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करौली जिला

सूची करौली जिला

कोई विवरण नहीं।

11 संबंधों: चम्बल नदी, टोडाभीम, नादौती, मंडरायल, यदुवंश, राजस्थान, सपोटरा, सवाई माधोपुर, हिण्डौन, करौली, कैलादेवी मेला

चम्बल नदी

चंबल नदी मध्य भारत में यमुना नदी की सहायक नदी है। यह नदी "जानापाव पर्वत " महू से निकलती है। इसका प्राचीन नाम "चरमवाती " है। इसकी सहायक नदिया शिप्रा, सिंध, कलिसिन्ध, ओर कुननों नदी है। यह नदी भारत में उत्तर तथा उत्तर-मध्य भाग में राजस्थान तथा मध्य प्रदेश के धार,उज्जैन,रतलाम, मन्दसौर भीँड मुरैनाआदि जिलो से होकर बहती है। यह नदी दक्षिण मोड़ को उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना में शामिल होने के पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच सीमा बनाती है। इस नदी पर चार जल विधुत परियोजना चल रही है। 01 गांधी सागर 02 राणा सागर 03 जवाहर सागर 04 कोटा वेराज (कोटा)। प्रसिद्ध चूलीय जल प्रपातचंबल नदी (कोटा) मे है। यह एक बारहमासी नदी है। इसका उद्गम स्थल जानापाव की पहाडी(मध्य प्रदेश) है। यह दक्षिण में महू शहर के, इंदौर के पास, विंध्य रेंज में मध्य प्रदेश में दक्षिण ढलान से होकर गुजरती है। चंबल और उसकी सहायक नदियां उत्तर पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के नाले, जबकि इसकी सहायक नदी, बनास, जो अरावली पर्वतों से शुरू होती है इसमें मिल जाती है। चंबल, कावेरी, यमुना, सिन्धु, पहुज भरेह के पास पचनदा में, उत्तर प्रदेश राज्य में भिंड और इटावा जिले की सीमा पर शामिल पांच नदियों के संगम समाप्त होता है। .

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टोडाभीम

'टोडाभीम' (Todabhim) राजस्थान (भारत) राज्य के करौली जिले का एक नगर है। यहाँ की जनसँख्या 2,28,203 के बराबर है। यहाँ हिन्दी भाषा बोली जाती है। .

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नादौती

नादौती ब्लॉक जिला करौली के अंतर्गत आता है। यह ब्लॉक क्रमशः गंगापुर सिटी, श्रीमहावीरजी  और सिकराय  से अपनी भौगोलिक सीमाएँ साझा  करता है। इसमें कुल २९ ग्राम पंचायते और १०६ राजस्व ग्राम आते हैं। पंचायत समिति नादौती से ग्राम पंचायतो की दुरी क्रमश कैमरी 2.6 किलोमीटर, ढहरिया 3.0 किलोमीटर, भीलापाडा 3.6 किलोमीटर, कैमा 4.7 किलोमीटर, तेसगाव 5.8 किलोमीटर, बरदला 7.7 किलोमीटर, कुंजेला 8.4 किलोमीटर, तिमावा 8.8 किलोमीटर, दलपुरा 8.9 किलोमीटर, जिताकिपूर 9.7 किलोमीटर, सोप 11.3 किलोमीटर, शहर 11.3 किलोमीटर, बागोर 11.4 किमी, रोसी 11.6 किलोमीटर, सलावद 12.3 किलोमीटर, गढखेड़ा 12.6 किलोमीटर, राजाहेड़ा 13.1 किमी, तलचिडा 13.5 किलोमीटर, पाल 14.0 किलोमीटर, केमला 15.4 किलोमीटर, रायसाना 16.3 किलोमीटर, चिरावंडा 20.2 किलोमीटर, गढमोरा 20.8 किलोमीटर, बडागांव 11 किलोमीटर, धोलेटा 15.8 किमी  है  शहर का शाही परिवार कच्छवा पिचोनॉट राजपूत है, जो महाराजा पृथ्वी राज के वंशज हैं, जो 1559 ईस्वी से 1584 ईसवी तक आमेर का शासक था। जिसे 1500 ईस्वी में ठाकुर हरि दास जी ने बनाया था। शहर का किला दिल्ली-जयपुर-आगरा के "स्वर्ण त्रिभुज" पर स्थित है। किला मुख्य जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से सिर्फ एक छोटी सी ड्राइव है। लगभग एक घंटे और आधे घंटे की ड्राइव के बाद, जयपुर आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर, सिकंदरा से गंगापुर की तरफ मुड़ें और किले तक पहुंचने के लिए 30 मिनट की ड्राइव ले। शहर किला के पास एक झील है और इसके घाट पर भित्तिचित्रों के साथ सजाए आठ बहुत ही कलात्मक रूप से तैयार किए गए "चतरियां" हैं। यह एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। किले में शेहारा देवी को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। जनसंख्या  केमरी, भारत के राजस्थान राज्य के करौली जिले में नदौती तहसील का गांव है। यह भरतपुर डिवीजन का है। यह जिला मुख्यालय करौली से पश्चिम की तरफ 47 किलोमीटर दूर स्थित है तथा नदौती से 5 किलोमीटर दूर है  यहाँ पर जगदीश जी भगवान का एक पौराणिक मंदिर है ऐसी किवदंती है कि एक भक्त दवारा केमरी से जगन्नाथ धाम उड़ीसा के लिए दंडवत के दौरान उसके शरीर में कीड़े पड़ गए तथा जो कीड़ा नीचे गिरता उसे वापिस उसी स्थान पर रखने लगा जिससे श्री जगदीशजी भगवान ने प्रसन्न होकर भक्त को दर्शन दिये तथा भक्त से उसकी इच्छा पूछी तो भक्त ने कहा की आप मेरे साथ चले  जिसके बाद समस्त गांव वालों ने मिलकर संवत 1735 में जगदीशजी के मंदिर की स्थापना की गयी  ब्लॉक नादौती में जल संसाधन विभाग का एक मात्र बांध फतेहसागर है जो ग्राम तेसगांव में स्थित है तथा पंचायत समिति मुख्यालय के पूर्व में स्थित है इसके उत्तरी अक्षांश व दक्षिणी अक्षांश क्रमशः 26.47 डिग्री एवं 76.46 डिग्री है। बांध की लम्बाई 3292 मीटर है जो मिट्टी का बना हुआ है तथा वेस्ट वीयर की लम्बाई उत्तरी दिशा में 600 मीटर है। जलग्रहण क्षेत्र 31 वर्गमील है। बांध की भराव क्षमता 128 एमसीएफटी है। इसका सिंचित क्षेत्र 521 हैक्टेयर है। उक्त बांध से तीन ग्राम तेसगांव, बड़ागांव तथा बीलई के 705 परिवार और 9026 आबादी लाभांवित होती है। भारत के राजस्थान राज्य के करौली जिले में नदौती तहसील की ग्राम पंचायत गुढ़ाचन्द्रजी है। यह भरतपुर डिवीजन का है। यह जिला मुख्यालय करौली से उत्तर दिशा में 57 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर घटवासन माता का मंदिर है, यहाँ पर दूर दूर से भक्त दर्शन हेतु आते हैं  और दर्शन लाभ पाते हैं भारत के राजस्थान राज्य के करौली जिले में नदौती तहसील की ग्राम पंचायत तालचिड़ा है। यह भरतपुर डिवीजन का है। यह जिला मुख्यालय करौली से उत्तर दिशा में 80 किलोमीटर एवम् उपजिला मुख्यालय नदोती से 20 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर तालचिड़ा की घाटी है जो की काफी खतरनाक घाटी है इसकी लम्बाई लगभग 2 किमी है यह लगभग 120 मीटर ऊँची है श्रेणी:करौली जिला.

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मंडरायल

'मंडरायल' (Mandrayal) राजस्थान (भारत) राज्य के करौली जिले का एक क़स्बा है। यहाँ की जनसँख्या 74600 है। मंडरायल के पास के शहरों में सबलगढ़, ग्वालियर, करौली मुख्य रूप से हैं। यहाँ हिन्दी भाषा बोली जाती है। इन्हें भी देखे----- करौली .

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यदुवंश

यदुवंश अथवा यदुवंशी क्षत्रिय शब्द भारत के उस जन-समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है जो स्वयं को प्राचीन राजा यदु का वंशज बताते हैं। तिजारा के खानजादा मुस्लिम भी अपनी उत्पत्ति यदुवंशी यादव से बताते हैं। मैसूर साम्राज्य के हिन्दू राजवंश को भी यादव कुल का वंशज बताया गया है। चूड़ासम राजपूतों को भी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों मे मूल रूप से सिंध प्रांत का आभीर, या सिंध का यादव माना गया है, जो कि 9वीं शताब्दी में गुजरात में आए थे। भारतीय मानव वैज्ञानिक के अनुसार माधुरीपुत्र, ईश्वरसेन व शिवदत्त नामक विख्यात अहीर राजा यदुवंशी है अहीर यादव सब यदुवंशी है .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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सपोटरा

सपोटरा ब्लॉक करौली जिला में आता है। सपोटरा राजस्थान राज्य, भारत के करौली जिले में स्थित एक ग्राम पंचायत है। अक्षांश 26.2941046 और रेखांश 76.7495233 सपोटरा का भौगोलिक स्थान है। जयपुर सपोटरा गांव के लिए राज्य की राजधानी है। यह सपोटरा से लगभग 117.3 किलोमीटर दूर स्थित है। राज्य की अन्य प्रमुख राज्यों में दिल्ली 268.0 किलोमीटर, रायपुर 273.7 किलोमीटर, भोपाल 345.9 किलोमीटर है। करौली जिले का सपोटरा तहसील जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या 208,568 है। इनमें से 112,602 पुरुष हैं जबकि 95,966 महिलाएं हैं। 2011 में सपोटरा तहसील में रहने वाले कुल 39,454 परिवार थे। सपोटरा तहसील का औसत लिंग अनुपात 852 है। जनसंख्या 2011 के अनुसार कुल आबादी में 3.2% लोग शहरी इलाकों में रहते हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में 96.8% लोग रहते हैं। शहरी क्षेत्रों में औसत साक्षरता दर 77.6% है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 61.1% है। इसके अलावा सपोटरा तहसील में शहरी क्षेत्रों का लिंग अनुपात 849 है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 852 है। सपोटरा तहसील में 0-6 साल की उम्र के बच्चों की जनसंख्या 33690 है जो कि कुल आबादी का 16% है। 18149 पुरुष बच्चे और 15541 महिला बच्चे 0-6 साल के बीच हैं। इस प्रकार 2011 की जनगणना के अनुसार सपोटरा तहसील का बाल लिंग अनुपात 856 है जो सपोटरा तहसील की औसत लिंग अनुपात (852) से अधिक है। सपोटरा तहसील की कुल साक्षरता दर 61.66% है। सपोटरा तहसील में पुरुष साक्षरता दर 63.91% है और महिला साक्षरता दर 37.37% है। जातिवार सपोटरा की जनसंख्या का वर्गीकरण l Total पुरुँष स्त्री बच्चे (उम्र 0-6) 33,690 18,149 15,541 साक्षर 61.66% 63.91% 37.37% एससी 47,162 25,394 21,768 एसटी 78,883 42,846 36,037 असाक्षर 100,738 40,633 60,105 धर्मवार सपोटरा की जनसंख्या धर्म कुल पुरुष महिला हिन्दू 202,781 (97.23%) 109,555 93,226 मुस्लिम 5,549 (2.66%) 2,911 2,638 क्रिश्चिन 76 (0.04%) 43 33 सिख 11 (0.01%) 9 2 बुद्ध 2 (0%) 1 1 जैन 47 (0.02%) 23 24 अन्य धर्म 5 (0%) 3 2 कोई धर्म नहीं 97 (0.05%) 57 40 राजस्थान के करौली जिले में सपोटरा एक तहसील है जो भरतपुर डिवीज़न में आती है | सपोटरा तहसील की दूरी करौली जिले से 45 किलोमीटर है | सपोटरा तहसील का पिनकोड 322218 एवं एसटीडी कोड 07465 है | सपोटरा ब्लाक में 34 ग्राम पंचायत है जिनके नाम है.

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सवाई माधोपुर

सवाई माधोपुर भारत के राजस्थान का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह जिला रणथम्‍भौर राष्‍ट्रीय उद्यान के लिए जाना जाता है, जो बाघों के लिए प्रसिद्ध है। सवाई माधोपुर जिले में निम्‍न तहसीलें हैं- गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर, चौथ का बरवाड़ा, बौंली, मलारना डूंगर, वजीरपुर, बामनवास और खण्डार.

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हिण्डौन

हिण्डौन राजस्थान राज्य का ऐतिहासिक व पौराणिक शहर है। यह शहर अरावली पहाड़ी के समीप स्थित है। प्राचीनकाल में हिण्डौन शहर मत्स्य के अंतर्गत आता था। मत्स्य शासन के दौरान बनाए गई प्राचीन इमारतें आज भी मौजूद हैं। भागवतपुराण के अनुसार हिण्डौन, भक्त प्रहलाद व हिरण्यकश्यप की कर्म भूमि रही है। महाभारतकाल की राक्षसी हिडिम्बा भी इसी शहर में रहा करती थी। हिण्डौन, ऐतिहासिक मंदिरों व इमारतों का गढ़ माना जाता है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह एक प्रमुख औद्योगिक नगर है। यह नगर राजस्थान के पूर्व में हिण्डौन उपखण्ड में बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी जयपुर से 156 किलोमीटर पूर्व स्थित है। यह नगर देश में लाल पत्थरों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के बहुत मंदिर यहाँ स्थित है। यह शहर राजस्थान के करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है एवं इस शहर का विधान सभा क्षेत्र हिण्डौन विधानसभा क्षेत्र(राजस्थान) लगता है। यहाँ का नक्कश की देवी - गोमती धाम का मंदिर तथा महावीर जी का मंदिर पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है ! हिण्डौन शहर अरावली पर्वत श़ृंखला की गोद में बसा हुआ क्षेत्र है !यहाँ की आबादी लगभग 1.35 लाख है। अमृत योजना में 151 करोड़ राजस्थान सरकार द्वारा स्वीक्रत किये गये हैं। .

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करौली

करौली राजस्‍थान का ऐतिहासिक नगर है। यह करौली जिला का मुख्यालय है। इसकी स्‍थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भगवान कृष्‍ण के वंशज थे। 1818 में करौली राजपूताना एजेंसी का हिस्‍सा बना। 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक महाराज गणेश पाल देव ने भारत का हिस्‍सा बनने का निश्‍चय किया। 7 अप्रैल 1949 में करौली भारत में शामिल हुआ और राजस्‍थान राज्‍य का हिस्‍सा बना।करौली का सिटी पेलेस राजस्‍थान के प्रमुख पर्यटक स्‍थलों में से एक है। मदन मोहन जी का मंदिर देश-विदेश में बसे श्रृद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। अपने ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली दर्शनीय स्‍थल है। .

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कैलादेवी मेला

चैत्रामास में शक्तिपूजा का विशेष महत्व रहा है। राजस्थान के करौली जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा की ओर 24 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला मैया का दरबार चैत्रामास में लघुकुम्भ नजर आता है। उत्तरी-पूर्वी राजस्थान के चम्बल नदी के बीहडों के नजदीक कैला ग्राम में स्थित मां के दरबार में बारह महीने श्रद्धालु दर्शनार्थ आते रहते हैं लेकिन चैत्रा मास में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में तो जन सैलाब-सा उमड पडता है। उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान में जो कैला ग्राम है वह करौली के यदुवंशी राजाओं के आधिपत्य में आने से पहले गागरोन के खींची राजपूतों के शासन में था। खींची राजा मुकन्ददास ने सन् 1116 में मंदिर की सेवा, सुरक्षा का दायित्व राजकोष पर लेकर नियमित भोग-प्रसाद और ज्योत की व्यवस्था करवा दी थी। राजा रघुदास ने लाल पत्थर से माता का मंदिर बनवाया। स्थानीय करौली रियासत द्वारा उसके बाद नियमित रूप से मंदिर प्रबन्धन का कार्य किया जाता रहा। मां कैलादेवी की मुख्य प्रतिमा के साथ मां चामुण्डा की प्रतिमा भी विराजमान है।       चैत्रामास में लगभग एक पखवाडे तक चलने वाले इस लक्खी मेले में राजस्थान के सभी जिलो  के अलावा उत्तर प्रदेश,  मध्य प्रदेश,  दिल्ली,  हरियाणा,  गुजरात व दक्षिण भारतीय प्रदेशों तक के दर्शनार्थी आकर मां के दरबार में मनौतियां मांगते है। चैत्रामास के दौरान करौली जिले के प्रत्येक मार्ग पर चलने वाले राहगीर के कदम कैला ग्राम की तरफ जा रहे होते है। सत्राह दिवसीय इस मेले का मुख्य आकर्षण प्रथम पांच दिन एवं अंतिम चार दिनों में देखने को मिलता है रोजाना लाखों की संख्या में दूरदराज के पदयात्री लम्बे-लम्बे ध्वज लेकर लांगुरिया गीत गाते हुए आते है। मन्दिर के समीप स्थित कालीसिल नदी में स्नान का भी विशेष महत्व है। मेले में करौली जिला प्रशासन द्वारा मंदिर ट्रस्ट के सहयोग से तथा आमजन द्वारा भी सभी स्थानों पर यात्रियों के लिए विशेष इंतजामात किए जाते है। अनुमानतः प्रतिवर्ष लगभग 30 से 40 लाख यात्री मां के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते है। परम्पराओं का निर्वहन मेले के दौरान महिला यात्री सुहाग के प्रतीक के रूप में हरे रंग की चुडियां एवं सिंन्दूर की खरीदरी करना नहीं भूलती है वहीं नव दम्पत्तियों द्वारा एक साथ दर्शन करना, बच्चों का मुंडन संस्कार की परम्परा भी यहां देखने को मिलती है। मंदिर परिसर में ढोल-नगाडों की धुन पर अनायास ही पुरूष दर्शनार्थी लांगुरिया गीत गाने लगते है तो महिला दर्शकों के कदम थिरके बिना नहीं रह सकते।   चरणबद्द आते है यात्री कैलादेवी चैत्रामास के लक्खी मेले में प्रदेशों की मान्यता अनुसार यात्राी चरणबद्व रूप से आते है। चैत्रा कृष्ण बारह से पडवा तक मेले में पांच दिन तक पद यात्रियों का रेलम-पेल रहता है इस चरण में वाहनों से यात्री कम आते है एवं अधिकतर उत्तरप्रदेश के यात्री होते है। द्वितीय चरण में नवरात्रा स्थापना से तृतीया तक दिल्ली, हरियाणा के यात्रियों का जमावडा रहता है। इस दौरान गाडियों से यात्रियों के आने की शुरूआत हो जाती है। तीसरे चरण में चतुर्थी से छटवीं तक मध्यप्रदेश एवं धौलपुर क्षेत्रा के यात्री आते है। इस दौरान ट्रक्टर ट्रोलियों का उपयोग अधिक देखने को मिलता है। चौथा चरण सप्तमी से नवमीं तक होता है इसमें गुजरात, मुम्बई व दक्षिण भारतीय राज्यों के यात्री अधिक आते है। अन्तिम चरण में राजस्थान भर के यात्राी एवं स्थानीय लोग लांगुरिया गाते हुए आते है। यह दसमीं से पूर्णिमा तक चलता है। मां के अवतरण की गाथा       धर्म ग्रंथों के अनुसार सती के अंग जहां-जहां गिरे वहीं एक शक्तिपीठ का उदगम हुआ। उन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कैलादेवी है। कहा जाता है कि बाबा केदागिरी ने तपस्या के बाद माता के श्रीमुख की स्थापना इस शक्तिपीठ के रूप में की। ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं किवदन्तियों के अनुसार प्राचीनकाल में कालीसिन्ध नदी के तट पर बाबा केदागिरी तपस्या किए करते थे यहां के सघन जंगल में स्थित गिरी -कन्दराओं में एक दानव निवास करता था जिसके कारण संयासी एवं आमजन परेशान थे। बाबा ने इन दैत्यों से क्षेत्रा को मुक्त कराने के लिए हिमलाज पर्वत पर आकर घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हो गई। बाबा ने देवी मां से दैत्यों से अभय पाने के लिए वर मांगा। बाबा केदारगिरी त्रिकूट पर्वत पर आकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात देवी मां कैला ग्राम में प्रकट हुई और उस दानव का कालीसिन्ध नदी के तट पर वध किया। जहां एक बडे पाषाण पर आज भी दानव के पैरों के चिन्ह देखने को मिलते है। इस स्थान का नाम आज भी दानवदह के नाम से जाना जाता है।       एक अन्य किवदन्ती के अनुसार त्रिकूट पर्वत पर बहूरा नामक चरवाहा अपने पशुओं को चराने ले जाता था एक दिन उसने देखा की उसकी बकरियां एक स्थान विशेष पर दुग्ध सृवित कर रही है इस चमत्कार ने उसे आश्चर्य मेें डाल दिया। उसने इस स्थल की खुदाई की तो देवी मां की प्रतिमा निकली। चरवाहे ने भक्तिपूर्वक पूजन कर ज्योति जगाई धीरे-धीरे प्रतिमा की ख्याति क्षेत्रा में फैल गई। आज भी बहूरा भगत का मंदिर कैलादेवी मुख्य मंदिर प्रांगण में स्थित है। कैसे पहुंचे      कैलादेवी कस्बा सडक मार्ग से सीधा जुडा हुआ है। जयपुर -आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर महुवा से कैलादेवी की दूरी 95 किमी है। महुवा से हिण्डौन, करौली तक राज्यमार्ग 22 जाता है, उससे कैलादेवी सीधा सडक मार्ग से जुडा हुआ है इसके अलावा पश्चिमी मध्य रेलवे के दिल्ली- मुंबई रेलमार्ग पर हिण्डौन सिटी स्टेशन से  55 किमी एवं गंगापुर सिटी स्टेशन से  48 किमी की दूरी है जहां से राज्य पथ परिवहन की बस सेवा एवं निजी टैक्सी गाडियां हमेशा तैयार मिलती है। हवाई यात्रा से आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर है जहां से सडक मार्ग द्वारा महवा हिण्डौन होकर करौली से कैलादेवी पहुंच सकते है। कैलादेवी की जयपुर से दूरी 195 किमी है।.

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