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कैलाश खेर

सूची कैलाश खेर

कैलाश खेर (जन्म ७ जुलाई १९७३) को उत्तर प्रदेश में हुआ वे एक भारतीय पॉप-रॉक गायक है जिनकी शैली भारतीय लोक संगीत से प्रभावित है। कैलाश खेर ने अबतक १८ भाषाओं में गाने गाया है और ३०० से अधिक गीत बॉलीवुड में गाये है। संगीत सीखने के लिए घर से की बगावत कैलाश जब 13 साल के थे तभी वो संगीत की बेहतर शिक्षा लेने के लिए घरवालों से लड़कर दिल्ली आ गए थे। यहां आकर उन्होंने संगीत की शिक्षा तो लेनी शुरू कर दी लेकिन साथ में पैसे कमाने के लिए छोटा सा काम शुरू कर दिया। साथ में विदेशी लोगों को संगीत भी सिखाकर पैसे कमाते थे। बिजनेस में घाटे के करना चाहते थे सुसाइड दिल्ली में रहते हुए 1999 तक कैलाश खेर ने अपने एक फैमिली फ्रेंड के साथ एक्सपोर्ट का बिजनेस करने लगे थे। इसी साल उन्हें इस कारोबार में इतना बड़ा घाटा हुआ जिसमें वह अपनी सारी जमा पूंजी गंवा चुके थे। इसी वक्त कैलाश इतने डिप्रेशन में चले गए थे कि वो जिंदगी से तंग आकर सुसाइड करना चाहते थे। इन सब से किसी तरह से निकलने के बाद कैलाश पैसे कमाने के लिए सिंगापुर और थाइलैंड चले गए। जहां 6 महीने रहने के बाद वो वापस भारत आकर ऋषिकेश चले गए और कुछ दिनों तक वहीं रहे। वहां वे साधू-संतो के लिए गाना गाया करते थे। कैलाश के गाने को सुनकर बड़ा से बड़ा संत झूम उठता था, इससे कैलाश का खोया विश्वास वापस आया और वह मुंबई चले गए। मुंबई आने के बाद कैलाश ने काफी गरीबी में दिन गुजारें। घर में नहीं बल्कि कैलाश वहां चॉल में रहते थे। उनके हालत कैसे थे वो इसी बात से पता चलता है कि उनके पास पहनने के लिए एक सही चप्पल भी नहीं थी। वह एक टूटी चप्पल ले 24 घंटे स्टूडियो के चक्कर लगाते रहते ताकि कोई तो उनकी आवाज को सुन उनको गाने का मौका दे दे। एक दिन उन्हें राम संपत ने एक ऐड का जिंगल गाने के लिए बुलाया, जिसके लिए उन्हें 5000 रुपए मिले। तब पांच हजार रुपए भी कैलाश को बहुत ज्यादा लगे और इनसे उनका कुछ दिन का काम चल गया। 'अल्ला के बंदे हम' ने दिलाई एक अलग पहचान दिलाई। कैलाश ने मुंबई में कई सालों तक स्ट्रगल करने के बाद फिल्म अंदाज से उन्हें ब्रेक मिला। इस फिल्म में कैलाश ने 'रब्बा इश्क ना होवे' में अपनी आवाज दी। लेकिन कैलाश के किस्मत का तारा तब चमका जब उन्होंने फिल्म वैसा भी होता है में 'अल्ला के बंदे हम' गाने में अपनी आवाज दी। ये गाना आजतक कैलाश के हिट गानों में से एक है। 18 भाषाओं में गया गाना कैलाश खेर ने अबतक 18 भाषाओं में गाने गा चुके हैं। 300 से अधिक गाने कैलाश ने सिर्फ बॉलीवुड में गाए हैं। कैलाश को अपने गानों के लिए दर्जनों अवार्ड मिल चुके हैं। कैलाश खेर 2009 में मुंबई बेस्ड शीतल से शादी की। उनका एक चार साल का बेटा है, जिसका नाम कबीर है। .

1 संबंध: लोक संगीत

लोक संगीत

लोक संगीत। वैदिक ॠचाओं की तरह लोक संगीत या लोकगीत अत्यंत प्राचीन एवं मानवीय संवेदनाओं के सहजतम उद्गार हैं। ये लेखनी द्वारा नहीं बल्कि लोक-जिह्वा का सहारा लेकर जन-मानस से निःसृत होकर आज तक जीवित रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधुर कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं। स्व० रामनरेश त्रिपाठी के शब्दों में जैसे कोई नदी किसी घोर अंधकारमयी गुफ़ा में से बहकर आती हो और किसी को उसके उद्गम का पता न हो, ठीक यही दशा लोकगीतों के बारे में विद्वान मनीषियों ने स्वीकारी है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस प्रभाव को स्वीकृति देते हुए कहते हैं जब-जब शिष्टों का काव्य पंडितों द्वारा बंधकर निश्चेष्ट और संकुचित होगा तब-तब उसे सजीव और चेतन प्रसार देश के सामान्य जनता के बीच स्वच्छंद बहती हुई प्राकृतिक भाव धारा से जीवन तत्व ग्रहण करने से ही प्राप्त होगा। लोकगीत तो प्रकृति के उद्गार हैं। साहित्य की छंदबद्धता एवं अलंकारों से मुक्त रहकर ये मानवीय संवेदनाओं के संवाहक के रूप में माधुर्य प्रवाहित कर हमें तन्मयता के लोक में पहुंचा देते हैं। लोकगीतों के विषय, सामान्य मानव की सहज संवेदना से जुडे हुए हैं। इन गीतों में प्राकृतिक सौंदर्य, सुख-दुःख और विभिन्न संस्कारों और जन्म-मृत्यु को बड़े ही हृदयस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। संगीतमयी प्रकृति जब गुनगुना उठती है लोकगीतों का स्फुरण हो उठना स्वाभाविक ही है। विभिन्न ॠतुओं के सहजतम प्रभाव से अनुप्राणित ये लोकगीत प्रकृति रस में लीन हो उठते हैं। बारह मासा, छैमासा तथा चौमासा गीत इस सत्यता को रेखांकित करने वाले सिद्ध होते हैं। पावसी संवेदनाओं ने तो इन गीतों में जादुई प्रभाव भर दिया है। पावस ॠतु में गाए जाने वाले कजरी, झूला, हिंडोला, आल्हा आदि इसके प्रमाण हैं। सामाजिकता को जिंदा रखने के लिए लोकगीतों/लोकसंस्कृतियों का सहेजा जाना बहुत जरूरी है। कहा जाता है कि जिस समाज में लोकगीत नहीं होते, वहां पागलों की संख्या अधिक होती है। सदियों से दबे-कुचले समाज ने, खास कर महिलाओं ने सामाजिक दंश/अपमान/घर-परिवार के तानों/जीवन संघषों से जुड़ी आपा-धापी को अभिव्यक्ति देने के लिए लोकगीतों का सहारा लिया। लोकगीत किसी काल विशेष या कवि विशेष की रचनाएं नहीं हैं। अधिकांश लोकगीतों के रचइताओं के नाम अज्ञात हैं। दरअसल एक ही गीत तमाम कंठों से गुजर कर पूर्ण हुई है। महिलाओं ने लोकगीतों को ज़िन्दा रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज वैश्वीकरण की आंधी में हमने अपनी कलाओं को तहस-नहस कर दिया है। अपनी संस्कृतियां अनुपयोगी/बेकार की जान पड़ने लगी हैं। ऐसे समय में जोगिया, फाजिलनगर, कुशीनगर जनपद की संस्था-`लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ ने लोकगीतों को सहेजने का काम शुरू किया है। संस्था ने तमाम लोकगीतों को बटोरा है और अपने प्रकाशनों में छापा भी है। संस्था महत्वपूर्ण लोक कलाकारों के अन्वेषण में भी लगी हुई है और उसने रसूल जैसे महत्वपूर्ण लोक कलाकार की खोज की है जो भिखारी ठाकुर के समकालीन एवं उन जैसे जरूरी कलाकार थे। .

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