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दुर्योधन

सूची दुर्योधन

Duryodana was defeated by Bhima - A scene from Razmanama.

59 संबंधों: चेकीतन, चीर हरण, दशहरा, दुःशला, दुःशासन, द्रौपदी, धौम्य, धृतराष्ट्र, नारायणी सेना, प्रतिविंद्य, बरनावा, बलराम, भानुमति, भीष्म का प्राण त्याग, मयासुर, महाभारत, महाभारत (२०१३ धारावाहिक), महाभारत (२०१३ फ़िल्म), महाभारत भाग २, महाभारत भाग ७, महाभारत में विभिन्न अवतार, महाभारत के पात्र, महाभारत की संक्षिप्त कथा, महासू उपत्यका, मेरठ, युयुत्सु, शतानीक, शल्य, शल्यपर्व, शाम्ब, शकुनि, श्रुतकर्मण, श्रुतकीर्ति, द्रौपदी पुत्र, सतनीक, सुतसोम, सुदक्षिण, सुरथ, स्त्रीपर्व, जौनसार बावर, विराटपर्व, विश्वरूप, गढ़वाल में धर्म, गदा, गांधारी, इन्दिरा गांधी, कर्ण, कर्ण झील, कर्णपर्व, किरातार्जुनीयम्, कुमाऊँ मण्डल, ..., कुरुक्षेत्र युद्ध, कौरव, कृतवर्मा, अरयण्कपर्व, अलम्बुष, अलायुध, उद्योगपर्व, उपपाण्डव, उरुभंग सूचकांक विस्तार (9 अधिक) »

चेकीतन

चेकीतन एक शात्वत योद्धा था और पाण्डवों का मित्र था। सत्यकि के अतिरिक्त वह अकेला ऐसा यदुवंशी था, जो पाण्डव सेना की ओर से लडा़। कुरुक्षेत्र के युद्ध में, उसने बहुत से योद्धओं को परास्त किया और कृपाचार्य के साथ उसका घमासान युद्ध हुआ। चेकीतन क वध दुर्योधन के द्वारा १८ वें दिन के युद्ध में हुआ। .

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चीर हरण

के सौजन्य से श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:धर्म श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:धर्म ग्रंथ श्रेणी:पौराणिक कथाएँ.

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दशहरा

दशहरा (विजयादशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा .

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दुःशला

दुःशला दुर्योधन की बहन थी जिसका विवाह सिन्धु एवम सौविरा नरेश जयद्रथ से हुआ था जिसका वध अर्जुन द्वारा कुरुक्षेत्र में किया गया। दुःशला के पुत्र का नाम सुरथ था। जब अर्जुन कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद युधिष्ठिर द्वारा आयोजित अश्वमेध यज्ञ के परिणाम स्वरुप प्राप्त होने वाले कर को लेने सिन्धु पहुचे तो दु:शला के पौत्र से उनका युद्ध हुआ अर्जुन ने सदा दुर्योधन की बहन को अपनी बहन माना अतः वे अपनी बहन के पौत्र और सुरथ के पुत्र को जीवन दान दे कर सिन्धु को छोड़ आगे बढ़ गए। श्रेणी:महाभारत के पात्र.

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दुःशासन

द्युत क्रीड़ा में द्रौपदी का वस्त्र हरता हुआ दु:शासन दुःशासन अथवा दुशासन प्रसिद्ध एवं प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार कुरुवंश में कौरव वंश के अंतर्गत हस्तिनापुर के कार्यकारी राजा धृतराष्ट्र का पुत्र था। इसी ने जुए के उपरांत दुर्योधन के कहने पर द्रौपदी का चीर हरण किया था। यह दुर्योधन के 100 भाइयों में से दुर्योधन से छोटा था। .

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द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे। .

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धौम्य

धौम्य नाम के कई व्यक्ति हुए हैं जिनमें एक धर्मशास्त्र के ग्रंथ के लेखक हैं। पर सबसे प्रसिद्ध हैं देवल के छोटे भाई जो पांडवों के कुलपुरोहित थे। ये अपोद ऋषि के पुत्र थे। इसलिये वे बहुधा आयोद धौम्य के नाम से जाने जाते हैं। आज से ५००० वर्ष पूर्व द्वापरयुग में हुए ऋषि धौम्य पांडवो के पुरोहित, कृष्ण प्रेमी और महान शिवभक्त थे। उन्होंने उत्कोचक तीर्थ में निवास करके सालों तक तपश्वर्या की थी। वे प्रजापति कुशाश्व और धिषणा के पुत्र थे और इस सम्बन्ध से प्रसिद्ध ऋषि देवल, वेदशिरा आदि के भाई थे। उनको देवगुरु बृहस्पति के समतूल्य सम्मान दिया जाता हैं। वे पांडवो के कुलगुरु तथा उपमन्यु, आरुणि, पांचाल और वैद के गुरु थे। घौम्य पांडवो के परम हितैशी ही नहीं, उनके समस्त कार्यों से जुडे़ हुये थे, ऐसा माना जाता है। .

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धृतराष्ट्र

महाभारत में धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के महाराज विचित्रवीर्य की पहली पत्नी अंबिका के पुत्र थे। उनका जन्म महर्षि वेद व्यास के वरदान स्वरूप हुआ था। हस्तिनापुर के ये नेत्रहीन महाराज सौ पुत्रों और एक पुत्री के पिता थे। उनकी पत्नी का नाम गांधारी था। बाद में ये सौ पुत्र कौरव कहलाए। दुर्योधन और दु:शासन क्रमशः पहले दो पुत्र थे। .

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नारायणी सेना

नारायणी सेना का शब्दार्थ "नारायण की सेना" है, अर्थात श्रीकृष्ण की सेना। श्रीकृष्ण ने स्वमं ग्वाल - यादवों को प्रशिक्षण कर यह सेना बनायी।दुर्योधन और अर्जुन दोनों श्रीकृष्ण से सहायता माँगने गये, तो श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को पहला अवसर प्रदान किया। श्रीकृष्ण ने कहा कि वह उसमें और उसकी सेना ('नारायणी सेना') में एक चुन ले। दुर्योधन ने नारायणी सेना का चुनाव किया। अर्जुन ने श्रीकृष्ण का चुनाव किया। इसी कारण से महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण की सेना स्वयं श्रीकृष्ण के विरुद्ध लड़ी थी। इसे चतुरंगिनी सेना भी कहते हैं। अर्थात सूझबूझ से परिपूर्ण। श्रेणी:सेना.

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प्रतिविंद्य

सतनीक द्रौपदी और युधिष्ठिर का पुत्र था। उसने कुरुसेना के बहुत से योद्धाओं को परास्त किया और अपने भाईयों के साथ मिलकर भूरिश्रेवास के बहुत से भाईयों और, दुर्योधन, दु:शासन और अन्य कौरवों के पुत्रों का वध किया। १८ वें दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात रात्री में सतनीक और उसके अन्य भाईयो का अश्वत्थामा ने सोते समय वध कर दिया। .

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बरनावा

बरनावा या वारणावत मेरठ से ३५ किलोमीटर दूर और सरधना से १७ कि.मी बागपत जिला में स्थित एक तहसील है। इसकी स्थापना राजा अहिरबारन तोमर ने बहुत समय पूर्व की थी। यहां महाभारत कालीन लाक्षाग्रह चिन्हित है। लाक्षाग्रह नामक इमारत के अवशेष यहां आज एक टीले के रूप में दिखाई देते हैं। महाभारत में कौरव भाइयों ने पांडवों को इस महल में ठहराया था और फिर जलाकर मारने की योजना बनायी थी। किन्तु पांडवों के शुभचिंतकों ने उन्हें गुप्त रूप से सूचित कर दिया और वे निकल भागे। वे यहां से गुप्त सुरंग द्वारा निकले थे। ये सुरंग आज भी निकलती है, जो हिंडन नदी के किनारे पर खुलती है। इतिहास अनुसार पांडव इसी सुरंग के रास्ते जलते महल से सुरक्षित बाहर निकल गए थे।। मुसाफ़िर हूं यारों। १६ दिसम्बर २००८। नीरज जाट जी जनपद में बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन में मिलन होता है। उल्लेखनीय है कि पांडवों ने जो पाँच गाँव दुर्योधन से माँगे थे वह गाँव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत, वरुपत (बरनावा) यानि पत नाम से जाने जाते हैं। जब श्रीकृष्ण जी संधि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास आए थे तो दुर्योधन ने कृष्ण का यह कहकर अपमान कर दिया था कि "युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी।" इस अपमान की वजह से कृष्ण ने दुर्योधन के यहाँ खाना भी नहीं खाया था। वे गए थे महामुनि विदुर के आश्रम में। विदुर का आश्रम आज गंगा के उस पार बिजनौर जिले में पड़ता है। वहां पर विदुर जी ने कृष्ण को बथुवे का साग खिलाया था। आज भी इस क्षेत्र में बथुवा बहुतायत से उगता है। .

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बलराम

पांचरात्र शास्त्रों के अनुसार बलराम (बलभद्र) भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका कृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका संबंध तीर्थकर नेमिनाथ से है। बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। ये शुंगकालीन हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है। बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है। कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामत: बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा। गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे। कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था। स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं। कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है। इनका सिंह से संबंध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है। मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं। .

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भानुमति

भानुमति सुदक्षिण कि बहन और दुर्योधन कि पत्नी।.

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भीष्म का प्राण त्याग

अपने वंश के नाश से दुखी पाण्डव अपने समस्त बन्धु-बान्धवों तथा भगवान श्रीकृष्ण को साथ ले कर कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह के पास गये। भीष्म जी शरशैया पर पड़े हुये अपने अन्त समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। भरतवंश शिरोमणि भीष्म जी के दर्शन के लिये उस समय नारद, धौम्य, पर्वतमुनि, वेदव्यास, वृहदस्व, भारद्वाज, वशिष्ठ, त्रित, इन्द्रमद, परशुराम, गृत्समद, असित, गौतम, अत्रि, सुदर्शन, काक्षीवान्, विश्वामित्र, शुकदेव, कश्यप, अंगिरा आदि सभी ब्रह्मर्षि, देवर्षि तथा राजर्षि अपने शिष्यों के साथ उपस्थित हुये। भीष्म पितामह ने भी उन सभी ब्रह्मर्षियों, देवर्षियों तथा राजर्षियों का धर्म, देश व काल के अनुसार यथेष्ठ सम्मान किया। सारे पाण्डव विनम्र भाव से भीष्म पितामह के पास जाकर बैठे। उन्हें देख कर भीष्म के नेत्रों से प्रेमाश्रु छलक उठे। उन्होंने कहा, "हे धर्मावतारों! अत्यन्त दुःख का विषय है कि आप लोगों को धर्म का आश्रय लेते हुये और भगवान श्रीकृष्ण की शरण में रहते हुये भी महान कष्ट सहने पड़े। बचपन में ही आपके पिता स्वर्गवासी हो गये, रानी कुन्ती ने बड़े कष्टों से आप लोगों को पाला। युवा होने पर दुर्योधन ने महान कष्ट दिया। परन्तु ये सारी घटनायें इन्हीं भगवान श्रीकृष्ण, जो अपने भक्तों को कष्ट में डाल कर उन्हें अपनी भक्ति देते हैं, की लीलाओं के कारण से ही हुये। जहाँ पर धर्मराज युधिष्ठिर, पवन पुत्र भीमसेन, गाण्डीवधारी अर्जुन और रक्षक के रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हों फिर वहाँ विपत्तियाँ कैसे आ सकती हैं? किन्तु इन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को बड़े बड़े ब्रह्मज्ञानी भी नहीं जान सकते। विश्व की सम्पूर्ण घटनायें ईश्वाराधीन हैं! अतः शोक और वेदना को त्याग कर निरीह प्रजा का पालन करो और सदा भगवान श्रीकृष्ण की शरण में रहो। ये श्रीकृष्णचन्द्र सर्वशक्तिमान साक्षात् ईश्वर हैं, अपनी माया से हम सब को मोहित करके यदुवंश में अवतीर्ण हुये हैं। इस गूढ़ तत्व को भगवान शंकर, देवर्षि नारद और भगवान कपिल ही जानते हैं। तुम लोग तो इन्हें मामा का पुत्र, अपना भाई और हितू ही मानते हो। तुमने इन्हें प्रेमपाश में बाँध कर अपना दूत, मन्त्री और यहाँ तक कि सारथी बना लिया है। इनसे अपने अतिथियों के चरण भी धुलवाये हैं। हे धर्मराज! ये समदर्शी होने पर भी अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं तभी यह मेरे अन्त समय में मुझे दर्शन देने कि लिये यहाँ पधारे हैं। जो भक्तजन भक्तिभाव से इनका स्मरण, कीर्तन करते हुये शरीर त्याग करते हैं, वे सम्पूर्ण कर्म बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं। मेरी यही कामना है कि इन्हीं के दर्शन करते हुये मैं अपना शरीर त्याग कर दूँ। धर्मराज युधिष्ठिर ने शरशैया पर पड़े हुये भीष्म जी से सम्पूर्ण ब्रह्मर्षियों तथा देवर्षियों के सम्मुख धर्म के विषय में अनेक प्रश्न पूछे। तत्वज्ञानी एवं धर्मेवेत्ता भीष्म जी ने वर्णाश्रम, राग-वैराग्य, निवृति-प्रवृति आदि के सम्बंध में अनेक रहस्यमय भेद समझाये तथा दानधर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म, स्त्रीधर्म, भगवत्धर्म, द्विविध धर्म आदि के विषय में विस्तार से चर्चा की। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के साधनों का भी उत्तम विधि से वर्णन किया। उसी काल में उत्तरायण सूर्य आ गये। अपनी मृत्यु का उत्तम समय जान कर भीष्म जी ने अपनी वाणी को संयम में कर के मन को सम्पूर्ण रागादि से हटा कर सच्चिदान्द भगवान श्रीकृष्ण में लगा दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना चतुर्भुज रूप धारण कर के दर्शन दिये। भीष्म जी ने श्रीकृष्ण की मोहिनी छवि पर अपने नेत्र एकटक लगा दिये और अपनी इन्द्रियों को रो कर भगवान की इस प्रकार स्तुति करने लगे - "मै अपने इस शुद्ध मन को देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में अर्पण करता हूँ। जो भगवान अकर्मा होते हुये भी अपनी लीला विलास के लिये योगमाया द्वारा इस संसार की श्रृष्टि रच कर लीला करते हैं, जिनका श्यामवर्ण है, जिनका तेज करोड़ों सूर्यों के समान है, जो पीताम्बरधारी हैं तथा चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म कण्ठ में कौस्तुभ मणि और वक्षस्थल पर वनमाला धारण किये हुये हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में मेरा मन समर्पित हो। इस तरह से भीष्म पितामह ने मन, वचन एवं कर्म से भगवान के आत्मरूप का ध्यान किया और उसी में अपने आप को लीन कर दिया। देवताओं ने आकाश से पुष्पवर्षा की और दुंदुभी बजाये। युधिष्ठिर ने उनके शव की अन्त्येष्टि क्रिया की। .

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मयासुर

श्रीकृष्ण मयासुर को पाण्डवों के लिये एक महल निर्माण का आदेश देते हुए मय या मयासुर, कश्यप और दुन का पुत्र, नमुचि का भाई, एक प्रसिद्ध दानव। यह ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र का आचार्य था। मय ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर अपने अद्भुत शिल्पशास्त्र के ज्ञान का परिचय दिया था। इसकी दो पत्नियाँ - हेमा और रंभा थीं जिनसे पाँच पुत्र तथा तीन कन्याएँ हुईं। जब शंकर ने त्रिपुरों को भस्म कर असुरों का नाश कर दिया तब मयासुर ने अमृतकुंड बनाकर सभी को जीवित कर दिया था किंतु विष्णु ने उसके इस प्रयास को विफल कर दिया। ब्रह्मपुराण (124) के अनुसार इंद्र द्वारा नमुचि का वध होने पर इसने इंद्र को पराजित करने के लिये तपस्या द्वारा अनेक माया विद्याएँ प्राप्त कर लीं। भयग्रस्त इंद्र ब्राह्मण वेश बनाकर उसके पास गए और छलपूर्वक मैत्री के लिये उन्होंने अनुरोध किया तथा असली रूप प्रकट कर दिया। इसपर मय ने अभयदान देकर उन्हें माया विद्याओं की शिक्षा दी। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाभारत (२०१३ धारावाहिक)

यह लेख 2013 में शुरु हुए धारावाहिक के उपर हैं, पुराने वाले के लिए देखे महाभारत (टीवी धारावाहिक)। फ़िल्म के लिए महाभारत (२०१३ फ़िल्म)। | show_name .

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महाभारत (२०१३ फ़िल्म)

महाभारत अमान खान निर्देशित भारतीय पौराणिक कथा नाटक एनिमेटेड फ़िल्म है। फ़िल्म के निर्माता कौशल कांतिलाल गदा एवं धवल जयंतिलाल गदा हैं। फ़िल्म क्रिसमस के अवसर पर २७ दिसम्बर २०१३ को जारी की गई। Several actors like अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, अजय देवगन, विद्या बालन, सनी देओल, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ, मनोज बाजपेयी, दीप्ती नवल फ़िल्म में विभिन्न पात्रों को आवाज देने के लिए चुने गये हैं। महाभारत को बॉलीवुड की सबसे मंहगी एनिमेटेड फ़िल्म माना जा रहा है। .

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महाभारत भाग २

एक बार हस्तिनापुर के महाराज गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर गंगा जाँघ पर बैठ गईं। गंगा ने कहा, "हे राजन्! मैं ऋषि की पुत्री गंगा हूँ और आपसे विवाह करने आपके पास आई हूँ।" इस पर महाराज प्रतीप बोले, "गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।" यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं। अब महाराज प्रतीप ने पुत्र प्राप्ति के लिये घोर तप करना आरम्भ कर दिया। उनके तप के फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने शान्तनु रखा। शान्तनु के युवा होने पर उसे गंगा के साथ विवाह करने का आदेश दे महाराज प्रतीप स्वर्ग चले गये। पिता के आदेश का पालन करने के लिये शान्तनु ने गंगा के पास जाकर उनसे विवाह करने के लिये निवेदन किया। गंगा बोलीं, "राजन्! मैं आपके साथ विवाह तो कर सकती हूँ किन्तु आपको वचन देना होगा कि आप मेरे किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।" शान्तनु ने गंगा के कहे अनुसार वचन दे कर उनसे विवाह कर लिया। गंगा के गर्भ से महाराज शान्तनु के आठ पुत्र हुये जिनमें से सात को गंगा ने गंगा नदी में ले जा कर बहा दिया और अपने दिये हुये वचन में बँधे होने के कारण महाराज शान्तनु कुछ बोल न सके। जब गंगा का आठवाँ पुत्र हुआ और वह उसे भी नदी में बहाने के लिये ले जाने लगी तो राजा शान्तनु से रहा न गया और वे बोले, "गंगे! तुमने मेरे सात पुत्रों को नदी में बहा दिया किन्तु अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मैंने कुछ न कहा। अब तुम मेरे इस आठवें पुत्र को भी बहाने जा रही हो। मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके इसे नदी में मत बहाओ।" यह सुन कर गंगा ने कहा, "राजन्! आपने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी है इसलिये अब मैं आपके पास नहीं रह सकती।" इतना कह कर गंगा अपने पुत्र के साथ अन्तर्ध्यान हो गईं। तत्पश्चात् महाराज शान्तनु ने छत्तीस वर्ष ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर के व्यतीत कर दिये। फिर एक दिन उन्होंने गंगा के किनारे जा कर गंगा से कहा, "गंगे! आज मेरी इच्छा उस बालक को देखने की हो रही है जिसे तुम अपने साथ ले गई थीं।" गंगा एक सुन्दर स्त्री के रूप में उस बालक के साथ प्रकट हो गईं और बोलीं, "राजन्! यह आपका पुत्र है तथा इसका नाम देवव्रत है, इसे ग्रहण करो। यह पराक्रमी होने के साथ विद्वान भी होगा। अस्त्र विद्या में यह परशुराम के समान होगा।" महाराज शान्तनु अपने पुत्र देवव्रत को पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुये और उसे अपने साथ हस्तिनापुर लाकर युवराज घोषित कर दिया। एक दिन महाराज शान्तनु यमुना के तट पर घूम रहे थे कि उन्हें नदी में नाव चलाते हुये एक सुन्दर कन्या दृष्टिगत हुई। उसके अंग अंग से सुगन्ध निकल रही थी। महाराज ने उस कन्या से पूछा, "हे देवि! तुम कौन हो?" कन्या ने बताया, "महाराज! मेरा नाम सत्यवती है और मैं निषाद कन्या हूँ।" महाराज उसके रूप यौवन पर रीझ कर तत्काल उसके पिता के पास पहुँचे और सत्यवती के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर धींवर (निषाद) बोला, "राजन्! मुझे अपनी कन्या का आपके साथ विवाह करने में कोई आपत्ति नहीं है परन्तु आपको मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाना होगा।।" निषाद के इन वचनों को सुन कर महाराज शान्तनु चुपचाप हस्तिनापुर लौट आये। सत्यवती के वियोग में महाराज शान्तनु व्याकुल रहने लगे। उनका शरीर दुर्बल होने लगा। महाराज की इस दशा को देख कर देवव्रत को बड़ी चिंता हुई। जब उन्हें मन्त्रियों के द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण ज्ञात हुआ तो वे तत्काल समस्त मन्त्रियों के साथ निषाद के घर जा पहुँचे और उन्होंने निषाद से कहा, "हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शान्तनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूँ कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालान्तर में मेरी कोई सन्तान आपकी पुत्री के सन्तान का अधिकार छीन न पाये इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं आजन्म अविवाहित रहूँगा।" उनकी इस प्रतिज्ञा को सुन कर निषाद ने हाथ जोड़ कर कहा, "हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।" इतना कह कर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मन्त्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया। देवव्रत ने अपनी माता सत्यवती को लाकर अपने पिता शान्तनु को सौंप दिया। पिता ने प्रसन्न होकर पुत्र से कहा, "वत्स! तूने पितृभक्ति के वशीभूत होकर ऐसी प्रतिज्ञा की है जैसी कि न आज तक किसी ने किया है और न भविष्य में करेगा। मैं तुझे वरदान देता हूँ कि तेरी मृत्यु तेरी इच्छा से ही होगी। तेरी इस प्रकार की प्रतिज्ञा करने के कारण तू भीष्म कहलायेगा और तेरी प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से सदैव प्रख्यात रहेगी।" उनके जैसा वीर इस संसार में और कोई नहीं है। वो अपने जीवनकाल में कभी भी किसी से भी परस्त नहीं हुए.

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महाभारत भाग ७

कोई विवरण नहीं।

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महाभारत में विभिन्न अवतार

यहाँ पर महाभारत में वर्णित अवतारों की सूची दी गयी है और साथ में वे किस देवता के अवतार हैं, यह भी दर्शाया गया है। .

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महाभारत के पात्र

* विदुर: हस्तिनापुर का महामंत्री।.

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महाभारत की संक्षिप्त कथा

महाभारत प्राचीन भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य है। ये एक धार्मिक ग्रन्थ भी है। इसमें उस समय का इतिहास लगभग १,११,००० श्लोकों में लिखा हुआ है। इस की पूर्ण कथा का संक्षेप इस प्रकार से है। .

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महासू उपत्यका

महासू उपत्यका उत्तराखंड में तौंस और यमुना नदियों के बीच का क्षेत्र है जिसका कालसी से हर की दून में हिमालय की धवल चोटियों तक विस्तार है। जौनसार बावर के नाम से परिचित इस क्षेत्र में महासू देवता का पौराणिक कथानक अनेक रूपों में गतिशील हैं। कुछ अन्य पौराणिक कथानक तथा ऐतिहासिक तथ्य कालसी, लाखामंडल, हनोल और नैटवाड़ में उजागर होते हैं। महासू देवता का संस्थान, इन कथानकों के समन्वय से, लोगों के मानसिक एवं सामाजिक प्रबंधन, तथा व्यवहार में रौद्र रस तथा माधूर्य भाव के प्रवाह, का नियोगी है। पारिस्थितिकीय दृष्टि से समृद्ध यह क्षेत्र, स्थानीय लोगों द्वारा ब्रितानी वन नीति के विरोध लिए विख्यात रहा। .

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मेरठ

मेरठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ नगर निगम कार्यरत है। यह प्राचीन नगर दिल्ली से ७२ कि॰मी॰ (४४ मील) उत्तर पूर्व में स्थित है। मेरठ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (ऍन.सी.आर) का हिस्सा है। यहाँ भारतीय सेना की एक छावनी भी है। यह उत्तर प्रदेश के सबसे तेजी से विकसित और शिक्षित होते जिलों में से एक है। मेरठ जिले में 12 ब्लॉक,34 जिला पंचायत सदस्य,80 नगर निगम पार्षद है। मेरठ जिले में 4 लोक सभा क्षेत्र सम्मिलित हैं, सरधना विधानसभा, मुजफ्फरनगर लोकसभा में हस्तिनापुर विधानसभा, बिजनौर लोकसभा में,सिवाल खास बागपत लोकसभा क्षेत्र में और मेरठ कैंट,मेरठ दक्षिण,मेरठ शहर,किठौर मेरठ लोकसभा क्षेत्र में है .

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युयुत्सु

युयुत्सु महाभारत का एक उज्जवल और तेजस्वी एक पात्र है। यह पात्र इसलिए विशेष है क्योंकि महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व धर्मराज युद्धिष्ठिर के आह्वान इस पात्र ने कौरवों की सेना का साथ छोड़कर पाण्डव सेना के साथ मिलने का निर्णय लिया था। युयुत्सु का जन्म एक दासी से हुआ था। युयुत्सु दुर्योधन का सौतेला भाई था। .

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शतानीक

शतानीक महाभारत के चरित्र द्रौपदी और भीम का पुत्र था। उसने कुरुसेना के बहुत से योद्धाओं को परास्त किया और अपने भाईयों के साथ मिलकर भूरिश्रवा के बहुत से भाईयों और, दुर्योधन, दु:शासन और अन्य कौरवों के पुत्रों का वध किया। १८ वें दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात रात्री में शतानीक और उसके अन्य भाईयो का अश्वत्थामा ने सोते समय वध कर दिया था। .

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शल्य

शल्य, माद्रा (मद्रदेश) के राजा जो पाण्डु के सगे साले और नकुल व सहदेव के मामा थे। महाभारत में दुर्योधन ने उन्हे छल द्वारा अपनी ओर से युद्ध करने के लिए राजी कर लिया। उन्होने कर्ण का सारथी बनना स्वीकार किया और कर्ण की मृत्यु के पश्चात युद्ध के अंतिम दिन कौरव सेना का नेतृत्व किया और उसी दिन युधिष्ठिर के हाथों मारे गए। इनकी बहन माद्री, कुंती की सौत थीं और पाण्डु के शव के साथ चिता पर जीवित भस्म हो गई थीं। कर्ण का सारथी बनते समय शल्य ने यह शर्त दुर्योधन के सम्मुख रखी थी कि उसे स्वेच्छा से बोलने की छूट रहेगी, चाहे वह कर्ण को भला लगे या बुरा। वे कर्ण के सारथी तो बन गये किन्तु उन्होने युधिष्ठिर को यह भी वचन दे दिया कि वे कर्ण को सदा हतोत्साहित करते रहेंगे। (मनोवैज्ञानिक युद्ध) दूसरी तरफ कर्ण भी बड़ा दम्भी था। जब भी कर्ण आत्मप्रशंसा करना आरम्भ करता, शल्य उसका उपहास करते और उसे हतोत्साहित करने का प्रयत्न करते। शल्य ने एक बार कर्ण को यह कथा सुनाई- .

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शल्यपर्व

शल्य पर्व के अन्तर्गत २ उपपर्व है और इस पर्व में ५९ अध्याय हैं। .

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शाम्ब

शाम्ब ने महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लिया लेकिन नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित महासमर उपन्यास के अनुसार शाम्ब कृष्ण का कनिष्ट पुत्र था और उसने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा का स्वयंवर के समय अपहरण कर लिया था। बाद में बलराम की मान-मनौवल के बाद इनका विवाह कर दिया गया। .

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शकुनि

शकुनि गंधार साम्राज्य का राजा था। यह स्थान आज के अफ़्ग़ानिस्तान में है। वह हस्तिनापुर महाराज और कौरवों के पिता धृतराष्ट्र का साला था और कौरवों का मामा। दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनि का हाथ माना जाता है और वह कुरुक्षेत्र के युद्ध के लिए दोषियों में प्रमुख माना जाता है। उसने कई बार पाण्डवों के साथ छल किया और अपने भांजे दुर्योधन को पाण्डवों के प्रति कुटिल चालें चलने के लिए उकसाया। .

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श्रुतकर्मण

श्रुतकर्मण द्रौपदी और सहदेव का पुत्र था। उसने कुरुसेना के बहुत से योद्धाओं को परास्त किया और अपने भाईयों के साथ मिलकर भूरिश्रेवास के बहुत से भाईयों और, दुर्योधन, दु:शासन और अन्य कौरवों के पुत्रों का वध किया। १८ वें दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात रात्री में श्रुतकर्मण और उसके अन्य भाईयो का अश्वत्थामा ने सोते समय वध कर दिया। .

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श्रुतकीर्ति, द्रौपदी पुत्र

श्रुतकीर्ति द्रौपदी और अर्जुन का पुत्र था। उसने कुरुसेना के बहुत से योद्धाओं को परास्त किया और अपने भाईयों के साथ मिलकर भूरिश्रेवास के बहुत से भाईयों और, दुर्योधन, दु:शासन और अन्य कौरवों क पुत्रों का वध किया। १८ वें दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात रात्री में श्रुतकीर्ति और उसके अन्य भाईयो का अश्वत्थामा ने सोते समय वध कर दिया। .

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सतनीक

सतनीक द्रौपदी और नकुल का पुत्र था। उसने कुरुसेना के बहुत से योद्धाओं को परास्त किया और अपने भाईयों के साथ मिलकर भूरिश्रेवास के बहुत से भाईयों और, दुर्योधन, दु:शासन और अन्य कौरवों के पुत्रों का वध किया। १८ वें दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात रात्री में सतनीक और उसके अन्य भाईयो का अश्वत्थामा ने सोते समय वध कर दिया। .

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सुतसोम

सतनीक द्रौपदी और भीम का पुत्र था। उसने कुरुसेना के बहुत से योद्धाओं को परास्त किया और अपने भाईयों के साथ मिलकर भूरिश्रेवास के बहुत से भाईयों और, दुर्योधन, दु:शासन और अन्य कौरवों के पुत्रों का वध किया। १८ वें दिन युद्ध समाप्त होने के पश्चात रात्री में सतनीक और उसके अन्य भाईयो का अश्वत्थामा ने सोते समय वध कर दिया। .

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सुदक्षिण

सुदक्षिण कम्बोज का राजा था। उसकी बहन भानुमति का विवाह दुर्योधन से हुआ था। वह एक महारथी भी था और महाभारत के युद्ध में कौरव सेना कि ओर से लडा़। वह चौदहवें दिन के युद्ध में अर्जुन द्वारा मारा गया। .

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सुरथ

सुरथ महाभारत का एक पात्र है। वह दुर्योधन की बहन दुःशला एवं बहनोई जयद्रथ का पुत्र था। श्रेणी:महाभारत के पात्र.

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स्त्रीपर्व

स्त्री पर्व के अन्तर्गत ३ उपपर्व आते हैं, तथा २७ अध्याय है। .

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जौनसार बावर

जौनसार बावर मसूरी के १५ किलोमीटर दूर चकराता तहसील में देहरादून जिले का एक गाँव है। यह स्थान जौनसारी जनजाति का मूल स्थान है जिनकी जड़े महाभारत के पाण्डवों से निकली हुई हैं।.

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विराटपर्व

विराट पर्व के अन्तर्गत ५ उपपर्व और ७२ अध्याय हैं। .

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विश्वरूप

विश्वरूप अथवा विराट रूप भगवान विष्णु तथा कृष्ण का सार्वभौमिक स्वरूप है। इस रूप का प्रचलित कथा भगवद्गीता के अध्याय ११ पर है, जिसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध में विश्वरूप दर्शन कराते हैं। यह युद्ध कौरवों तथा पाण्डवों के बीच राज्य को लेकर हुआ था। इसके संदर्भ में वेदव्यास कृत महाभारत ग्रंथ प्रचलित है। परंतु विश्वरूप दर्शन राजा बलि आदि ने भी किया है। भगवान श्री कृष्ण नें गीता में कहा है-- पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः। नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।। अर्थात् हे पार्थ! अब तुम मेरे अनेक अलौकिक रूपों को देखो। मैं तुम्हें अनेक प्रकार की आकृतियों वाले रंगो को दिखाता हूँ। कुरुक्षेत्र में कृष्ण और अर्जुन युद्ध के लिये तत्पर। विश्वरूप अर्थात् विश्व (संसार) और रूप। अपने विश्वरूप में भगवान संपूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन एक पल में करा देते हैं। जिसमें ऐसी वस्तुऐं होती हैं जिन्हें मनुष्य नें देखा है परंतु ऐसी वस्तुऐं भी होतीं हैं जिसे मानव ने न ही देखा और न ही देख पाएगा। .

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गढ़वाल में धर्म

गढ़वाल में निवास करने वाले व्यक्तियों में से अधिकांश हिन्दू हैं। यहाँ निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों में मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं बौद्ध धर्म के लोग सम्मिलित हैं। गढ़वाल का अधिकांश भाग पवित्र भू-दृश्यों एवं प्रतिवेशों से परिपूर्ण है। उनकी पवित्रता देवताओं/पौराणिक व्यक्ति तत्वों, साधुओं एवं पौराणिक एतिहासिक घटनाओं से सम्बद्ध है। गढ़वाल के वातावरण एवं प्राकृतिक परिवेश का धर्म पर अत्याधिक प्रभाव पडा है। विष्णु एवं शिव के विभिन्न स्वरुपों की पूजा सम्पूर्ण क्षेत्र में किये जाने के साथ-2 इस पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय देवी एवं देवताओं की भी बहुत अधिक पूजा-अर्चना की जाती है। कठिन भू-भाग एवं जलवायु स्थितयों के कारण पहाडों पर जीवन कठिनाइयों एवं आपदाओं से परिपूर्ण है। भय को दूर करने के लिए यहाँ स्थानीय देवी देवताओं की पूजा लोकप्रिय है। यहां सभी हिन्दू मत हैं: वैष्णव, शैव एवं शाक्त। गढ़वाल में निवास करने वाले व्यक्तियों में से अधिकांश हिन्दू हैं। यहाँ निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों में मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं बौद्ध धर्म के लोग सम्मिलित हैं। धर्म के आधार पर गढ़वाल के निवासियों की जनसंख्या विभाजन निम्न है।.

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गदा

द्रोणगिरि पर्वत उठाये तथा बायें हाथ में गदा लिये हनुमान की प्रतिमा गदा, एक प्राचीन भारतीय पौराणिक आयुध है। इसमें एक लम्बा दण्ड होता है ओर उसके एक सिरे पर भारी गोल लट्टू सरीखा शीर्ष होता है। दण्ड पकड़कर शीर्ष की ओर से शत्रु पर प्रहार किया जाता था। इसका प्रयोग बल सापेक्ष्य और अति कठिन माना जाता था। गदा हनुमान (जो कि भगवान शिव के अवतार हैं) का मुख्य हथियार है। हनुमान को बल-सौष्ठव (विशेषकर पहलवानी) का देवता माना जाता है। हिन्दू धर्म में त्रिदेव में से एक विष्णु भी एक हाथ में गदा धारण करते हैं। .

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गांधारी

गांधारी महाभारत की एक पात्र हैं। वो महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी थी और प्रमुख खलनायक दुर्योधन की माँ थीं। गांधारी देख सकती थीं लेकिन पति के आँखों से विकलांग होने के कारण उन्होंने खुद की आँखों पर भी हमेशा के लिए एक पट्टी बाँध ली थी। महाभारत के अनुसार वो सौ पुत्रों की माता थीं। .

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इन्दिरा गांधी

युवा इन्दिरा नेहरू औरमहात्मा गांधी एक अनशन के दौरान इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। .

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कर्ण

जावानी रंगमंच में कर्ण। कर्ण महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थी। कर्ण का जन्म कुन्ती का पाण्डु के साथ विवाह होने से पूर्व हुआ था। कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। वह सूर्य पुत्र था। कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि कर्ण को कभी भी वह सब नहीं मिला जिसका वह वास्तविक रूप से अधिकारी था। तर्कसंगत रूप से कहा जाए तो हस्तिनापुर के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी कर्ण ही था क्योंकि वह कुरु राजपरिवार से ही था और युधिष्ठिर और दुर्योधन से ज्येष्ठ था, लेकिन उसकी वास्तविक पहचान उसकी मृत्यु तक अज्ञात ही रही। कर्ण की छवि द्रौपदी का अपमान किए जाने और अभिमन्यु वध में उसकी नकारात्मक भूमिका के कारण धूमिल भी हुई थी लेकिन कुल मिलाकर कर्ण को एक दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। .

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कर्ण झील

कर्ण झील हरियाणा के करनाल शहर के पास स्थित है। यह राज्य की राजधानी चंडीगढ तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दोनों से लगभग १२५ किमी की दूरी पर है। इस कारण से यह स्थान इन दो महत्वपूर्ण स्थानों के यात्रियों के लिये विश्राम स्थल का कार्य करता है। .

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कर्णपर्व

कर्ण पर्व के अन्तर्गत कोई भी उपपर्व नहीं है और अध्यायों की संख्या ७९ है। .

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किरातार्जुनीयम्

अर्जुन शिव को पहचान जाते हैं और नतमस्तक हो जाते हैं। (राजा रवि वर्मा द्वारा१९वीं शती में चित्रित) किरातार्जुनीयम् महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. में रचित महाकाव्य है जिसे संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की 'वृहत्त्रयी' में स्थान प्राप्त है। महाभारत में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत है किन्तु यह मुख्यतः वीर रस प्रधान रचना है। संस्कृत के छ: प्रसिद्ध महाकाव्य हैं – बृहत्त्रयी और लघुत्रयी। किरातार्जनुयीयम्‌ (भारवि), शिशुपालवधम्‌ (माघ) और नैषधीयचरितम्‌ (श्रीहर्ष)– बृहत्त्रयी कहलाते हैं। कुमारसम्भवम्‌, रघुवंशम् और मेघदूतम् (तीनों कालिदास द्वारा रचित) - लघुत्रयी कहलाते हैं। किरातार्जुनीयम्‌ भारवि की एकमात्र उपलब्ध कृति है, जिसने एक सांगोपांग महाकाव्य का मार्ग प्रशस्त किया। माघ-जैसे कवियों ने उसी का अनुगमन करते हुए संस्कृत साहित्य भण्डार को इस विधा से समृद्ध किया और इसे नई ऊँचाई प्रदान की। कालिदास की लघुत्रयी और अश्वघोष के बुद्धचरितम्‌ में महाकाव्य की जिस धारा का दर्शन होता है, अपने विशिष्ट गुणों के होते हुए भी उसमें वह विषदता और समग्रता नहीं है, जिसका सूत्रपात भारवि ने किया। संस्कृत में किरातार्जुनीयम्‌ की कम से कम 37 टीकाएँ हुई हैं, जिनमें मल्लिनाथ की टीका घंटापथ सर्वश्रेष्ठ है। सन 1912 में कार्ल कैप्पलर ने हारवर्ड ओरियेंटल सीरीज के अंतर्गत किरातार्जुनीयम् का जर्मन अनुवाद किया। अंग्रेजी में भी इसके भिन्न-भिन्न भागों के छ: से अधिक अनुवाद हो चुके हैं। .

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कुमाऊँ मण्डल

यह लेख कुमाऊँ मण्डल पर है। अन्य कुमाऊँ लेखों के लिए देखें कुमांऊॅं उत्तराखण्ड के मण्डल कुमाऊँ मण्डल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के दो प्रमुख मण्डलों में से एक हैं। अन्य मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ मण्डल में निम्न जिले आते हैं:-.

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कुरुक्षेत्र युद्ध

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,सौप्तिकपर्व इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,भीष्मपर्व इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। महाभारत में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। १०० कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त युद्ध को हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुआ माना जाता है। इस युद्ध में पाण्डव विजयी हुए थे। महाभारत में इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध था। महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र में भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के बाण और भाले प्राप्त हुए हैं। गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ७०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोजे गये हैं, जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया, इसके अलावा बरनावा में भी लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं, ये सभी प्रमाण महाभारत की वास्तविकता को सिद्ध करते हैं। .

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कौरव

कौरव महाभारत के विशिष्ट पात्र हैं। कौरवों की संख्या १०० थी तथा वे सभी सहोदर थे। युधिष्ठिर के पुत्र लछमण कुमार की पत्नी गर्भवती थी उसका मायका मथुरा में था सीरीपत जी की पुत्री थी महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद वो अपने मायके चली गयी वहां कुलगुरु कृपाचार्य के वंशज रहते थे उन्होंने उस लड़की की रक्षा की कानावती से पुत्र कानकुंवर हुआ नौ पीढ़ी तक मथुरा में रहने के बाद विजय पाल ने बिहार स्टेट में वैशाली का राज किया जो अब मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर-ग्वालियर-भिंड-दतिया जबलपुर, विदिशा, भोपाल, रायसेन, होशंगाबाद, आदि जिलो में रहते हैं। .

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कृतवर्मा

कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजवंशीय हृदिक का पुत्र और वृष्णिवंश के सात सेनानायकों में एक। महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी। यह कौरव पक्ष का अतिरथी वीर था (महाभारत, उद्योगपर्व, 130-10-11)। महाभारत के युद्ध में इसने अपने पराक्रम का अनेक बार प्रदर्शन किया; अनेक बार पांडव सेना को युद्धविमुख किया तथा भीमसेन, युधिष्ठिर, धृष्टद्युम्न, उत्तमौजा आदि वीरों को पराजित किया। द्वैपायन सरोवर पर जाकर इसी ने दुर्योधन को युद्ध के लिए उत्साहित किया था। निशाकाल के सौप्तिक युद्ध में इसने अश्वत्थामा का साथ दिया तथा शिविर से भागे हुए योद्धाओं का वध किया (सौप्तिक पर्व 5-106-107) और पांडवों के शिविर में आग लगाई। मौसल युद्ध में सात्यकि ने इसका वध किया। महाभारत के अनुसार मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग जाने पर इसका प्रवेश मरुद्गणों में हो गया। .

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अरयण्कपर्व

महाभारत के वन पर्व के अन्तर्गत २२ उपपर्व और ३१५ अध्याय हैं। .

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अलम्बुष

अलम्बुष एक राक्षस योद्धा था और दुर्योधन का मित्र था। आठवें दिन के युद्ध में उसने अर्जुन के पुत्र इरावन का वध कर दिया। अलम्बुष और एक अन्य राक्षस अलायुध चौदहवें दिन के युद्ध में घटोत्कच द्वारा मारे गए। अलम्बुष एवं घटोत्कच आपस में कड़े प्रतिद्वंदी थे। घटोत्कच की ही तरह अलम्बुष कई प्रकार की माया करना जानता था। अलम्बुष ने भीम को भी महाभारत युद्ध में कड़ी चुनोती दी। .

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अलायुध

अलायुध महाभारत काल का एक राक्षस था जो उसी काल के एक अन्य राक्षस अलम्बुष के साथ चौदहवें दिन के युद्ध में घटोत्कच के हाथों मारा गया। अलायुध कौरव पक्ष का एक योद्धा था। अलायुध राक्षस जाति का था और वह भीम का रिश्तेदार भी था पर वह भीम के हिडिम्बा से विवाह से नाखुश था। वह भीम के हाथों हिडिम्बा के भाई हिडिम्ब की मौत से आहत था। वह वकाशुर के मारे जाने का बदला लेना चाहता था। वह नस्ली भावना से पीड़ित था और भीम को अपनी जाति के अपमान से जोड़ कर देखता था। अपने किशोरावस्था से ही वह भीम से घृणा पाले बैठा था और किसी ना किसी दिन भीम से बदला लेने का स्वप्न देखता। वह भीम के पुत्र घटोत्कच को भी आधा विजातीय मान उससे बराबर घृणा करता पर साथ-साथ रहने के कारण वह उसे सीधे कुछ कह ना पाता। अनेक बार उसने घटोत्कच को अपने वंश का कलंक और अविश्वासी सिद्ध करने का प्रयास भी किया पर घटोत्कच के अच्छे व्यवहार, पराक्रम और हिडिम्बा के प्रभाव के कारण अलायुध की एक ना चली। उस कबीले में सामान्य तौर पर सभी लोग पांडवों और विशेष कर भीम के लिये श्रद्धा रखते पर अलायुध और उसके कुछ साथी भीम को अपने वंश के अपमान का प्रतीक मानते। युद्ध के पहले भीम ने घटोत्कच को आपने पक्ष से युद्ध हेतु निमंत्रण भेजा। घटोत्कच वहाँ अपने अन्य मित्रों और स्वजनो के साथ युद्ध करने पहुँचा। उसने अलायुध को भी साथ आने का आग्रह किया पर अलायुध के मन में तो कुछ और ही था। युद्ध के चौदहवें दिन युद्द रात्रि में भी जारी रहा तो घटोत्कच की शक्तियाँ अन्धकार के कारण एकदम बढ़ी और वह भीषण रूप से कौरवों का अन्त करने लगा। वह मायावी भी था और उसे रोक पाना कर्ण के लिये भी कठिन था। तभी युद्ध भूमि में अलायुध ने प्रवेश किया। उसने दुर्योधन को संपर्क कर कौरव पक्ष से युद्ध करने की अनुमति माँगी। उसका एकमात्र उद्देश्य था भीम का अन्त करना। दुर्योधन तो खुश हो गया पर कर्ण ने विरोध करते हुए ऐसे असुरों को अविश्वासी बताया और अपने दम पर भीम और अर्जुन के अन्त की बात की। घटोत्कच के पराक्रम और प्रलय से त्रस्त दुर्योधन ने कर्णकी एक ना सुनी और उसे घटोत्कच तक ही सीमित रहने को कह अलायुध का स्वागत किया। अलायुध ने संपूर्ण बल, छल और आवेश से भीेम पर आक्रमण किया। वह बदले की भावना से जलता हुआ और भयंकर हो उठा। लम्बे युद्ध के बाद भीम धीरे-धीरे शिथिल पड़ने लगा। एक ओर अलायुध का छल-भरा युद्ध और दूसरी ओर उसकी माया, भीम बचाव की मुद्रा में आने लगा। भगवान कृष्ण के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें उभरने लगीं। तभी हुँकार करता घटोत्कच बीच में आ खडा हुआ। घटोत्कच ने अलायुध को समझाते हुए वापस जाने को कहा। उसने परिवार के लोगों का वास्ता दे कर कहा कि आपस में युद्ध करना मूर्खता है। उसने बचपन के साथ के दिनों का हवाला दे कर आपसी युद्ध टालना चाहा। पर अलायुध नकारात्मक विष से भरा था। उसने जहर उगलते हुए अपने पूर्वजों की भीम के हाथों पराजय की बात की और भीम के साथ- साथ घटोत्कच का भी वध करके अपने वंश के अपमान का बदला लेने की घोषणा की। विवश हो कर घटोत्कच अलायुध से लड़ पड़ा। उसने अलायुध को अनेक मौके दिये और बार-बार उसे समझाता रहा पर अलायुध भीषण और भीषण होता गया। उसने घटोत्कच की सदाशयता को उसकी कमजोरी से ज्यादा कुछ नहीं समझा। आखिर भगवान कृष्ण ने घटोत्कच को समझाया - हे पुत्र घटोत्कच ! अभी तुम पर वार कर रहा अलायुध तुम्हारा स्वजन नहीं है ना ही दया का पात्र है। युद्ध में शत्रु को अनेक बार अवसर देने वाले अपने विनाश का कारण स्वयँ बनते हैं अतः प्रथम अवसर पर ही शत्रु का अन्त करना ही समझदारी है। घटोत्कच ने अगले ही पल अलायुध को गिरा कर उसका वध कर दिया। श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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उद्योगपर्व

उद्योग पर्व के अन्तर्गत १० उपपर्व हैं और इसमें कुल १९६ अध्याय हैं। .

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उपपाण्डव

महाभारत में, उपपाण्डव या पाण्डवपुत्र या पंचकुमार, द्रौपदी से जन्में पाँच पुत्रों को कहते हैं। प्रत्येक पाण्डव से द्रौपदी को एक पुत्र पैदा हुआ था। इन पंचकुमारों के नाम ये हैं- प्रतिविन्ध्य, शतनिक, सुतसोम, श्रुतसेन, और श्रुतकर्म। इन्होने महाभारत में पाण्डवों के तरफ से युद्ध किया किन्तु महाभारत में इनके बारे में बहुत कम वर्णन है। इन पाँचों कुमारों को अश्वत्थामा ने युद्ध के अन्तिम दिन मार दिया था। .

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उरुभंग

उरुभंग (संस्कृत: ऊरुभंगम्), (अक्षरशः अर्थ- "घुटनों का टूटना"), भास द्वारा लिखा गया संस्कृत नाटक है। यह २री से ३री शताब्दी ईसवी के बीच लिखा गया। यह सुप्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत पर आधारित है। उरुभंग भीम व दुर्योधन के युद्ध के दौरान व उसके बाद के दुर्योधन के चरित्र पर केन्द्रित है। यद्यपि उरुभंग की केन्द्रीय पटकथा वही है जो महाभारत में है, परन्तु भास द्वारा कुछ परिप्रेक्ष्यों को बदल दिये जाने से कथा का निरूपण बदल गया है। इनमें सबसे चरम बदलाव है- भास द्वारा दुर्योधन का चित्रण, जो कि महाभारत में एक खलनायक की तरह दिखता है, परन्तु उरुभंग में अपेक्षाकृत ज्यादा मानवीयगुणोपेत दिखाया गया है। जबकि संस्कृत नाट्य में दुःखान्त नाटक दुर्लभ होते हैं, भास द्वारा कथा का दुर्योधन वाला पक्ष प्रदर्शित करना इस कथा में दुःखान्तकीय तत्व डाल देता है। .

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