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चार्ल्स डार्विन

सूची चार्ल्स डार्विन

चार्ल्स डार्विन चार्ल्स डार्विन (१२ फरवरी, १८०९ – १९ अप्रैल १८८२) ने क्रमविकास (evolution) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका शोध आंशिक रूप से १८३१ से १८३६ में एचएमएस बीगल पर उनकी समुद्र यात्रा के संग्रहों पर आधारित था। इनमें से कई संग्रह इस संग्रहालय में अभी भी उपस्थित हैं। डार्विन महान वैज्ञानिक थे - आज जो हम सजीव चीजें देखते हैं, उनकी उत्पत्ति तथा विविधता को समझने के लिए उनका विकास का सिद्धान्त सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन चुका है। संचार डार्विन के शोध का केन्द्र-बिन्दु था। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव (Origin of Species (हिंदी में - 'ऑरिजिन ऑफ स्पीसीज़')) प्रजातियों की उत्पत्ति सामान्य पाठकों पर केंद्रित थी। डार्विन चाहते थे कि उनका सिद्धान्त यथासम्भव व्यापक रूप से प्रसारित हो। डार्विन के विकास के सिद्धान्त से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस प्रकार विभिन्न प्रजातियां एक दूसरे के साथ जुङी हुई हैं। उदाहरणतः वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि रूस की बैकाल झील में प्रजातियों की विविधता कैसे विकसित हुई। .

71 संबंधों: चार्ल्स ब्रेडलॉफ, चिंपैंजी, एचएमएस बीगल, एडिनबर्ग, एर्न्स्ट हेक्केल, ऐतिहासिक भौतिकवाद, डायनासोर, डारविन पर्वत (ऐन्डीज़), डार्विन (गैलापागोस), डार्विनवाद, द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़ (प्रजातिओं की उत्पत्ति), दशावतार, द्वितीय विश्व युद्घ, न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम, नृतत्वशास्त्र के सिद्धांत, नेचर (पत्रिका), पक्षीविज्ञान, पुष्प, प्रसिद्ध पुस्तकें, प्राणियों और वनस्पतियों का देशीकरण, प्राकृतिक वरण, प्रकृतिवाद (दर्शन), पीटर क्रोपोत्किन, फ्रेडरिक नीत्शे, ब्रिटिश काउंसिल, भारतीय मोर, भावना, मानस शास्त्र, मानव का विकास, मृत्यु, यूनाइटेड किंगडम, यूनिक्स, राॅबर्ट वाॅशोप (ब्रिटिश नौसेना अधिकारी), रिचर्ड डॉकिन्स, रोहित शर्मा, लैमार्कवाद, शिक्षा दर्शन, सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट), सामाजिक परिवर्तन, सिडनी बंदरगाह पुल, स्वयंपाठी, स्वस्थतम की उत्तरजीविता, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द, सैन क्रिस्टोबाल (गैलापागोस), हरबर्ट स्पेंसर, जनसंख्या आनुवांशिकी, जाति (जीवविज्ञान), जंतुओं के रंग, जैव संरक्षण, ..., जीवन वृक्ष (विज्ञान), जीवजाति का उद्भव, जीवविज्ञान का इतिहास, जीववैज्ञानिक वर्गीकरण, वनस्पति विज्ञान, विवाह, खेल सिद्धांत, गैलापागोस द्वीपसमूह, आधुनिकतावाद, आग, इंग्लिश मास्टिफ़, कार्ल मार्क्स, कार्ल सेगन, क्रम-विकास, क्रम-विकास से परिचय, क्रांतिकारी बदलाव, अनसाइक्लोपीडिया, अल्बर्ट आइंस्टीन, अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट, अशाब्दिक संप्रेषण, अंग्रेज़ सूचकांक विस्तार (21 अधिक) »

चार्ल्स ब्रेडलॉफ

चार्ल्स ब्रेडलॉफ (26 सितम्बर 1833 - 30 जनवरी 1891) एक राजनैतिक कार्यकर्ता एवं उन्नीसवीं शताब्दी इंग्लैंड के एक बहुचर्चित नास्तिक थे। उन्होंने 1866 में नेशनल सेक्युलर सोसाइटी की स्थापना की.

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चिंपैंजी

चिंपैंजी जिसे आम बोलचाल की भाषा में कभी-कभी चिम्प भी कहा जाता है, पैन जीनस (वंश) के वानरों (एप) की दो वर्तमान प्रजातियों का सामान्य नाम है। कांगो नदी दोनों प्रजातियों के मूल निवास स्थान के बीच सीमा का काम करती है.

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एचएमएस बीगल

एचएमएस बीगल चेरोकी वर्ग की 10 तोपों वाली शाही नौसेना की ब्रिगेडियर-छोटी नाव थी, जिसका जलावतरण 11 मई 1820 को टेम्स नदी पर स्थित वूलविक गोदी पर किया गया था, जिसकी कुल लागत £ 7,803 थी। इसी वर्ष जुलाई में इस पोत ने संयुक्त राजशाही के राजा जॉर्ज चतुर्थ के राज्याभिषेक के समारोह की समुद्री परेड में हिस्सा लिया था और इस परेड के दौरान यह लंदन पुल के नीचे से गुजरने वाला पहला पोत था। इसके बाद कुछ समय तक यह किसी काम में नहीं लिया गया। इसके बाद इसे एक सर्वेक्षण पोत के रूप में रूपांतरित किया गया और इसने तीन अभियानों में भाग लिया। इसकी दूसरी सर्वेक्षण यात्रा पर युवा प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन इस पोत पर था और चार्ल्स डार्विन के क्रम-विकास के सिद्धांत ने बीगल को इतिहास का एक सबसे प्रसिद्ध पोत बना दिया। .

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एडिनबर्ग

एडिनबर्ग या एडिनबर (Edinburgh,अंग्रेजी उच्चारण: / ए॑डिन्बर / Dùn Èideann डुन एडिऽन्न), स्कॉटलैंड की राजधानी, एवं ग्लासगो के बाद, स्कॉटलैंड का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह स्काॅटलैन्ड के लोथियन क्षेत्र में फ़ाॅर्थ के नदमुख के दक्षिणी तट पर स्थित है। वर्ष 2013 के हिसाब से,इस शहर की आबादी 5,00,000 के करीब है। 15वीं सदी से ही यह ऐतिहासिक शहर स्कॉटलैंड की राजधानी है। शुरुआत से ही स्काॅटियाई राजशाही के सारे महत्वपूर्ण प्रशासनिक भवन इसी शहर में ही स्थित हुआ करते थे, परंतू 1603 और 1707 के बीच, इंग्लैंड से विलय के पश्चात इस शहर की काफ़ी राजनैतिक ताकत लंदन चली गई। 1999 में स्कॉटिश संसद को स्वायत्त रूप से शाही धोषणा द्वारा स्थापित किया गया तब से यह शहर स्काॅटलैंड की संसद व स्काॅटलैंड में राजगद्दी का आसन है। स्कॉटलैंड का राष्ट्रीय संग्रहालय, स्कॉटलैंड का राष्ट्रीय पुस्तकालय और स्कॉटलैंड की अन्य महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संस्थाओं के मुख्यालय व नेशनल गैलरी यहीं एडिनबर्ग में स्थित हैं। आर्थिक रूप से, यह यूके में लंदन के बाहर का सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र है। एडिनबर्ग का इतिहास काफ़ी लम्बा है, एवं यहां कई ऐतिहासिक इमारतों को भी अच्छी तरह से संरक्षित देखे जा सकते हैं। एडिनबर्ग कासल, हाॅलीरूड पैलेस, सेंट जाइल्स कैथेड्रल और कई अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतें यहां स्थित हैं। एडिनबर्ग का ओल्ड टाउन और न्यू टाउन, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। 2004 में, एडिनबर्ग विश्व साहित्य में पहला शहर बन गया। साथी यह ऐतिहासिक रूप से शिक्षा का भी एक विकसित केन्द्र रहा है, यहाँ स्थित, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, ब्रिटेन के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है, एवं यह अब भी दुनिया के शीर्ष सिक्षा संस्थानों में शामिल है। इसके अलावा एडिनबर्ग अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव और यहां आयोजित किये गए अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी विश्वविख्यात समारोहों में से एक है। लंडन के बाद ब्रिटेन में, एडिनबर्ग दूसरा सबसे बड़ा पर्यटन केन्द्र है। .

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एर्न्स्ट हेक्केल

26 वर्ष की आयु में '''एर्न्स्ट हैक्केल''' एर्न्स्ट हाइनरिख हेकेल, (Ernst Heinrich Haeckel, १६ फ़रवरी १८३४ - ९ अगस्त १९१९), जर्मन प्राणिविज्ञानी, प्राध्यापक, कलाकर तथा दार्शनिक थे। इन्होने हजारों जीवजन्तुओं को खोजा, उनका वर्न किया एवं उनका नामकरण किया। हेक्केल ने डार्विन के सिद्धान्तों को जर्मनी में प्रचारित-प्रसारित किया। .

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ऐतिहासिक भौतिकवाद

ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical materialism) समाज और उसके इतिहास के अध्ययन में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical materialism) के सिद्धांतों का प्रसारण है। आधुनिक काल में चूँकि इतिहास को मात्र विवरणात्मक न मानकर व्याख्यात्मक अधिक माना जाता है और वह अब केवल आकस्मिक घटनाओं का पुंज मात्र नहीं रह गया है, ऐतिहासिक भौतिकवाद ने ऐतिहासिक विचारधारा को अत्यधिक प्रभावित किया है। 17 मार्च 1883 को कार्ल मार्क्स की समाधि के पास उनके मित्र और सहयोगी एंजिल ने कहा था, ""ठीक जिस तरह जीव जगत् में डार्विन ने विकास के नियम का अनुसंधान किया, उसी तरह मानव इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का अनुसंधान किया। उन्होंने इस सामान्य तथ्य को खोज निकाला (जो अभी तक आदर्शवादिता के मलबे के नीचे दबा था) कि इसके पहले कि वह राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म और इस प्रकार की बातों में रुचि ले सके, मानव को सबसे पहले खाना पीना, वस्त्र और आवास मिलना चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि जीवन धारण के लिए आसन्न आवश्यक भौतिक साधनों के साथ-साथ राष्ट्र अथवा युगविशेष के तत्कालीन आर्थिक विकास की प्रावस्था उस आधार का निर्माण करती है जिसपर राज्य संस्थाएँ, विधिमूलक दृष्टिकोण और संबंधित व्यक्तियों के कलात्मक और धार्मिक विचार तक निर्मित हुए हैं। तात्पर्य यह है कि इन उत्तरवर्ती परिस्थितियों को जिन्हें पूर्वगामी परिस्थितियों की जननी समझा जाता है, वस्तुत: स्वयं उनसे प्रसूत समझा जाना चाहिए। यह ऐसी धारणा है जिसका मौलिक महत्व है और जो तत्वत: सरल है। इतिहास में (वैसे ही मानव विचार में भी) परिवर्तनों के लिए आदि प्रेरक शक्ति युगविशेष की आर्थिक उत्पादन की व्यवस्था और तज्जनित संबंधों में निहित होती है। यह धारणा उन सारी व्याख्याओं का विरोध करती है जो इतिहास के प्रारंभिक तत्वों को दैव, जगदात्मा, प्राकृतिक विवेक स्वातंत्र्य आदि जैसी भावात्मक वस्तुओं में ढूँढती हैं। इसकी उत्पत्ति वास्तविक सक्रिय मानव से होती है और उसके सही सही और महत्वपूर्ण अंत: संबंध सैद्धांतिक प्रत्यावर्तन के विकास और उनकी सजीव प्रक्रिया की प्रतिध्वनियों को प्रदर्शित करती है। संक्षेप में, चेतनता जीवन को नहीं निर्धारित करती किंतु जीवन चेतनता को निर्धारित करता है। मार्क्स ने "दर्शन की दरिद्रता" (पावर्टी ऑव फ़िलासफ़ी) में लिखा, ""हम कल्पना करें कि अपने भौतिक उत्तराधिकार में वास्तविक इतिहास, अपने पार्थिव उत्तराधिकार में, ऐसा ऐतिहासिक उत्तराधिकार है जिसमें मत, प्रवर्ग, सिद्धांतों ने अपने को अभिव्यक्त किया है। प्रत्येक सिद्धांत की अपनी निजी शताब्दी रही है जिसमें उसने अपने को उद्घाटित किया है। उदाहरण के लिए सत्ता के सिद्धांत की अपनी शताब्दी 11वीं रही है, उसी तरह जिस तरह 18वीं शताब्दी व्यक्तिवाद के सिद्धांत की प्रधानता की रही है। अत:, तर्कत: शताब्दी सिद्धांत की अनुवर्तिनी होती है, सिद्धांत शताब्दी का अनुवर्ती नहीं होता। दूसरे शब्दों में, सिद्धांत इतिहास को बनाता है, इतिहास सिद्धांत को नहीं बनाता। अब यदि हम इतिहास और सिद्धांत दोनों की रक्षा की आशा के लिए पूछें कि आखिर सत्ता का सिद्धांत 11वीं शताब्दी में ही क्यों प्रादुर्भूत हुआ और व्यक्तिवाद 18वीं में क्यों और सत्ता सिद्धांत 18वीं में या व्यक्तिवाद 11वीं में, अथवा दोनों एक ही शताब्दी में क्यों नहीं हुए, तो हमें अनिवार्य रूप से तत्कालीन परिस्थितियों के विस्तार में जाने पर बाध्य होना पड़ेगा। हमें जानना पड़ेगा कि 11वीं और 18वीं शताब्दी के लोग कैसे थे, उनकी क्रमागत आवश्यकताएँ क्या थीं। उनके उत्पादन की शक्तियाँ, उनके उत्पादन के तरीके, वे कच्चे माल जिनसे वे उत्पादन करते थे और अंत में मानव मानव के बीच क्या संबंध थे, संबंध जो अस्तित्व की इन समस्त परिस्थितियों से उत्पन्न होते थे। किंतु ज्योंही हम मानवों को अपने इतिहास के पात्र और उनके निर्माता मान लेते हैं त्योंही थोड़े चक्कर के बाद, हमें उस वास्तविक आदि स्थान का पता लग जाता है जहाँ से यात्रा आरंभ हुई थी, क्योंकि हमने उन शाश्वत सिद्धांतों को छोड़ दिया है, जहाँ से हमने आरंभ किया था।"" भोंड़े पत्थर के औजारों से धनुषबाण तक और शिकारी जीवन से आदिम पशुपालन पशुचारण तक, पत्थर के औजारों से धातु के औजारों तक (लोहे की कुल्हाड़ी, लोहे के फालवाले लकड़ी के हल आदि) कृषि के संक्रमण के साथ, सामग्री के उपयोग के लिए धातु के औजारों का आगे को विकास (लोहार की धौंकनी और बर्तनों का आरंभ), दस्तकारी के विकास और उसका कृषि से प्रारंभिक औद्योगिक निर्माण के रूप में पृथक्करण, मशीनों की ओर संक्रमण और तब आधुनिक बड़े पैमाने के उद्योगों का औद्योगिक क्रांति के आधार पर उदय–प्राचीन काल से हमारे युग तक की उत्पादक शक्तियों के क्रमिक विकास की यह एक मोटी रूपरेखा है। परिवर्तनों के इस क्रम के साथ-साथ मनुष्य के आर्थिक संबंध भी बदलते गए हैं और उनका विकास होता गया है। इतिहास को उत्पादन संबंधों के पाँच मुख्य प्रकार ज्ञात हैं–आदिम जातिवादी, दासप्रधान, सामंती, पूँजीवादी और समाजवादी। इन व्यवस्थाओं के विचार और प्रकार, यथा पूँजीवाद में मुनाफा, मजदूरी और लगान, शाश्वत नहीं बल्कि उत्पादन के सामाजिक संबंधों की सैद्धांतिक अभिव्यक्ति मात्र हैं। भौतिक परिवेश में विकसित होनेवाली ठोस आवश्यकताएँ एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था के परिवर्तन के ऐतिहासिक क्रम को जन्म देती हैं। जब भीतरी अंतर्विरोधों के कारण आर्थिक आच्छादन फट जाता है, जैसा कि समाजवादी विश्लेषण का दावा है कि पूँजीवाद में घटित हो रहा है, तब इतिहास का एक नया अध्याय आरंभ हो जाता है। इस धारणा के अनुसार मनुष्य की भूमिका किसी भी प्रकार निष्क्रियता की नहीं सक्रियता की है। एंजिल्स के कथानानुसार स्वतंत्रता आवश्यकता की स्वीकृति है। व्यक्ति प्राकृतिक नियमों से कहाँ तक बँधा है, यह जान लेना अपनी स्वतंत्रता की सीमाओं को जान लेना है। इच्छा मात्र से आदमी अपनी ऊँचाई हाथ भर भी नहीं बढ़ा सकता। किंतु मनुष्य ने उन भौतिक नियमों का राज समझकर उड़ना सीख लिया है जिनके बिना उसका उड़ना असंभव होता है। नि:संदेह मानव इतिहास का निर्माण करता है किंतु अपनी मनचाही रीति से नहीं। यह कहना कि यह विचारधारा मनुष्य पर स्वार्थ के उद्देश्यों को आरोपित करती है, इस विचार को फूहड़ बनाना है। यह हास्यास्पद होता, यदि सिद्धांत यह कहता कि आदमी सदा भौतिक स्वार्थ के लिए काम करता है। किंतु उसका मात्र इतना आग्रह है कि आदर्श स्वर्ग से बने बनाए नहीं टपक पड़ते किंतु प्रस्तुत परिस्थितियों द्वारा विकसित होते हैं। इसलिए इसका कारण खोजना होगा कि युगविशेष में आदर्शविशेष ही क्यों प्रचलित थे, दूसरे नहीं। 1890 में एंजिल्स ने लिखा, ""अंततोगत्वा इतिहास के रूप को निश्चित करनेवाले तत्व वास्तविक जीवन में उत्पादन और पुनरुत्पादन है। इससे अधिक का न तो मार्क्स ने और न मैंने ही कभी दावा किया है। इसलिए अगर कोई इसको इस वक्तव्य में तोड़ मरोड़कर रखता है कि आर्थिक तत्व ही एकमात्र निर्णायक है, तो वह उसे अर्थहीन, विमूर्त और तर्करहित वक्तव्य बना देता है। आर्थिक परिस्थिति आधार निश्चय है, किंतु ऊपरी ढाँचे के विभिन्न सफल संग्राम के बाद विजयी वर्ग द्वारा स्थापित संविधान आदि–कानून के रूप–फिर संघर्ष करनेवालों के दिमाग में इन वास्तविक संघर्षो के परावर्तन, राजनीतिक, कानूनी, दार्शनिक सिद्धांत, धार्मिक विचार और हठधर्मी सिद्धांत के रूप में उनका विकास–यह भी ऐतिहासिक संघर्षो की गति पर अपना प्रभाव डालते हैं और अधिकतर अवस्थाओं में उनका रूप स्थित करने में प्रधानता: सफल होते हैं। इन तत्वों की एक दूसरे के प्रति एक क्रिया भी होती है–अन्यथा इस सिद्धांत को इतिहास के किसी युग पर आरोपित करना अनन्य-साधारण-समीकरण को हल करने से भी सरल होता।"" वास्तव में यह विचार इस बात को स्वीकार करता है कि ""सिद्धांत ज्योंही जनता पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते हैं, वे भौतिक शक्ति बन जाते हैं।"" बुनियादी तौर पर तो नि:संदेह इसका आग्रह है कि सामाजिक परिवर्तनों के अंतिम कारणों को ""दर्शन में नहीं प्रत्येक विशिष्ट युग के अर्थशास्त्र"" में ढूँढ़ना होगा। सत्य तो यह है कि आरंभ में "कार्य" थे, शब्द नहीं। इस विचारधारा का एक गत्यात्मक पक्ष भी है जो इस बात पर जोर देता है कि प्रतयेक सजीव समाज में उत्पादन की विकासशील शक्तियों और प्रतिगत्यात्मक संस्थाओं में, उन लोगों में जो स्थितियों को जैसी की तैसी रहने देना चाहते हैं और जो उन्हें बदलना चाहते हैं, विरोध उत्पन्न होता है। यह विरोध जब इस मात्रा तक पहुँच जाता है कि उत्पादन संबंध समाज की "बेड़ियाँ बन जाते हैं" तब क्रांति हो जाती है। इस विश्लेषण के अनुसार पूँजी का एकाधिपत्य उत्पादन पर बेड़ी बनकर बैठ गया है और यही कारण है कि समाजवादी क्रांतियाँ हुई और जहाँ अभी तक नहीं हुई हैं वहाँ पूँजीवाद स्थायी रूप से संकट में पड़ गया है। यह समय समय में युद्धों और उसकी निरंतर तैयारियों से ही दूर हो सकता है। समाजवादी समाज में जो अंतविरोध पैदा होंगे, वे, वास्तव में, अभी तो निश्चय से अधिक कल्पना की वस्तु हैं। .

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डायनासोर

डायनासोर जिसका अर्थ यूनानी भाषा में बड़ी छिपकली होता है लगभग 16 करोड़ वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख स्थलीय कशेरुकी जीव थे। यह ट्राइएसिक काल के अंत (लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले) से लेकर क्रीटेशियस काल (लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले), के अंत तक अस्तित्व में रहे, इसके बाद इनमें से ज्यादातर क्रीटेशियस -तृतीयक विलुप्ति घटना के फलस्वरूप विलुप्त हो गये। जीवाश्म अभिलेख इंगित करते हैं कि पक्षियों का प्रादुर्भाव जुरासिक काल के दौरान थेरोपोड डायनासोर से हुआ था और अधिकतर जीवाश्म विज्ञानी पक्षियों को डायनासोरों के आज तक जीवित वंशज मानते हैं। हिन्दी में डायनासोर शब्द का अनुवाद भीमसरट है जिस का संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है। डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे। "डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द δεινός (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक" + σαῦρος (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे, लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे। उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। डायनासोर दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं, साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे जुड़ी नई खोजों को नियमित रूप से मीडिया द्वारा कवर किया जाता है। .

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डारविन पर्वत (ऐन्डीज़)

डारविन पर्वत (अंग्रेज़ी: Mount Darwin, स्पेनी: Monte Darwin) तिएर्रा देल फ़ुएगो पर बीगल जलसंधि से उत्तर में स्थित एक पर्वत है। यह ऐन्डीज़ पर्वतमाला की कोरदियेरा डारविन उपशाखा का सदस्य है। शिस्ट पत्थरों के बने इस पहाड़ की ऊँची दक्षिणी ढलानों पर भीमकाय हिमानियाँ (ग्लेशियर) चलती हैं। किसी ज़माने में यह तिएर्रा देल फ़ुएगो का सबसे बुलन्द पर्वत समझा जाता था लेकिन अब यह ख़िताब 'शिप्टन पर्वत' (Monte Shipton) के अनौपचारिक नाम से बुलाए जाने वाले एक २,५८० मीटर (८,४६० फ़ुट) ऊँचा पहाड़ को जाता है। .

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डार्विन (गैलापागोस)

डार्विन की मेहराबगैलापागोस द्वीपसमूह के द्वीप डार्विन (कुलपैपर) द्वीप का नाम चार्ल्स डार्विन के नाम पर रखा गया है। द्वीप का क्षेत्रफल 1.1 वर्ग किलोमीटर (0.4 वर्ग मील) का अधिकतम ऊंचाई 168 मीटर (551 फुट) है। द्वीप पर कोई शुष्क स्थान मौजूद नहीं है पर समुद्री जीवों की यहाँ भरमार है। यहाँ फर सील, फ्रिगेट, समुद्री गोह, अबाबील-पुच्छ गल, जलसिंह, व्हेल, समुद्री कछुए, लाल टांगों वाले और नाज़्का बूबी पक्षी को देखा जा सकता है। .

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डार्विनवाद

'''चार्ल्स डार्विन''' जैव-उद्विकास (organic-evolution) एवं प्राकृतिक चयन (natuaral selection) से सम्बन्धित चार्ल्स डार्विन के विचारों को डार्विनवाद कहते हैं। .

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द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़ (प्रजातिओं की उत्पत्ति)

24 नवम्बर 1859 को प्रकाशित चार्ल्स डार्विन की On the Origin of Species (ऑन द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़) (हिन्दी अनुवाद: प्रजातियों की उत्पत्ति पर) को विज्ञान में, एक मौलिक वैज्ञानिक साहित्य और क्रम-विकास संबंधी जीव विज्ञान की नींव के रूप में माना जाता है। 1872 के छठे संस्करण का नाम छोटा करके द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़ कर दिया गया था।.

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दशावतार

हिन्दू धर्म में विभिन्न देवताओं के अवतार की मान्यता है। प्रायः विष्णु के दस अवतार माने गये हैं जिन्हें दशावतार कहते हैं। इसी तरह शिव और अन्य देवी-देवताओं के भी कई अवतार माने गये हैं। .

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द्वितीय विश्व युद्घ

विश्व युद्ध II, अथवा द्वितीय विश्व युद्ध, (इसको संक्षेप में WWII या WW2 लिखते हैं), ये एक वैश्विक सैन्य संघर्ष था जिसमें, सभी महान शक्तियों समेत दुनिया के अधिकांश देश शामिल थे, जो दो परस्पर विरोधी सैन्य गठबन्धनों में संगठित थे: मित्र राष्ट्र एवं धुरी राष्ट्र.इस युद्ध में 10 करोड़ से ज्यादा सैन्य कर्मी शामिल थे, इस वजह से ये इतिहास का सबसे व्यापक युद्ध माना जाता है।"पूर्ण युद्ध" की अवस्था में, प्रमुख सहभागियों ने नागरिक और सैन्य संसाधनों के बीच के अंतर को मिटा कर युद्ध प्रयास की सेवा में अपनी पूरी औद्योगिक, आर्थिक और वैज्ञानिक क्षमताओं को झोक दिया। इसमें सात करोड़ से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश साधारण नागरिक थे, इसलिए इसको मानव इतिहास का सबसे खूनी संघर्ष माना जाता है। युद्ध की शुरुआत को आम तौर पर 1 सितम्बर 1939 माना जाता है, जर्मनी के पोलैंड के ऊपर आक्रमण करने और परिणामस्वरूप ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल के अधिकांश देशों और फ्रांस द्वारा जर्मनी पर युद्ध की घोषणा के साथ.

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न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम

न्यूज़ीलैंड क्रिकेट टीम न्यूज़ीलैंड की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम है। न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम, उपनाम ब्लैक कैप्स, राष्ट्रीय क्रिकेट न्यूजीलैंड का प्रतिनिधित्व टीम हैं। वे न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में इंग्लैंड के खिलाफ 1930 में अपने पहले टेस्ट मैच खेला, पांचवें देश टेस्ट क्रिकेट खेलने के लिए हो रहा है। यह टीम 1955-56 में जब तक एक टेस्ट मैच जीतने के लिए वेस्टइंडीज के खिलाफ ईडन पार्क में ऑकलैंड में ले लिया। वे क्राइस्टचर्च में पाकिस्तान के खिलाफ 1972-73 सत्र में अपने पहले वनडे खेला था। मौजूदा टेस्ट, एकदिवसीय और ट्वेंटी -20 कप्तान केन विलियमसन, जो ब्रेंडन मैकुलम जो देर से दिसंबर, 2015 में अपने संन्यास की घोषणा की जगह है। राष्ट्रीय टीम न्यूजीलैंड क्रिकेट द्वारा आयोजित किया जाता है। न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम, जनवरी, 1998 में न्यूजीलैंड के रूप में जाना जाने लगा समय में अपने प्रायोजक के बाद, स्पष्ट संचार, एक प्रतियोगिता आयोजित की टीम के लिए एक नाम का चयन करने के लिए। आधिकारिक सूत्रों न्यूजीलैंड क्रिकेट न्यूजीलैंड के रूप में उपनाम सेट प्रकार ब्लैककैप्स नाम है। यह कई राष्ट्रीय टीम के सभी कालों से संबंधित उपनाम से एक है। फरवरी 2016 के रूप में, न्यूजीलैंड के 408 टेस्ट मैच खेले हैं, 83 जीत, 165 और 160 को खोने के ड्राइंग। 4 मई 2016 के रूप में, न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम 5 वीं टेस्ट, वनडे में 2 और 1 में टी20ई में आईसीसी द्वारा वें स्थान पर है। न्यूजीलैंड के अपने इतिहास में पहली बार आईसीसी क्रिकेट विश्व कप में फाइनल मैच पहुंच गया, 2015 में सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हराने के बाद। .

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नृतत्वशास्त्र के सिद्धांत

होमोसैपियंस (मानव) की उत्पत्ति, भूत से वर्तमान काल तक उनके परिवर्तन, परिवर्तन की प्रक्रिया, संरचना, मनुष्यों और उनकी निकटवर्ती जातियों के सामाजिक संगठनों के कार्य और इतिहास, मनुष्य के भौतिक और सामाजिक रूपों के प्रागैतिहासिक और मूल ऐतिहासिक पूर्ववृत्त और मनुष्य की भाषा का - जहाँ तक वह मानव विकास की दिशा निर्धारित करे और सामाजिक संगठन में योग दे - अध्ययन नृतत्वशास्त्र की विषय वस्तु है। इस प्रकार नृतत्वशास्त्र जैविक और सामाजिक विज्ञानों की अन्य विधाओं से अविच्छिन्न रूप से संबद्ध है। डार्विन ने 1871 में मनुष्य की उत्पत्ति पशु से या अधिक उपयुक्त शब्दों में कहें तो प्राइमेट (वानर) से - प्रामाणिक रूप से सिद्ध की यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी पूर्वी और पूर्वी एशिया में मानव और आद्यमानव के अनेक जीवाश्मों (फासिलों) की अनुवर्ती खोजों ने विकास की कहानी की और अधिक सत्य सिद्ध किया है। मनुष्य के उदविकास की पाँच अवस्थाएँ निम्नलिखित है:- ड्राईपिथेसीनी अवस्था (Drypithecinae Stage) वर्तमान वानर (ape) और मनुष्य के प्राचीन जीवाश्म अधिकतर यूरोप, उत्तर अफ्रीका और भारत में पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में पाये गए हैं। आस्ट्रैलोपिथेसीनी अवस्था (Australopithecinae stage) - वर्तमान वानरों (apes) से अभिन्न और कुछ अधिक विकसित जीवाश्म पश्चिमी और दक्षिणी अफ्रीका में प्राप्त हुए। पिथेकैंथोपिसीनी अवस्था (Pithecanthropicinae stage) जावा और पेकिंग की जातियों तथा उत्तर अफ्रीका के एटल्थ्रााोंपस (Atlanthropus) लोगों के जीवाश्म अधिक विकसित स्तर के लगते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि उस समय तक मनुष्य सीधा खड़ा होने की शारीरिक क्षमता, प्रारंभिक वाक्शकि और त्रिविमितीय दृष्टि प्राप्त कर चुका था, तथा हाथों के रूप में अगले पैरों का प्रयोग सीख चुका था। नींडरथैलाइड अवस्था (Neanderthaloid stage) यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अनेक स्थानों पर क्लैसिक नींडरथल, प्रोग्रेसिव नींडरथल, हीडेल वर्ग के, रोडेशियाई और सोलोयानव आदि अनेक भिन्न भिन्न जातियों के जीवाश्म प्राप्त हुए। वे सभी जीवाश्म एक ही मानव-वंश के हैं। होमोसैपियन अवस्था (Homosapien stage) यूरोप, अफ्रीका और एशिया में ऐसे असंख्य जीवाश्म पाऐ गए हैं, जो मानव-विकास के वर्तमान स्तर तक पहुँच चुके थे। उनका ढाँचा वर्तमान मानव जैसा ही है। इनमें सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्म आज से 40 हजार वर्ष पुराना है। जीवाश्म बननेवाली अस्थियाँ चूंकि अधिक समय तक अक्षत रहती हैं, बहुत लम्बे काल से नृतत्वशास्त्रियों ने जीवों की अन्य शरीर पद्धतियों की अपेक्षा मानव और उसकी निकटवर्ती जातियों के अस्थिशास्त्र का विशेष अध्ययन किया है। किंतु माँसपेशियों का संपर्क ऐसा प्रभाव छोड़ता है, जिससे अस्थियों में माँसपेशियों का संपर्क ऐसा प्रभाव छोड़ता है, जिससे अस्थियों की गतिशीलता तथा उनकी अन्य क्रियापद्धतियों के संबंध में अधिक ज्ञान मिलता है। कम से कम इतना तो कह ही सकते हैं कि यह अन्य पद्धति या रचना उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी पूर्वोल्लिखित अन्य दो। खोपड़ी की आकृति और रचना से मस्तिष्क के संबंध में विस्तृत ज्ञान उपलब्ध होता है और उसकी क्रियाप्रणाली के कुछ पहलुओं का अनुमान प्रमस्तिष्कीय झिल्ली की वक्रता से लग जाता है। मानव के अति प्राचीन पूर्वज, जिनके वंशज आज के वानर हैं, तबसे शारीरिक ढाँचे में बहुत अंशों में बदल गऐ हैं। उस समय वे वृक्षवासी थे, अत: शारीरिक रचना उसी प्रकार से विकृत थी। कुछ प्राचीन लक्षण मानव शरीर में आज भी विद्यमान हैं। दूसरी अवस्था में मानव आंशिक रूप से भूमिवासी हो गया था और कभी कभी भद्दे ढंग से पिछले पैरों के बल चलने लगा था। इस अवस्था का कुछ परिष्कृत रूप वर्तमान वानरों में पाया जाता है। जो भी हो, मानव का विकास हमारे प्राचीन पूर्वजों की कुछ परस्पर संबद्ध आदतों के कारण हुआ, उदाहरण के लिए (1) पैरों के बल चलना, सीधे खड़ा होना (2) हाथों का प्रयोग और उनसे औजार बनाना (3) सीधे देखना और इस प्रकार त्रिविमितीय दृष्टि का विकसित होना। इसमें पाशवि मस्तिष्क का अधिक प्रयोग हुआ, जिसे परिणाम-स्वरूप (4) मस्तिक के तंतुओं का विस्तार और परस्पर संबंध बढ़ा, जा वाक्‌-शक्ति के विकास का पूर्व दिशा है। इस क्षेत्र के अध्ययन के हेतु तुलनात्मक शरीररचनाशास्त्र (anatomy) का ज्ञान आवश्यक है। इसिलिए भौतिक नृतत्वशास्त्र में रुचि रखनेवाले शरीरशास्त्रियों ने इसमें बड़ा योग दिया। वर्तमान मानव के शारीरिक रूपों के अध्ययन ने मानवमिति को जन्म दिया; इसमें शारीरिक अवयवों की नाप, रक्त के गुणों, तथा वंशानुसंक्रमण से प्राप्त होनेवाले तत्वों आदि का अध्ययन सम्मिलित है। अनेक स्थानांतरण के खाके बनाना संभव हो गया है। संसार की वर्तमान जनसंख्या को, एक मत के अनुसार, 5 या 6 बड़े भागों में विभक्त किया जा सकता है। एक अन्य मत के अनुसार, जो कि भिन्न मानदंड का प्रयोग करता है, जातियों की संख्या तीस के आसपास हैं। मानव आनुवंशिकी ज्ञान की अपेक्षाकृत एक नयी शाखा है, जो इस शती के तीसरे दशक से शुरू हुई। इस शती के प्रारंभ में ही, जब मेंडल का नियम पुन: स्थापित अध्ययन आर.ए. फियर, एस.

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नेचर (पत्रिका)

नेचर - यह ब्रिटिश की एक प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका है जो पहली बार 4 नवम्बर 1869 को प्रकाशित की गयी थी। दुनिया की अंतर्विषय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में इस पत्रिका का उल्लेख सबसे उच्च स्थान पर किया जाता है। अब तो अधिकांश वैज्ञानिक पत्रिकाएं अति-विशिष्ट हो गयीं हैं और नेचर उन गिनी-चुनी पत्रिकाओं में से है जो आज भी, वैज्ञानिक क्षेत्र की विशाल श्रेणी के मूल अनुसंधान लेख प्रकाशित करती है। वैज्ञानिक अनुसंधान के ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जिनमें किये जाने वाले नए व महत्वपूर्ण विकासों की जानकारी तथा शोध-सम्बन्धी मूल-लेख या पत्र नेचर ' में प्रकाशित किये जाते हैं। हालांकि इस पत्रिका के प्रमुख पाठकगण अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक हैं, पर आम जनता और अन्य क्षेत्र के वैज्ञानिकों को भी अधिकांश महत्वपूर्ण लेखों के सारांश और उप-लेखन आसानी से समझ आते हैं। हर अंक के आरम्भ में सम्पादकीय, वैज्ञानिकों की सामान्य दिलचस्पी वाले मुद्दों पर लेख व समाचार, ताज़ा खबरों सहित विज्ञान-निधिकरण, व्यापार, वैज्ञानिक नैतिकता और अनुसंधानों में हुए नए-नए शोध सम्बन्धी लेख छापे जाते हैं। पुस्तकों और कला सम्बन्धी लेखों के लिए भी अलग-अलग विभाग हैं। पत्रिका के शेष भाग में ज़्यादातर अनुसंधान-सम्बन्धी लेख छापे जाते हैं, जो अक्सर काफ़ी गहरे और तकनीकी होते हैं। चूंकि लेखों की लम्बाई पर एक सीमा निर्धारित है, अतः पत्रिका में अक्सर अनेक लेखों का सारांश ही छापा जाता है और अन्य विवरणों को पत्रिका के वेबसाइट पर supplementary material (पूरक सामग्री) के तहत प्रकाशित किया जाता है। 2007 में, नेचर ' और सायंस ' - दोनों पत्रिकाओं को संचार व मानवता के लिए प्रिंस ऑफ़ अस्तुरियास अवार्ड प्रदान किया गया। .

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पक्षीविज्ञान

पक्षी की आकृति का विधिवत मापन बहुत महत्व रखता है। पक्षीविज्ञान (Ornithology) जीवविज्ञान की एक शाखा है। इसके अंतर्गत पक्षियों की बाह्य और अंतररचना का वर्णन, उनका वर्गीकरण, विस्तार एवं विकास, उनकी दिनचर्या और मानव के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आर्थिक उपयोगिता इत्यादि से संबंधित विषय आते हैं। पक्षियों की दिनचर्या के अंतर्गत उनके आहार-विहार, प्रव्रजन, या एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरण, अनुरंजन (courtship), नीड़ निर्माण, मैथुन, प्रजनन, संतान का लालन पालन इत्यादि का वर्णन आता है। आधुनिक फोटोग्राफी द्वारा पक्षियों की दिनचर्याओं के अध्ययन में बड़ी सहायता मिली है। पक्षियों की बोली के फोनोग्राफ रेकार्ड भी अब तैयार कर लिए गए हैं। .

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पुष्प

flower bouquet) पर चित्रकारी रेशम पर स्याही और रंग, १२ वीं शताब्दी की अंत-अंत में और १३ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में. पुष्प, अथवा फूल, जनन संरचना है जो पौधों में पाए जाते हैं। ये (मेग्नोलियोफाईटा प्रकार के पौधों में पाए जाते हैं, जिसे एग्नियो शुक्राणु भी कहा जाता है। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करे। प्रक्रिया परागन से शुरू होती है, जिसका अनुसरण गर्भधारण से होता है, जो की बीज के निर्माण और विखराव/ विसर्जन में ख़त्म होता है। बड़े पौधों के लिए, बीज अगली पुश्त के मूल रूप में सेवा करते हैं, जिनसे एक प्रकार की विशेष प्रजाति दुसरे भूभागों में विसर्जित होती हैं। एक पौधे पर फूलों के जमाव को पुष्पण (inflorescence) कहा जाता है। फूल-पौधों के प्रजनन अवयव के साथ-साथ, फूलों को इंसानों/मनुष्यों ने सराहा है और इस्तेमाल भी किया है, खासकर अपने माहोल को सजाने के लिए और खाद्य के स्रोत के रूप में भी। .

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प्रसिद्ध पुस्तकें

कोई विवरण नहीं।

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प्राणियों और वनस्पतियों का देशीकरण

प्राणियों और वनस्पतियों को उनके मूल निवास के समकक्ष, या बिल्कुल भिन्न जलवायुवाले दूसरे प्रदेश में, कृत्रिम या प्राकृतिक तरीके से ले जाकर, सफलतापूर्वक उनका विस्तार किए जाने की पद्धति के लिए प्राणियों और वनस्पतियों का देशीकरण (Naturalization of Plants and Animals) - इस पद का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। व्यापक अर्थ में देशीकरण पारिस्थितिक अनुकूलन ही है, किंतु सीमित अर्थ में देशीकरण का तात्पर्य उस क्रिया से है जिसके द्वारा जीवधारी का, अपने ही अथवा अन्य प्रदेश में, इस प्रकार परिवर्तन किया जाता है जिससे वह वहाँ की जलवायु की नई दशाओं को सहन करने की क्षमता प्राप्त कर ले और वहाँ के अनुकूल बन जाए। इस अनुकूलता का प्रतिपादन कुछ लोग लामार्क (Lamarck) और कुछ डार्विन (Darwin) के सिद्धांत के अनुसार करते हैं। .

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प्राकृतिक वरण

जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जनसंख्या में कोई जैविक गुण कम या अधिक हो जाता है उसे प्राकृतिक वरण या 'प्राकृतिक चयन' या नेचुरल सेलेक्शन (Natural selection) कहते हैं। यह एक धीमी गति से क्रमशः होने वाली अनयादृच्छिक (नॉन-रैण्डम) प्रक्रिया है। प्राकृतिक वरण ही क्रम-विकास(Evolution) की प्रमुख कार्यविधि है। चार्ल्स डार्विन ने इसकी नींव रखी और इसका प्रचार-प्रसर किया। यह तंत्र विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रजाति को पर्यावरण के लिए अनुकूल बनने मे सहायता करता है। प्राकृतिक चयन का सिद्धांत इसकी व्याख्या कर सकता है कि पर्यावरण किस प्रकार प्रजातियों और जनसंख्या के विकास को प्रभावित करता है ताकि वो सबसे उपयुक्त लक्षणों का चयन कर सकें। यही विकास के सिद्धांत का मूलभूत पहलू है। प्राकृतिक चयन का अर्थ उन गुणों से है जो किसी प्रजाति को बचे रहने और प्रजनन मे सहायता करते हैं और इसकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है। यह इस तथ्य को और तर्कसंगत बनाता है कि इन लक्षणों के धारकों की सन्ताने अधिक होती हैं और वे यह गुण वंशानुगत रूप से भी ले सकते हैं। .

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प्रकृतिवाद (दर्शन)

प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राक्रितिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते। यूनानी दार्शनिक थेल्स (६४० ईसापूर्व-५५० इसापूर्व) का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस (४६०-३७० ईसापूर्व) ने किया। प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो.

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पीटर क्रोपोत्किन

युवा क्रोपोत्किन (१८७०) पीटर अलेक्सेविच क्रोपोत्किन (१८४२-१९२१ ई.) रूस के भूगोलवेत्ता, अर्थशास्त्री, वाड़मीमांसक (philologist), जन्तुविज्ञानी, क्रमविकास सिद्धान्ती, दार्शनिक, लेखक एवं प्रमुख अराजकतावादी थे। .

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फ्रेडरिक नीत्शे

फ्रेडरिक नीत्शे फ्रेडरिक नीत्शे (Friedrich Nietzsche) (15, अक्टू, 1844 से 25, अगस्त 1900) जर्मनी का दार्शनिक था। मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद एवं परिघटनामूलक चिंतन (Phenomenalism) के विकास में नीत्शे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्तिवादी तथा राज्यवादी दोनों प्रकार के विचारकों ने उससे प्रेरणा ली है। हालाँकि नाज़ी तथा फासिस्ट राजनीतिज्ञों ने उसकी रचनाओं का दुरुपयोग भी किया। जर्मन कला तथा साहित्य पर नीत्शे का गहरा प्रभाव है। भारत में भी इक़बाल आदि कवियों की रचनाएँ नीत्शेवाद से प्रभावित हैं। .

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ब्रिटिश काउंसिल

लंदन में ब्रिटिश काउंसिल भवन ढाका, बांग्लादेश में ब्रिटिश काउंसिल कार्यालय ब्रिटिश काउंसिल, यूनाइटेड किंगडम में आधारित एक लघु निकाय है जो अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक और सांस्कृतिक अवसर प्रदान करने में विशेषज्ञ है। यह शाही चार्टर द्वारा निगमित किया गया है और इंग्लैंड और वेल्स दोनों जगहों और स्कॉटलैंड में एक धर्मार्थ संस्था के रूप में पंजीकृत है। 1934 में स्थापित, इसे 1940 में किंग जॉर्ज VI द्वारा एक शाही चार्टर प्रदान किया गया। यूनाइटेड किंगडम सरकार में इसके 'प्रायोजित विभाग', विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय है, हालांकि इसे अपने रोज़ के परिचालन में स्वतंत्रता प्राप्त है। अप्रैल 2007 को, मार्टिन डेविडसन को इसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। .

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भारतीय मोर

भारतीय मोर या नीला मोर (पावो क्रिस्टेटस) दक्षिण एशिया के देशी तीतर परिवार का एक बड़ा और चमकीले रंग का पक्षी है, दुनिया के अन्य भागों में यह अर्द्ध-जंगली के रूप में परिचित है। नर, मोर, मुख्य रूप से नीले रंग के होते हैं साथ ही इनके पंख पर चपटे चम्मच की तरह नीले रंग की आकृति जिस पर रंगीन आंखों की तरह चित्ती बनी होती है, पूँछ की जगह पंख एक शिखा की तरह ऊपर की ओर उठी होती है और लंबी रेल की तरह एक पंख दूसरे पंख से जुड़े होने की वजह से यह अच्छी तरह से जाने जाते हैं। सख्त और लम्बे पंख ऊपर की ओर उठे हुए पंख प्रेमालाप के दौरान पंखे की तरह फैल जाते हैं। मादा में इस पूँछ की पंक्ति का अभाव होता है, इनकी गर्दन हरे रंग की और पक्षति हल्की भूरी होती है। यह मुख्य रूप से खुले जंगल या खेतों में पाए जाते हैं जहां उन्हें चारे के लिए बेरीज, अनाज मिल जाता है लेकिन यह सांपों, छिपकलियों और चूहे एवं गिलहरी वगैरह को भी खाते हैं। वन क्षेत्रों में अपनी तेज आवाज के कारण यह आसानी से पता लगा लिए जाते हैं और अक्सर एक शेर की तरह एक शिकारी को अपनी उपस्थिति का संकेत भी देते हैं। इन्हें चारा जमीन पर ही मिल जाता है, यह छोटे समूहों में चलते हैं और आमतौर पर जंगल पैर पर चलते है और उड़ान से बचने की कोशिश करते हैं। यह लंबे पेड़ों पर बसेरा बनाते हैं। हालांकि यह भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। .

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भावना

thumb भावना मूड, स्वभाव, व्यक्तित्व तथा ज़ज्बात और प्रेरणासे संबंधित है। अंग्रेजी शब्द 'emotion' की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द émouvoir से हुई है। यह लैटिन शब्द emovere पर आधारित है जहां e- (ex - का प्रकार) का अर्थ है 'बाहर' और movere का अर्थ है 'चलना'.

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मानस शास्त्र

साइकोलोजी या मनोविज्ञान (ग्रीक: Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",ψυχήसाइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -λογία-लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health).

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मानव का विकास

चार्ल्स डार्विन की "ओरिजिन ऑव स्पीशीज़" नामक पुस्तक के पूर्व साधारण धारणा यह थी कि सभी जीवधारियों को किसी दैवी शक्ति (ईश्वर) ने उत्पन्न किया है तथा उनकी संख्या, रूप और आकृति सदा से ही निश्चित रही है। परंतु उक्त पुस्तक के प्रकाशन (सन् 1859) के पश्चात् विकासवाद ने इस धारणा का स्थान ग्रहण कर लिया और फिर अन्य जंतुओं की भाँति मनुष्य के लिये भी यह प्रश्न साधारणतया पूछा जाने लगा कि उसका विकास कब और किस जंतु अथवा जंतुसमूह से हुआ। इस प्रश्न का उत्तर भी डार्विन ने अपनी दूसरी पुस्तक "डिसेंट ऑव मैन" (सन् 1871) द्वारा देने की चेष्टा करते हुए बताया कि केवल वानर (विशेषकर मानवाकार) ही मनुष्य के पूर्वजों के समीप आ सकते हैं। दुर्भाग्यवश धार्मिक प्रवृत्तियोंवाले लोगों ने डार्विन के उक्त कथन का त्रुटिपुर्ण अर्थ (कि वानर स्वयं ही मानव का पूर्वज है) लगाकर, न केवल उसका विरोध किया वरन् जनसाधारण में बंदरों को ही मनुष्य का पूर्वज होने की धारणा को प्रचलित कर दिया, जो आज भी अपना स्थान बनाए हुए है। यद्यपि डार्विन मनुष्य विकास के प्रश्न का समाधान न कर सके, तथापि इन्होंने दो गूढ़ तथ्यों की ओर प्राणिविज्ञानियों का ध्यान आकर्षित किया: (1) मानवाकार कपि ही मनुष्य के पूर्वजों के संबंधी हो सकते हैं और (2) मानवाकार कपियों तथा मनुष्य के विकास के बीच में एक बड़ी खाईं है, जिसे लुप्त जीवाश्मों (fossils) की खोज कर के ही कम किया जा सकता है। यह प्रशंसनीय है कि डार्विन के समय में मनुष्य के समान एक भी जीवाश्म उपलब्ध न होते हुए भी, उसने भूगर्भ में छिपे ऐसे अवशेषों की उपस्थिति की भविष्यवाणी की जो सत्य सिद्ध हुई। अभी तक की खोज के अनुसार होमो सेपियन्स का उद्धव 2 लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका का माना जाता रहा है, लेकिन नई खोज के मुताबिक 3 लाख साल पहले ही होमो सेपिन्यस के उत्तर अफ्रीका में विकास के सबूत मौजूद है। .

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मृत्यु

मानव खोपड़ी मौत के लिए एक सार्वभौमिक प्रतीक है। किसी प्राणी के जीवन के अन्त को मृत्यु कहते हैं। मृत्यु सामान्यतः दुर्घटना, चोट, बीमारी, कुपोषण के परिणामस्वरूप होती है। आँख "अनन्त जीवन के लिए प्राचीन मिस्र के प्रतीक है।" वे और कई अन्य संस्कृतियों के बाद से एक पोर्टल के रूप में एक जीवन के बाद में जैविक मौत देखी है। .

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यूनाइटेड किंगडम

वृहत् ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैण्ड का यूनाइटेड किंगडम (सामान्यतः यूनाइटेड किंगडम, यूके, बर्तानिया, UK, या ब्रिटेन के रूप में जाना जाने वाला) एक विकसित देश है जो महाद्वीपीय यूरोप के पश्चिमोत्तर तट पर स्थित है। यह एक द्वीपीय देश है, यह ब्रिटिश द्वीप समूह में फैला है जिसमें ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड का पूर्वोत्तर भाग और कई छोटे द्वीप शामिल हैं।उत्तरी आयरलैंड, UK का एकमात्र ऐसा हिस्सा है जहां एक स्थल सीमा अन्य राष्ट्र से लगती है और यहां आयरलैण्ड यूके का पड़ोसी देश है। इस देश की सीमा के अलावा, UK अटलांटिक महासागर, उत्तरी सागर, इंग्लिश चैनल और आयरिश सागर से घिरा हुआ है। सबसे बड़ा द्वीप, ग्रेट ब्रिटेन, चैनल सुरंग द्वारा फ़्रांस से जुड़ा हुआ है। यूनाइटेड किंगडम एक संवैधानिक राजशाही और एकात्मक राज्य है जिसमें चार देश शामिल हैं: इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स. यह एक संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है जिसकी राजधानी लंदन में सरकार बैठती है, लेकिन इसमें तीन न्यागत राष्ट्रीय प्रशासन हैं, बेलफ़ास्ट, कार्डिफ़ और एडिनबर्ग, क्रमशः उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड की राजधानी.जर्सी और ग्वेर्नसे द्वीप समूह, जिन्हें सामूहिक रूप से चैनल द्वीप कहा जाता है और मैन द्वीप (आईल ऑफ मान), यू के की राजत्व निर्भरता हैं और UK का हिस्सा नहीं हैं। इसके इलावा, UK के चौदह समुद्रपार निर्भर क्षेत्र हैं, ब्रिटिश साम्राज्य, जो १९२२ में अपने चरम पर था, दुनिया के तकरीबन एक चौथाई क्षेत्रफ़ल को घेरता था और इतिहास का सबसे बड़ा साम्रज्य था। इसके पूर्व उपनिवेशों की भाषा, संस्कृति और कानूनी प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है। प्रतीकत्मक सकल घरेलू उत्पाद द्वारा दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति समानता के हिसाब से सातवाँ बड़ा देश होने के साथ ही, यूके एक विकसित देश है। यह दुनिया का पहला औद्योगिक देश था और 19वीं और 20वीं शताब्दियों के दौरान विश्व की अग्रणी शक्ति था, लेकिन दो विश्व युद्धों की आर्थिक लागत और 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में साम्राज्य के पतन ने वैश्विक मामलों में उसकी अग्रणी भूमिका को कम कर दिया फिर भी यूके अपने सुदृढ़ आर्थिक, सांस्कृतिक, सैन्य, वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है। यह एक परमाणु शक्ति है और दुनिया में चौथी सर्वाधिक रक्षा खर्चा करने वाला देश है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट धारण करता है और राष्ट्र के राष्ट्रमंडल, जी8, OECD, नाटो और विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है। .

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यूनिक्स

यूनिक्स की फिलिएष्ण और यूनिक्स-जैसी प्रणालियां यूनिक्स (अधिकृत ट्रेडमार्क UNIX, कभी-कभी छोटे कैपिटल अक्षरों के साथ Unix भी लिखा जाता है), एक कम्प्यूटर परिचालन तंत्र है। यह मूल रूप से 1969 में बेल प्रयोगशाला में विकसित किया गया था। इसके विकास में एटी एंड टी के कर्मचारी केंन थोम्प्स्न, डेनिस रिची, ब्रियन केर्निघ्ग्न, दोग्ल्स मेक्लेरी और जो ओसाना आदि शामिल थे। आज "यूनिक्स" शब्द का प्रयोग आमतौर पर यूनिक्स मानकों के अनुरूप चलने वाले किसी भी परिचालन तंत्र के लिए किया जाता है। अर्थात भीतरी परिचालन व्यवस्था मूल युनिक्स परिचालन व्यवस्था के अनुरूप चलती है। ए टी एंड टी के साथ-साथ बहुत से व्यवसायिक विक्रेता और गैर लाभ संगठनों द्वारा विकसित आज की यूनिक्स प्रणालियां विभिन्न शाखाओं में विभाजित हैं। 1970 के अंत और 1980 के प्रारंभ के दौरान शैक्षिक समुदाय पर यूनिक्स के प्रभाव के परिणामस्वरूप यूनिक्स को व्यापारिक उद्घाटन द्वारा बड़े पैमाने पर स्वीकार किया गया। विशेषकर इसका केलिफोनिया विश्वविद्यालय, बर्कले से उत्पन्न BSD संस्करण बहुत लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा मेक OS X, सोलारिस, HP-UX और AIX आदि भी प्रसिद्ध हुए। आज प्रमाणिक यूनिक्स प्रणालियों क्व अलावा यूनिक्स-जैसे परिचालन तंत्र जैसे कि लिनक्स और BSD आमतौर पर देखे जाते हैं। .

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राॅबर्ट वाॅशोप (ब्रिटिश नौसेना अधिकारी)

राॅबर्ट वाॅशोप(Robert Wauchope) (१७८८-१८६२) एक ब्रिटिश ऐडमिरल जिस ने, कभी सुप्रचलित रह चुके, टाइम बाॅल(कालगेंद) का आविष्कार किया था। उन्होंने ने अपना पूरा जिवन ब्रिटेन की शाही नौसेना की सेवा में गुज़ार दिया जिस बीच उन्होंने कई सैन्य अभियानों में शामिल भी थे। उनके बारे में यह भी जाना जाता है कि वे काफी धारमिक व्यक्ती थे। .

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रिचर्ड डॉकिन्स

रिचर्ड डॉकिन्स जन्म 26 मार्च 1941) एक ब्रिटिश क्रम-विकासवादी जीवविज्ञानी और लेखक हैं। 1995 से 2008 के दौरान वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रफ़ेसर थे। 1976 में प्रकाशित हुई किताब "द सॅल्फ़िश जीन" ("स्वार्थी जीन") के ज़रिये उन्होंने जीन-केन्द्रित क्रम-विकास (gene-centred view of evolution) मत और "मीम" परिकल्पना को लोकप्रिय बनाया। इस किताब के अनुसार जीव-जंतु जीन को ज़िदा रखने का एक ज़रिया हैं। उदाहरण के लिए: एक माँ अपने बच्चों की सुरक्षा इसलिए करती है ताकि वह अपनी जीन ज़िन्दा रख सके। रिचर्ड डॉकिन्स एक नास्तिक हैं और "भगवान ने दुनिया बनाई" मत के आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। 2006 में प्रकाशित द गॉड डिलुज़न ("भगवान का भ्रम") में उन्होंने कहा है कि किसी दैवीय विश्व-निर्माता के अस्तित्व में विश्वास करना बेकार है और धार्मिक आस्था एक भ्रम मात्र है। जनवरी 2010 तक इस किताब के अंग्रेज़ी संस्करण की 2,000,000 से अधिक प्रतियाँ बेची जा चुकी हैं और 31 भाषाओं में इसके अनुवाद कियी जा चुके हैं। .

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रोहित शर्मा

रोहित गुरूनाथ शर्मा (Rohit Sharma) (जन्म: ३० अप्रैल १९८७) एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी है। इनका जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। रोहित मुख्य रूप से सलामी बल्लेबाज के रूप में जाने जाते हैं। रोहित टेस्ट क्रिकेट, वनडे और ट्वेन्टी-ट्वेन्टी के अलावा इंडियन प्रीमियर लीग में भी खेलते है इसके अतिरिक्त मुम्बई इंडियन्स टीम के कप्तान भी है। वर्तमान में वे भारतीय वनडे टीम के उप कप्तान भी है। उन्होंने अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के खिलाफ ०९ नवम्बर २०१३ को कोलकाता के ईडन गार्डन्स मैदान पर खेलकर की थी उस मैच में रोहित ने १७७ रनों की पारी खेली थी, उन्होंने १०८ वनडे मैचों के बाद टेस्ट मैच खेला था। जबकि एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर की शुरुआत २३ जून २००७ को आयरलैण्ड क्रिकेट टीम के खिलाफ की थी। इनके अलावा रोहित ने अपने ट्वेन्टी-ट्वेन्टी में अपना पहला मैच १९ सितम्बर २००७ को इंग्लैंड क्रिकेट टीम के खिलाफ खेला था। १३ नवम्बर २०१४ को कोलकाता के ईडन गार्डन्स मैदान पर श्रीलंकाई टीम के खिलाफ बल्लेबाजी करते हुए २६४ रनों की पारी खेलकर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक मैच में सबसे ज्यादा रन अर्थात सर्वोच्च स्कोर बनाकर नया कीर्तिमान कायम किया है। रोहित शर्मा एक दिवसीय क्रिकेट इतिहास में सबसे ज्यादा दोहरे शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी है। इन्होंने वनडे में तीन दोहरे शतक लगाये है जो अभी तक किसी बल्लेबाज ने नहीं लगाए है। फ़ोर्ब्स इंडिया २०१५ के भारत के १०० शीर्ष प्रसिद्ध व्यक्तियों में शर्मा को ८वाँ स्थान मिला। महेंद्र सिंह धोनी और गौतम गंभीर के बाद अपनी टीम को आईपीएल खिताब दिलाने वाले तीसरे कप्तान हैं। .

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लैमार्कवाद

180px.p1090470।फ्रांस के प्रसिद जीववैज्ञानिक लेमार्क्क का विकास सिदांत। लैमार्कवाद, फ्रांस के जीववैज्ञानिक लैमार्क द्वारा प्रतिपादित विकासका सिद्धान्त (विकासवाद) था जो किसी समय बहुत मान्य हुआ था किन्तु बाद में इसे अस्वीकार कर दिया गया। संक्षेप में लामार्क का विकासवाद (या, लैमार्कवाद) यह है - वातावरण के परिवर्तन के कारण जीव की उत्पत्ति, अंगों का व्यवहार या अव्यवहार, जीवनकाल में अर्जित गुणों का जीवों द्वारा अपनी संतति में पारेषण। इस मत और डार्विन के मत में यह अंतर है कि इस मत में डारविन के प्राकृतिक वरण के सिद्धांत का अभाव है। .

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शिक्षा दर्शन

गाँधीजी महान शिक्षा-दार्शनिक भी थे। शिक्षा और दर्शन में गहरा सम्बन्ध है। अनेकों महान शिक्षाशास्त्री स्वयं महान दार्शनिक भी रहे हैं। इस सह-सम्बन्ध से दर्शन और शिक्षा दोनों का हित सम्पादित हुआ है। शैक्षिक समस्या के प्रत्येक क्षेत्र में उस विषय के दार्शनिक आधार की आवश्यकता अनुभव की जाती है। फिहते अपनी पुस्तक "एड्रेसेज टु दि जर्मन नेशन" में शिक्षा तथा दर्शन के अन्योन्याश्रय का समर्थन करते हुए लिखते हैं - "दर्शन के अभाव में ‘शिक्षण-कला’ कभी भी पूर्ण स्पष्टता नहीं प्राप्त कर सकती। दोनों के बीच एक अन्योन्य क्रिया चलती रहती है और एक के बिना दूसरा अपूर्ण तथा अनुपयोगी है।" डिवी शिक्षा तथा दर्शन के संबंध को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि दर्शन की जो सबसे गहन परिभाषा हो सकती है, यह है कि "दर्शन शिक्षा-विषयक सिद्धान्त का अत्यधिक सामान्यीकृत रूप है।" दर्शन जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा उपाय प्रस्तुत करती है। दर्शन पर शिक्षा की निर्भरता इतनी स्पष्ट और कहीं नहीं दिखाई देती जितनी कि पाठ्यक्रम संबंधी समस्याओं के संबंध में। विशिष्ट पाठ्यक्रमीय समस्याओं के समाधान के लिए दर्शन की आवश्यकता होती है। पाठ्यक्रम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ प्रश्न उपयुक्त पाठ्यपुस्तकों के चुनाव का है और इसमें भी दर्शन सन्निहित है। जो बात पाठ्यक्रम के संबंध में है, वही बात शिक्षण-विधि के संबंध में कही जा सकती है। लक्ष्य विधि का निर्धारण करते हैं, जबकि मानवीय लक्ष्य दर्शन का विषय हैं। शिक्षा के अन्य अंगों की तरह अनुशासन के विषय में भी दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्यालय के अनुशासन निर्धारण में राजनीतिक कारणों से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण कारण मनुष्य की प्रकृति के संबंध में हमारी अवधारणा होती है। प्रकृतिवादी दार्शनिक नैतिक सहज प्रवृत्तियों की वैधता को अस्वीकार करता है। अतः बालक की जन्मजात सहज प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति के लिए छोड़ देता है; प्रयोजनवादी भी इस प्रकार के मापदण्ड को अस्वीकार करके बालक व्यवहार को सामाजिक मान्यता के आधार पर नियंत्रित करने में विश्वास करता है; दूसरी ओर आदर्शवादी नैतिक आदर्शों के सर्वोपरि प्रभाव को स्वीकार किए बिना मानव व्यवहार की व्याख्या अपूर्ण मानता है, इसलिए वह इसे अपना कर्त्तव्य मानता है कि बालक द्वारा इन नैतिक आधारों को मान्यता दिलवाई जाये तथा इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वह शनैःशनैः इन्हें अपने आचरण में उतार सके। शिक्षा का क्या प्रयोजन है और मानव जीवन के मूल उद्देश्य से इसका क्या संबंध है, यही शिक्षा दर्शन का विजिज्ञास्य प्रश्न है। चीन के दार्शनिक मानव को नीतिशास्त्र में दीक्षित कर उसे राज्य का विश्वासपात्र सेवक बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते थे। प्राचीन भारत में सांसारिक अभ्युदय और पारलौकिक कर्मकांड तथा लौकिक विषयों का बोध होता था और परा विद्या से नि:श्रेयस की प्राप्ति ही विद्या के उद्देश्य थे। अपरा विद्या से अध्यात्म तथा रात्पर तत्व का ज्ञान होता था। परा विद्या मानव की विमुक्ति का साधन मान जाती थी। गुरुकुलों और आचार्यकुलों में अंतेवासियों के लिये ब्रह्मचर्य, तप, सत्य व्रत आदि श्रेयों की प्राप्ति परमाभीष्ट थी और तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय प्राकृतिक विषयों के सम्यक् ज्ञान के अतिरिक्त नैष्ठिक शीलपूर्ण जीवन के महान उपस्तंभक थे। भारतीय शिक्षा दर्शन का आध्यात्मिक धरातल विनय, नियम, आश्रममर्यादा आदि पर सदियों तक अवलंबित रहा। .

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सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट)

सहज वृत्ति, किसी व्यवहार विशेष की तरफ जीवों के स्वाभाविक झुकाव को कहते हैं। गतिविधियों के स्थायी पैटर्न भुलाये जाते हैं और वंशानुगत होते हैं। किसी संवेदनशील समय में पड़ी छाप के कारण इसके उत्प्रेरक काफी विविध प्रकार के हो सकते हैं, या आनुवंशिक रूप से निर्धारित भी हो सकते हैं। सहज वृत्ति वाली गतिविधियों के स्थायी पैटर्न को पशुओं के व्यवहार में देखा जा सकता है, जो ऐसी कई गतिविधियों (अक्सर काफी जटिल) में संलग्न रहते हैं जो पूर्व अनुभवों पर आधारित नहीं होती हैं, जैसे कि कीड़ों के बीच प्रजनन तथा भोजन संबंधी गतिविधियां.

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सामाजिक परिवर्तन

संस्कृतियों के परस्पर सम्पर्क आने से सामाजिक परिवर्तन; इस चित्र में एरिजोना के एक जनजाति के तीन पुरुष दिखाये गये हैं। बायें वाला पुरुष परम्परागत पोशाक में है, बीच वाला मिश्रित शैली में है तथा दाहिने वाला १९वीं शदी के अन्तिम दिनों की अमेरिकी शैली में है। सामाजिक परिवर्तन, समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है। आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा विभिन्न समाजों ने अपने तरीके से इन विकासों को समाहित किया है, उनका उत्तर दिया है, जो कि सामाजिक परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द। कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। कुछ सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट है एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं। जब कि कई बार इन परिवर्तनों को हमारी इच्छा के विरुद्ध हम पर थोपा गया है। कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं। व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव मस्तिष्क इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परन्तु शनैः उन्हें स्वीकार कर लेता है। वध दल .

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सिडनी बंदरगाह पुल

सिडनी बंदरगाह पुल सिडनी बंदरगाह पर बना एक इस्पात का चाप के आकार का पुल है जिस पर से रेल, वाहन, साइकिल और पैदल यातायात सिडनी के केन्द्रीय व्यावसायिक जिले (CBD) और उत्तरी किनारे के बीच आता-जाता है। पुल, बंदरगाह और पास में स्थित सिडनी आपेरा हाउस का नाटकीय दृश्य सिडनी और आस्ट्रेलिया, दोनों की एक मूर्त छवि है। पुल को स्थानीय लोगों ने इसके चाप पर आधारित डिजाइन के कारण प्यार से “द कोट-हैंगर ” का उपनाम दिया है। एनएसडबल्यू के लोकनिर्माण विभाग के डॉ॰ जे.जे.सी.

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स्वयंपाठी

जब कोई विद्यार्थी बिना किसी विद्यालय तथा बिना किसी शिक्षक के द्वारा पढ़ाई करता है तथा स्वयंपाठी का फार्म भर कर पढ़ाई करता है तो उन्हें स्वयंपाठी कहा जाता है। .

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स्वस्थतम की उत्तरजीविता

हरबर्ट स्पेंसर ने वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" को गढ़ा. "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट) एक वाक्यांश है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर इसके प्रथम दो प्रस्तावकों: ब्रिटिश बहुश्रुत दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (जिन्होंने इस शब्द को गढ़ा था) और चार्ल्स डार्विन, द्वारा इस्तेमाल किए गए सन्दर्भ के अलावा अन्य सन्दर्भों में भी किया जाता है। संस्कृत में इसी को दूसरे प्रकार से यों कहा गया है- 'दैवो दुर्बलघातकः' (भगवान भी दुर्बल को ही मारते हैं।) हरबर्ट स्पेंसर ने सबसे पहले इस वाक्यांश का इस्तेमाल चार्ल्स डार्विन की ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ को पढ़ने के बाद अपनी प्रिंसिपल्स ऑफ़ बायोलॉजी (1864) में किया था जिसमें उन्होंने अपने आर्थिक सिद्धांतों और डार्विन के जैविक सिद्धांतों के बीच समानताएं व्यक्त करते हुए लिखा कि "यह स्वस्थतम की उत्तरजीविता, जिसे मैंने यहां यांत्रिक शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश की है, वह तथ्य है जिसे श्री डार्विन ने 'प्राकृतिक चयन', या जीवन के लिए संघर्ष की पक्षपाती दौड़ का संरक्षण बताया है।" ^ "हरबर्ट स्पेंसर ने 1864 के अपने प्रिंसिपल्स ऑफ़ बायोलॉजी के खंड 1 के पृष्ठ 444 में लिखा: '"यह स्वस्थतम की उत्तरजीविता, जिसे मैंने यहां यांत्रिक शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश की है, वह तथ्य है जिसे श्री डार्विन ने 'प्राकृतिक चयन', या जीवन के लिए संघर्ष की पक्षपाती दौड़ का संरक्षण बताया है।", हरबर्ट स्पेंसर, द प्रिसिपल्स ऑफ़ बायोलॉजी 444 (यूनिव. प्रेस ऑफ़ द पैक. 2002) का का हवाला देते हुए डार्विन ने स्पेंसर के नए वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल सबसे पहले 1869 में प्रकाशित किए गए ऑन द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ के पांचवें संस्करण में "प्राकृतिक चयन" के एक समानार्थी शब्द के रूप में किया था।"अनुकूल विवधताओं इस संरक्षण और हानिकारक भिन्नरूपों के विनाश को मैं प्राकृतिक चयन या स्वस्थतम की उत्तरजीविता कहता हूँ." - डार्विन ने इसका मतलब "तत्काल, स्थानीय पर्यावरण के लिए बेहतर अनुकूलित" के लिए एक रूपक के रूप में, न कि "सर्वश्रेष्ठ शारीरिक आकृति में" सामान्य अनुमान के रूप में निकाला था। इसलिए, यह कोई वैज्ञानिक वर्णन नहीं है, और यह अधूरा होने के साथ-साथ भ्रामक भी है। आधुनिक जीवविज्ञानी आम तौर पर वाक्यांश "स्वस्थतम की उत्तरजीविता" का इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि यह शब्द प्राकृतिक चयन का सटीक अर्थ नहीं देता है जिसे (प्राकृतिक चयन) जीवविज्ञानी इस्तेमाल और पसंद करते हैं। प्राकृतिक चयन, आनुवंशिक आधार वाले लक्षणों के एक कार्य के रूप में अन्तरीय प्रजनन को संदर्भित करता है। "स्वस्थतम की उत्तरजीविता", दो महत्वपूर्ण कारणों की दृष्टि से गलत है। पहला, उत्तरजीविता, प्रजनन की पहली आवश्यकता मात्र है। दूसरा, जीव विज्ञान में फिटनेस शब्द का एक विशेष अर्थ है जो कि लोकप्रिय संस्कृति में आजकल इस्तेमाल होने वाले इस शब्द के अर्थ से अलग है। जनसंख्या आनुवंशिकी में, फिटनेस या योग्यता, अन्तरीय प्रजनन को संदर्भित करता है। "योग्यता" इस बात को संदर्भित नहीं करता है कि कोई व्यक्ति "शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ" - बड़ा, तेज़ या ताकतवर - या किसी व्यक्तिपरक ज्ञान के अनुसार "बेहतर" है या नहीं.

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स्वामी रामतीर्थ

स्वामी रामतीर्थ (जन्म: २२ अक्टूबर १८७३ - मृत्यु: १७ अक्टूबर १९०६) वेदान्त दर्शन के अनुयायी भारतीय संन्यासी थे। .

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स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द(স্বামী বিবেকানন্দ) (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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सैन क्रिस्टोबाल (गैलापागोस)

सैन क्रिस्टोबाल की मुख्य सड़कसैन क्रिस्टोबाल (चैथम) द्वीप का नाम नाविकों के संरक्षक संत "सेंट क्रिस्टोफर" के नाम पर रखा गया है। द्वीप का अंग्रेजी नाम चैथम, विलियम पिट, चैथम के पहले अर्ल के नाम पर रखा गया है। 558 वर्ग किलोमीटर (215 वर्ग मील) के क्षेत्रफल वाले सैन क्रिस्टोबाल का उच्चतम बिंदु है 730 मीटर (2395 फीट) ऊँचा है। गैलापागोस द्वीपसमूह के सभी द्वीपों में सैन क्रिस्टोबाल वो पहला द्वीप था जिस पर चार्ल्स डार्विन ने अपनी बीगल की यात्रा के दौरान उतरा था। इस द्वीप पर फ्रिगेट पक्षी, जलसिंह, विशाल कछुए, नीले और लाल पैरों वाले बूबी पक्षी, रेखीयपक्षी, समुद्री गोह, डॉल्फिन, अबाबील-पुच्छ गल पाये जाते हैं। इसकी वनस्पति में मेंकैलेंड्रिनिया गैलापागोस (Calandrinia galapagos), लैकोकार्पस डर्विनी (Lecocarpus darwinii) और लिग्नम वाईटी (Lignum vitae) शामिल हैं। द्वीप समूह की ताजे पानी की सबसे बड़ी झील लैगूना ई1 जंको सैन क्रिस्टोबाल की उच्चभूमि में स्थित है। गैलापागोस प्रांत की राजधानी, प्यूर्टो बैक्यूरिज़ो मोरेनो द्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित है। .

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हरबर्ट स्पेंसर

अन्य व्यक्तियों के लिये हरबर्ट स्पेंसर (बहुविकल्पी) देखें। ---- हरबर्ट स्पेंसर (27 अप्रैल 1820-8 दिसम्बर 1903) विक्टोरियाई काल के एक अंग्रेज़ दार्शनिक, जीव-विज्ञानी, समाजशास्री और प्रसिद्ध पारंपरिक उदारवादी राजनैतिक सिद्धांतकार थे। स्पेंसर ने भौतिक विश्व, जैविक सजीवों, मानव मन, तथा मानवीय संस्कृ्ति व समाजों की क्रमिक विकास के रूप में उत्पत्ति की एक सर्व-समावेशक अवधारणा विकसित की.

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जनसंख्या आनुवांशिकी

चार मुख्य विकासमूलक प्रक्रियाओं: प्राकृतिक चयन, आनुवांशिक झुकाव, उत्परिवर्तन और जीन-प्रवाह के प्रभाव में युग्म-विकल्पी आवृत्ति वितरण और परिवर्तन का अध्ययन जनसंख्या आनुवांशिकी कहलाता है। इसमें जनसंख्या उप-विभाजन तथा जनसंख्या संरचना के कारकों पर भी ध्यान दिया जाता है। यह अनुकूलन और प्रजातिकरण (speciation) जैसी अवधारणाओं की व्याख्या करने का भी प्रयास करती है। जनसंख्या आनुवांशिकी आधुनिक विकासमूलक संश्लेषण के उदभव का एक आवश्यक घटक थी। इसके प्रमुख संस्थापक सीवॉल राइट (Sewall Wright), जे.

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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जंतुओं के रंग

चित्तीदार जेब्रा प्रकृति ने इद्रंधनुष के सारे रंगों को लेकर उनके भड़कीले मिश्रण से पशु-पक्षियों को इस प्रकार सुसज्जित कर दिया है कि उन्हें देख हम अवाक्‌ रह जाते हैं। मोर तथा 'स्वर्ग का पक्षी' (Bird of Paradise) रमणीक रंगों के परिधान हैं, परंतु गोरैया तथा कुछ अन्य चिड़ियाँ साल भर भूरे रंग की ही रहती हैं। यह वर्ण-विभिन्नता क्यों? वर्ण-रमणीयता आती क्यों कर है? प्रकृति ने जंतुओं को सुंदर भड़कीले रंग दिए ही क्यों? ये प्रश्न ऐसे हैं जिनको ज्यों-ज्यों सुलझाने का प्रयास किया जाता है त्यों-त्यों उलझते जाते हैं। ग्रांट ऐलन ने अपनी पुस्तक कलर सेंस में लिखा है कि वे जंतु, जो सुंदर फल और फूल इत्यादि पर रहते हैं, प्राय: सुंदर हो जाते हैं और मांसाहारी जंतु, जो सदा मिट्टी में अथवा गंदी जगह रहते हैं, रंगीन नहीं होते। यह सत्य है कि प्राय: जंतु के रंगों पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है, परंतु उसे एक सिद्धांत का रूप नहीं दिया जा सकता। कीचड़ में पाए जानेवाले घोघों के कवच का रंग प्राय: सुंदर होता है। गंदे वातावरण में ही रहनेवाली कुछ मकड़ियाँ बड़ी सुंदर होती हैं। रंग के प्रयोजन संबंधी खोज हमें यह बतलाती है कि यद्यपि प्राणियों में रंग का होना अनिवार्य नहीं है फिर भी हमारे चारों ओर रंगीन जंतुओं का भारी जमघट है। सर्वेक्षण करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जंतुओं के अद्भुत वर्ण इनकी सुरक्षा से संबंधित हैं। परंतु यह निष्कर्ष सब प्राणियों पर लागू नहीं होता। कुछ जंतुओं में रंग आनुवंशिक रूप में अनिवार्य रहता है। उसका न किसी बाह्य वातावरण से संबंध है और न सुरक्षा से ही। उदाहरण के लिए, कोन-शेल (Cone-shell) को लीजिए। इसके कवच (shell) की बाहरी सतह पर रंग का एक निश्चित प्रतिरूप रहता है। जब तक प्राणी जीवित रहता है यह प्रतिरूप दिखलाई नहीं देता, क्योंकि यह बाह्य त्वचा को एक स्थूल परत से ढका रहता है। मृत्यु के पश्चात्‌ त्वचा सड़ जाने पर य रंगीन प्रतिरूप दिखाई देने लगता है। जीवित प्राणी का रंग इस छिपे हुए प्रतिरूप से कहीं भिन्न है। सो-आनिमोन (Sea-anemone) नामक प्राणी भी विभिन्न रंगों के होते हैं। परंतु कोई नहीं जानता कि इतने सुंदर रंग उन्होंने कहाँ से पाए। .

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जैव संरक्षण

जैव संरक्षण, प्रजातियां, उनके प्राकृतिक वास और पारिस्थितिक तंत्र को विलोपन से बचाने के उद्देश्य से प्रकृति और पृथ्वी की जैव विविधता के स्तरों का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह विज्ञान, अर्थशास्त्र और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के व्यवहार से आहरित अंतरनियंत्रित विषय है। शब्द कन्सर्वेशन बॉयोलोजी को जीव-विज्ञानी ब्रूस विलकॉक्स और माइकल सूले द्वारा 1978 में ला जोला, कैलिफ़ोर्निया स्थित कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में शीर्षक के तौर पर प्रवर्तित किया गया। बैठक वैज्ञानिकों के बीच उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई, लुप्त होने वाली प्रजातियों और प्रजातियों के भीतर क्षतिग्रस्त आनुवंशिक विविधता पर चिंता से उभरी.

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जीवन वृक्ष (विज्ञान)

डार्विन के '''ओरिजिन ऑफ स्पेसीज बाय नेचुरल सेलेक्शन''' (१८५९) में चित्रित जीवन वृक्ष; इस पुस्तक में यही एकमात्र चित्र था। चार्ल्स डार्विन का विश्वास था कि समय के साथ जीवों का अधिक विकसित अवस्था को प्राप्त करने (फिलोजेनी) के प्राकृतिक प्रक्रिया को एक रूपक के रूप में जीवन वृक्ष (Tree of Life) द्वारा दर्शाया जा सकता है। आधुनिक समय में इस विचार का नाम फिलोजेनिक वृक्ष है। '''द इवोलूशन आफ़ मैन''' (१८७९) में अर्न्स्त हैकेल द्वारा विचारित जीवन वृक्ष .

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जीवजाति का उद्भव

'आन द ओरिजिन ऑफ स्पेसीज' के सन् 1859 संस्करण का मुखपृष्ठ पृथ्वी पर जीवों का किस प्रकार आविर्भाव हुआ और किस प्रकार उनका विकास हुआ, इसके विषय में हमेशा से बड़ा हो वाद विवाद रहा है। नए प्रकार के जीव की उत्पत्ति के विषय में चार्ल्स डार्विन ने 1858 ईo में 'प्राकृतिक वरण' (Natural Selection) का सिद्धांत प्रतिपादित किया और 1858 ईo में एक पुस्तक 'जीवजाति का उद्भव', (Origin of Species), प्रकाशित की। .

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जीवविज्ञान का इतिहास

कोई विवरण नहीं।

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जीववैज्ञानिक वर्गीकरण

जीवजगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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वनस्पति विज्ञान

बटरवर्थ का पुष्प जीव जंतुओं या किसी भी जीवित वस्तु के अध्ययन को जीवविज्ञान या बायोलोजी (Biology) कहते हैं। इस विज्ञान की मुख्यतः दो शाखाएँ हैं: (1) प्राणिविज्ञान (Zoology), जिसमें जंतुओं का अध्ययन होता है और (2) वनस्पतिविज्ञान (Botany) या पादपविज्ञान (Plant Science), जिसमें पादपों का अध्ययन होता है। .

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विवाह

हिन्दू विवाह का सांकेतिक चित्रण विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच, बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है। आमतौर पर, यह मुख्य रूप से एक संस्थान है जिसमें पारस्परिक संबंध, आमतौर पर यौन, स्वीकार किए जाते हैं या संस्वीकृत होते हैं। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है। विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है। .

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खेल सिद्धांत

खेल सिद्धांत या गेम थ्योरी (game theory) व्यवहारिक गणित की एक शाखा है जिसका प्रयोग समाज विज्ञान, अर्थशास्त्र, जीव विज्ञान, इंजीनियरिंग, राजनीति विज्ञान, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कम्प्यूटर साइंस और दर्शन में किया जाता है। खेल सिद्धांत कूटनीतिक परिस्थितियों में (जिसमें किसी के द्वारा विकल्प चुनने की सफलता दूसरों के चयन पर निर्भर करती है) व्यवहार को बूझने का प्रयास करता है। यूँ तो शुरू में इसे उन प्रतियोगिताओं को समझने के लिए विकसित किया गया था जिनमें एक व्यक्ति का दूसरे की गलतियों से फायदा होता है (ज़ीरो सम गेम्स), लेकिन इसका विस्तार ऐसी कई परिस्थितियों के लिए करा गया है जहाँ अलग-अलग क्रियाओं का एक-दूसरे पर असर पड़ता हो। आज, "गेम थ्योरी" समाज विज्ञान के तार्किक पक्ष के लिए एक छतरी या 'यूनीफाइड फील्ड' थ्योरी की तरह है जिसमें 'सामाजिक' की व्याख्या मानव के साथ-साथ दूसरे खिलाड़ियों (कम्प्युटर, जानवर, पौधे) को सम्मिलित कर की जाती है। गेम थ्योरी के पारंपरिक अनुप्रयोगों में इन गेमों में साम्यावस्थाएं खोजने का प्रयास किया जाता है। साम्यावस्था में गेम का प्रत्येक खिलाड़ी एक नीति अपनाता है जो वह संभवतः नहीं बदलता है। इस विचार को समझने के लिए साम्यावस्था की कई सारी अवधारणाएं विकसित की गई हैं (सबसे प्रसिद्ध नैश इक्विलिब्रियम)। साम्यावस्था के इन अवधारणाओं की अभिप्रेरणा अलग-अलग होती है और इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस क्षेत्र में प्रयोग की जा रहीं हैं, हालाँकि उनके मायने कुछ हद तक एक दूसरे में मिले-जुले होते हैं और मेल खाते हैं। यह पद्धति आलोचना रहित नहीं है और साम्यावस्था की विशेष अवधारणाओं की उपयुक्तता पर, साम्यवास्थाओं की उपयुक्तता पर और आमतौर पर गणितीय मॉडलों की उपयोगिता पर वाद-विवाद जारी रहते हैं। हालाँकि इसके पहले ही इस क्षेत्र में कुछ विकास चुके थे, गेम थ्योरी का क्षेत्र जॉन वॉन न्युमन्न और ऑस्कर मॉर्गनस्टर्न की 1944 की पुस्तक थ्योरी ऑफ गेम्स ऐंड इकोनोमिक बिहेविअर के साथ आस्तित्व में आया। इस सिद्धांत का विकास बड़े पैमाने पर 1950 के दशक में कई विद्वानों द्वारा किया गया। बाद में गेम थ्योरी स्पष्टतया 1970 के दशक में जीव विज्ञान में प्रयुक्त किया गया, हालाँकि ऐसा 1930 के दशक में ही शुरू हो चुका था। गेम थ्योरी की पहचान व्यापक रूप से कई क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में की गई है। आठ गेम थ्योरिस्ट्स अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार जीत चुके हैं और जॉन मेनार्ड स्मिथ को गेम थ्योरी के जीव विज्ञान में प्रयोग के लिए क्रफूर्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गैलापागोस द्वीपसमूह

गैलापागोस द्वीप समूह (आधिकारिक नाम: Archipiélago de Colón; अन्य स्पेनिश नाम: Islas de Colón या Islas Galápagos) प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के आसपास फैले ज्वालामुखी द्वीपों का एक द्वीपसमूह है, जो महाद्वीपीय ईक्वाडोर के 972 किमी पश्चिम में स्थित है। यह एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है: वन्यजीवन इसकी सबसे प्रमुख विशेषता है। गैलापागोस द्वीप समूह ईक्वाडोर के गैलापागोस प्रांत का निर्माण करते हैं साथ ही यह देश की राष्ट्रीय उद्यान प्रणाली का हिस्सा हैं। इस द्वीप की प्रमुख भाषा स्पेनिश है। इस द्वीपों की जनसंख्या 40000 के आसपास है, जिसमें पिछले 50 वर्षों में 40 गुना वृद्धि हुई है। भौगोलिक रूप से यह द्वीपसमूह नये हैं और स्थानीय प्रजातियों की अपनी विशाल संख्या के लिए प्रसिद्ध है, जिनका चार्ल्स डार्विन ने अपने बीगल के खोजी अभियान के दौरान अध्ययन किया था। उनकी टिप्पणियों और संग्रह ने डार्विन के प्राकृतिक चयन द्वारा क्रम-विकास के सिद्धांत के प्रतिपादन में योगदान दिया। विश्व के नये सात आश्चर्य फाउंडेशन द्वारा गैलापागोस द्वीपसमूह को प्रकृति के सात नए आश्चर्यों में से एक के लिए एक उम्मीदवार के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। फ़रवरी 2009 तक द्वीप की श्रेणी, समूह बी में द्वीपसमूह की वरीयता प्रथम थी। .

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आधुनिकतावाद

हंस होफ्मन, "द गेट", 1959–1960, संग्रह: सोलोमन आर. गुगेन्हीम म्यूज़ियम होफ्मन केवल एक कलाकार के रूप में ही नहीं, बल्कि एक कला शिक्षक के रूप में भी मशहूर थे और वे अपने स्वदेश जर्मनी के साथ-साथ बाद में अमेरिका के भी एक आधुनिकतावादी सिद्धांतकार थे। 1930 के दशक के दौरान न्यूयॉर्क एवं कैलिफोर्निया में उन्होंने अमेरिकी कलाकारों की एक नई पीढ़ी के लिए आधुनिकतावाद एवं आधुनिकतावादी सिद्धांतों की शुरुआत की.ग्रीनविच गांव एवं मैसाचुसेट्स के प्रोविंसटाउन में स्थित अपने कला विद्यालयों में अपने शिक्षण एवं व्याख्यान के माध्यम से उन्होंने अमेरिका में आधुनिकतावाद के क्षेत्र का विस्तार किया।हंस होफ्मन की जीवनी, 30 जनवरी 2009 को उद्धृत आधुनिकतावाद, अपनी व्यापक परिभाषा में, आधुनिक सोच, चरित्र, या प्रथा है अधिक विशेष रूप से, यह शब्द उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के आरम्भ में मूल रूप से पश्चिमी समाज में व्यापक पैमाने पर और सुदूर परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के एक समूह एवं सम्बद्ध सांस्कृतिक आन्दोलनों की एक सरणी दोनों का वर्णन करता है। यह शब्द अपने भीतर उन लोगों की गतिविधियों और उत्पादन को समाहित करता है जो एक उभरते सम्पूर्ण औद्योगीकृत विश्व की नवीन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों में पुराने होते जा रहे कला, वास्तुकला, साहित्य, धार्मिक विश्वास, सामाजिक संगठन और दैनिक जीवन के "पारंपरिक" रूपों को महसूस करते थे। आधुनिकतावाद ने ज्ञानोदय की सोच की विलंबकारी निश्चितता को और एक करुणामय, सर्वशक्तिशाली निर्माता के अस्तित्व को भी मानने से अस्वीकार कर दिया.

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आग

जंगल की आग आग दहनशील पदार्थों का तीव्र ऑक्सीकरण है, जिससे उष्मा, प्रकाश और अन्य अनेक रासायनिक प्रतिकारक उत्पाद जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और जल.

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इंग्लिश मास्टिफ़

इंग्लिश मास्टिफ़ कुत्तों की एक नस्ल अंग्रेजी मास्टिफ, जिसे वस्तुत: ऑल केनेल क्लब (एकेसी) आम तौर पर मास्टिफ कहते हैं, कुत्तों की एक बड़ी नस्ल का नाम है, जो पगनेसेज ब्रिटानिया के माध्यम से प्राचीन अलाउंट के वंशज के रूप में संदर्भित किया जाता है। अपने विशाल आकार, बड़े सिर और रंगों के एक सीमित दायरे, लेकिन हमेशा एक काला नकाब प्रदर्शित करने के कारण अलग पहचान वाला मास्टिफ अपने विनम्र स्वभाव के लिए विख्यात है। आधुनिक कुत्तों की वंशावली को 19 वीं शताब्दी की शुरुआत से खोजा जा सकता है और और इसका आधुनिक प्रकार 1880 के दशक में स्थिर हुआ। तेजी से गिरावट के एक मास्टिफ ने दुनिया भर में अपनी लोकप्रियता बढाई.

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कार्ल मार्क्स

कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात्‌ 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात्‌ संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। कोलकाता, भारत 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही। 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं। .

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कार्ल सेगन

कार्ल सेगन (9 नवम्बर 1934 - 20 दिसम्बर 1996) प्रसिद्ध यहूदी खगोलशास्त्री और खगोल रसायनशास्त्री थे जिन्होंने खगोल शास्त्र, खगोल भौतिकी और खगोल रसायनशास्त्र को लोकप्रिय बनाया। इन्होंने पृथ्वी से इतर ब्रह्माण्ड में जीवन की खोज करने के लिए सेटी नामक संस्था की स्थापना भी की। इन्होंने अनेक विज्ञान संबंधी पुस्तकें भी लिखी हैं। ये 1980 के बहुदर्शित टेलिविजन कार्यक्रम कॉसमॉस: ए पर्सनल वॉयेज (ब्रह्माण्ड: एक निजी यात्रा) के प्रस्तुतकर्ता भी थे। इन्होंने इस कार्यक्रम पर आधारित कॉसमॉस नामक पुस्तक भी लिखी। अपने जीवनकाल में सेगन ने 600 से भी अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे और 20 से अधिक पुस्तकें लिखी। अपनी कृतियों में ये अकसर मानवता, वैज्ञानिक पद्धति और संशयी अनुसंधान पर जोर देते थे। .

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क्रम-विकास

आनुवांशिकता का आधार डीएनए, जिसमें परिवर्तन होने पर नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं। क्रम-विकास या इवोलुशन (English: Evolution) जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तन को कहते हैं। क्रम-विकास की प्रक्रियायों के फलस्वरूप जैविक संगठन के हर स्तर (जाति, सजीव या कोशिका) पर विविधता बढ़ती है। पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है, जो ३.५–३.८ अरब वर्ष पूर्व रहता था। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। जीवन के क्रम-विकासिक इतिहास में बार-बार नयी जातियों का बनना (प्रजातिकरण), जातियों के अंतर्गत परिवर्तन (अनागेनेसिस), और जातियों का विलुप्त होना (विलुप्ति) साझे रूपात्मक और जैव रासायनिक लक्षणों (जिसमें डीएनए भी शामिल है) से साबित होता है। जिन जातियों का हाल ही में कोई साझा पूर्वज था, उन जातियों में ये साझे लक्षण ज्यादा समान हैं। मौजूदा जातियों और जीवाश्मों के इन लक्षणों के बीच क्रम-विकासिक रिश्ते (वर्गानुवंशिकी) देख कर हम जीवन का वंश वृक्ष बना सकते हैं। सबसे पुराने बने जीवाश्म जैविक प्रक्रियाओं से बने ग्रेफाइट के हैं, उसके बाद बने जीवाश्म सूक्ष्मजीवी चटाई के हैं, जबकि बहुकोशिकीय जीवों के जीवाश्म बहुत ताजा हैं। इस से हमें पता चलता है कि जीवन सरल से जटिल की तरफ विकसित हुआ है। आज की जैव विविधता को प्रजातिकरण और विलुप्ति, दोनों द्वारा आकार दिया गया है। पृथ्वी पर रही ९९ प्रतिशत से अधिक जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जातियों की संख्या १ से १.४ करोड़ अनुमानित है। इन में से १२ लाख प्रलेखित हैं। १९ वीं सदी के मध्य में चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण द्वारा क्रम-विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत दिया। उन्होंने इसे अपनी किताब जीवजाति का उद्भव (१८५९) में प्रकाशित किया। प्राकृतिक चयन द्वारा क्रम-विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित अवलोकनों से साबित किया जा सकता है: १) जितनी संतानें संभवतः जीवित रह सकती हैं, उस से अधिक पैदा होती हैं, २) आबादी में रूपात्मक, शारीरिक और व्यवहारिक लक्षणों में विविधता होती है, ३) अलग-अलग लक्षण उत्तर-जीवन और प्रजनन की अलग-अलग संभावना प्रदान करते हैं, और ४) लक्षण एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को दिए जाते हैं। इस प्रकार, पीढ़ी दर पीढ़ी आबादी उन शख़्सों की संतानों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है जो उस बाईओफीसिकल परिवेश (जिसमें प्राकृतिक चयन हुआ था) के बेहतर अनुकूलित हों। प्राकृतिक वरण की प्रक्रिया इस आभासी उद्देश्यपूर्णता से उन लक्षणों को बनती और बरकरार रखती है जो अपनी कार्यात्मक भूमिका के अनुकूल हों। अनुकूलन का प्राकृतिक वरण ही एक ज्ञात कारण है, लेकिन क्रम-विकास के और भी ज्ञात कारण हैं। माइक्रो-क्रम-विकास के अन्य गैर-अनुकूली कारण उत्परिवर्तन और जैनेटिक ड्रिफ्ट हैं। .

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क्रम-विकास से परिचय

क्रम-विकास किसी जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ियों के साथ परिवर्तन को कहते हैं। जैविक आबादियों में जैनेटिक परिवर्तन के कारण अवलोकन योग्य लक्षणों में परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे जैनेटिक विविधता पीढ़ियों के साथ बदलती है, प्राकृतिक वरण से वो लक्षण ज्यादा सामान्य हो जाते हैं जो उत्तरजीवन और प्रजनन में ज्यादा सफलता प्रदान करते हैं। पृथ्वी की उम्र लगभग ४.५४ अरब वर्ष है। जीवन के सबसे पुराने निर्विवादित सबूत ३.५ अरब वर्ष पुराने हैं। ये सबूत पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ३.५ वर्ष पुराने बलुआ पत्थर में मिले माइक्रोबियल चटाई के जीवाश्म हैं। जीवन के इस से पुराने, पर विवादित सबूत ये हैं: १) ग्रीनलैंड में मिला ३.७ अरब वर्ष पुराना ग्रेफाइट, जो की एक बायोजेनिक पदार्थ है और २) २०१५ में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ४.१ अरब वर्ष पुराने पत्थरों में मिले "बायोटिक जीवन के अवशेष"। Early edition, published online before print. क्रम-विकास जीवन की उत्पत्ति को समझाने की कोशिश नहीं करता है (इसे अबायोजेनेसिस समझाता है)। पर क्रम-विकास यह समझाता है कि प्राचीन सरल जीवन से आज का जटिल जीवन कैसे विकसित हुआ है। आज की सभी जातियों के बीच समानता देख कर यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। आज की सभी जातियाँ क्रम-विकास की प्रक्रिया के द्वारा इस से उत्पन्न हुई हैं। सभी शख़्सों के पास जीन्स के रूप में आनुवांशिक पदार्थ होता है। सभी शख़्स इसे अपने माता-पिता से ग्रहण करते हैं और अपनी संतान को देते हैं। संतानों के जीन्स में थोड़ी भिन्नता होती है। इसका कारण उत्परिवर्तन (यादृच्छिक परिवर्तनों के माध्यम से नए जीन्स का प्रतिस्थापन) और लैंगिक जनन के दौरान मौजूदा जीन्स में फेरबदल है। इसके कारण संताने माता-पिता और एक दूसरे से थोड़ी भिन्न होती हैं। अगर वो भिन्नताएँ उपयोगी होती हैं तो संतान के जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना ज्यादा होती है। इसके कारण अगली पीढ़ी के विभिन्न शख्सों के जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना समान नहीं होती है। फलस्वरूप जो लक्षण जीवों को अपनी परिस्थितियों के ज्यादा अनुकूलित बनाते हैं, अगली पीढ़ियों में वो ज्यादा सामान्य हो जाते हैं। ये भिन्नताएँ धीरे-धीरे बढ़ती रहती हैं। आज देखी जाने वाली जीव विविधता के लिए यही प्रक्रिया जिम्मेदार है। अधिकांश जैनेटिक उत्परिवर्तन शख़्सों को न कोई सहायता प्रदान करते हैं, न उनकी दिखावट को बदलते हैं और न ही उन्हें कोई हानि पहुँचाते हैं। जैनेटिक ड्रिफ्ट के माध्यम से ये निष्पक्ष जैनेटिक उत्परिवर्तन केवल संयोग से आबादियों में स्थापित हो जाते हैं और बहुत पीढ़ियों तक जीवित रहते हैं। इसके विपरीत, प्राकृतिक वरण एक यादृच्छिक प्रक्रिया नहीं है क्योंकि यह उन लक्षणों को बचाती है जो जीवित रहने और प्रजनन करने के लिए जरुरी हैं। प्राकृतिक वरण और जैनेटिक ड्रिफ्ट जीवन के नित्य और गतिशील अंग हैं। अरबों वर्षों में इन प्रक्रियाओं ने जीवन के वंश वृक्ष की शाखाओं की रचना की है। क्रम-विकास की आधुनिक सोच १८५९ में प्रकाशित चार्ल्स डार्विन की किताब जीवजातियों का उद्भव से शुरू हुई। इसके साथ ग्रेगर मेंडल द्वारा पादपों पर किये गए अध्ययन ने अनुवांशिकी को समझने में मदद की। जीवाश्मों की खोज, जनसंख्या आनुवांशिकी में प्रगति और वैज्ञानिक अनुसंधान के वैश्विक नैटवर्क ने क्रम-विकास की क्रियाविधि की और अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान की है। वैज्ञानिकों को अब नयी जातियों के उद्गम (प्रजातीकरण) की ज्यादा समझ है और उन्होंने अब प्रजातीकरण की प्रक्रिया का अवलोकन प्रयोगशाला और प्रकृति में कर लिया है। क्रम-विकास वह मूल वैज्ञानिक सिद्धांत है जिसे जीववैज्ञानिक जीवन को समझने के लिए प्रयोग करते हैं। यह कई विषयों में प्रयोग होता है जैसे आयुर्विज्ञान, मानस शास्त्र, जैव संरक्षण, मानवशास्त्र, फॉरेंसिक विज्ञान, कृषि और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक विषय। .

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क्रांतिकारी बदलाव

क्रांतिकारी बदलाव या रूपांतरण (या क्रांतिकारी विज्ञान) थामस कुह्न द्वारा उनकी प्रभावशाली पुस्तक द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रिवोलुशनस (1962) में प्रयुक्त (पर उनके द्वारा बनाया गया नहीं) पद है जो उन्होंने विज्ञान के प्रभावी सिद्धांत के भीतर मूल मान्यताओं में परिवर्तन को व्यक्त करने के लिये प्रयुक्त किया था। यह सामान्य विज्ञान के बारे में उनके विचार से भिन्न है। तब से क्रांतिकारी बदलाव शब्द घटनाओं के मूल आदर्श के रूप में परिवर्तन के रूप में मानवीय अनुभव के अन्य कई भागों में भी व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने लगा है, हालांकि स्वयं कुह्न ने इस पद के प्रयोग को कठिन विज्ञानों तक ही सीमित रखा है। कुह्न के अनुसार, "क्रांति वह चीज है जिसका केवल वैज्ञानिक समाज के सदस्य ही साझा करते हैं।" (द एसेंसियल टेंशन, 1977).

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अनसाइक्लोपीडिया

अनसाइक्लोपीडिया ("विषय-वस्तु रहित विश्वकोश") एक वेबसाइट है जो विकिपीडिया की हास्यानुकृति करता है। 2005 में मूल रूप से अंग्रेजी भाषा के विकी के रूप में स्थापित, यह परियोजना वर्त्तमान में 75 से अधिक भाषाओं में फैली हुई है। इसके अंग्रेजी संस्करण में 25,000 से अधिक पृष्ठों की विषय-वस्तु है, जो मात्र 26000 से अधिक पृष्ठों की विषय-वस्तु वाले पुर्तगाली डेसिक्लोपीडिया के बाद दूसरे स्थान पर है। हास्यानुकृति के माध्यम के रूप में विभिन्न हास्य शैलियों का प्रयोग किया जाता है जिसमे परिष्कृत व्यंग्य से लेकर बिलकुल आकस्मिक अपरिष्कृत व्यंग्योक्ति (कटाक्ष) तक शामिल हैं। विकिपीडिया के सामान, अनसाइक्लोपीडिया में इस संबंध में दिशानिर्देश होते हैं कि कौन सी विषय वस्तु स्वीकार्य है और कौन सी विषय वस्तु स्वीकार्य नहीं है और समय के साथ साइट के विस्तार होने से ये दिशानिर्देश उत्तरोत्तर अधिक कठोर बन गए हैं, हालांकि आधी विषय वस्तु अनुपयुक्त है। लोगों और स्थानों के संबंध में अपने लेखों के लिए इस साइट ने मीडिया का ध्यान आकृष्ट किया है। इसका प्रतीक चिह्न (लोगो), एक खोखला आलू है, जिसका नाम ज्ञान की देवी सोफिया के नाम पर रखा गया है, विकिपीडिया के विश्वस्तरीय प्रतीक चिह्न की हास्यानुकृति के रूप में कार्य करता है। .

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अल्बर्ट आइंस्टीन

अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein; १४ मार्च १८७९ - १८ अप्रैल १९५५) एक विश्वप्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिकविद् थे जो सापेक्षता के सिद्धांत और द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण E .

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अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट

अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट''' 1859 में 89 साल की उम्र में अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट (Alexander von Humboldt या Friedrich Wilhelm Heinrich Alexander von Humboldt; जन्म १७६९- मृत्यु १८५९ ई.) जर्मनी (तत्कालीन प्रशा) के भूगोलवेत्ता, प्रकृति विज्ञानी, और खोजकर्ता थे। उनका जन्म बर्लिन में तत्कालीन शाही परिवार में हुआ। हम्बोल्ट के बड़े भाई विल्हेम वॉन हम्बोल्ट एक प्रसिद्द भाषा विज्ञानी और प्रशा कि सरकार में मंत्री थे। हम्बोल्ट ने सर्वप्रथम वनस्पति विज्ञान में परिमाणात्मक विधियों का प्रयोग किया जिनसे जैव भूगोल की मजबूत आधारशिला का निर्माण हुआ। यह हम्बोल्ट ही थे जिनके द्वारा भूगोलीय घटनाओं की दीर्घावधिक मॉनिटरिंग वकालत की गयी और इस कार्य ने आधुनिक भूचुम्बकीय और मौसम वैज्ञानिक प्रेक्षणों का मार्ग प्रशस्त किया। हम्बोल्ट एक अनुभववादी विचारक थे और घटनाओं के प्रेक्षण और मापन में यकीन रखते थे। उन्होंने घर में बैठकर चिंतन करके लेखन करने की बजाय भ्रमण करके घटनाओं के प्रेक्षण के बाद उनके निरूपण की विधा पर कार्य किया। हम्बोल्ट ने अपने जीवन में लगबग साढ़े छह हजार किलोमीटर की यात्रायें कीं जिनमें सबसे प्रमुख उनकी दक्षिण अमेरिका की यात्रा है। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस महादीप की यात्रा और इसका वर्णन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने दूरबीन, तापमापी, साइनोमीटर, सेक्सटैंट, वायुदाबमापी इत्यादि उपकरणों से लैस होकर मापन कार्य किये और उनकी इस यात्रा के वर्णन का प्रकाशन २१ खण्डों में हुआ। हम्बोल्ट उन पहले लोगों में से थे जिन्होंने दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कभी जुड़े हुए होने की बात कही थी। हम्बोल्ट कि सबसे प्रमुख कृति कॉसमॉस है जिसमें उन्होंने संश्लेषणात्मक विचारों के साथ ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में सामंजस्य और एकता लाने का प्रयास किया है। इस कार्य में वे ब्रह्माण्ड को एक एकीकृत इकाई के रूप में भी पुरःस्थापित किया। वे अनेकता में एकता के सिद्धांत के पुरोधा थे। .

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अशाब्दिक संप्रेषण

अशाब्दिक संप्रेषण (non-verbal communication /NVC) से तात्पर्य सामान्यतः शब्द रहित संदेशों को भेजने एवं प्राप्त करने की संप्रेषण प्रक्रिया से है। अर्थात् भाषा ही संप्रेषण का एकमात्र माध्यम नहीं है, कुछ अन्य माध्यम भी हैं। इस प्रकार के संप्रेषण के लिए 'अवाचिक संप्रेषण', 'वाचेतर संपेष्रण'; 'अशाब्दिक संचार' आदि शब्दों का भी प्रयोग होता है। अशाब्दिक संप्रेषण को शारीरिक हाव-भाव एवं स्पर्श (हैपटिक संप्रेषण), शारीरिक भाषा एवं भावभंगिमा, चेहरे की अभिव्यक्ति या आँखों के संपर्क से भी संप्रेषित किया जा सकता है। एन वी सी (NVC) को वस्तु सामग्री संप्रेषण यथा - वस्त्र, बालों की स्टाइल या स्थापत्य, प्रतीकों व चित्रों के माध्यम से भी संप्रेषित किया जा सकता है। आवाज या वाणी में पैरालैग्वेज नामक अशाब्दिक तत्व सम्मिलित होते हैं जिनमें आवाज की गुणवत्ता, भावना, बोलने के तरीके के साथ-साथ ताल, लय, आलाप एवं तनाव जैसे छन्द शास्त्र संबंधी लक्षण भी सम्मिलित हैं। नृत्य को भी अशाब्दिक संप्रेषण माना जाता है। इसी तरह, लिखित पाठ में भी अशाब्दिक तत्व होते हैं जैसे - हस्तलेखन तरीका, शब्दों की स्थान संबंधी व्यवस्था या इमोटिकॉन (emoticons) का प्रयोग.

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अंग्रेज़

अंग्रेज़ (या फिरंगी) इंग्लैण्ड मूल अंग्रेज़ी भाषी लोगों को कहा जाता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

डार्विन, चार्लस डारविन, चार्ल्स डारविन

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