2 संबंधों: जैन धर्म, कल्पसूत्र (जैन)।
जैन धर्म
जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .
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कल्पसूत्र (जैन)
1375-1400 की इस कल्पसूत्र पाण्डुलिपि में महावीर के जन्म का चित्रण है। कल्पसूत्र नामक जैनग्रंथों में तीर्थंकरों (पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि) का जीवनचरित वर्णित है। भद्रबाहु इसके रचयिता माने जाते हैं। पारंपरिक रूप से मान्यता है कि इस ग्रन्थ की रचना महावर स्वामी के निर्वाण के १५० वर्ष बाद हुई। आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व के समय जैन साधु एवं साध्वी कल्पसूत्र का पाठ एवं व्याख्या करते हैं। इस ग्रन्थ का बहुत अधिक आध्यात्मिक महत्व है इसलिये केवल साधु एवं साध्वी ही इसका वाचन करते हैं और सामान्य लोग इसे हृदयंगम करते हैं। .