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जन्तुभूगोल

सूची जन्तुभूगोल

संसार में चारों ओर भ्रमण करके जिस किसी ने जंतुजीवन का अध्ययन किया है, वह जानता है कि संसार में जंतुओं का वितरण सर्वत्र एक जैसा नहीं है, यद्यपि संसार के हर कोने में प्राणी मिलते हैं। संसार के हर भाग के जंतु उसके अपने होते हैं, अर्थात् आस्ट्रेलिया में पाए जानेवाले जंतु भारत में नहीं पाए जाते और भारत में पाए जानेवाले जंतु यूरोप में नहीं मिलते। हसका कदाचित् एक कारण यह है कि जानवरों में अनुकूलन शक्ति कम होती है। इसलिये एक भाग की जलवायु में पनपनेवाले प्राणी दूसरे भाग की जलवायु में पनप नहीं पाते। कभी कभी ऐस भी होता है कि किसी विशेष जाति के जानवर के लिये उपयुक्त वातावरण कहीं पर हो, पर वह वहाँ विशेष रुकावटों के कारण पहुँच न सके। कुछ ऐसे भी जानवर हैं जो अपने आदि निवासस्थान को छोड़कर दूसरे देशों को चले गए और वहाँ भली-भाँति पनपे, जैसे खरगोश आस्ट्रेलिया में, नेवला जामेका में और अंग्रेजी स्पैरो अमरीका में। जंतुओं के वितरण के अध्ययन को जंतु-विस्तार-विज्ञान कहते हैं। यह जंतुशास्त्र की एक विशेष शाखा है। जंतुविस्तार (जूलोजिकल डिस्पर्सन) का अध्ययन कई ढंगों से होता है। पहले जानवरों के विस्तार का अध्ययन पृथ्वी की सतह पर किया जाता है, जिसे भौगोलिक विस्तार या क्षैतिज विस्तार कहते हैं। इसके पश्चात् जानवरों के विस्तार का अध्ययन पहाड़ की चोटी से लेकर समुद्र की गहराई तक करते हैं। इसे ऊर्ध्वाधर या शीर्षलंब संबंधी (altitudinal) विस्तार, अथवा उदग्र (bathymetric) विस्तार कहते हैं। इन दोनों विस्तारों को अवकाश में विस्तार कहते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के ""काल (समय) में विस्तार"" का अध्ययन भी किया जाता है, जिसे भूवैज्ञानिक बिस्तार कहते हैं। इसका अध्ययन भूविज्ञान की सहायता से होता है। प्रत्येक प्राणी का अध्ययन तीनों पक्षों के अंतर्गत हो सकता है, परंतु जंतुविस्तार का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए तीनों पक्षों का अलग अलग अध्ययन करना आवश्यक है। .

7 संबंधों: प्राणिक्षेत्र, भारत, मगरमच्छ, मेंढक, रैकून, जन्तुओं का विस्तार, गैण्डा

प्राणिक्षेत्र

पिछले डेढ़ सौ वर्षों में जानवरों की आबादी के आधार पर पृथ्वी कों कई भागों में बाँटने का कई बार प्रयास किया गया। लिंडकर ने पृथ्वी की सारी सतह को तीन प्रमुख क्षेत्रों में बाँटा था: (1) आर्कटोजीओ (Arctogaea), उत्तरी क्षेत्र, जिसमें आधुनिक निआर्कटिक (Nearctic), पैलिआर्कटिक (Palaearctic), ईथियोपियन और ओरियंटल क्षेत्र संमिलित हैं। (2) निओजिआ (Neogaea), जिसमें दक्षिणी अमरीका का नीओट्रापिकल क्षेत्र आता है और (3) नोटोजोआ (Notogaea), दक्षिणी क्षेत्र, जिसमें आस्ट्रेलिया का क्षेत्र आता है। इनमें से निओजीया शेष संसार से तृतीय (Tertiary) युग में और ऑस्ट्रेलियन क्षेत्र तृतीय युग के प्रारंभ में ही अलग हो गए थ। इसीलिए इन क्षेत्रों में रहनेवाले जंतु संसार के उत्तरी क्षेत्रों के जंतुओं से भिन्न हैं। आस्ट्रेलिया में तो अब भी वे पुराने स्तनधारी प्राणी पाए जाते हैं, जा मेसोज़ोइक (Mesozoic) युग में संसार में पाए जाते थे। संसार से पृथक् होने के कारण आस्ट्रेलिया में उत्तरी क्षेत्र के जानवर आ नहीं पाए और मेसोज़ोइक युग के जानवर अब तक ज्यों-के-त्यों पाए जाते हैं। भू-प्राणि-क्षेत्रों की आधुनिक स्थिति निम्नलिखित है.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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मगरमच्छ

मगरमच्छ Distrubition of crocodiles मगरमच्छ रेप्टीलिया वर्ग के सबसे बङे जंतुओं में एक है। यह 4 से 25 मीटर तक लंबा हो सकता है। श्रेणी:मगरमच्छ श्रेणी:उभयचर श्रेणी:सरीसृप.

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मेंढक

मेंढक उभयचर वर्ग का जंतु है जो पानी तथा जमीन पर दोनों जगह रह सकता है। यह एक शीतरक्ती प्राणी है अर्थात् इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। शीतकाल में यह ठंडक से बचने के लिए पोखर आदि की निचली सतह की मिट्टी लगभग दो फुट की गहराई तक खोदकर उसी में पड़ा रहता है। यहाँ तक कि कुछ खाता भी नहीं है। इस क्रिया को शीतनिद्रा या शीतसुषुप्तावस्था कहते हैं। इसी तरह की क्रिया गर्मी के दिनों में होती है। ग्रीष्मकाल की इस निष्क्रिय अवस्था को ग्रीष्मसुषुप्तावस्था कहते हैं। मेंढक के चार पैर होते हैं। पिछले दो पैर अगले पैरों से बड़े होतें हैं। जिसके कारण यह लम्बी उछाल लेता है। अगले पैरों में चार-चार तथा पिछले पैरों में पाँच-पाँच झिल्लीदार उँगलिया होतीं हैं, जो इसे तैरने में सहायता करती हैं। मेंढकों का आकार ९.८ मिलीमीटर (०.४ ईन्च) से लेकर ३० सेण्टीमीटर (१२ ईन्च) तक होता है। नर साधारणतः मादा से आकार में छोटे होते हैं। मेंढकों की त्वचा में विषग्रन्थियाँ होतीं हैं, परन्तु ये शिकारी स्तनपायी, पक्षी तथा साँपों से इनकी सुरक्षा नहीं कर पाती हैं। भेक या दादुर (टोड) तथा मेंढक में कुछ अंतर है जैसे दादुर अधिकतर जमीन पर रहता है, इसकी त्वचा शुष्क एवं झुर्रीदार होती है जबकि मेंढक की त्वचा कोमल एवं चिकनी होती है। मेंढक का सिर तिकोना जबकि टोड का अर्द्ध-वृत्ताकार होता है। भेक के पिछले पैर की अंगुलियों के बीच झिल्ली भी नहीं मिलती है। परन्तु वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से दोनों बहुत हद तक समान जंतु हैं तथा उभयचर वर्ग के एनुरा गण के अन्तर्गत आते हैं। मेंढक प्रायः सभी जगहों पर पाए जाते हैं। इसकी ५००० से अधिक प्रजातियों की खोज हो चुकी है। वर्षा वनों में इनकी संख्या सर्वाधिक है। कुछ प्रजातियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। .

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रैकून

रैकून उत्तर अमेरिका में मिलने वाला एक माध्यम अकार का स्तनधारी जानवर है। इसके शरीर की लम्बाई 40 से 70 सेंटीमीटर होती है और इसका वज़न 3.5 से 9 किलो होता है। रैकून एक निशाचरी जीव (रात में जागकर गतिविधि करने वाला) है और सर्वाहारी (मांस-वनस्पति दोनों खाने वाला) है। इसका शरीर भूरे बालों से ढाका होता है और इसके चेहरे पर आँखों के ऊपर काले रंग के बाल एक नक़ाब जैसा नक़्शा बनाते हैं। रैकून अपनी चतुरता के लिए मशहूर हैं और वे अक्सर मनुष्यों से खाना और अन्य चीजें चोरी कर लेते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन ने दिखाया है के इनकी स्मरण-शक्ति भी बहुत तेज़ है। इनके सामने के दो पंजे ऊँगलीनुमा हाथों की तरह होते हैं और इनसे रैकूनों को चीजें पकड़ने, खींचने और तोड़ने में काफ़ी सक्षमता मिल जाती है। .

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जन्तुओं का विस्तार

संसार में चारों ओर भ्रमण करके जिस किसी ने जंतुजीवन का अध्ययन किया है, वह जानता है कि संसार में जंतुओं का वितरण सर्वत्र एक जैसा नहीं है, यद्यपि संसार के हर कोने में प्राणी मिलते हैं। संसार के हर भाग के जंतु उसके अपने होते हैं, अर्थात् आस्ट्रेलिया में पाए जानेवाले जंतु भारत में नहीं पाए जाते और भारत में पाए जानेवाले जंतु यूरोप में नहीं मिलते। हसका कदाचित् एक कारण यह है कि जानवरों में अनुकूलन शक्ति कम होती है। इसलिये एक भाग की जलवायु में पनपनेवाले प्राणी दूसरे भाग की जलवायु में पनप नहीं पाते। कभी कभी ऐस भी होता है कि किसी विशेष जाति के जानवर के लिये उपयुक्त वातावरण कहीं पर हो, पर वह वहाँ विशेष रुकावटों के कारण पहुँच न सके। कुछ ऐसे भी जानवर हैं जो अपने आदि निवासस्थान को छोड़कर दूसरे देशों को चले गए और वहाँ भली-भाँति पनपे, जैसे खरगोश आस्ट्रेलिया में, नेवला जामेका में और अंग्रेजी स्पैरो अमरीका में। जंतुओं के वितरण के अध्ययन को 'जंतु-विस्तार-विज्ञान' कहते हैं। यह जंतुशास्त्र की एक विशेष शाखा है। जंतुविस्तार का अध्ययन कई ढंगों से होता है। पहले जानवरों के विस्तार का अध्ययन पृथ्वी की सतह पर किया जाता है, जिसे भौगोलिक विस्तार या क्षैतिज विस्तार कहते हैं। इसके पश्चात् जानवरों के विस्तार का अध्ययन पहाड़ की चोटी से लेकर समुद्र की गहराई तक करते हैं। इसे ऊर्ध्वाधर या शीर्षलंब संबंधी (altitudinal) विस्तार, अथवा उदग्र (bathymetric) विस्तार कहते हैं। इन दोनों विस्तारों को अवकाश में विस्तार कहते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के ""काल (समय) में विस्तार"" का अध्ययन भी किया जाता है, जिसे भूवैज्ञानिक बिस्तार कहते हैं। इसका अध्ययन भूविज्ञान की सहायता से होता है। प्रत्येक प्राणी का अध्ययन तीनों पक्षों के अंतर्गत हो सकता है, परंतु जंतुविस्तार का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए तीनों पक्षों का अलग अलग अध्ययन करना आवश्यक है। .

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गैण्डा

'''गैंडा''' गैंडा (राइनोसरस / Rhinoceros) एक जानवर है जिसकी पाँच जातियाँ पायी जाती हैं। इसमें से दो प्रजातियाँ अफ्रीका सार्थक में तथा तीन दक्षिण एशिया में मिलती हैं। .

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