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मांचु लिपि

सूची मांचु लिपि

मांचु लिपि में 'मांचु' (मान्जु') शब्द लिखा हुआ एक पुरानी फ़्रांसिसी पुस्तक में मांचु वर्णमाला मांचु लिपि पूर्वोत्तर एशिया में बासनी वाले मांचुओं की मांचु भाषा को लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक वर्णमाला भी है। ठीक ऐसी ही लिपि का प्रयोग सुदूर-पश्चिमी चीन के शिनजियांग प्रान्त में बसने वाले शिबू लोग भी अपनी भाषा (जो मांचु की एक अन्य क़िस्म है) के लिए करते हैं। यह लिपि प्राचीन मंगोल लिपि में थोड़ा फेर-बदल कर के ली गई है। इसकी एक बड़ी ख़ासियत है कि इसे ऊपर-से-नीचे की ओर लिखा जाता है और इसकी पंक्तियाँ बाएँ से दाएँ चलती हैं। तुलना के लिए देवनागरी में लिखी गई हिंदी को बाएँ-से-दाएँ लिखा जाता है और इसकी पंक्तियाँ ऊपर से नीचे चलती हैं। मांचु भाषा को भाषावैज्ञानिक ख़तरे में मानते हैं और मांचु लिपि अब ज़्यादा ऐतिहासिक ग्रंथों-किताबों, इमारतों और धार्मिक लिखाइयों पर ही नज़र आती है।, Gertraude Roth Li, University of Hawaii Press, 2000, ISBN 978-0-8248-2206-4 .

4 संबंधों: नुरहाची, मान्छु, मांचु भाषा, मंगोल लिपि

नुरहाची

नुरहाची नुरहाची (मान्छु: 1 30px,nurgaci; चीनी: 努尔哈赤, अंग्रेज़ी: Nurhaci; जन्म: सन् १५५९; देहांत: ३० सितम्बर १६२६) एक प्रसिद्ध जुरचेन ख़ान (सरदार) था जिसने १६वीं शताब्दी के अंत में मंचूरिया के जुरचेन क़बीलो को एकत्रित किया और शक्तिशाली बनाया। अपने जीवनकाल में उसने आधुनिक चीन के उत्तर-पूर्वी लियाओनिंग प्रान्त के क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया जहाँ से उसके वंशजों ने आगे चलकर पूरे चीन पर फैलकर चिंग राजवंश के नाम से अपना राज चलाया। नुरहाची अइसिन गियोरो परिवार का सदस्य था और उसने सन् १६१६ से १६२६ में अपनी मृत्यु तक शासन किया। मान्छु भाषा के लिए मान्छु लिपि को बनवाने का श्रेय भी नुरहाची को ही दिया जाता है।, Willard J. Peterson, Cambridge University Press, 2002, ISBN 978-0-521-24334-6,...

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मान्छु

मान्छु या मान्चु एक बहुविकल्पी शब्द है, जिसके यह अर्थ हो सकते हैं.

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मांचु भाषा

तिब्बती लिपि में लिखा है और किनारों पर मांचु में, जो एक तुन्गुसी भाषा है मांचु या मान्चु (मांचु: ᠮᠠᠨᠵᡠ ᡤᡳᠰᡠᠨ, मांजु गिसुन) पूर्वोत्तरी जनवादी गणतंत्र चीन में बसने वाले मांचु समुदाय द्वारा बोली जाने वाली तुन्गुसी भाषा-परिवार की एक भाषा है। भाषावैज्ञानिक इसके अस्तित्व को ख़तरे में मानते हैं क्योंकि १ करोड़ से अधिक मांचु नसल के लोगों में से सिर्फ ७० हज़ार ही इसे अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। बाक़ियों ने चीनी भाषा को अपनाकर उसमें बात करना आरम्भ कर दिया है। मांचु भाषा की 'शिबे भाषा' नाम की एक अन्य क़िस्म चीन के दूर पश्चिमी शिनजियांग प्रान्त में भी मिलती है, जहाँ लगभग ४०,००० लोग उसे बोलते हैं। शिबे बोलने वाले लोग उन मांचुओं के वंशज हैं जिन्हें १६४४-१९११ ईसवी के काल में चलने वाले चिंग राजवंश के दौरान शिनजियांग की फ़ौजी छावनियों में तैनात किया गया था।, Edward J. M. Rhoads, University of Washington Press, 2001, ISBN 978-0-295-98040-9 मांचु एक जुरचेन नाम की भाषा की संतान है। जुरचेन में बहुत से मंगोल और चीनी शब्दों के मिश्रण से मांचु भाषा पैदा हुई। अन्य तुन्गुसी भाषाओँ की तरह मांचु में अभिश्लेषण (अगलूटिनेशन) और स्वर सहयोग (वावल हार्मोनी) देखे जाते हैं। मांचु की अपनी एक मांचु लिपि है, जिसे प्राचीन मंगोल लिपि से लिया गया था। इस लिपि की ख़ासियत है की यह ऊपर से नीचे लिखी जाती है। मांचु भाषा में वैसे तो लिंग-भेद नहीं किया जाता लेकिन कुछ शब्दों में स्वरों के इस्तेमाल से लिंग की पहचान होती है, मसलन 'आमा' का मतलब 'पिता' है जबकि 'एमे' का मतलब 'माता' है। .

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मंगोल लिपि

मंगोल लिपि में गुयुक ख़ान का सन् १२४६ का राजचिह्न इस सिक्के पर मंगोल लिपि में लिखा है कि यह 'रिन्छिन्दोर्जी ग​एख़ातू ने ख़ागान के नाम पर ज़र्ब किया' मंगोल लिपि (मंगोल: ᠮᠣᠩᠭᠣᠯ ᠪᠢᠴᠢᠭ᠌, सिरिलिक लिपि: Монгол бичиг, मोंगयोल बिचिग), जिसे उईग़ुरजिन भी कहते हैं, मंगोल भाषा को लिखने की सर्वप्रथम लिपि और वर्णमाला थी। यह उईग़ुर भाषा के लिए प्रयोग होने वाली प्राचीन लिपि को लेकर विकसित की गई थी और बहुत अरसे तक मंगोल भाषा लिखने के लिए सब से महत्वपूर्ण लिपि का दर्जा रखती थी।, Urgunge Onon, Brill Archive, 1990, ISBN 978-90-04-09236-5,...

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मान्छु लिपि

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