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ज्ञानदास

सूची ज्ञानदास

ज्ञानदास 'ब्रजबुलि' एवं बँगला दोनों भाषाओं के श्रेष्ठ कवि थे। गोविंददास कविराज के उपरांत रचनासौष्ठव के लिय इन्हीं की ख्याति है। इनके 'ब्रजबुलि' में लिखे पद्य अत्यंत सुंदर हैं। वैष्णवदास के पद-संग्रह-पंथ 'पदकल्पतरु' में लगभग 105 ब्रजबुलि के पद संगृहीत हैं जो ज्ञानदास द्वारा रचित हैं। ज्ञानदास नाम से युक्त कोई कोई पद विभिन्न पदसंग्रहां में किसी दूसरें के नाम से भी पाया जाता है। इनके बँगला भाषा में लिखे पद ब्रजबुलि के पदों की अपेक्षा अधिक सुंदर है। इन्होंने राधा-कृष्ण-लीला संबंधी पद रचे हैं। 'रूपानुराग', रसोद्गार', एवं 'माथुर' विषयों से संबंधित पदों में ज्ञानदास की कवित्वशक्ति का सुंदर निदर्शन है। इन पदों के अलावा कुछ अन्य रचनाएँ भी प्राप्त हुई हैं जिनका संबंध इनसे बताया जाता है। ज्ञानदास रचित 'बाल्य लीला' ग्रंथ भी सुकुमार भट्टाचार्य ने संपादित करके वाणीमंडप, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित किया है। अंत में इनके नाम से युक्त एक आगम निबंध भी पाया गया है जिसका नाम 'भागवततत्व लीला' अथवा 'भागवतेम्तर' है। ज्ञानदास के पदों का एक अर्वाचीन संकलन ज्ञानदास पदावली नाम से स्वर्गीय रमणीमोहन मल्लिक ने किया था। ज्ञानदास की जन्मभूमि बर्दवान जिले के उत्तर में स्थित काँदड़ाग्राम में है। जन्मतिथि सन्‌ 1530 ईo निर्धारित की गई है। भक्तिरत्नाकर ग्रंथ में इस बात का उल्लेख है कि राढ़ देश के काँदड़ ग्राम में इनका घर था। ज्ञानदास जाति के ब्राह्मण थे। इन्होंने नित्यानंद प्रभु की पत्नी जाल्वा देवी से गुरुदीक्षा ली थी। कृष्णदास कविराज ने चैतन्यचरितामृत में इसीलिये इनका उल्लेख नित्यानंद प्रभु की शिष्यशाखा में किया है। 'नरोत्तमविलास' ग्रंथ में उल्लेख है कि ज्ञानदास करवा एवं खेदुरी के वैष्णव सम्मेलन में उपस्थित थे। ज्ञानदास ने राधा-कृष्ण-लीला-वर्णन में चंडीदास का अनुगमन किया है। .

3 संबंधों: बाङ्ला भाषा, ब्रजबुलि, गोविंददास

बाङ्ला भाषा

बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .

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ब्रजबुलि

ब्रजबुलि उस काव्यभाषा का नाम है जिसका उपयोग उत्तर भारत के पूर्वी प्रदेशों अर्थात् मिथिला, बंगाल, आसाम तथा उड़ीसा के भक्त कवि प्रधान रूप से कृष्ण की लीलाओं के वर्णन के लिए करते रहे हैं। नेपाल में भी ब्रजबुलि में लिखे कुछ काव्य तथा नाटकग्रंथ मिले हैं। इस काव्यभाषा का उपयोग शताब्दियों तक होता रहा है। ईसवी सन् की 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक इस काव्यभाषा में लिखे पद मिलते हैं। यद्यपि "ब्रजबुलि साहित्य" की लंबी परंपरा रही हैं, फिर भी "ब्रजबुलि" शब्द का प्रयोग ईसवी सन् की 19वीं शताब्दी में मिलता है। इस शब्द का प्रयोग अभी तक केवल बंगाली कवि ईश्वरचंद्र गुप्त की रचना में ही मिला है। .

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गोविंददास

चैतन्य महाप्रभु के परवर्ती कवियों में गोविन्ददास कविराज सर्वश्रेष्ठ कवि हुए हैं। इन्होने केवल "ब्रजबुलि" में पर रचना की है। समस्त पद राधा-कृष्ण-लीला संबंधी है। इन पदों में समस्त काव्यगुण बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। छंद में अत्यंत सुंदर गति शब्दों के चयन द्वारा प्रस्तुत की गई है। अनुप्रासों की छटा भी अनुपम है। तत्सम एवं अर्धतत्सम शब्दों के प्रयोग से काव्य अत्यंत सुन्दर हो उठा है। प्रकृतिचित्रण, नख-शिख-वर्णन अत्यंत मनोमुग्धकारी है। कहा जाता है, कवि ने अपने पदों का संग्रह गीतामृत नाम से स्वयं किया था। इनका जन्म 1530 ई. और मृत्यु 1613 ई. लगभग हुई। गोविंददास का उल्लेख प्रमुख वैष्णव जीवनीग्रंथ जैसे भक्तमाल, भक्तिरत्नाकर और प्रेमविलास में विस्तृत रूप से है। इन सबके अनुसार गोविंददास का जन्म श्रीखंड में हुआ था। इनका ग्राम "तेलियाबुधरी" था। इनके पिता का नाम चिरंजीव सेन एवं माता का नाम सुनंदा था। इनके नाना ने, जिनका नाम दामोदर सेन था अनाथ हो जाने पर इनको और इनके भाई रामचंद्र को पाला था। गोविंददास पहले शाक्त थे फिर वैष्णव हो गए। श्रीनिवास आचार्य इनके गुरु थे। इनके प्राप्त पदों की संख्या 450 से ऊपर है। .

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