लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

कालभैरव

सूची कालभैरव

कालभैरव निम्नलिखित से सम्बंधित हो सकता है.

6 संबंधों: भारत के भैरव मंदिर, भैरव, वाराणसी, काल भैरव मन्दिर, काल भैरव मंदिर, काला-गौरा भैरव मंदिर

भारत के भैरव मंदिर

भूतभावनभगवान भैरव की महत्ता असंदिग्ध है। भैरव आपत्तिविनाशकएवं मनोकामना पूर्ति के देवता हैं। भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति में भी उनकी उपासना फलदायीहोती है। भैरव की लोकप्रियता का अनुमान उसी से लग सकता है कि प्राय: हर गांव के पूर्व में स्थित देवी-मंदिर में स्थापित सात पीढियों के पास में आठवीं भैरव-पिंडी भी अवश्य होती है। नगरों के देवी-मंदिरों में भी भैरव विराजमान रहते हैं। देवी प्रसन्न होने पर भैरव को आदेश देकर ही भक्तों की कार्यसिद्धि करा देती हैं। भैरव को शिव का अवतार माना गया है, अत:वे शिव-स्वरूप ही हैं- भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्यपरात्मन:। मूढास्तेवैन जानन्तिमोहिता:शिवमायया॥ भैरव पूर्ण रूप से परात्पर शंकर ही हैं। भगवान शंकर की माया से ग्रस्त होने के फलस्वरूप मूर्ख, इस तथ्य को नहीं जान पाते। भैरव के कई रूप प्रसिद्ध हैं। उनमें विशेषत:दो अत्यंत ख्यात हैं-काल भैरव एवं बटुकभैरव या आनंद भैरव। काल के सदृश भीषण होने के कारण इन्हें कालभैरवनाम मिला। ये कालों के काल हैं। हर प्रकार के संकट से रक्षा करने में यह सक्षम हैं। काशी का कालभैरवमंदिर सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से कोई डेढ-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर का स्थापत्य ही इसकी प्राचीनताको प्रमाणित करता है। गर्भ-गृह के अंदर काल भैरव की मूर्ति स्थापित है, जिसे सदा वस्त्र से आवेष्टित रखा जाता है। मूर्ति के मूल रूप के दर्शन किसी-किसी को ही होते हैं। गर्भ-गृह से पहले बरामदे के दाहिनी ओर दोनों तरफ कुछ तांत्रिक अपने-अपने आसन पर विराजमान रहते हैं। दर्शनार्थियोंके हाथों में ये उनके रक्षार्थकाले डोरे बांधते हैं और उन्हें विशेष झाडू से आपादमस्तकझाडते हैं। काशी के कालभैरवकी महत्ता इतनी अधिक है कि जो काशी विश्वनाथ के दर्शनोपरान्तकालभैरवके दर्शन नहीं करता उसको भगवान विश्वनाथ के दर्शन का सुफल नहीं मिलता। नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुकभैरव का पांडवकालीनमंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। यह सर्वकामनापूरकसर्वआपदानाशकहै। रविवार भैरव का दिन है। इस दिन यहां सामान्य और विशिष्ट जनों की अपार भीड होती है। मंदिर के सामने की लम्बी सडक पर कारों की लम्बी पंक्तियां लग जाती हैं। संध्या से शाम अपितु देर रात तक पुजारी इन दर्शनार्थियोंसे निपटते रहते हैं। ऐसी भीड देश के किसी भैरव मंदिर में नहीं लगती। यह प्राचीन मूर्ति इस तरह ऊर्जावान है कि भक्तों की यहां हर सम्भव इच्छा पूर्ण होती है। इस भीड का कारण यही है। इस मूर्ति की एक विशेषता है कि यह एक कुएं के ऊपर स्थापित है। न जाने कब से, एक क्षिद्रके माध्यम से पूजा-पाठ एवं भैरव स्नान का सारा जल कुएं में जाता रहा है पर कुंआ अभी तक नहीं भरा। पुराणों के अनुसार भैरव की मिट्टी की मूर्ति बनाकर भी किसी कुएं के पास उसकी पूजा की जाय तो वह बहुत फलदायीहोती है। यही कारण है कि कुएं पर स्थापित यह भैरव उतने ऊर्जावान हैं। इन्हें भीमसेन द्वारा स्थापित बताया जाता है। नीलम की आंखों वाली यह मूर्ति जिसके पा‌र्श्व में त्रिशूल और सिर के ऊपर सत्र सुशोभित है, उतनी भारी है कि साधारण व्यक्ति उसे उठा भी नहीं सकता। पांडव-किला की रक्षा के लिए भीमसेन इस मूर्ति को काशी से ला रहे थे। भैरव ने शर्त लगा दी कि जहां जमीन पर रखे कि मैं वहां से उठूंगा ही नहीं एवं वहीं मेरा मंदिर बना कर मेरी स्थापना करनी होगी। इस स्थान पर आते-आते भीमसेन ने थक कर मूर्ति जमीन पर रख दी और फिर वह लाख प्रयासों के बावजूद उठी ही नहीं। अत:बटुकभैरव को यहीं स्थापित करना पडा। पांडव-किला (नई दिल्ली) के भैरव भी बहुत प्रसिद्ध हैं। यहां भी खूब भीड लगती है। माना जाता है कि भैरव जब नेहरू पार्क में ही रह गए तो पांडवों की चिंता देख उन्होंने अपनी दो जटाएं दे दी। उन्हीं के ऊपर पांडव किला की भैरव मूर्ति स्थापित हुई जो आज तक वहां पूजित है। ऊं ह्रींबटुकायआपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकायह्रीं यही है बटुक-भैरवका मंत्र जिसका जप कहीं भी किया जा सकता है और बटुकभैरव की प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है। नैनीताल के समीप घोडा खाड का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। पहाडी पर स्थित एक विस्तृत प्रांगण में एक मंदिर में स्थापित इस सफेद गोल मूर्ति की पूजा के लिए नित्य अनेक भक्त आते हैं। यहां महाकाली का भी मंदिर है। भक्तों की मनोकामनाओंके साक्षी, मंदिर की लम्बी सीढियों एवं मंदिर प्रांगण में यत्र-तत्र लटके पीतल के छोटे-बडे घंटे हैं जिनकी गणना कठिन है। मंदिर के नीचे और सीढियों की बगल में पूजा-पाठ की सामग्रियां और घंटों की अनेक दुकानें हैं। बटुकभैरव की ताम्बे की अश्वारोही, छोटी-बडी मूर्तियां भी बिकती हैं जिनकी पूजा भक्त अपने घरों में करते हैं। उज्जैनके प्रसिद्ध भैरव मंदिर की चर्चा आवश्यक है। यह मनोवांक्षापूरक हैं और दूर-दूर से लोग इनके पूजन को आते हैं। उनकी एक विशेषता उल्लेखनीय है। मनोकामना पूर्ति के पश्चात् भक्त इन्हें शराब की बोतल चढाते हैं। पुजारी बोतल खोल कर उनके मुख से लगाता है और बात की बात में भक्त के समीप ही मूर्ति बोतल को खाली कर देती है। यह चमत्कार है। हरिद्वार में भगवती मायादेवी के निकट आनंद भैरव का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां सबकी मनोकामना पूर्ण होती है। भैरव जयंती पर यहां बहुत बडा उत्सव होता है। लोकप्रिय है भैरवकायह स्तुति गान- कंकाल: कालशमन:कला काष्ठातनु:कवि:। त्रिनेत्रोबहुनेत्रश्यतथा पिंगललोचन:। शूलपाणि:खड्गपाणि:कंकाली धू्रमलोचन:। अमीरुभैरवी नाथोभूतयोयोगिनी पति:। श्रेणी:भैरव मंदिर.

नई!!: कालभैरव और भारत के भैरव मंदिर · और देखें »

भैरव

ब्रिटिश संग्रहालय में रखी '''भैरव''' की प्रतिमा १४वीं शताब्दी में निर्मित राजा आदित्यवर्मन की मूर्ति जो भैरव रूप में है। (इण्डोनेशिया राष्ट्रीय संग्रहालय) भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। इनकी पूजा भारत और नेपाल में होती है। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं। भैरवों की संख्या ६४ है। ये ६४ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं। .

नई!!: कालभैरव और भैरव · और देखें »

वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

नई!!: कालभैरव और वाराणसी · और देखें »

काल भैरव मन्दिर

मन्दिरो की नगरी काशी में बाबा काल भैरव मन्दिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 3 कि० मी० पर शहर के उत्तरी भाग में स्थित है। यह मन्दिर काशी खन्डोक्त पुरातन मन्दिरॊ में सॆ एक है। इस मन्दिर की पौराणिक मान्यता यह है, कि बाबा विश्वनाथ ने काल भैरव जी को काशी का कोतवाल (ॠेतपाल) नियुक्त किया था। काल भैरव जी को काशीवासियो के दंड देने का अधिकार है। यहाँ रविवार एवं मंगलवार को अपार भीङ आती है। आरती के समय नगाडे, घंटा,डमरू,की धव्नि बहुत ही मनमोहक लगती है। यहाँ बाबा को परसाद में बड़ा,शराब (कारण)पान का विशेष महत्व है। यहाँ विषेश रूप से भूत-पिशाचादि के उपचार हेतु लोग आते हैं, तथा बाबा की कॣपा से ठीक हो जाते हैं। यहाँ बालकों को काले धागे (गंडा) दिया जाता है, जिससे बच्चे भय-मुक्त हो जाते हैं। काशी में ऐसी मान्यता है, कि कोई भी प्राणी को मृत्यु से पूरर्व यम यातना कके स्थान पर बाबा काल भैरव के सोटे की यातना का सामना करना होता है,हाँ परन्तु मान्यता यह भी है,कि केदार खंड काशी बासी को भैरव यातना भी नहीं भोगनी पड़ती है। श्रेणी:वाराणसी के मन्दिर.

नई!!: कालभैरव और काल भैरव मन्दिर · और देखें »

काल भैरव मंदिर

काल भैरव मंदिर, उज्जैन स्थित एक हिन्दू मंदिर है जो हिन्दू देवता भैरव को समर्पित है। यह महाकाल मंदिर से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्रेणी:मध्य प्रदेश के हिन्दू मंदिर.

नई!!: कालभैरव और काल भैरव मंदिर · और देखें »

काला-गौरा भैरव मंदिर

काला-गौरा भैरव मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के पूर्वी भाग में आकाश को छूता हुआ सा प्रतीत होता है। यह मंदिर बहु मंजिला रूद्र भैरव का तांत्रिक मंदिर है, जो कि प्राचीन काल से विद्यमान है। इस मंदिर के लिए कहाँ जाता है कि प्राचीन काल में यह मंदिर राजस्थान में जादू-टौनो, तंत्र-मंत्र एवं वशीकरण के लिए विख्यात था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो हाथी सुंड उठाकर खड़े हुए बने हुए हैं। यहाँ दो भैरव मंदिर है जिन्हें काला-गौरा भैरव के नाम से जाना जाता है, दोनों ही मंदिरों पर सुंड उठाये गजराज चित्रित है। इन मंदिरों को तामसी व राजसी शैली में निरूपित किया गया है। यह मंदिर प्राचीन सवाई माधोपुर शहर के मुख्य द्वार पर बने हुए हैं। .

नई!!: कालभैरव और काला-गौरा भैरव मंदिर · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »