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कोशी रीमान समीकरण

सूची कोशी रीमान समीकरण

गणित में सम्मिश्र विश्‍लेषण के क्षेत्र में कोशी-रीमान समीकरण (Cauchy–Riemann equations) दो आंशिक अवकल समीकरणों की प्रणाली (system of two partial differential equations) है। ये समीकरण अवश्य ही संतुष्ट होंगे यदि दिया हुआ समिश्र फलन समिश्र-अवकलनिय (complex differentiable) है। समीकरण का यह नाम अगस्तिन कोशी (Augustin Cauchy) और बर्नार्ड रीमान (Bernhard Riemann) के नम पर पड़ा है। इसके अलावा, समिश्र अवकलन के लिये कोशी-रीमान समीकरण आवश्यक एवं पर्याप्त शर्त भी हैं। समीकरणों की यह प्रणाली सर्वप्रथम डी'अल्म्बर्ट (d'Alembert 1752) के कार्यों में देखने को मिली। बाद में लियोनार्द आइलर (Euler 1797) ने इन समीकरणों का सम्बन्ध एनालिटिक फलनों से भी होना बताया। कोशी ने 1814 में इन फलनों का उपयोग करके 'फलनों का सिद्धान्त' निर्मित किया। फलनों के सिद्धान्त पर रीमान का शोधपत्र 1851 में आया। .

2 संबंधों: सम्मिश्र विश्लेषण, गणित

सम्मिश्र विश्लेषण

सम्मिश्र विश्‍लेषण (Complex analysis) जिसे सामान्यतः सम्मिश्र चरों के फलनों का सिद्धान्त भी कहा जाता है गणितीय विश्लेषण की एक शाखा है जिसमें सम्मिश्र संख्याओं के फलनों का अध्ययन किया जाता है। यह बीजीय ज्यामिति, संख्या सिद्धान्त, व्यावहारिक गणित सहित गणित की विभिन्न शाखाओं में उपयोगी है तथा इसी प्रकार तरल गतिकी, उष्मागतिकी, यांत्रिक अभियान्त्रिकी और विद्युत अभियान्त्रिकी सहित भौतिक विज्ञान में भी उपयोगी है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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