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उच्चारण स्थान

सूची उच्चारण स्थान

मानव द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने वाले प्रमुख अंगों का विवरण 1. बाह्योष्ठ्य (exo-labial) 2. अन्तःओष्ठ्य (endo-labial)3. दन्त्य (dental) 4. वर्त्स्य (alveolar) 5. post-alveolar6. prä-palatal 7. तालव्य (palatal)8. मृदुतालव्य (velar)9. अलिजिह्वीय (uvular)10. ग्रसनी से (pharyngal) 11. श्वासद्वारीय (glottal)12. उपजिह्वीय (epiglottal)13. जिह्वामूलीय (Radical)14. पश्चपृष्ठीय (postero-dorsal)15. अग्रपृष्ठीय (antero-dorsal) 16. जिह्वापाग्रीय (laminal)17. जिह्वाग्रीय (apical)18. sub-laminal स्वनविज्ञान के सन्दर्भ में, मुख गुहा के उन 'लगभग अचल' स्थानों को उच्चारण बुन्दु (articulation point या place of articulation) कहते हैं जिनको 'चल वस्तुएँ' छूकर जब ध्वनि मार्ग में बाधा डालती हैं तो उन व्यंजनों का उच्चारण होता है। उत्पन्न व्यंजन की विशिष्ट प्रकृति मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करती है- उच्चारण स्थान, उच्चारण विधि और स्वनन (फोनेशन)। मुख गुहा में 'अचल उच्चारक' मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि 'चल उच्चारक' मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) हैं। व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में हवा अबाध गति से न निकलकर मुख के किसी भाग (तालु, मूर्धा, दांत, ओष्ठ आदि) से या तो पूर्ण अवरूद्ध होकर आगे बढ़ती है या संकीर्ण मार्ग से घर्षण करते हुए या पार्श्व से निकले। इस प्रकार वायु मार्ग में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध उपस्थित होता है। .

8 संबंधों: ध्वनि, मानव मुख, स्वनविज्ञान, हिन्दी, हिंदी स्वरविज्ञान, वर्ण विभाग, अनुस्वार, उच्चारण

ध्वनि

ड्रम की झिल्ली में कंपन पैदा होता होता जो जो हवा के सम्पर्क में आकर ध्वनि तरंगें पैदा करती है मानव एवं अन्य जन्तु ध्वनि को कैसे सुनते हैं? -- ('''नीला''': ध्वनि तरंग, '''लाल''': कान का पर्दा, '''पीला''': कान की वह मेकेनिज्म जो ध्वनि को संकेतों में बदल देती है। '''हरा''': श्रवण तंत्रिकाएँ, '''नीललोहित''' (पर्पल): ध्वनि संकेत का आवृति स्पेक्ट्रम, '''नारंगी''': तंत्रिका में गया संकेत) ध्वनि (Sound) एक प्रकार का कम्पन या विक्षोभ है जो किसी ठोस, द्रव या गैस से होकर संचारित होती है। किन्तु मुख्य रूप से उन कम्पनों को ही ध्वनि कहते हैं जो मानव के कान (Ear) से सुनायी पडती हैं। .

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मानव मुख

मानव मुख के अन्दर मानव शरीररचना के सन्दर्भ में मुख, पोषण नाल का प्रथम अंग है।.

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स्वनविज्ञान

स्वानिकी या स्वनविज्ञान (Phonetics), भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत मानव द्वारा बोली जाने वाली ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है। यह बोली जाने वाली ध्वनियों के भौतिक गुण, उनके शारीरिक उत्पादन, श्रवण ग्रहण और तंत्रिका-शारीरिक बोध की प्रक्रियाओं से संबंधित है। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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हिंदी स्वरविज्ञान

स्पर्श: हिन्दी में (प्रकार्यात्मक स्तर पर महत्त्वपूर्ण) १६ स्पर्श व्यंजन स्वनिम के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। चार द्वयोष्ठ्य स्पर्श व्यंजन हैं जिनमें घोषत्व एवं प्राणत्व जैसे दो स्वनिमिक अभिलक्षणों द्वारा चार द्वयोष्ठ्य स्पर्श स्वनिम प्राप्त होते हैं - इन चारो के लिए प्रयुक्त देवनागरी वर्णमाला के चार वर्ण यहां दिए गए हैं। इसी प्रकार के अन्य तीन स्पर्श व्यंजन वर्ग हैं - दंत्य (त, द, थ, ध) मूर्धन्य (ट, ड, ठ, ढ) और कंठ्य (क, ग, ख, घ) तालव्य ध्वनियों का ऐसा ही व्यंजन वर्ग स्पर्श-संघर्षी व्यंजन ध्वनियों के अंतर्गत आता है यद्यपि इसे भी कुछ भाषाविदों ने स्पर्श ध्वनियों के साथ रखा है। ये व्यंजन स्वनिम हैं (च, ज, छ, झ)। संघर्षी - व्यंजन ध्वनियों में तीन स्वनिम हैं: दंत्य / वर्त्स्य ध्वनि /स्/ के लिए "वर्ण" प्रयोग किया जाता है तो /ह्/ के लिए 'ह' वर्ण प्रयुक्त होता है /स्~/ का उच्चारण हिन्दी भाषा के विकास की धारा में किसी स्तर पर दो अलग-अलग रूपों में किया जाता था अर्थात् तालव्य /स्~/ एवं मूर्धन्य /स्/ दो अलग स्वनिम माने जाते थे और इन दो के लिए दो वर्ण भी प्रयोग किए जाते थे - श-तालव्य एवं-मूर्धन्य जो कि आज भी देवनागरी लिपि में ज्यों के त्यों प्रयोग होते हैं परन्तु आज इन दोनों में ध्वनि स्तर पर अधिक अन्तर नहीं रह गया है, केवल तालव्य संघर्षी व्यंजन स्वनिम /स्~/ जिसका रूप मूर्धन्य ध्वनियों के साथ तालव्य न रहकर मूर्धन्य हो जाता है। जैसे कष्ट, नष्ट। दृष्टि आदि शब्दों में मूर्धन्य "ट"से पहले। इसीलिए इन्हें एक ही स्वनिम के दो उपस्वन मानना अनुचित न होगा। इसके अतिरिक्त चार संघर्षी ध्वनियां अरबी फारसी शब्दों के माध्यम से हिन्दी में आकर अब हिन्दी की ध्वनि व्यवस्था का अंग बन चुकी हैं। ये ध्वनियां हैं - फ़ द्वयोष्ठ्य संघर्षी व्यंजन स्वनिम /ं/, ज़ जो कि दंत्य ध्वनि स का ही सघोष रूप है /ॅ/ और कंठ्य ध्वनियां ख़ /द्/ अघोष कंठ्य संघर्षी और इसी का सघोष ध्वनि रूप ग़। नासिक्य - देवनागरी वर्णमाला में हमें प्रत्येक स्पर्श अथवा स्पर्श-संघर्षी व्यंजन वर्ग के अंत में एक नासिक्य व्यंजन वर्ण भी मिलता है जैसे कंठ्य ध्वनियों के साथ अ कंठ्य नासिक्य ध्वनि है तो मूर्धन्य ध्वनियों के साथ ण, मूर्धन्य नासिक्य है, तालव्य ध्वनियों के साथ ञ, तालव्य नासिक्य है और दंत्य एवं द्वयोष्ठ्य नासिक्य के साथ न एवं म, क्रमशः दंत्य नासिक्य एवं द्वयोष्ठ्य नासिक्य /म्/ लिखा जाता है। प्रकार्य की दृष्टि से देखा जाए तो अ एवं ञ़्अ कंठ्य एवं तालव्य नासिक्य व्यंजन केवल "न" नासिक्य के उपस्वनों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं जबकि म, न, ण का स्वतंत्र स्वनिमों के रूप में प्रयोग होता है। अर्थात् म-न-ण अर्थभेद प्रकार्य करने वाली नासिक्य ध्वनियां हैं जब कि अ एवं ञ, न नासिक्य के साथ परिपूरक वितरण में मिलती हैं - न का उच्चारण कंठ्य ध्वनियों के पूर्व कंठ्य नासिक्य अ के रूप में होता है तो तालव्य ध्वनियों के पूर्व तालव्य नासिक्य ञ ध्वनि के रूप में होता है। पार्श्विक एवं लुंठित ध्वनियां - ये ध्वनियां क्रमशः /ई/ एवं /र्/ दोनों हिन्दी के दो स्वतन्त्र स्वनिम हैं जिनके लिए देवनागरी लिपि मे ल एवं र लिपि चिन्हों का प्रयोग होता है। लुंठित ध्वनि के साथ व्यतिरेक दिखाते हुए उत्क्षिप्त ध्वनियां ड़ /र्/ एवं इसका महाप्राण रूप ढ़ /र्ह्/ भी दो भिन्न स्वनिम हैं। ये दोनों ध्वनियां और मूर्धन्य नासिक्य व्यंजन ण शब्दों के शुरू में प्रयोग नहीं किए जाते। इन व्यंजन ध्वनियों के अतिरिक्त हिन्दी में दो अर्धस्वर /य्/ एवं /त्/ भी है जिनके लिए क्रमशः य एवं व लिपि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। य एक स्वनिम है और ब स्वनिम के उपस्वनों के रूप में एक ओर दंत्योष्ठ्य संघर्षी, सघोष ध्वनि है तो दूसरी ओर द्वयोष्ठ्य अर्धस्वर है जिन्हें उपस्वनों के रूप में इस प्रकार दिखाया जा सकता है । श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:भाषा स्वरविज्ञान.

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वर्ण विभाग

हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी इकाई "'ध्वनि"' या वर्ण कहलाती है। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। .

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अनुस्वार

अनुस्वार एक उच्चारण की मात्रा है जो अधिकांश भारतीय लिपियों में प्रयुक्त होती है। इससे अक्सर ं जैसी ध्वनि नाक के द्वारा निकाली जाती है, अतः इसे नसिक या अनुनासिक कहते हैं। इसको कभी-कभी म (और अन्य) अक्षरों द्वारा भी लिखते हैं। जैसे: कंबल ~ कम्बल; इंफाल ~ इम्फाल इत्यादि। देवनागरी में इसे, उदाहरण-स्वरूप क पर लगाने से कं लिखा जाता है। .

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उच्चारण

1. नासिका (नाक); 2. ओष्ठ (ओठ); 3. दन्त; 4. तालु; 5. जिस प्रकार से कोई शब्द बोला जाता है; या कोई भाषा बोली जाती है; या कोई व्यक्ति किसी शब्द को बोलता है; उसे उसका उच्चारण (pronunciation)" कहते हैं। भाषाविज्ञान में उच्चारण के शास्त्रीय अध्ययन को ध्वनिविज्ञान की संज्ञा दी जाती है। भाषा के उच्चारण की ओर तभी ध्यान जाता है जब उसमें कोई असाधारणता होती है, जैसे.

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