4 संबंधों: तथ्यवाद, जॉन आस्टिन, विधि, विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र।
तथ्यवाद
प्रत्यक्षवाद या तथ्यवाद (positivism) के दर्शन के अनुसार केवल वही ज्ञान प्रामाणिक ज्ञान (authentic knowledge) है जो ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त अनुभव पर आधारित हो। .
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जॉन आस्टिन
जॉन ऑस्टिन जॉन आस्टिन (John Austin; ३ मार्च सन् १७९० - १८५९) एक अंग्रेज न्यायज्ञ थे। उन्होने विधि के दर्शन तथा विधिशास्त्र पर बहुत अधिक लिखा है। उन्होने विधिक प्रत्यक्षवाद के सिद्धान्त के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। .
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विधि
विधि (या, कानून) किसी नियमसंहिता को कहते हैं। विधि प्रायः भलीभांति लिखी हुई संसूचकों (इन्स्ट्रक्शन्स) के रूप में होती है। समाज को सम्यक ढंग से चलाने के लिये विधि अत्यन्त आवश्यक है। विधि मनुष्य का आचरण के वे सामान्य नियम होते है जो राज्य द्वारा स्वीकृत तथा लागू किये जाते है, जिनका पालन अनिवर्य होता है। पालन न करने पर न्यायपालिका दण्ड देता है। कानूनी प्रणाली कई तरह के अधिकारों और जिम्मेदारियों को विस्तार से बताती है। विधि शब्द अपने आप में ही विधाता से जुड़ा हुआ शब्द लगता है। आध्यात्मिक जगत में 'विधि के विधान' का आशय 'विधाता द्वारा बनाये हुए कानून' से है। जीवन एवं मृत्यु विधाता के द्वारा बनाया हुआ कानून है या विधि का ही विधान कह सकते है। सामान्य रूप से विधाता का कानून, प्रकृति का कानून, जीव-जगत का कानून एवं समाज का कानून। राज्य द्वारा निर्मित विधि से आज पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। राजनीति आज समाज का अनिवार्य अंग हो गया है। समाज का प्रत्येक जीव कानूनों द्वारा संचालित है। आज समाज में भी विधि के शासन के नाम पर दुनिया भर में सरकारें नागरिकों के लिये विधि का निर्माण करती है। विधि का उदेश्य समाज के आचरण को नियमित करना है। अधिकार एवं दायित्वों के लिये स्पष्ट व्याख्या करना भी है साथ ही समाज में हो रहे अनैकतिक कार्य या लोकनीति के विरूद्ध होने वाले कार्यो को अपराध घोषित करके अपराधियों में भय पैदा करना भी अपराध विधि का उदेश्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1945 से लेकर आज तक अपने चार्टर के माध्यम से या अपने विभिन्न अनुसांगिक संगठनो के माध्यम से दुनिया के राज्यो को व नागरिकों को यह बताने का प्रयास किया कि बिना शांति के समाज का विकास संभव नहीं है परन्तु शांति के लिये सहअस्तित्व एवं न्यायपूर्ण दृष्टिकोण ही नहीं आचरण को जिंदा करना भी जरूरी है। न्यायपूर्ण समाज में ही शांति, सदभाव, मैत्री, सहअस्तित्व कायम हो पाता है। .
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विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र
विशिष्ट अर्थ में विधिशास्त्र को तीन भागों में विभाजित किया गया है जिन्हें सामण्ड ने क्रमशः विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र (Analytical Jurisprudence), ऐतिहासिक विधिशास्त्र (Historical Jurisprudence) एवं नैतिक विधिशास्त्र (Ethical Jurisprudence) कहा है। उल्लेखनीय है कि विधि के विविध पहलुओं में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि इनका पृथक विवेचन करने से विधिशास्त्र का विषय ही अपूर्ण रह जायेगा। अतः विधिशास्त्र के अध्ययन के लिये इन तीनों का समावेश आवश्यक है। विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र से आशय विधि के प्राथमिक सिद्धान्तों का विश्लेषण करना है। इस विश्लेषण में उनके ऐतिहासिक उद्गम अथवा विकास या नैतिक महत्व आदि का निरूपण नहीं किया जाता है। विधिशास्त्र की इस शाखा के प्रणेता जॉन ऑस्टिन थे जिन्होंने विधि-विज्ञान की विभिन्न समस्याओं के प्रति इस शाखा के विचारों का प्रतिपादन अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘प्राविन्स ऑफ ज्यूरिसप्रुडेन्स डिटरमिन्ड’ में किया जो सर्वप्रथम सन् 1832 में प्रकाशित हुई थी। इस शाखा के अन्य समर्थक मार्कबी (Markby), एमॉस (Amos), हॉलैण्ड (Holland) तथा सामण्ड (Salmond) हैं। .
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