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लोहार

सूची लोहार

लोहार का काम उस व्यक्ति को लोहार कहते हैं जो लोहा या इस्पात का उपयोग करके विभिन्न वस्तुएँ बनाता है। हथौड़ा, छेनी, भाथी (धौंकनी) आदि औजारों का पयोग करके लोहार फाटक, ग्रिल, रेलिंग, खेती के औजार, कुछ बर्तन एवं हथियार आदि बनाता है। भारत में लोहार एक प्रमुख व्यावसायिक जाति है। .

17 संबंधों: टेम्परिंग, एबर्गावेनी, तिलोकपुर, पालिया, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, बढ़ई, बाण, बेंजामिन फ्रैंकलिन, श्रम का विभाजन, सायकिल, सारसण्डा, विश्वकर्मा (जाति), वेल्डिंग, गाँव, कप्तान जैक स्पैरो, कूका

टेम्परिंग

टेम्परिंग धातुओं, मिश्र धातुओं और कांच को गर्म करने की एक तकनीक है। इस्पात (steel) में, धातु को अधिक "मजबूत" बनाने के लिए टेम्परिंग की जाती है, इसके लिए भंगुर मार्टेंसाईट या बाइनाईट को फेराईट और सीमेन्टाईट के संयोजन में और कभी कभी टेम्पर्ड मार्टेंसाईट में बदल दिया जाता है। अवक्षेपण के द्वारा सख्त किये जाने वाले मिश्रधातु जैसे, एल्युमिनियम और सुपर मिश्र धातुओं की कई श्रेणियों को, अंतरधात्विक कणों के अवक्षेपण के लिए टेम्पर किया जाता है, जिससे धातु अधिक मजबूत बन जाती है। टेम्परिंग के लिए पदार्थ को इसके निम्न जटिल तापमान (critical temperature) से कम ताप पर नियंत्रित रूप से पुनः गर्म किया जाता है। भंगुर मार्टेंसाईट टेम्पर किये जाने के बाद अधिक सख्त और लचीला (ductile अर्थात अब इसे खींच कर लम्बी तारों में बदला जा सकता है) हो जाता है। कार्बन परमाणुओं को जब तेजी से ठंडा किया जाता है, वे ऑसटेंटाइन में फंस जाते हैं, आमतौर पर तेल या पानी के साथ मार्टेंसाईट बनाते हैं। मार्टेंसाईट टेम्पर किये जाने के बाद मजबूत बन जाता है क्योंकि जब इसे पुनः गर्म किया जाता है, इसकी सूक्ष्म संरचना पुनर्व्यवस्थित हो जाती है और कार्बन परमाणु विकृत काय-केन्द्रित-टेट्रागोनल (BCT) सरंचना (distorted body-centred-tetragonal (BCT) structure) में से बाहर विसरित हो जाते हैं, कार्बन के विसरण के बाद, परिणामी संरचना लगभग शुद्ध फेराईट होती है, जो काय-केन्द्रित सरंचना से युक्त होती है। धातु विज्ञान (metallurgy) में, हमेशा मजबूती और लचीलेपन (प्रत्यास्थता) पर बल दिया जाता है। यह नाजुक संतुलन टेम्परिंग की प्रक्रिया में निहित कई बारीकियों पर प्रकाश डालता है। टेम्परिंग की प्रक्रिया के दौरान समय और तापमान पर सटीक नियंत्रण एक जटिल प्रक्रिया है, जिससे उचित संतुलित यांत्रिक गुणधर्मों से युक्त धातु प्राप्त होती है। .

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एबर्गावेनी

एबर्गावेनी टाउन सेंटर जिसमें मार्केट हॉल व घडी टावर दिख रहा है। एबर्गावेनी (Abergavenny, Y Fenni) जिसका अर्थ है गावेनी नदी का मुह, मॉनमाउथशायर, वेल्स का एक बाज़ार शहर है। यह मॉनमाउथ से १५ मिल (२४ किलोमीटर) पश्चिम में ए४० और ए४६५ सड़क पर स्थित है व अंग्रेज़ी सीमा से ६ मिल (१० किलोमीटर) दूर है। मूलतः रोमन किले, गोबानियम की जगह पर मध्ययुगीन दीवारों वाला शहर बन गया जो वेल्श मार्चेस के भीतर था। शहर में मध्ययुगीन पत्थर के किले के अवशेष है जो नॉर्मन द्वारा वेल्स पर विजय के पश्च्यात बनाया गया था। ऐबर्गावेनी को "गेटवे टू वेल्स" भी कहा जाता है। यह दो नदियों के मुहाने, गावेनी व उस्क नदी पर स्थित है और ब्लोरेंगे (५५९ मीटर) और शुगर लोफ़ (५९६ मीटर) पर्वतों से घिरा हुआ है और साथ ही साथ इसके इर्द-गोर्ड पाँच पहाड़ियां: यस्ग्रिड फावर, यस्ग्रिड फ़ाच, डेरी, र्होलबेन और मिनीड लान्वेनार्थ है। यह पास ही स्थित ब्लैक पर्वतों और ब्रेकोन बीकंस नैशनल पार्क के लिए रास्ता मुहैया करता है। .

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तिलोकपुर

तिलोकपुर (अंग्रेजी:Tilokpur) भारतवर्ष के राज्य उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहाँपुर का एक बहुत ही पुराना गाँव है। यह शाहजहाँपुर जिले के भौगोलिक क्षेत्र से बहने वाली शारदा नहर के किनारे बसा हुआ है। यह नहर मीरानपुर कटरा से तिलोकपुर और काँट होते हुए कुर्रिया कलाँ तक जाती है। काकोरी काण्ड के अभियुक्तों में से एक बनवारी लाल जो मुकदमें के दौरान वायदा माफ गवाह (अंगेजी में अप्रूवर) बन गया था, इसी गाँव का रहने वाला था। बाद में उसने ब्राह्मणों से जान का खतरा होने के कारण यह गाँव छोड़ दिया और पास के ही दूसरे गाँव केशवपुर में रहने लगा जहाँ उसकी कायस्थ बिरादरी के लोग रहते थे। मध्यम आकार के इस गाँव में कुल 167 घर हैं। इन घरों के परिवारों में 1036 लोग रहते हैं जिनमें स्त्री, पुरुष व बच्चे सभी शामिल हैं। .

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पालिया

पालिया अथवा खंभी पश्चिमी भारत के कई क्षेत्रों में पाई जाने वाली विशिष्ठ स्मारकीय समाधी संरचना है, जिसे मुख्यतः महान व्यक्तोयों की मृत्यु पर उनके सम्मान व उनके समाधी के तौरपर खड़ा किये जाता था। ये संरचनाएँ अधिकांशतः शिल्पकृति स्तंभ या पत्थरों के रूप में होती हैं, हालाँकि, कई पालियाँ, अधिक सुसम्पन्न रूप में भी हो सकती हैं। पालीयों को पश्चिमी भारत के कई क्षेत्रों में पाया जा सकता है, विशेषतः गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों में, एवं सिंध में भी। इन प्रस्तरकृत संरचनाओं पर विभिन्न चिंन्ह, शैलचित्र एवं शिलालेख पाये जाते है। पालियाँ कई तरह की, और कई आकृतियों की हो सकती है, और ये युद्धवीरों, महान नाविकों, सतियाँ एवं पशुओं को भी समर्पित हो सकते हैं, और अधिकांश ऐसी पालियाँ, प्रचलित लोक कथाओं का विषय भी होती हैं। .

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति

सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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बढ़ई

बढ़ई काष्ठकारी से सम्बन्धित औजार लकड़ी का काम करने वाले लोगों को बढ़ई या 'काष्ठकार' (Carpenter) कहते हैं। ये प्राचीन काल से समाज के प्रमुख अंग रहे हैं। घर की आवश्यक काष्ठ की वस्तुएँ बढ़ई द्वारा बनाई जाती हैं। इन वस्तुओं में चारपाई, तख्त, पीढ़ा, कुर्सी, मचिया, आलमारी, हल, चौकठ, बाजू, खिड़की, दरवाजे तथा घर में लगनेवाली कड़ियाँ इत्यादि सम्मिलित हैं। .

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बाण

यह धनुष के साथ प्रयुक्त होने वाला एक अस्त्र है जिसका अग्र भाग नुकीला होता है। बाण का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद संहिता में मिलता है। इषुकृत् और इषुकार शब्दों का प्रयोग सिद्ध करता है कि उन दिनों बाण-निर्माण-कार्य व्यवस्थित व्यवसाय था। ऋग्वेदकालीन लोहार केवल लोहे का काम ही नहीं करता था, बाण भी तैयार करता था। बाण का अग्र भाग लोहार बनाता था और शेष बाण-निर्मातानिकाय बनाता था। ऐतरेय ब्राह्मण (ई. पू. 600 वर्ष) में देवताओं के धनुष का रोचक वर्णन मिलता है। देवताओं ने सोमयज्ञ के उपसद् में एक धनुष तैयार किया। धनुष का अग्रभाग अग्नि, आधार सोम, दंड विष्णु और पंख वरुण था। बाण का नाम शर कैसे पड़ा, इसका वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। जब वृत्रासुर पर इंद्र ने वज्र चलाया तब वज्र के चार खंड हो गए - स्फाय, यूप, रथ और अंतिम भाग शर के रूप में धरती पर गिर पड़ा। टूटने के कारण इनका नाम शर पड़ा। उसमें यह भी लिखा है कि बाण का शीर्ष वैसा ही है जैसे यज्ञ के लिए अग्नि। अग्निपुराण में बाण के निर्माण का वर्णन है। यह लोहे या बाँस से बनता है। बाँस सोने के रंग का और उत्तम कोटि के रेशोंवाला होना चाहिए। बाण के पुच्छभाग पर पंख होते हैं। उसपर तेल लगा रहना चाहिए, ताकि उपयोग में सुविधा हो। इसकी नोक पर स्वर्ण भी जड़ा होता है। हरिहरचतुरंग के अनुसार बाण तालतृण के दंत, शृंग या शारभ द्रुम (साल या वेणु) के बनते थे। विष्णुधर्मोत्तर में उनके धातु के, शृंग के तथा दारु (बाँस) के बने होने का उल्लेख है। इससे सिद्ध होता है कि ज्यों ज्यों समय बीतता गया पुरानी चीजें छोड़ दी गई। धातु का उपयोग महत्व का है और युद्धकला का अंतिम विकास है। अग्निपुराण में उत्कृष्ट, सामान्य और निकृष्ट तीन प्रकार के बाणों की पहचान दी है। बाण को निर्मुक्त करने के लिए उसके पंखदार सिरे को अँगूठे की सहायता से पकड़ना चाहिए। उत्कृष्ट बाण के दंत की माप 12 मुष्टि (1 मुष्टि संभवत: 1 पल के बराबर थी), सामान्यकी 11 मुष्टि और निकृष्ट की 10 मुष्टि होती थी। मनु ने भी इन आयुधों का उल्लेख किया है। कालिदास ने तेज, गहरे और दृढ़ दंडों का वर्णन किया है: वेणु, शर, शलाका, दंडसार और नाराच। कुछ बाणों पर लोहे की नोक की, कुछ पर काटने के लिए अस्थि की नोक की और कुछ पर छेदने के लिए लकड़ी की नोक की व्यवस्था रहती थी। जो धनुर्धर आधे अंगुल मोटी धातु की पट्टी को अथवा चमड़े की 24 परतों को बेध देता था, वह अत्यत कुशल माना जाता था। .

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बेंजामिन फ्रैंकलिन

बेंजामिन फ्रैंकलिन (17 अप्रैल 1790) संयुक्त राज्य अमेरिका के संस्थापक जनकों में से एक थे। एक प्रसिद्ध बहुश्रुत, फ्रैंकलिन एक प्रमुख लेखक और मुद्रक, व्यंग्यकार, राजनीतिक विचारक, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, आविष्कारक, नागरिक कार्यकर्ता, राजमर्मज्ञ, सैनिक, और राजनयिक थे। एक वैज्ञानिक के रूप में, बिजली के सम्बन्ध में अपनी खोजों और सिद्धांतों के लिए वे प्रबोधन और भौतिक विज्ञान के इतिहास में एक प्रमुख शख्सियत रहे। उन्होंने बिजली की छड़, बाईफोकल्स, फ्रैंकलिन स्टोव, एक गाड़ी के ओडोमीटर और ग्लास 'आर्मोनिका' का आविष्कार किया। उन्होंने अमेरिका में पहला सार्वजनिक ऋण पुस्तकालय और पेंसिल्वेनिया में पहले अग्नि विभाग की स्थापना की। वे औपनिवेशिक एकता के शीघ्र प्रस्तावक थे और एक लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में, उन्होंने एक अमेरिकी राष्ट्र के विचार का समर्थन किया। अमेरिकी क्रांति के दौरान एक राजनयिक के रूप में, उन्होंने फ्रेंच गठबंधन हासिल किया, जिसने अमेरिका की स्वतंत्रता को संभव बनाने में मदद की। फ्रेंकलिन को अमेरिकी मूल्यों और चरित्र के आधार निर्माता के रूप में श्रेय दिया जाता है, जिसमें बचत के व्यावहारिक और लोकतांत्रिक अतिनैतिक मूल्यों, कठिन परिश्रम, शिक्षा, सामुदायिक भावना, स्व-शासित संस्थानों और राजनीतिक और धार्मिक स्वैच्छाचारिता के विरोध करने के संग, प्रबोधन के वैज्ञानिक और सहिष्णु मूल्यों का समागम था। हेनरी स्टील कोमगेर के शब्दों में, "फ्रैंकलिन में प्यूरिटनवाद के गुणों को बिना इसके दोषों के और इन्लाईटेनमेंट की प्रदीप्ति को बिना उसकी तपिश के समाहित किया जा सकता है।" वाल्टर आईज़ेकसन के अनुसार, यह बात फ्रेंकलिन को, "उस काल के सबसे निष्णात अमेरिकी और उस समाज की खोज करने वाले लोगों में सबसे प्रभावशाली बनाती है, जैसे समाज के रूप में बाद में अमेरिका विकसित हुआ।" फ्रेंकलिन, एक अखबार के संपादक, मुद्रक और फिलाडेल्फिया में व्यापारी बन गए, जहां पुअर रिचार्ड्स ऑल्मनैक और द पेन्सिलवेनिया गजेट के लेखन और प्रकाशन से वे बहुत अमीर हो गए। फ्रेंकलिन की विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दिलचस्पी थी और अपने प्रसिद्ध प्रयोगों के लिए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की.

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श्रम का विभाजन

जब किसी बड़े कार्य को छोटे-छोटे तर्कसंगत टुकड़ों में बाँटककर हर भाग को करने के लिये अलग-अलग लोग निर्धारित किये जाते हैं तो इसे श्रम विभाजन (Division of labour) या विशिष्टीकरण (specialization) कहते हैं। श्रम विभाजन बड़े कार्य को दक्षता पूर्वक करने में सहायक होता है। ऐतिहासिक रूप से श्रम-विभाजन व्यापार की वृद्धि, सम्पूर्ण आउटपुट की वृद्धि, पूंजीवाद का उदय तथा औद्योगीकरण की जटिलता में वृद्धि से जुड़ा रहा है। परिष्कृत होकर धीरे-धीरे श्रम-विभाजन वैज्ञानिक प्रबन्धन के स्तर तक जा पहुँचा। मोटे तौर पर यह कार्यकारी-समाज है जिसके अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न काम करते हैं। जैसे- कुछ लोग कृषि करते हैं; कुछ लोग कुम्भकारी करते हैं और कुछ लोग लोहारी करते हैं। भारत की वर्णाश्रम व्यवस्था मूलत: श्रम-विभाजन का ही रूप है। .

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सायकिल

भीतरी नली में हवा भरने के लिए बुड के हवा वाल्ब का बहुधा प्रयोग होता है, जिसकी बनावट चित्र 13.

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सारसण्डा

सारसण्डा आन्तरोली कला ग्राम पंचायत, डेगाना तहसिल जिला नागौर, राजस्थान भारत मे है। सारसण्डा रेण से ९ किलोमीटर पुर्व मे तथा डेगाना जंक्शन से १५ किलोमीटर पश्चिम मे है। यहा पर विजयनाथजी महाराज की स्माधिस्थल है। यहां का मुख्य रोजगार खेती है। पानी की अच्छी सुविधा है। सरकारी नलकूपो, के अलावा तालाबो का पानी उपयोग मे लिया जाता है। .

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विश्वकर्मा (जाति)

विश्वकर्मा जो एक हिन्दू भगवान है। विश्वकर्मा भगवान आमतौर पर इसमें पांच जातियां गिनी जाती है - १. मिस्त्री,२ लोहार,३ कुम्भार ४ सोनार तथा ५ मूर्तिकार । इन जातियों के लोग विश्वकर्मा को अपना इष्टदेवता मानते हैं। .

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वेल्डिंग

दिल्ली के लौह स्तम्भ के निर्माण में वेल्डिंग का उपयोग हुआ था। झलाई या वेल्डन, निर्माण (fabrication) की एक प्रक्रिया है जो चीजों को जोडने के काम आती है। झलाई द्वारा मुख्यतः धातुएँ तथा थर्मोप्लास्टिक जोड़े जाते हैं। इस प्रक्रिया में सम्बन्धित टुकड़ों को गर्म करके पिघला लिया जाता है और उसमें एक फिलर सामग्री को भी पिघलाकर मिलाया जाता है। यह पिघली हुई धातुएं एवं फिलर सामग्री ठण्डी होकर एक मजबूत जोड़ बन जाता है। झलाई के लिये कभी-कभी उष्मा के साथ-साथ दाब का प्रयोग भी किया जाता है। झलाई, दबाव द्वारा और द्रवण द्वारा किया जाता है। लोहार लोग दो धातुपिंडों को पीटकर जोड़ देते हैं यह दबाव द्वारा झलाई है। दबाव देने के लिए आज अनेक द्रवचालित दाबक (Hydraulic press) बने हैं, जिनका उपयोग उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। द्रवण द्वारा झलाई में दोनों तलों को संपर्क में लाकर गलित अवस्था में कर देते हैं, जो ठंडा होने पर आपस में मिलकर ठोस और स्थायी रूप से जुड़ जाते हैं। गलाने का कार्य विद्युत् आर्क द्वारा संपन्न किया जाता है। .

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गाँव

मध्य भारत का एक गाँव कैसल नाला, विल्टशायर, इंग्लैंड के गाँव के मुख्य सड़क पर. Masouleh गाँव, Gilan प्रांत, ईरान. Saifi गाँव के केंद्र Ville, बेरूत, लेबनान में मुख्य चौराहे Lötschental घाटी, स्विट्जरलैंड में एक अल्पाइन गाँव. ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्राय: गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्राय: बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। परम्परागत रूप से गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएं (शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि की) होती हैं।इसे संस्कृत में ग्राम, गुजराती में गाम(गुजराती:ગામ), पंजाबी में पिंड कहते हैं। .

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कप्तान जैक स्पैरो

कैप्टेन जैक स्पैरो पटकथा लेखकों टेड इलियट और टेरी रोज़ियो द्वारा रचित एवं जॉनी डेप द्वारा अभिनीत एक काल्पनिक पात्र है। उन्हें फिल्म Pirates of the Caribbean: The Curse of the Black Pearl (2003) में पहली बार पेश किया गया है। वे डेड मैन्स चेस्ट (2006) और ऐट वर्ल्ड्स एंड (2007) सिक्वलों में दिखाई दिए और आगामी फिल्म ऑन स्ट्रेंजर टाइड्स (2011) में दिखाई देंगे। शुरुआत में जैक स्पैरो की कल्पना इलियट और रोज़ियो द्वारा एक सहायक पात्र के रूप में की गयी थी लेकिन फिल्मों में जैक एक मुख्य नायक की तरह काम करता है। उसे अभिनेता जॉनी डेप ने जीवंत किया जिन्होंने उसके चरित्र चित्रण का आधार रोलिंग स्टोन्स के गिटारवादक कीथ रिचर्ड्स को बनाया। पाइरेट्स ऑफ द कैरेबियन श्रृंखला एक डिज्नी थीम पार्क की सवारी से प्रेरित थी और 2006 में जब इस सवारी का पुनरोद्धार किया गया, तब जैक स्पैरो के पात्र को इसमें पेश किया गया। जैक स्पैरो बच्चों की एक पुस्तक श्रृंखला Pirates of the Caribbean: Jack Sparrow का भी विषय है, जो अपनी किशोरावस्था के वर्षों के बारे में बताता है और यह पात्र कई वीडियो गेमों में भी दिखाई देता है। फिल्मों के सन्दर्भ में स्पैरो सेवन सीज के पाइरेट लॉर्ड्स, ब्रेदर्न कोर्ट में से एक है। वह विश्वासघाती हो सकता है, लेकिन हथियार या सेना के बजाय ज्यादातर बुद्धि और बातचीत का उपयोग करके बचता रहता है, वह अत्यंत खतरनाक परिस्थितियों में बचकर भाग निकलना पसंद करता है और जब आवश्यक हो तभी लड़ाई लड़ता है। स्पैरो को उसके जहाज, ब्लैक पर्ल को उसके पहले विद्रोही साथी हेक्टर बारबोसा से वापस पाने की कोशिश करते हुए पेश किया गया है और वह ईस्ट इंडिया ट्रेडिंग कंपनी से लड़ते हुए महानतम डेवी जोन्स के खून का कर्ज चुकाने से बचने की कोशिश करता है। .

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कूका

कूका एक सिख संप्रदाय है जिसे नामधारी भी कहते हैं। इस सप्रंदाय की स्थापना रामसिंह नामक एक लुहार ने की थी जिसका जन्म 1824 ई. में लुधियाना जिले के भेणी नामक ग्राम में हुआ था। उन दिनों सिख धर्म का जो प्रचलित रूप था वह रामसिंह को मान्य न था। गुरु नानक के समय जो धर्म का स्वरूप था उसे पुन: प्रतिष्ठित करने के निमित्त वे लोकप्रचलित सामाजिक एवं धार्मिक आचार विचार की कटु आलोचना करने लगे। धीरे-धीरे उनके विचारों से सहमत होनेवाले लोगों का एक सप्रंदाय बन गया। इस धार्मिक संप्रदाय ने आगे चलकर एक क्रांतिकारी राष्ट्रीय दल का रूप धारण कर लिया। महाराष्ट्र के संत रामदास ने महाराष्ट्र में स्वतंत्रता के मंत्र फूँके थे, कुछ उसी तरह का कार्य रामसिंह ने भी किया और 1864 ई. में उन्होंने अपने अनुयायियों को ब्रिटिश सरकार से असहयोग करने का आदेश दिया। इस आदेश के फलस्वरूप इस संप्रदाय ने पंजाब में स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। तब सरकार ने इस पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। रामसिंह और उनके अनुयायियों ने गुप्त रूप से कार्य करना आरंभ किया। गुप्त रूप से शास्त्रास्त्र एकत्र करना और सैनिकों को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध उभारने का काम किया जाने लगा। इस प्रकार वे लोग पाँच वर्ष तक गुप्त रूप से कार्य करते रहे। 1872 ई. में एक जगह मुसलमानों ने गोवध करना चाहा। कूकापंथियों ने उसका विरोध किया। दोनों दलों के बीच गहरा संघर्ष हुआ। ब्रिटिश सरकार ने रामसिंह को गिरफ्तार कर ब्रह्मदेश (म्यानमार) भेज दिया जहाँ 1885 ई. में उनका निधन हुआ। इसके बाद कूकापंथ का विद्रोहात्मक रूप समाप्त हो गया किंतु धार्मिक संप्रदाय के रूप में पंजाब में आज भी लोहार, जाट आदि अनेक लोगों के बीच इसका महत्व बना हुआ है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

लुहार, लोहारी

निवर्तमानआने वाली
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