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हिन्द स्वराज

सूची हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज, गांधीजी द्वारा रचित एक पुस्तक का नाम है। मूल रचना सन १९०९ में गुजराती में थी। यह लगभग तीस हजार शब्दों की लघु पुस्तिका है जिसे गाँधीजी ने अपनी इंग्लैण्ड से दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के समय पानी के जहाज में लिखी। यह इण्डियन ओपिनिअन में सबसे पहले प्रकाशित हुई जिसे भारत में अंग्रेजों ने यह कहते हुए प्रतिबन्धित कर दिया कि इसमें राजद्रोह-घोषित सामग्री है। इस पर गांधीजी ने इसका अंग्रेजी अनुवाद भी निकाला ताकि बताया जा सके कि इसकी सामग्री राजद्रोहात्मक नहीं है। अन्ततः २१ दिसम्बर सन १९३८ को इससे प्रतिबन्ध हटा लिया गया। हिन्द स्वराज का हिंदी और संस्कृत सहित कई भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है। संस्कृत अनुवाद डॉ प्रवीण पंड्या ने किया। हिंद स्वराज में गहरा सभ्यता विमर्श है। .

4 संबंधों: नवजीवन ट्रस्ट, भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन, राम प्रसाद 'बिस्मिल', गुजरात विद्यापीठ

नवजीवन ट्रस्ट

'लोकमान्य का स्वर्गवास' शीर्षक से नवजीवन का मुख्य समाचार नवजीवन ट्रस्ट भारत के अहमदाबाद (गुजरात) स्थित पुस्तकों के प्रकाशक हैं। इसकी स्थापना सन १९२९ में महात्मा गांधी ने की थी। नवजीवन ने अब तक हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में कोई ८०० पुस्तकें प्रकाशित की है। अभी हाल में ही (दिसम्बर २००८) इन पुस्तकों से नवजीवन ट्रस्ट का कॉपीराइट समाप्त हुआ है। .

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भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन

महान क्रान्तिकारी '''यतीन्द्रनाथ मुखर्जी'' भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1757 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत (यतीन्द्रनाथ मुखर्जी)की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितांत अभाव हो गया है। क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। श्रीकृष्ण सरल का मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है। जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार हमारी मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1757 से सन् 1961 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए। भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया गया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया। स्वराज्य उपरांत यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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गुजरात विद्यापीठ

गुजरात विद्यापीठ का प्रतीक चिह्न गुजरात विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने १८ अक्टूबर सन् १९२० में की थी। यह गुजरात के अहमदाबाद नगर में स्थित है। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारतीय युवकों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना था। गंधीजी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि मैकाले द्वारा रची गयी ब्रिटेन की औपनिवेशिक शिक्षा नीति का उद्देश्य दमनकारी ब्रिटिश साम्राज्य के लिये मानव संसाधन (क्लर्क?) तैयार करना है। उस शिक्षा नीति के विरुद्ध गांधीजी ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण व हिन्द स्वराज के लिये युवकों को तैयार करने के उद्देश्य से इस विद्यापीठ की स्थापना की। गांधीजी आजीवन इसके कुलाधिपति रहे। प्राध्यापक ए टी गिडवानी इसके प्रथम उपकुलपति रहे। गांधीजी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल, डा राजेन्द्र प्रसाद, मोरार जी देसाई आदि ने इसके कुलपति पद को सुशोभित किया। सन् १९६३ में भारत सरकार ने इसे मानद विश्वविद्यालय का दर्जा दिया। .

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