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वर्गिकी

सूची वर्गिकी

300px मूलतः जीव-जन्तुओं के वर्गीकरण को वर्गिकी (टैक्सोनॉमी) या 'वर्गीकरण विज्ञान' कहते थे। किन्तु आजकल इसे व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता है और जीव-जन्तुओं के वर्गीकरण सहित इसे ज्ञान के विविध क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जाता है। अतः वस्तुओं व सिद्धान्तों (और लगभग किसी भी चीज) का भी वर्गीकरण किया जा सकता है। 'वर्गिकी' शब्द दो अर्थो में प्रयुक्त होता है -.

13 संबंधों: डेंड्रोग्रामा, निम्बू-वंश, प्राणिविज्ञान, पृथ्वी का इतिहास, बाल यौन शोषण (पीडोफीलिया), भू-आकृति विज्ञान, हर्बलिज्म (जड़ी-बूटी चिकित्सा), जानकी अम्माल, जीव विज्ञान, जीववैज्ञानिक वर्गीकरण, कार्ल लीनियस, किंगफिशर, क्रिप्टोगैम

डेंड्रोग्रामा

डेंड्रोग्रामा (अंग्रेजी: Dendrogramma) एक वर्गिक वंश है जिसके अंतर्गत दो प्रजातियां डी.एनिग्मैटिका और डी.

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निम्बू-वंश

निम्बू-वंश एक पादप वंश है, जो रुटेसी (Rutaceae) कुल के पुष्पीय पादपों का वंश है। इनकी उत्पत्ति दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में हुई है। इस वंश की वर्गिकी और क्रमबद्धता जटिल है और इसकी प्राकृतिक प्रजातियों की सटीक संख्या अस्पष्ट है, क्योंकि कई ज्ञात प्रजातियां कृंतकीय रूप से विकसित संकर प्रजाति हैं और इस बात के आनुवंशिक साक्ष्य हैं कि कुछ जंगली, विशुद्ध-प्रजनित वास्तव मे संकर, मूल की हैं। निम्बू-वंश के कृषि योग्य फल मूलतः चार पैतृक प्रजातियों से संबंधित हैं। वाणिज्यिक रूप से कृषि योग्य प्राकृतिक और मूल संकर प्रजातियों मे महत्वपूर्ण फल हैं, संतरा, चकोतरा, नीबू, नारंगी और किन्नू। .

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प्राणिविज्ञान

200px प्राणिविज्ञान या जन्तुविज्ञान (en:Zoology) (जीवविज्ञान की शाखा है जो जन्तुओं और उनके जीवन, शरीर, विकास और वर्गीकरण (classification) से सम्बन्धित होती है। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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बाल यौन शोषण (पीडोफीलिया)

एक चिकित्सा निदान के रूप में, बाल यौन शोषण पीडोफिलिया (या पेडोफिलिया), को आमतौर पर वयस्कों या बड़े उम्र के किशोरों (16 या उससे अधिक उम्र) में मानसिक विकार के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो गैर-किशोर बच्चों (आमतौर पर 13 साल या उससे कम उम्र, हालांकि किशोरवय का समय भिन्न हो सकता है) के प्रति प्राथमिक या विशेष यौन रूचि द्वारा चरितार्थ होता है। 16 या उससे अधिक उम्र के किशोर शोषकों के मामले में बच्चे को कम से कम पांच साल छोटा होना चाहिए.

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भू-आकृति विज्ञान

धरती की सतह भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) (ग्रीक: γῆ, ge, "पृथ्वी"; μορφή, morfé, "आकृति"; और λόγος, लोगोस, "अध्ययन") भू-आकृतियों और उनको आकार देने वाली प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है; तथा अधिक व्यापक रूप में, उन प्रक्रियाओं का अध्ययन है जो किसी भी ग्रह के उच्चावच और स्थलरूपों को नियंत्रित करती हैं। भू-आकृति वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करते हैं कि भू-दृश्य जैसे दिखते हैं वैसा दिखने के पीछे कारण क्या है, वे भू-आकृतियों के इतिहास और उनकी गतिकी को जानने का प्रयास करते हैं और भूमि अवलोकन, भौतिक परीक्षण और संख्यात्मक मॉडलिंग के एक संयोजन के माध्यम से भविष्य के बदलावों का पूर्वानुमान करते हैं। भू-आकृति विज्ञान का अध्ययन भूगोल, भूविज्ञान, भूगणित, इंजीनियरिंग भूविज्ञान, पुरातत्व और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में किया जाता है और रूचि का यह व्यापक आधार इस विषय के तहत अनुसंधान शैली और रुचियों की व्यापक विविधता को उत्पन्न करता है। पृथ्वी की सतह, प्राकृतिक और मानवोद्भव विज्ञान सम्बन्धी प्रक्रियाओं के संयोजन की प्रतिक्रिया स्वरूप विकास करती है और सामग्री जोड़ने वाली और उसे हटाने वाली प्रक्रियाओं के बीच संतुलन के साथ जवाब देती है। ऐसी प्रक्रियाएं स्थान और समय के विभिन्न पैमानों पर कार्य कर सकती हैं। सर्वाधिक व्यापक पैमाने पर, भू-दृश्य का निर्माण विवर्तनिक उत्थान और ज्वालामुखी के माध्यम से होता है। अनाच्छादन, कटाव और व्यापक बर्बादी से होता है, जो ऐसे तलछट का निर्माण करता है जिसका परिवहन और जमाव भू-दृश्य के भीतर या तट से दूर कहीं अन्य स्थान पर हो जाता है। उत्तरोत्तर छोटे पैमाने पर, इसी तरह की अवधारणा लागू होती है, जहां इकाई भू-आकृतियां योगशील (विवर्तनिक या तलछटी) और घटाव प्रक्रियाओं (कटाव) के संतुलन के जवाब में विकसित होती हैं। आधुनिक भू-आकृति विज्ञान, किसी ग्रह के सतह पर सामग्री के प्रवाह के अपसरण का अध्ययन है और इसलिए तलछट विज्ञान के साथ निकट रूप से संबद्ध है, जिसे समान रूप से उस प्रवाह के अभिसरण के रूप में देखा जा सकता है। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं विवर्तनिकी, जलवायु, पारिस्थितिकी, और मानव गतिविधियों से प्रभावित होती हैं और समान रूप से इनमें से कई कारक धरती की सतह पर चल रहे विकास से प्रभावित हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, आइसोस्टेसी या पर्वतीय वर्षण के माध्यम से। कई भू-आकृति विज्ञानी, भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की मध्यस्थता वाले जलवायु और विवर्तनिकी के बीच प्रतिपुष्टि की संभावना में विशेष रुचि लेते हैं। भू-आकृति विज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग में शामिल है संकट आकलन जिसमें शामिल है भूस्खलन पूर्वानुमान और शमन, नदी नियंत्रण और पुनर्स्थापना और तटीय संरक्षण। .

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हर्बलिज्म (जड़ी-बूटी चिकित्सा)

हर्बलिज्म अर्थात जड़ी-बूटी संबंधी सिद्धांत, वनस्पतियों और वनस्पति सारों के उपयोग पर आधारित एक पारंपरिक औषधीय या लोक दवा का अभ्यास है। हर्बलिज्म को वनस्पतिक दवा, चिकित्सकीय वैद्यकी, जड़ी-बूटी औषध, वनस्पति शास्त्र और पादपोपचार के रूप में भी जाना जाता है। जड़ी-बूटी या वानस्पतिक दवा में कभी-कभी फफुंदीय या कवकीय तथा मधुमक्खी उत्पादों, साथ ही खनिज, शंख-सीप और कुछ प्राणी अंगों को भी शामिल कर लिया जाता है। प्राकृतिक स्रोतों से व्युत्पन्न दवाओं के अध्ययन को भेषज-अभिज्ञान (Pharmacognosy) कहते हैं। दवाओं के पारंपरिक उपयोग को संभावित भावी दवाओं के बारे में सीखने के एक मार्ग के रूप में मान्यता मिली हुई है। 2001 में, शोधकर्ताओं ने मुख्यधारा की दवा के रूप में उपयोग किये जाने वाले ऐसे 122 यौगिकों की पहचान की जिनकी व्युत्पत्ति "एथनोमेडिकल" (नृजाति-चिकित्सा) वनस्पति स्रोतों से हुआ था; इन यौगिकों का 80% उसी या संबंधित तरीके से पारंपरिक नृजाति-चिकित्सा के रूप में उपयोग होता रहा था। अनेक वनस्पतियां ऐसे सार तत्वों का संश्लेषण करती हैं जो मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य के रखरखाव के लिए उपयोगी होते हैं। इनमें सुरभित सार शामिल हैं, जिनके अधिकांश फिनोल (कार्बोनिक एसिड) या उनके ऑक्सीजन-स्थानापन्न व्युत्पादित, जैसे कि टैनिन (वृक्ष की छाल का क्षार), होते हैं। अनेक गौण चयापचयी होते हैं, जिनमे से कम से कम 12,000 अलग-थलग कर दिए गये हैं - अनुमान के अनुसार यह संख्या कुल का 10% से भी कम है। कई मामलों में, एल्कालोइड्स जैसे सार पदार्थ सूक्ष्म जीवों, कीड़े-मकोड़ों और शाकाहारी प्राणियों की लूट-खसोट से पेड़-पौधे के सुरक्षा तंत्र के रूप में काम करते हैं। भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए मनुष्य द्वारा उपयोग में लाये जाने वाली अनेक जड़ी-बूटी और मसालों में उपयोगी औषधीय यौगिक हुआ करते हैं। डॉक्टर के नुस्खे की दवा की ही तरह, अनेक जड़ी-बूटियों के प्रतिकूल प्रभाव की संभावना रहती है।तलालय पी.

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जानकी अम्माल

एडावलेठ कक्कट जानकी अम्माल (Edavaleth Kakkat Janaki Ammal) (१८९७-१९८४) भारत की एक महिला वैज्ञानिक थीं। अम्माल एक ख्यातिनाम वनस्पति और कोशिका वैज्ञानिक थीं जिन्होंने आनुवांशिकी, उद्विकास, वानस्पतिक भूगोल और नृजातीय वानस्पतिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। पद्म श्री से सम्मानित जानकी अम्माल भारतीय विज्ञान अकादमी की संस्थापक फेलो रहीं हैं। .

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जीव विज्ञान

जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.

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जीववैज्ञानिक वर्गीकरण

जीवजगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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कार्ल लीनियस

कार्ल लीनियस (लैटिन: Carolus Linnaeus) या कार्ल वॉन लिने (२३ मई १७०७ - १० जनवरी १७७८) एक स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री, चिकित्सक और जीव विज्ञानी थे, जिन्होने द्विपद नामकरण की आधुनिक अवधारणा की नींव रखी थी। इन्हें आधुनिक वर्गिकी (वर्गीकरण) के पिता के रूप में जाना जाता है साथ ही यह आधुनिक पारिस्थितिकी के प्रणेताओं मे से भी एक हैं। .

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किंगफिशर

किंगफिशर कोरासीफोर्म्स वर्ग के छोटे से मध्यम आकार के चमकीले रंग के पंक्षियों का एक समूह है। इनका एक सर्वव्यापी वितरण है जिनमें से ज्यादातर प्रजातियाँ ओल्ड वर्ल्ड और ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। इस समूह को या तो एक एकल परिवार एल्सिडिनिडी के रूप में या फिर उपवर्ग एल्सिडाइन्स में माना जाता है जिनमें तीन परिवार शामिल हैं, एल्सिडिनिडी (नदीय किंगफिशर), हैल्सियोनिडी (वृक्षीय किंगफिशर) और सेरीलिडी जलीय किंगफिशर). किंगफिशर की लगभग 90 प्रजातियां हैं। सभी के बड़े सिर, लंबे, तेज, नुकीले चोंच, छोटे पैर और ठूंठदार पूंछ हैं। अधिकांश प्रजातियों के पास चमकीले पंख हैं जिनमें अलग-अलग लिंगों के बीच थोड़ा अंतर है। अधिकांश प्रजातियां वितरण के लिहाज से उष्णकटिबंधीय हैं और एक मामूली बड़ी संख्या में केवल जंगलों में पायी जाती हैं। ये एक व्यापक रेंज के शिकार और मछली खाते हैं, जिन्हें आम तौर पर एक ऊंचे स्थान से झपट्टा मारकर पकड़ा जाता है। अपने वर्ग के अन्य सदस्यों की तरह ये खाली जगहों में घोंसला बनाते हैं, जो आम तौर पर जमीन पर प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से बने किनारों में खोदे गए सुरंगों में होते हैं। कुछ प्रजातियों, मुख्यतः द्वीपीय स्वरूपों के विलुप्त होने का खतरा बताया जाता है। .

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क्रिप्टोगैम

क्रिप्टोगैम (cryptogam; वैज्ञानिक नाम: Cryptogamae) उन पादपों (व्यापक अर्थ में, साधारण अर्थ में नहीं) को कहते हैं जिनमें प्रजनन बीजाणुओं (spores) की सहायता से होता है। ग्रीक भाषा में 'क्रिप्टोज' का अर्थ 'गुप्त' तथा 'गैमीन' का अर्थ 'विवाह करना' है। अर्थात् क्रिप्टोगैम पादपों में बीज उत्पन्न नहीं होता। क्रिप्टोगैम को कभी-कभी 'थैलोफाइटा', 'निम्न पादम' (lower plants), तथा 'बीजाणु पादप' (spore plants) आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। क्रिप्टोगैम समूह पुष्पोद्भिद (Phanerogamae या Spermatophyta) समूह के 'विलोम समूह' है। क्रिप्टोगैम में शैवाल (algae), लाइकेन (lichens), मॉस (mosses) और फर्न (ferns) आते हैं। एक समय क्रिप्टोगैम को पादप जगत में एक समूह के रूप में मान्यता थी। कार्ल लिनियस ने पादपों के अपने वर्गीकरण में सम्पूर्ण पादप जगत को २४ वर्गों में बाँटा था जिसमें से एक 'क्रिप्टोगैमिया' था जिसको पुनः चार गणों में विभाजित किया गया था - शैवाल, मस्सी (Musci) या ब्रायोफाइट, फिलिसेस या फर्न तथा कवक। आधुनिक वर्गिकी ने क्रिप्टोगैम को पादप जगत में स्थान नहीं दिया है क्योंकि समझा गया कि क्रिप्टोगैम कई असंगत समूहो का जमघट मात्र है। वर्तमान वर्गिकी के अनुसार क्रिप्टोगैम में आने वाले केवल कुछ पादपों को ही पादप जगत में स्थान दिया गया है, सभी को नहीं। विशेषतः कवक (फंजाई) को एक अलग जगत के रूप में स्वीकार किया गया है और उन्हें पादपों के बजाय जन्तुओं का निकट सम्बन्धी माना जाता है। इसी प्रकार कुछ शैवालों को अब जीवाणुओं का सम्बन्धी मान लिया गया है। .

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