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आदिनूतन युग

सूची आदिनूतन युग

आदिनूतन युग (Eocene Period) से स्तर-शैल-विज्ञान में एक नया कल्प आरंभ होता है, जो 'तृतीय कल्प' के नाम से विख्यात है। खटीयुग (Cretaceous Period) के अपराह्न में समस्त पृथ्वी पर समुद्री अतिक्रमण और भूसंचलन के फलस्वरूप पृथ्वी की समाकृति में अनेकानेक परिवर्तन हुए। जीव एवं वनस्पति जगत्‌ में भी अत्यधिक परिवर्तन हुए। खटीयुग के जीव एमोन्वायड्स, रेंगनेवाले जीव प्राय: लुप्त हो गए और उसके और उनके स्थान पर नए जीवों का प्रादुर्भाव हुआ। इस नवीन युग के अरीढ़धारियों में फोरामिनिफेरा और रीढ़धारियों में स्तनधारी वर्ग के जीवों का स्थान विशेष है। आदिनूतन युग तृतीय काल का सर्वप्रथम युग है। इसका समय आज से लगभग छह करोड़ वर्ष पहले माना जाता है। इस युग के निचले भाग को पुरानूतनयुग (Palaeocene Period) कहते हैं, यद्यपि यह वर्गीकरण सारे संसार के स्तर-शैल-विज्ञान में नहीं माना जाता। .

1 संबंध: तृतीय कल्प

तृतीय कल्प

तृतीय कल्प (Tertiary) पृथ्वी के भौमिकीय इतिहास से सम्बन्धित पुराना शब्द है किन्तु अब भी बहुत से लोग इसका प्रयोग करते हैं। यह पृथ्वी के भौमिकीय इतिहास का अंतिम प्रकरण हैं। मध्यजीव महाकल्प (Mesozoc era) का अंत खटीयुग या क्रिटेशस युग के पश्चात्‌ हो गया। यूरोप में खटीयुग के बाद भौमिकीय इतिहास में एक विषम विन्यास (Unconformity) आता है, जिससे यह विदित होता है कि इस युग का अंत हो चुका था। भारत में यद्यपि खटीयुग के पश्चात्‌ ऐसा कोई विषम विन्यास नहीं मिलता, फिर भी अन्य लक्ष्ण इतने पर्याप्त हैं कि उनके आधार पर यह प्राय: विदित हो जाता है कि मध्यजीव महाकल्प समाप्त हो चला था। मध्यजीव महाकल्प के जीव एवं वनस्पति शनै: शनै: लुप्त हो गए और उनका स्थान नवीन श्रेणी के जीवों ने ले लिया। ऐमोनाइडिया वर्ग (Ammonoidea) और वेलेमनिटिडी (Belemnitidae) कुल का ह्रास हो गया। रेंगनेवाले जीव, जिनकी प्रधानता पूरे मध्यजीव महाकल्प में रही, अब प्राय: विलुप्त हो गए। इस काल की वनस्पति भी बदलने लगी और अनेक पौधे, जिनका पहले बाहुल्य था अब समाप्त हो गए। जीवों एवं वनस्पतियों में इतना परिवर्तन एक नए युग के आगमन की सूचना देने लगा। जीवविकास के इतिहास में एक नया प्रकरण आरंभ हो गया। स्तनधारी जीवों ने अब मध्यजीव महाकल्प के रेंगनेवाले जीवों का स्थान ले लिया और धीरे धीरे उनकी प्रधानता सारे संसार के अन्य जीवों में हो गई। वनस्पति में फूलनेवाले पौधों की बहुलता हो गई। इन परिवर्तनों के साथ साथ भूपटल पर इतने अधिक परिवर्तन हुए कि मध्यजीव महाकल्प के समय की पृथ्वी की आकृति का पूरा कायापलट हो गया। यूरोप में आल्पस और एशिया में हिमालय ने अपनी प्रधानता जमा ली और मध्यजीव महाकल्प के भूमध्यसागर का अंत हो गया। इस प्रकार भौमकीय इतिहास में तृतीय कल्प का विशेष स्थान है, क्योंकि इसी युग में भारत की वर्तमान सीमाओं का विस्थापन हुआ। उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का अब जाकर अपने वर्तमान रूपाकर में निरूपण हुआ। .

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