1 संबंध: दूतकाव्य।
दूतकाव्य
यह लेख संस्कृत के महाकवि भास की रचना 'दूतवाक्य' के बारे में नहीं है। ---- दूतकाव्य, संस्कृत काव्य की एक विशिष्ट परंपरा है जिसका आरंभ भास तथा घटकर्पर के काव्यों और महाकवि कालिदास के मेघदूत में मिलता है, तथापि, इसके बीज और अधिक पुराने प्रतीत होते हैं। परिनिष्ठित काव्यों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित वह प्रसंग, जिसें राम ने सीता के पास अपना विरह संदेश भेजा, इस परंपरा की आदि कड़ी माना जाता है। स्वयं कालिदास ने भी अपने "मेघदूत" में इस बात का संकेत किया है कि उन्हें मेघ को दूत बनाने की प्रेरणा वाल्मीकि "रामायण" के हनुमानवाले प्रसंग से मिली है। दूसरी और इस परंपरा के बीज लोककाव्यों में भी स्थित जान पड़ते हैं, जहाँ विरही और विरहिणियाँ अपने अपने प्रेमपात्रों के पति भ्रमर, शुक, चातक, काक आदि पक्षियों के द्वारा संदेश ले जाने का विनय करती मिलती हैं। .
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