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रत्नागिरि

सूची रत्नागिरि

बाल गंगाधर तिलक की यह जन्‍मस्‍थली भारत के महाराष्ट्र राज्‍य के दक्षिण-पश्चिम भाग में अरब सागर के तट पर स्थित है। यह कोंकण क्षेत्र का ही एक भाग है। यहां बहुत लंबा समुद्र तट हैं। यहां कई बंदरगाह भी हैं। यह क्षेत्र पश्चिम में सहयाद्रि पर्वतमाला से घिरा हुआ है। रत्नागिरि अल्‍फांसो आम के लिए भी प्रसिद्ध है। .

39 संबंधों: चौदहवीं लोकसभा, तारा तारिणी मंदिर, दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर, धोंडो केशव कर्वे, नारायण राणे, नारायण वामन तिलक, पांडुरंग वामन काणे, भारत के तेल शोधनागारों की सूची, भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - संख्या अनुसार, भारती शिपयार्ड लिमिटेड, भीमराव आम्बेडकर, मनशेरजी खरेघाट, मन्या सुर्वे, यमुनाबाई सावरकर, रत्नागिरि (ओडिशा), रत्नागिरि जिला, रत्नागिरि विमानक्षेत्र, रामकृष्ण गोपाल भांडारकर, राष्ट्रीय राजमार्ग २०४, लैटेराइट मृदा, शिवराम महादेव परांजपे, शंकर बालकृष्ण दीक्षित, श्रीपाद दामोदर सतवलेकर, सदानंद बकरे, सधा, साने गुरूजी, सखाराम गणेश देउस्कर, सुनीता देशपांडे, हिन्दुत्व: हिन्दू कौन है?, जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना, विमानक्षेत्रों की सूची ICAO कोड अनुसार: V, गजानन विष्णु दामले, गोपाल गणेश आगरकर, ओड़िशा का इतिहास, आगरी समाज, इल्मेनाइट, अनन्त कान्हेरे, अफई, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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तारा तारिणी मंदिर

तारा तारिणी मंदिर , भारतीय की पूर्बी तटीय राज्य ओड़ीशा का ब्रह्मपुर सहर से 29 km दूर ऋषिकुल्या नदी के किनारे रहे पुण्यगिरी (रत्नागिरी / तारिणी पर्बत/ कुमारी पहाड़) के ऊपर स्थित माँ की प्रसिद्ध मंदिर हे। यह भारत के 52 शक्ति पीठों से अनन्यतम है और यहाँ सती के स्थन गिरने कि दाबा कीया जाता है। यहाँ माँ तारा और माँ तारिणी को आदि शक्ति के रूप में पूजा किया जाता है।  भारत में रहे हुए 52 शक्ति पीठों से 4 को तंत्र पीठ की मन्यता दिया जाता है। माँ तारा तारिणी इनहि 4 तंत्र पीठों से एक हैं।    पौराणिक ग्रंथों पहचान चार प्रमुख शक्ति पीठ, जो तंत्र पीठ का मनन्यता रखे है वो  इसी प्रकार रहे। ब्रह्मपुर का माँ तारा तारिणी पीठ(स्थन), पूरी जगन्नाथ मंदिर के परिसर पर रहे बिमला (पाद), गुवाहाटी का कमक्षया पीठ (जोनि पीठ) और कोलकाता का दक्षिण कालिका (मुख खंड)  ।  कालिका पुराण भी इस तथ्य को मान्यता देता है और इसमें वर्णित एक श्लोक में कहा गया है: ‘बिमल़ा पादखंडनच स्तनखंडनच तारिणी कामाख्या योनिखंडनच मुखखंडनच कालिका अंग प्रत्यंग संगेन विष्णुचक्र क्षेतेन्यच’ उन चार शक्तिपीठों में विमला में पादखंड, तारातारिणी में स्तनखंड, कामाख्या में योनिखंड और दक्षिण कालिका में मुख खंड पड़ने के कारण चारों पीठों को मुख्य शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। देवी भागवत के अनुसार श्रीहरि विष्णु अनुरोध पर शनि देवी के शरीर में प्रवेश किए और शरीर को 108 भाग में विभक्त कर दिया। और उनमें से कुछ भाग मुख्य पीठ के रूप में उभरे। जानकार इन दानों पुराणों की तथ्य को सही मानते हैं। .

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दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर

दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर (1909–1971) एक भारतीय लेखक और वृत्तचित्र निर्माता थे। उन्हें मुख्यतः महात्मा: लाइफ़ ऑफ़ मोहनदास कर्मचन्द गाँधी (अंग्रेज़ी में) नाम से महात्मा गाँधी की आठ खण्डों में लिखी जीवनी के लिए जाना जाता है। .

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धोंडो केशव कर्वे

महर्षि डॉ॰ धोंडो केशव कर्वे (अप्रेल १८, १८५८ - नवंबर ९, १९६२) प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। उन्होने महिला शिक्षा और विधवा विवाह मे महत्त्वपूर्ण योगदान किया। उन्होने अपना जीवन महिला उत्थान को समर्पित कर दिया। उनके द्वारा मुम्बई में स्थापित एस एन डी टी महिला विश्वविघालय भारत का प्रथम महिला विश्वविघालय है। वे वर्ष १८९१ से वर्ष १९१४ तक पुणे के फरगुस्सन कालेज में गणित के अध्यापक थे। उन्हे वर्ष १९५८ में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। .

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नारायण राणे

नारायण राणे (नारायण राणे) (जन्म 10 अप्रैल 1952) महाराष्ट्र सरकार, भारत के मौजूदा राजस्व मंत्री हैं और महाराष्ट्र राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। जुलाई 2005 में वे भारतीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए जिसके पहले वे शिवसेना के सदस्य थे। राजनीति से जुड़ने से पहले वे चेंबूर क्षेत्र में हन्या-नर्या गिरोह के सदस्य थे, जो कि मुंबई का एक उपनगर है। उन्होंने महाराष्ट्र राज्य सरकार के बिक्री कर विभाग के साथ भी काम किया है। 6 दिसम्बर 2008 को उन्हें पार्टी के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां पारित करने के लिए भारतीय नेशनल कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया था। 19 फ़रवरी 2009 को पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी को माफीनामा पत्र देने के बाद पार्टी द्वारा उनके निलंबन को रद्द किया गया। .

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नारायण वामन तिलक

नारायण वामन तिलक (6 दिसम्बर, 1861 – 1919) एक मराठी कवि थे। नारायण वामन तिलक का जन्म ६ दिसंबर १८६१ में महाराष्ट्र राज्य के जिला रत्नगिरि के करज गाँव में हुआ था। इनके पिता का स्वभाव कठोर था तथा माता कोमल स्वभाव की थीं। इसलिए सब बच्चे माँ को ही अधिक मानते थे। माता का धर्म से तथा कविता से प्रेम था, अत: तिलक भी बाल्यावस्था से ही धार्मिक प्रवृत्ति के तथा कविता लिखने के शौकीन थे। माता का देहांत ११ वर्ष की अवस्था में हो जाने के कारण उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे अपने पिता से अलग रहकर संसार में अपने लिए स्वयं ही मार्ग ढूँढ़ेगे। वे नासिक चले गए और वहाँ एक युवक के घर में शरण पाई। नासिक में उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान् गणेश शास्त्री लेले से हुई। उन्होंने नारायण तिलक को संस्कृत की नि:शुल्क शिक्षा दी। एक हाई स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें कक्षा में नि:शुल्क बैठने की अनुमति दी। इस प्रकार उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन आरंभ किया। इसी समय उनके पिता ने शेष चार बच्चों को भी नासिक भेज दिया कि वे नारायण के साथ रहें। उनको स्कूल छोड़कर जीविका की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ा। फिर भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोड़ा। कुछ कठिनाई के उपरांत एक स्वजातीय लड़की के साथ उनका विवाह हो गया। वे बहुत समय तक किसी एक वातावरण में न रह सके क्योंकि सत्य की खोज में उनकी तीव्र प्रतिभा बराबर उन्हें नवीन क्षेत्रों की ओर ढकेल रही थी। अपनी युवती पत्नी को उसके मायके में छोड़कर वे महाराष्ट्र का कोना-कोना छानते हुए दूर निकल जाते थे। वे कीर्तन करते, पुराण पढ़ते और व्याख्यान दिया करते थे। धार्मिक क्षेत्रों में वे बड़े उत्साह के साथ सत्य की खोज करते थे। किशोरावस्था में ही जातिवाद से घृणा कने लगे थे। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे बेड़ियाँ जो भारत माँ को जकड़े हुए हैं, तोड़ दी जाएँ। वे मूर्तिपूजा तथा जातिवाद रूपी दीवारों को गिरा देना चाहते थे। उनकी भेंट नागपुर के एक धनी नागरिक अप्पा साहब से हुई जिन्होंने वैदिक तथा अन्य धर्मग्रंथों का संग्रह करने में काफी रकम खर्च की थी। नारायण वामन तिलक ने इन संस्कृत की रचनाओं का मराठी भाषा में अनुवाद किया। एक दिन तिलक नागपुर से राजनाँदगाँव राजा के पास नौकरी करने जा रहे थे कि रेलगाड़ी में उनकी भेंट एक अंग्रेज मिशनरी से हुई जिसने उनको बाइबिल की प्रतिलिपि पढ़ने को दी। अरुचि होने के बावजूद उन्होंने इसे पढ़ने की प्रतिज्ञा की। महीनों तक बाइबिल का अध्ययन करने के बाद मसीही धर्म की सत्यता का उनमें मन में विश्वास हो गया। उन्होंने अमरीकी-मराठी मिशन के पादरी जे.इ. ऐबट साहब से १० फरवरी, १८९५ ई. को बंबई में बप्तिस्मा ले लिया। मनुष्य के नाते नारायण वामन तिलक ने अपने साथियों से जाति, धर्म और कुल का भेदभाव रखे बिना प्रेम किया। किसी विद्वान् ने उनसे प्रश्न किया कि 'प्रभु की सेवा क्या है?' तिलक जी ने उत्तर दिया कि 'जनसेवा ही प्रभु की सेवा के बराबर है। अपने हित को बिसार दो और दूसरों के हित को अपना हित समझो।' भारतीय होने के नाते वे महान् देशभक्त थे। उनमें ऐसी ज्वलंत देशभक्ति विद्यमान थी जिसका अनुभव उनके संपर्क में आकर कोई भी व्यक्ति कर सकता था। वे कहा करते थे कि जब तक मनुष्य देशभक्त न हो, वह यीशु मसीह का सच्चा भक्त नहीं हो सकता। संपूर्ण महाराष्ट्र के नगरों तथा गाँवों में मसीही जनता उनके बनाए हुए गानों को समय समय पर गाया करती है। उनकी मृत्यु १२ जून, १९४० ई. में महाबलेश्वर में हुई। श्रेणी:मराठी कवि.

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पांडुरंग वामन काणे

पांडुरंग वामन काणे (७ मई १८८०, दापोली, रत्नागिरि - १९७२) संस्कृत के एक विद्वान्‌ एवं प्राच्यविद्याविशारद थे। उन्हें १९६३ में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। काणे ने अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान संस्कृत में नैपुण्य एवं विशेषता के लिए सात स्वर्णपदक प्राप्त किए और संस्कृत में एम.एस.

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भारत के तेल शोधनागारों की सूची

भारत में कुल मिलाकर २३ तेल शोधनागार है। दिसंबर २०१७ के अनुसार इन सब की मिलाकर कुल क्षमता २४७.६ एमएमटीपीए (मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष) है। .

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भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - संख्या अनुसार

भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची (संख्या के क्रम में) भारत के राजमार्गो की एक सूची है। .

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भारती शिपयार्ड लिमिटेड

भारती शिपयार्ड लिमिटेड (Bharati Shipyard Limited (BSL)) भारत कि सबसे बड़ी जलयान निर्माता कम्पनियों मेम से एक है। इसकी स्थापना प्रकाश चन्द्र कपूर और विजय कुमार ने महाराष्ट्र के रत्नागिरि में १९७३ में की थी। वे आईआईटी खड़गपुर से समुद्र इंजीनियरी तथा नेवल आर्किटेक्चर में स्नातक थे। यह कम्पनी २००४ में सार्वजनिक कम्पनी में परिवर्तित हो गयी। .

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भीमराव आम्बेडकर

भीमराव रामजी आम्बेडकर (१४ अप्रैल, १८९१ – ६ दिसंबर, १९५६) बाबासाहब आम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की। जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता; वह भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और बातचीत में शामिल हो गए, पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। .

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मनशेरजी खरेघाट

पारसी समुदाय के पथप्रदर्शक मनशेरजी पेस्तनजी खरेघाट (Mancherji Pestanji Khareghat) का जन्म दिसंबर, 1864 में हुआ था। आप बचपन से ही बड़े मेधावी थे। मुख्य रूप से गणित की समस्याओं को हल करके आपने अपनी कुशलता का परिचय दिया। मैट्रीकुलेशन की परीक्षा में आप 13 वर्ष की उम्र में ही उत्तीर्ण हो गए और तत्पश्चात् कालेज की पढ़ाई छोड़कर इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा के लिये अपने को तैयार किया। इनाम और छात्रवृत्ति प्राप्त करते हुए आपने गौरवपूर्ण ढंग से 1882 में उस परीक्षा में सफलता प्राप्त की और वकालत की पढ़ाई को जारी रखा। न्यायालयों में जाते समय आपने देखा कि एक स्त्री ने अपने पति की हत्या का प्रयास किया जिसके लिये उसे प्राणदंड की सजा दी गई। इसे देखकर आपने अपने पिता को लिखा कि मेरे विचार से "यह प्राणदंड की आज्ञा निर्दयतापूर्ण न्याय" है। भारत लौटने पर आप सहायक कलेक्टर, मैजिस्टे्रट, सहायक न्यायाधीश और सेशन न्यायाधीश के रूप में क्रमश: थाना, बस्ती बरौंच और शिकारपुर में रहे। जब आप रत्नगिरि में में सेशन न्यायाधीश थे, आप बंबई के उच्च न्यायालय की बेंच पर आसीन किए गए। परंतु आप शीघ्र ही छुट्टी पर चले गए जिसका प्रमुख कारण प्राणदंड की सजा के प्रति अपनी अनिच्छा प्रकट करना था। आप पुन: रत्नगिरि के सेशन जज बना दिए गए जहाँ आप संन्यासी की भाँति धार्मिकतापूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण सबके द्वारा पूजित तथा प्रशंसित हुए। गरीब जनता के लिये आपके हृदय में जो स्नेह था उसके कारण उनकी सेवा करने के लिये आपने अवकाशप्राप्ति की उम्र तक पहुँचने के पूर्व ही सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। पारसी पंचायत के "बोर्ड ऑव ट्रस्टी" के सभापति के रूप में आप जीवन के अंतिम दिनों तक कार्य करते रहे। श्रेणी:न्यायविद श्रेणी:पारसी.

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मन्या सुर्वे

मन्या सुर्वे उर्फ़ मनोहर अर्जुन सुर्वे (1944 – 11 जनवरी 1982) मुंबई का एक कुख्यात अपराधी था, जिसे जनवरी, 1982 में वडाला में मुंबई पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया गया था। .

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यमुनाबाई सावरकर

यमुनाबाई सावरकर या माई सावरकर (०४ दिसम्बर, १८८८- ०८ नवंबर १९६३) प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की पत्नी थीं। इनका जन्म ४ दिसम्बर, १८८८ (तदनुसार मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, विक्रम संवत १९४५) को हुआ था। इनके पिता भाउराव (या रामचंद्र त्रयंबक) चिपलूनकर ठाणे के निकट जवाहर कस्बे के दीवान थे। सावरकर के साथ इनका विवाह फरवरी, (तदनुसार माघ, वि॰सं॰१९५७) को हुआ था। इन्हें माई सावरकर नाम से अधिक प्रसिद्धि मिली। इनके पिता ने ही सावरकर की उच्च शिक्षा व लंदन जाने का बोझ वहन किया। आयु पर्यन्त ये सावरकर का समर्तन व सहयोग शांतिपूर्वक करते रहे। माई ने रत्नागिरी में सावरकर के समाज सुधार कार्यक्रम के भाग के रूप में हल्दी-कुमकुम कार्यक्रम आयोजित किए थे। इनके चार संताने हुईं। सबसे बडए प्रभाकर की मृत्यु बहुत पहले ही हो गई, जब सावरकर लंदन में थे। जनवरी १९२५ में सतारा में इनके एक पुत्री-प्रभात हुई। इनकी दूसरी पुत्री शालिनी एक रुग्ण बालिका थी, जिसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। मार्च, १९२८ को इनके एक पुत्र हुआ- विश्वास। माई की मृत्यु ८ नवंबर, १९६३ (तदनुसार कार्तिक वद्य, अष्टमी, वि॰सं॰ २०२०) को मुंबई में हुई। .

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रत्नागिरि (ओडिशा)

रत्नागिरि, ओडिशा के जाजपुर जिले में स्थित एक प्राचीन बौद्ध-स्थल है। यह भुवनेश्वर ने लगभग सौ किमी दूर है। .

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रत्नागिरि जिला

रत्नागिरि जिला (रत्नागिरी जिल्हा), भारत के राज्य महाराष्ट्र के पैंतीस जिलों में से एक है। रत्नागिरि जिले का मुख्यालय और प्रमुख शहर है। जिले का 11.33% हिस्सा शहरी है। जिले के पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में सिंधुदुर्ग जिला, उत्तर में रायगढ़ जिला और पूर्व में सतारा सांगली और कोल्हापुर जिले स्थित हैं। यह जिला कोंकण मंडल का भाग है। .

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रत्नागिरि विमानक्षेत्र

रत्नागिरि विमानक्षेत्र भारत के रत्नागिरि शहर में स्थित हवाई अड्डा है। इसका ICAO कोड है: VARG और IATA कोड है: RTC। यह नागरिक हवाई अड्डा है। यहाँ कस्टम विभाग नहीं है। यहाँ की उड़ान पट्टी पेव्ड है, इसकी लंबाई ३६०० फुट है और यहाँ अवतरण प्रणाली यांत्रिक नहीं है। श्रेणी:भारत में विमानक्षेत्र.

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रामकृष्ण गोपाल भांडारकर

रामकृष्ण गोपाल भांडारकर रामकृष्ण गोपाल भांडारकर (6 जुलाई 1837 – 24 अगस्त 1925) भारत के विद्वान, पूर्वात्य इतिहासकार एवं समाजसुधारक थे। वे भारत के पहले आधुनिक स्वदेशी इतिहासकार थे। दादाभाई नौरोज़ी के शुरुआती शिष्यों में प्रमुख भण्डारकर ने पाश्चात्य चिंतकों के आभामण्डल से अप्रभावित रहते हुए अपनी ऐतिहासिक कृतियों, लेखों और पर्चों में हिंदू धर्म और उसके दर्शन की विशिष्टताएँ इंगित करने वाले प्रमाणिक तर्कों को आधार बनाया। उन्होंने उन्नीसवीं सदी के मध्य भारतीय परिदृश्य में उठ रहे पुनरुत्थानवादी सोच को एक स्थिर और मज़बूत ज़मीन प्रदान की। भण्डारकर यद्यपि अंग्रेज़ों के विरोधी नहीं थे, पर वे राष्ट्रवादी चेतना के धनी थे। वे ऐसे प्रथम स्वदेशी इतिहासकार थे जिन्होंने भारतीय सभ्यता पर विदेशी प्रभावों के सिद्धांत का पुरज़ोर और तार्किक विरोध किया। अपने तर्कनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ रवैये और नवीन स्रोतों के एकत्रण की अन्वेषणशीलता के बदौलत भण्डारकर ने सातवाहनों के दक्षिण के साथ-साथ वैष्णव एवं अन्य सम्प्रदायों के इतिहास की पुनर्रचना की। ऑल इण्डिया सोशल कांफ़्रेंस (अखिल भारतीय सामाजिक सम्मलेन) के सक्रिय सदस्य रहे भण्डारकर ने अपने समय के सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाते हुए अपने शोध आधारित निष्कर्षों के आधार पर विधवा विवाह का समर्थन किया। साथ ही उन्होंने जाति-प्रथा एवं बाल विवाह की कुप्रथा का खण्डन भी किया। प्राचीन संस्कृत साहित्य के विद्वान की हैसियत से भण्डारकर ने संस्कृत की प्रथम पुस्तक और संस्कृत की द्वितीय पुस्तक की रचना भी की, जो अंग्रेज़ी माध्यम से संस्कृत सीखने की सबसे आरम्भिक पुस्तकों में से एक हैं। .

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राष्ट्रीय राजमार्ग २०४

१२६ किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग महाराष्ट्र में रत्नागिरि को कोल्हापुर से जोड़ता है। श्रेणी:भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग.

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लैटेराइट मृदा

भारत के अंगदिपुरम में लैटेराइट की खुली खान लैटेराइट मृदा या 'लैटेराइट मिट्टी'(Laterite) का निर्माण ऐसे भागों में हुआ है, जहाँ शुष्क व तर मौसम बार-बारी से होता है। यह लेटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है। यह मिट्टी चौरस उच्च भूमियों पर मिलती है। इस मिट्टी में लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना अधिक होता है। गहरी लेटेराइट मिट्टी में लोहा ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है। लौह आक्साइड की उपस्थिति के कारण प्रायः सभी लैटराइट मृदाएँ जंग के रंग की या लालापन लिए हुए होती हैं। लैटराइट मिट्टी चावल, कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज, सिनकोना, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है। लैटराइट मिट्टी वाले क्षेत्र अधिकांशतः कर्क रेखा तथा मकर रेखा के बीच में स्थित हैं। भारत में लैटेराइट मिट्टी तमिलनाडु के पहाड़ी भागों और निचले क्षेत्रों, कर्नाटक के कुर्ग जिले, केरल राज्य के चौडे समुद्री तट, महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले, पश्चिमी बंगाल के बेसाइट और ग्रेनाइट पहाड़ियों के बीच तथा उड़ीसा के पठार के ऊपरी भागों में मिलती है। .

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शिवराम महादेव परांजपे

शिवराम महादेव परांजपे (1864-1929 ई.) मराठी के प्रतिभाशाली साहित्यकार, वक्ता, पत्रकार और ध्येयनिष्ठ राजनीतिज्ञ थे। उन्होने 'काल' नामक साप्ताहिक द्वारा महाराष्ट्र में ब्रितानी शासन के विरुद्ध जनचेतना के निर्माण में सफलता पायी। .

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शंकर बालकृष्ण दीक्षित

शंकर बालकृष्ण दीक्षित (जन्म 24 जुलाई 1853 - मृत्यु 20 अप्रैल 1898) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी थे। मराठी में लिखित "भारतीय ज्योतिषशास्त्र" आपका अमूल्य ग्रंथ है। .

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श्रीपाद दामोदर सतवलेकर

वेदमूर्ति श्रीपाद दामोदर सातवलेकर (19 सितंबर 1867 - 31 जुलाई 1968) वेदों का गहन अध्ययन करनेवाले शीर्षस्थ विद्वान् थे। उन्हें 'साहित्य एवं शिक्षा' के क्षेत्र में सन् 1968 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। .

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सदानंद बकरे

सदानंद बकरे (10 नवम्बर 1920 – 18 दिसम्बर 2007) एक भारतीय चित्रकार और मूर्तिकार थे। बड़ौदा में पैदा हुए बकरे बंबई प्रगतिशील कलाकार समूह के संस्थापकों में से एक थे जो भारत में पहला आधुनिक कला संगठन था।"", superhumanism.eu.

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सधा

सधा (जन्म:17 फरवरी 1984, सद्दाफ मोहम्मद सैयद) भारतीय अभिनेत्री है जो मुख्य तौर पर दक्षिण भारत के सिनेमा में काम करती है। .

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साने गुरूजी

छिनवाल में साने गुरूजी की प्रतिमा पांडुरंग सदाशिव साने (२४ दिसम्बर १८९९ - ११ जून १९५०) मराठी के प्रसिद्ध लेखक, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे साने गुरूजी के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। .

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सखाराम गणेश देउस्कर

सखाराम गणेश देउस्कर (17 दिसम्बर 1869 - 23 नवम्बर 1912) क्रांतिकारी लेखक, इतिहासकार तथा पत्रकार थे। वे भारतीय जन-जागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल बांग्ला तथा चिंतन-मनन का क्षेत्र इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज एवं साहित्य था। देउस्कर भारतीय जनजागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल भारतीयता का अद्भुत संगम था। वे महाराष्ट्र और बंगाल के नवजागरण के बीच सेतु के समान हैं। उनका प्रेरणा-स्रोत महाराष्ट्र है, पर वे लिखते बांग्ला में हैं। अपने मूल से अटटू लगाव और वर्तमान से गहरे जुड़ाव का संकेत उनके देउस्कर नाम में दिखाई देता है, जो 'देउस' और ' करौं ' के योग से बना है। विचारक, पत्रकार और लेखक सखाराम गणेश देउस्कर भारतीय नवजागरण के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। मराठी मूल के लेकिन बंगाली परिवेश में जन्मे और पले-बढ़े देउस्कर ने महाराष्ट्र और बंगाल के नवजागरण के बीच सेतु की तरह काम किया। अरविंद घोष ने लिखा है कि 'स्वराज्य' शब्द के पहले प्रयोग का श्रेय देउस्कर को ही जाता है। पत्रकार के तौर पर जीवन की शुरुआत करने वाले देउस्कर की इतिहास, साहित्य और राजनीति में विशेष रूप से रुचि थी। उन्होंने बांग्ला की अधिकांश क्रांतिकारी पत्रिकाओं में सतत लेखन किया। देउस्कर की जिस एक रचना ने नवजागरण काल के प्रबुद्धवर्ग को सर्वाधिक प्रभावित किया, वह थी 1904 में प्रकाशित कृति 'देशेर कथा'। इसका हिंदी-अनुवाद 'देश की बात' (1910) नाम से हुआ। विलियम डिग्बी, दादाभाई नौरोजी और रमेश चंद्र दत्त ने भारतीय अर्थव्यवस्था के जिस विदेशी शोषण के बारे में लिखा था, सखाराम देउस्कर ने मुख्यतः उसी आधार पर इस ऐतिहासिक कृति की रचना की। हिंदुस्तान के उद्योग-धंधों की बर्बादी का चित्रण करती देउस्कर की यह कृति ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जंजीरों में जकड़ी और शोषण के तले जीती-मरती भारतीय जनता के रुदन का दस्तावेज़ है। .

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सुनीता देशपांडे

सुनीता देशपांडे (3 जुलाई 1926-7 नवम्बर 2009), मराठी भाषा की एक भारतीय लेखिका थीं। उनके मायके का नाम सुनीता ठाकुर था। 1945 में उनकी मुलाक़ात पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे से हुई और अगले हीं साल 1946 में उन्होने उनसे शादी कर लीं। सुनीता की आत्मकथा ‘आहे मनोहर तारी...’ काफी चर्चा में रही थी, क्योंकि उन्होंने अपने पति के जीवनकाल में ही उनके बारे में कुछ विवादास्पद बातें लिखी थीं। उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में ‘प्रिया जीए’ और ‘मनयांची माल’ शामिल हैं। .

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हिन्दुत्व: हिन्दू कौन है?

हिन्दुत्व: हिन्दू कौन है? (Hindutva: Who is a Hindu?) विनायक दामोदर सावरकर द्वारा १९२३ में लिखा गया एक आदर्शवादी पर्चा है। यह पाठ शब्द हिन्दुत्व (संस्कृत का त्व प्रत्यय से बना, हिन्दू होने के गुण) के कुछ आरम्भिक उपयोगों में शामिल है। यह हिन्दू राष्ट्रवाद के कुछ समकालीन मूलभूत पाठों में शामिल है। सावरकर ने यह पर्चा रत्नगिरि जेल में कैद के दौरान लिखा। इसे जेल से बाहर तस्करी करके ले जाया गया तथा सावरकर के समर्थकों द्वारा उनके छद्म नाम "महरत्ता" से प्रकाशित किया गया। सावरकर जो कि एक नास्तिक थे, हिन्दुत्व को एक सजातीय, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक पहचान मानते थे। सावरकर के अनुसार हिन्दू भारतवर्ष के देशभक्त वासी हैं जो कि भारत को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते हैं। सावरकर सभी भारतीय धर्मों को शब्द "हिन्दुत्व" में शामिल करते हैं तथा "हिन्दू राष्ट्र" का अपना दृष्टिकोण पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले "अखण्ड भारत" के रूप में प्रस्तुत करते हैं। .

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जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना

जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना भारत के महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में निर्माण के लिए प्रस्तावित एक परमाणु ऊर्जा परियोजना है। ९९०० मेगावाट क्षमता का यह संयंत्र न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) द्वारा निर्मित किया जाएगा। श्रेणी:भारत में परमाणु ऊर्जा.

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विमानक्षेत्रों की सूची ICAO कोड अनुसार: V

प्रविष्टियों का प्रारूप है.

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गजानन विष्णु दामले

गजानन विष्णु दामले हिन्दू महासभा के निःस्वार्थ सेवक रहे। शिरगांव के विष्णुपंत दामले के पुत्र थे। रत्नागिरी में प्लेग महामारी के दौरान वीर सावरकर ने इनके यहां २४ नवंबर, १९२४ से २० जून, १९२५ तक आवास किया था। यहीं पर सावरकर ने अपनी पुस्तक हिन्दू पादपादशाही लिखी थी। १९३७ में सावरकर जब मुंबई आए, तब दामले इनके निजी सचिव रहे थे। ये सावरकर की सभी यात्राओं में उनके साथ रहे थे। १९३८ में भागनगर (हैदराबाद) के अहिंसक प्रतिरोध में इन्होंने भाग लिया व गिरफ्तार भी हुए। इन्हें १९४६ के मुंबई दंगों में भी गिरफतार किया गया था। बाद में गांधी हत्याकाण्ड के आरोप में इन्हें १९४८ से लंबे समय तक कारावास भोगना पड़ा था। .

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गोपाल गणेश आगरकर

गोपाल गणेश आगरकर गोपाल गणेश आगरकर (१४ जुलाई, १८५६ - १८९५) भारत के महाराष्ट्र प्रदेश के समाज सुधारक एवं पत्रकार थे। वे मराठी के प्रसिद्ध समाचार पत्र केसरी के प्रथम सम्पादक थे। किन्तु बाल गंगाधर तिलक से वैचारिक मतभेद के कारण उन्होने केसरी का सम्पादकत्व छोड़कर सुधारक नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। आगरकर, विष्णु कृष्ण चिपलूणकर तथा तिलक "डेकन एजुकेशन सोसायटी" के संस्थापक सदस्य थे। .

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ओड़िशा का इतिहास

प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य को कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि नामों से जाना जाता था। परन्तु इनमें से कोई भी नाम सम्पूर्ण ओडिशा को इंगित नहीं करता था। अपितु यह नाम समय-समय पर ओडिशा राज्य के कुछ भाग को ही प्रस्तुत करते थे। वर्तमान नाम ओडिशा से पूर्व इस राज्य को मध्यकाल से 'उड़ीसा' नाम से जाना जाता था, जिसे अधिकारिक रूप से 04 नवम्बर, 2011 को 'ओडिशा' नाम में परिवर्तित कर दिया गया। ओडिशा नाम की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द 'ओड्र' से हुई है। इस राज्य की स्थापना भागीरथ वंश के राजा ओड ने की थी, जिन्होने अपने नाम के आधार पर नवीन ओड-वंश व ओड्र राज्य की स्थापना की। समय विचरण के साथ तीसरी सदी ई०पू० से ओड्र राज्य पर महामेघवाहन वंश, माठर वंश, नल वंश, विग्रह एवं मुदगल वंश, शैलोदभव वंश, भौमकर वंश, नंदोद्भव वंश, सोम वंश, गंग वंश व सूर्य वंश आदि सल्तनतों का आधिपत्य भी रहा। प्राचीन काल में ओडिशा राज्य का वृहद भाग कलिंग नाम से जाना जाता था। सम्राट अशोक ने 261 ई०पू० कलिंग पर चढ़ाई कर विजय प्राप्त की। कर्मकाण्ड से क्षुब्द हो सम्राट अशोक ने युद्ध त्यागकर बौद्ध मत को अपनाया व उनका प्रचार व प्रसार किया। बौद्ध धर्म के साथ ही सम्राट अशोक ने विभिन्न स्थानों पर शिलालेख गुदवाये तथा धौली व जगौदा गुफाओं (ओडिशा) में धार्मिक सिद्धान्तों से सम्बन्धित लेखों को गुदवाया। सम्राट अशोक, कला के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहते थे इसलिए सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को और अधिक विकसित करने हेतु ललितगिरि, उदयगिरि, रत्नागिरि व लगुन्डी (ओडिशा) में बोधिसत्व व अवलोकेतेश्वर की मूर्तियाँ बहुतायत में बनवायीं। 232 ई०पू० सम्राट अशोक की मृत्यु के पश्चात् कुछ समय तक मौर्य साम्राज्य स्थापित रहा परन्तु 185 ई०पू० से कलिंग पर चेदि वंश का आधिपत्य हो गया था। चेदि वंश के तृतीय शासक राजा खारवेल 49 ई० में राजगद्दी पर बैठा तथा अपने शासन काल में जैन धर्म को विभिन्न माध्यमों से विस्तृत किया, जिसमें से एक ओडिशा की उदयगिरि व खण्डगिरि गुफाऐं भी हैं। इसमें जैन धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ व शिलालेख प्राप्त हुए हैं। चेदि वंश के पश्चात् ओडिशा (कलिंग) पर सातवाहन राजाओं ने राज्य किया। 498 ई० में माठर वंश ने कलिंग पर अपना राज्य कर लिया था। माठर वंश के बाद 500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह एवं मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया। भौमकर वंश के सम्राट शिवाकर देव द्वितीय की रानी मोहिनी देवी ने भुवनेश्वर में मोहिनी मन्दिर का निर्माण करवाया। वहीं शिवाकर देव द्वितीय के भाई शान्तिकर प्रथम के शासन काल में उदयगिरी-खण्डगिरी पहाड़ियों पर स्थित गणेश गुफा (उदयगिरी) को पुनः निर्मित कराया गया तथा साथ ही धौलिगिरी पहाड़ियों पर अर्द्यकवर्ती मठ (बौद्ध मठ) को निर्मित करवाया। यही नहीं, राजा शान्तिकर प्रथम की रानी हीरा महादेवी द्वारा 8वीं ई० हीरापुर नामक स्थान पर चौंसठ योगनियों का मन्दिर निर्मित करवाया गया। 6वीं-7वीं शती कलिंग राज्य में स्थापत्य कला के लिए उत्कृष्ट मानी गयी। चूँकि इस सदी के दौरान राजाओं ने समय-समय पर स्वर्णाजलेश्वर, रामेश्वर, लक्ष्मणेश्वर, भरतेश्वर व शत्रुघनेश्वर मन्दिरों (6वीं सदी) व परशुरामेश्वर (7वीं सदी) में निर्माण करवाया। मध्यकाल के प्रारम्भ होने से कलिंग पर सोमवंशी राजा महाशिव गुप्त ययाति द्वितीय सन् 931 ई० में गद्दी पर बैठा तथा कलिंग के इतिहास को गौरवमयी बनाने हेतु ओडिशा में भगवान जगन्नाथ के मुक्तेश्वर, सिद्धेश्वर, वरूणेश्वर, केदारेश्वर, वेताल, सिसरेश्वर, मारकण्डेश्वर, बराही व खिच्चाकेश्वरी आदि मन्दिरों सहित कुल 38 मन्दिरों का निर्माण करवाया। 15वीं शती के अन्त तक जो गंग वंश हल्का पड़ने लगा था उसने सन् 1038 ई० में सोमवंशीयों को हराकर पुनः कलिंग पर वर्चस्व स्थापित कर लिया तथा 11वीं शती में लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर, ब्रह्मेश्वर, लोकनाथ व गुन्डिचा सहित कई छोटे व बड़े मन्दिरों का निर्माण करवाया। गंग वंश ने तीन शताब्दियों तक कलिंग पर अपना राज्य किया तथा राजकाल के दौरान 12वीं-13वीं शती में भास्करेश्वर, मेघेश्वर, यमेश्वर, कोटी तीर्थेश्वर, सारी देउल, अनन्त वासुदेव, चित्रकर्णी, निआली माधव, सोभनेश्वर, दक्क्षा-प्रजापति, सोमनाथ, जगन्नाथ, सूर्य (काष्ठ मन्दिर) बिराजा आदि मन्दिरों को निर्मित करवाया जो कि वास्तव में कलिंग के स्थापत्य इतिहास में अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं। गंग वंश के शासन काल पश्चात् 1361 ई० में तुगलक सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने कलिंग पर राज्य किया। यह वह दौर था जब कलिंग में कला का वर्चस्व कम होते-होते लगभग समाप्त ही हो चुका था। चूँकि तुगलक शासक कला-विरोधी रहे इसलिए किसी भी प्रकार के मन्दिर या मठ का निर्माण नहीं हुअा। 18वीं शती के आधुनिक काल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का सम्पूर्ण भारत पर अधिकार हो गया था परन्तु 20वीं शती के मध्य में अंग्रेजों के निगमन से भारत देश स्वतन्त्र हुआ। जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण भारत कई राज्यों में विभक्त हो गया, जिसमें से भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा (पूर्व कलिंग) भी एक राज्य बना। .

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आगरी समाज

आगरी समाज मूलतः नमक की 'खेती' करने वाला समाज है। आगरी समाज एक हिंदु-आर्य समाज है। विशेषत: यह महाराष्ट्रीय समूह है जो महाराष्ट्र के उत्तर कोंकण इलाके में मूल भुमिपुत्र है। यह समाज कोली तथा कुणबी एवं मराठा जातियों के उपविभाग में आता है। इनकी जो बोलीभाषा है, वह मराठी और कोंकणी की उपभाषा है जिसे आगरी बोली कहते हैं। आगरी समाज महाराष्ट्र के मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, पालघर, रायगड, नासिक इन जिलों में बहुतांश बस गया है। इसके अलावा रत्नागिरि, पुणे, अहमदनगर जिलों में भी बसा है। गोवा राज्य में इनको 'मिठगावडे' कहते हैं। इतिहास:- यह समाज मुलत: एक शुद्ध क्षत्रिय समाज है। जो कि मुंगी पैठण नामक प्राचिन वस्तीस्थान से कोंकण में युद्ध करणेवाले राजपुत क्षत्रिय है। जो कि पैठण के बिंबराजाके सेन्यदल मैं प्रमुखत: संम्मेलित थे। युद्ध में विजयी होणे के कारण राजा बिंम्बने राज्य को प्रबल बनाने हेतु इन्हे नमक का व्यापार एंव उत्पादन करणे के लिए नमक के आगर बनाने में प्रचंड सहायता कि, और इन्हे पुर्णत: यहाँ अधिकार दे दिया। .

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इल्मेनाइट

इल्मेनाइट (Ilmenite) एक खनिज है जो प्रधानतः लौह टाइटनेट है। यह टाइटेनियम-लौह आक्साइड खनिज है जिसका आदर्श सूत्र है। यह काला या ईस्पात-धूसर (steel-gray) रंग का ठोस है जो थोड़ा-थोड़ा चुम्बकीय गुण रखता है। वाणिज्यिक दृष्टि से इल्मेनाइट, टाइटेनियम का सबसे महत्वपूर्ण अयस्क है। अनेक उद्योगों में टाइटेनियम के उपयोग की वृद्धि होने के कारण इल्मेनाइट के खनन तथा उत्पादन की ओर विश्व के अनेक शक्तिशाली राष्ट्रों का ध्यान आकर्षित हुआ है। यद्यपि इल्मेनाइट आग्नेय एवं परिवर्तित शिलाओं का नितांत सामान्य भाग है, तथापि भारत में समुद्रतटीय बालू के निक्षेपों के अतिरिक्त कोई भी निक्षेप ऐसा नहीं है जहाँ आर्थिक एवं वाणिज्य की दृष्टि से खननकार्य लाभद्रप्रद हो। दक्षिण भारत में तटीय बालू के लगभग १०० मील लंबे भूखंड में, पश्चिमी तट पर क्विलन के उत्तर में नंदीकारिया से कन्याकुमारी तक तथा पूर्वी तट पर किनारे किनारे तिरूनेलवेली जिले में लिपुरूम तक, इल्मेनाइट अधिक मात्रा में पाया जाता है। इल्मेनाइट बालू के साहचर्य में रयूटाइल, ज़िरकन, सिलीमेनाइट तथा मोनाज़ाइट आदि खनिज के रूप में मिलता है। कुछ कम महत्व की इल्मेनाइटयुक्त तटीय बालू मालाबार, रामनाथपुरम्, तंजोर, विशाखपत्तनम्, रत्नगिरि तथा गंजाम जिलों में भी मिली है। केरल में इल्मेनाइटयुक्त तटीय बालू को खोदकर समीप के सांद्रण कारखानों को भेज दिया जाता है, जहाँ ९५ प्रतिशत शुद्धता का इल्मेनाइट प्राप्त किया जाता है। इल्मेनाइट का उपयोग आजकल 'टाइटेनियम श्वेत' नामक श्वेत तैल रंग के निर्माण में किया जाता है। टाइटेनियम श्वेत 'सफेदा' (लेड सल्फेट) से भी अधिक श्वेत होता है। इसका और इसके यौगिकों का उपयोग तैल रंगों के अतिरिक्त कागज, चर्म, सूती कपड़े, रबर, प्लैस्टिक आदि अनेक उद्योगों में होता है। धात्विक टाइटेनियम का उपयोग विशेष प्रकार के इस्पात के निर्माण में किया जाता है। उत्पादन-विश्व में इल्मेनाइट उत्पादन की दृष्टि से भारत का स्थान दूसरा है। .

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अनन्त कान्हेरे

अनंत लक्ष्मण कान्हेरे (1891 ई. - 11 अप्रैल, 1910) भारत के युवा क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्हें देश की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले युवाओं में गिना जाता है। अनन्त कान्हेरे का जन्म 1891 ई. में मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनके पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले के निवासी थे। उनकी आरम्भिक शिक्षा इंदौर में ही हुई थी। इसके बाद अपनी आगे की शिक्षा के लिए वे अपने मामा के पास औरंगाबाद चले गए। .

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अफई

अफई (Echis carinatus) छोटा और विषैला साँप है जिसका सिर तिकोना और जिसकी सफेद रंग की भूरी पृष्ठभूमि पर एक तीर का निशान बना रहता है। शरीर धूसरपन लिए हुए भूरा और उसपर पीले चिह्नों की एक शृंखला होती है। उक्त शृंखला देह के ऊपर एक वक्र बनाती है। अफई की लंबाई ५५० मि.मि.

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अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का ध्वज अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। यह एक भारतीय राष्ट्रवादी संगठन है। इसकी स्थापना सन १९१५ में हुई थी। विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे। केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे तथा इसे छोड़कर सन १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। भारत के स्वतन्त्रता के उपरान्त जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये। .

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