ये बाहर निकल कर गुबरैलों, झींगुरों और टिड्डों की देहगुहा में प्रवेश कर सकते हैं। द्वितीय परपोषी (second host) में बढ़कर ये संभवत: उन कीड़ों से निकलकर पलायन करते हैं और शीघ्र ही यौन प्रौढ़ता प्राप्त करते हैं। इनकी लगभग १५ जातियाँ उत्तर अमरीका में पाई जाती हैं। पैरागोर्डियस वैरीकस ३०० मिमी.

1 संबंध: सूत्रकृमि

सूत्रकृमि

एक प्रकार का गोल कृमि सूत्रकृमि या गोल कृमि (नेमैटोड) अपृष्ठवंशी, जलीय, स्थलीय या पराश्रयी प्राणी है। ये सूदूर अन्टार्कटिक तथा महासागरों के गर्तों में भी देखें गएं हैं। इनका शरीर अखंडित, लम्बे पतले धागे जैसा तथा बेलनाकार होता है, इसलिए इसे राउण्डवर्म कहा जाता है। इनको प्राणि जगत में एक संघ की मर्यादा प्राप्त हैं। इनकी लगभग ८०,००० जातियाँ हैं जिसमें से १५,००० से अधिक परजीवी है। इस जन्तु में नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं जिसमें नर छोटा तथा पीछे का भाग मुड़ा़ हुआ रहता है किन्तु मादा का शरीर सीधा होता है। नर का जनन अंग क्लोयका के पास होता है किन्तु मादा का जनन अंग वल्वा के रूप में बाहर की ओर खुलता है। इनमें रक्त-परिवहन तंत्र और श्वसन तंत्र नहीं पाये जाते हैं इसलिए श्वसन का कार्य विसरण के द्वारा होता है। .

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