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गंधक

सूची गंधक

हल्के पीले रंग के गंधक के क्रिस्टल गंधक (Sulfur) एक रासायनिक अधातुक तत्त्व है। .

94 संबंधों: टाइटेनियम, टिन, एल्ब्यूमिन, एल्कलॉएड, एसिटिक अम्ल, ऐमलथीया (उपग्रह), ठोस अवस्था भौतिकी, ढलवां लोहा, तत्तापानी, कश्मीर, थायोयूरिया, दहन, दहन ऊष्मा, धातु, नोवियाल, पटाख़ा, पर्यावरण अभियांत्रिकी, पाताल का द्वार, पादप पोषण, प्रोटीन, प्रोटीन संरचना, पेट्रोलियम उत्पाद, पोटैशियम, पोषक तत्व, पीली आंधी, फास्फोरस, बायोडीजल, बारूद, ब्राहुई भाषा, ब्रेल पद्धति, बृहस्पति (ग्रह), बृहस्पति का वायुमंडल, भारतीय रसायन का इतिहास, माक्षिक, मंगल ग्रह, मृत सागर, रत्न, रस चिकित्‍सा, रासायनिक तत्वों की सूची, रासायनिक उद्योग, लहसुन, शिलांग, शुक्र, समावयवता, सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फर हेक्साफ्लोराइड, साबुन, सिक्किम, स्नेहक, स्कैण्डिनेवियाई देश, स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप, ..., सूरजमुखी, सूर्य, सेलेनियम, हाइड्रो़जन सल्फाइड, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, होम्योपैथी, हींग, जल (अणु), जलगैस, जैव ईंधन, जैवाणु, वल्कनीकरण, वान डर वाल्स त्रिज्या, वियतनामी लिपि, वॉयेजर द्वितीय, खनिज, खनिज जल, खनिजों का बनना, खाद्य पूरक, गन्धकाम्ल, ऑक्सीजन, आनुभविक सूत्र, आयनन ऊर्जा, आयो (उपग्रह), आहारीय खनिज, आइएसडीएन (ISDN), इन्सुलिन, इस्पात निर्माण, कल्लर भूमि, कहरुवा, कार्बनिक रसायन, किलनी, क्रिस्टलकी, केके के गाये गीतों की सूची, कोयला, कीट नियंत्रण, अधातु, अपरूपता, अमेथिस्ट, अर्धचालक पदार्थ, अंग्रेजी वर्णमाला, उर्वरक, उल्का सूचकांक विस्तार (44 अधिक) »

टाइटेनियम

टाइटेनियम तत्व का सबसे पहले सन् 1791 में ग्रेटर ने पता लगाया तथा सन् 1795 में क्लापराथ ने इसका नाम टाइटेनियम रखा। इसके मुख्य खनिज इलमिनाइट तथा रुटाइल हैं। दूसरे खनिज स्थुडोब्रुकाइट, (Fe4 (TiO4) 3), एरीजोनाइट, (Fe2 (TiO3)3), गाइकीलाइट (MgTiO3) तथा पायरोफेनाइट, (MnTiO3) इत्यादि हैं धातु के क्लोराइड के वाष्प को द्रवित सोडियम के ऊपर से पारित करने पर, अथवा पोटासियम के साथ अवकरण से, अथवा धातु के हेलोजन लवण या ऑक्साइड के कैल्सियम, मैग्नीशियम या ऐल्यूमिनियम द्वारा अवकरण से यह धातु प्राप्त होती है। बुसे (सन् 1853) ने पोटासियम टाइटेनेट, सोडियम सल्फेट और सल्फयूरिक अम्ल के विद्युद्विच्छेदन द्वारा सफेद टाइटेनियम प्राप्त किया था। .

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टिन

वंग या रांगा या टिन (Tin) एक रासायनिक तत्त्व है। लैटिन में इसका नाम स्टैन्नम (Stannum) है जिससे इसका रासायनिक प्रतीक Sn लिया गया है। यह आवर्त सारणी के चतुर्थ मुख्य समूह (main group) की एक धातु है। वंग के दस स्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११२, ११४, ११५, ११६, ११७, ११८, ११९, १२०, १२२ तथा १२४) प्राप्त हैं। इनके अतिरिक्त चार अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११३, १२१, १२३ और १२५) भी निर्मित हुए हैं। .

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एल्ब्यूमिन

अल्ब्यूमिन (लैटिन: ऐल्बस, श्वेत), या एल्ब्यूमेन एक प्रकार का प्रोटीन है। यह सांद्र लवण घोलों (कन्सन्ट्रेटेड सॉल्ट सॉल्यूशन) में धीमे-धीमे घुलता है और फिर उष्ण कोएगुलेशन होने लगता है। एल्ब्यूमिन वाले पदार्थ, जैसे अंडे की सफ़ेदी, आदि को एल्ब्यूमिनॉएड्स कहते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १ जून २०१० प्रकृति में विभिन्न तरह के एल्बुमिन पाए जाते हैं। अंडे और मनुष्य के रक्त में पाए जाने वाले एल्बुमिन को सबसे अधिक पहचाने मिली है। यह मानव शरीर में कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यह विभिन्न प्रकार के पौधों और जंतुओं का रचनात्मक अवयव हैं। अंडे की सफेदी में अल्ब्यूमिन होता है। ---- एल्बुमिन वास्तव में एक गोलाकार प्रोटीन होता है। इसकी संरचना खुरदरी और गोल होती है। इसके अणु जल के संग एक घोल तैयार करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थ होते हैं। मांसपेशियों में पाए जाने वाले प्रोटीन रेशेदार होते हैं। इनकी संरचना अलग तरह की होती है और ये पानी में नहीं घुलते हैं। एल्बुमिन मनुष्य के शरीर में जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण घटक होते हैं। ये वसामय ऊतकों से शरीर में महत्वपूर्ण अम्लों का निर्माण करते हैं। ये शारीरिक क्रिया को नियंत्रित कर रक्त में हार्मोन और अन्य पदार्थो के परिसंचालन में सहयोग देते हैं। शरीर में इनका अभाव होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। रोगियों के शरीर में इसकी अपेक्षित कमी के लक्षण होने पर चिकित्सक कई बार एल्बुमिन के परीक्षण का परामर्श भी देते हैं। अंडे के सफेद हिस्से में पाए जाने वाले एल्बुमिन को ओवल्बुमिन कहते हैं। गर्म करने पर एल्बुमिन और प्रोटीन जम जाते हैं। इस गुण के कारण ये पकाने में अच्छे होते हैं। इसी कारण से अंडा जल्दी उबलता है। इसमें पाया जाने वाला एल्बुमिन दूसरे तत्वों को शुद्ध करने के लिए भी काम लाया जाता है। इसे सूप बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पकाए जाने पर प्रोटीन फैल जाते हैं और इनकी संरचना में बदलाव आता है। ओवल्बुमिन इस स्थिति में आंशिक रूप से फैलते हैं, जिससे इन पर एक सतह बन जाती है। इसे अधिक गर्म करने पर उसकी वास्तविक संरचना नष्ट हो जाती है। .

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एल्कलॉएड

isbn.

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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ऐमलथीया (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी ऐमलथीया की झलकी सन् १९७९ में वॉयजर प्रथम द्वारा ली गयी ऐमलथीया की झलकी ऐमलथीया (यूनानी: Αμάλθεια, अंग्रेज़ी: Amalthea) बृहस्पति ग्रह का तीसरा सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस उपग्रह की खोज ९ सितम्बर १८९२ में ऍडवर्ड ऍमरसन बर्नार्ड नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने की थी और यूनानी मिथ्य-कथाओं की एक पारी के नाम पर इसका नाम रखा गया। यह उपग्रह बृहस्पति के छल्लों में स्थित है और ऐमलथीया गोसेमर छल्ले के बाहरी किनारे पर स्थित है। यह छल्ला इसी उपग्रह से उभरी हुई धुल का बना है। यह बृहस्पति की परिक्रमा उस ग्रह से १,८१,००० किमी की दूरी पर करता है। ऐमलथीया के बृहस्पति के इतना पास होने से और उस ग्रह की तुलना में बहुत छोटा होने से बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए ऐमलथीया का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है।, David M. Harland, Springer, 2000, ISBN 978-1-85233-301-0,...

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ठोस अवस्था भौतिकी

हीरा की संरचना का चलित दृष्य ठोस अवस्था की भौतिकी (Solid-state physics) को ठोस अवस्था का सिद्धांत (Solid-state theory) के नाम से भी जाना जाता है। यह भौतिकी की वह शाखा है जिसमें ठोस की संरचना और उसके भौतिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। यह संघनित प्रावस्था भौतिकी की सबसे बड़ी शाखा है। ठोस अवस्था भौतिकी में इस बात पर विचार किया जाता है कि ठोसों के वाह्य गुण उनके परमाणु-स्तरीय गुणों से किस प्रकार सम्बन्धित हैं। इस प्रकार ठोस अवस्था भौतिकी, पदार्थ विज्ञान का सैद्धान्तिक आधार बनाती है। इसके अलावा ट्रांजिस्टरों की प्रौद्योगिकी एवं अर्धचालकों की तकनीकी आदि में इसका सीधा उपयोग भी होता है। .

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ढलवां लोहा

आयरन-सेमेंटाईट मेटा-स्टेबल डायग्राम. ढलवां लोहा (कास्ट आयरन) आम तौर पर धूसर रंग के लोहे को कहा जाता है लेकिन इसके साथ-साथ यह एक बड़े पुंज में लौह अयस्कों का मिश्रण भी है, जो एक गलनक्रांतिक तरीके से ठोस बन जाता है। किसी भी धातु की खंडित सतह को देखकर उसके मिश्र धातु होने का पता लगाया जा सकता है। सफेद ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित सफ़ेद सतह के आधार पर किया गया है क्योंकि इसमें कार्बाइड सम्बन्धी अशुद्धियां पाई जाती हैं जिसकी वजह से इसमें सीधी दरार पड़ती है। धूसर ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित धूसर सतह के आधार पर किया गया है, इसके खंडित होने का कारण यह है कि ग्रेफाइट की परतें पदार्थ के टूटने के दौरान पड़ने वाली दरार को विक्षेपित कर देती हैं जिससे अनगिनत नई दरारें पड़ने लगती हैं। मिश्र (अयस्क) धातु में पाए जाने वाले पदार्थों के वजन (wt%) में से 95% से भी अधिक लोहा (Fe) होता है जबकि अन्य मुख्य तत्वों में कार्बन (C) और सिलिकॉन (Si) शामिल हैं। ढलवां लोहे में कार्बन की मात्रा 2.1 से 4 wt% होती है। ढलवां लोहे में सिलिकॉन की पर्याप्त राशि, सामान्य रूप से 1 से 3 wt% होती है और इसके फलस्वरूप इन धातुओं को त्रिगुट Fe-C-Si (लोहा-कार्बन-सिलिकन) धातु माना जाना चाहिए। तथापि ढलवां लोहा घनीकरण का सिद्धांत द्विआधारी लोहा-कार्बन चरण आरेख से समझ आता है, जहां गलनक्रांतिक बिंदु और 4.3 wt% कार्बन के 4.3 % वजन (4.3 wt%) पर है। चूंकि ढलवां लोहे की संरचना का अनुमान इस तथ्य से ही लग जता है कि, इसका गलनांक (पिघलने का तापमान) शुद्ध लोहे के गलनांक से लगभग कम है। पिटवां ढलवां लोहे को छोड़कर, बाकि ढलवां लोहे भंगुर होते है। निम्न गलनांक (कम पिघलने वाले तापमान), अच्छी द्रवता, आकार देने की योग्यता, इच्छित आकार देने की उत्कृष्ट योग्यता, विरूपण करने के लिए प्रतिरोध और जीर्ण होने के प्रतिरोध के साथ ढलवां लोहा अनुप्रयोगों की व्यापक श्रेणी के साथ इंजीनियरिंग सामग्री बन गए हैं, पाइप और मशीनों और मोटर वाहन उद्योग के कुछ हिस्सों, जैसे सिलेंडर हेड्स (उपयोग में गिरावट), सिलेंडर ब्लॉक और गियरबॉक्स के डब्बे (केसेज)(उपयोग में गिरावट) में इसका प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीकरण (जंग) के द्वारा क्षय होने और कमजोर हो जाने में प्रतिरोधी है। .

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तत्तापानी, कश्मीर

तत्ता पानी (अंग्रेज़ी: Tatta Pani, उर्दु: تتا پانی) या तत्तापानी आज़ाद कश्मीर के पुंछ ज़िले में एक शहर है। यहाँ गंधक-युक्त गरम पानी के चश्में हैं, जिनपर शहर का नाम पड़ा है ("तत्ता" का अर्थ "गरम" होता है और यह संस्कृत के "तप्त" शब्द से आया है)। तत्ता पानी पुंछ नदी के किनारे २,२३७ फ़ुट (६८२ मीटर) की ऊँचाई पर बसा हुआ है। यह कोटली से २६ किमी, हजीरा (चेआरा) से २९ किमी और रावलाकोट से ४५ किमी दूर है। ध्यान दें कि भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय-वाले कई भागों में इसी "तत्तापानी" नाम के कई और नगर-ग्राम-मुहल्ले भी हैं और लगभग इन सभी में गरम पानी के चश्में होते हैं, मसलन हिमाचल प्रदेश और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा दोनों में इस नाम के स्थान हैं। .

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थायोयूरिया

किसी थायोयूरिया की सामान्य संरचना थायोयूरिया (Thiourea /ˌθaɪɵjʉˈriːə) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र SC(NH2)2 है। संरचना की दृष्टि से यह यूरिया के समान ही है, अन्तर केवल इतना है कि यूरिया का आक्सीजन परमाणु के स्थान पर गंधक परमाणु है। किन्तु थायोयूरिया के गुण, यूरिया से बहुत अलग हैं। कार्बनिक संश्लेषण में थायोयूरिया एक अभिकर्मक (reagent) है। (R1R2N)(R3R4N)C.

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दहन

आक्सीजन की उपस्थिति में लकड़ी का दहन किसी जलने वाले पदार्थ के वायु या आक्सीकारक द्वारा जल जाने की क्रिया को दहन या जलना (Combustion) कहते हैं। दहन एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (exothermic reaction) है। इस क्रिया में आँखों से ज्वाला दिख भी सकती है और नहीं भी। इस प्रक्रिया में ऊष्मा तथा अन्य विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे प्रकाश) भी उत्पन्न होते हैं। आम दहन के उत्पाद गैसों के द्वारा प्रदूषण भी फैलता है। विज्ञान के इतिहास में अग्नि वा ज्वाला सबंधी सिद्धांतों का विशेष महत्व रहा है। उदाहरण के लिए किसी हाइड्रोकार्बन के दहन का सामान्य रासायनिक समीकरण निम्नलिखित है- मिथेन के लिए इस समीकरण का स्वरूप निम्नवत हो जाएगा- .

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दहन ऊष्मा

किसी तत्त्व या यौगिक की १ ग्राम-अणु मात्रा को ऑक्सीजन में स्थिर आयतन पर पूर्णतया जलाने से जितनी उष्मा निकलती है, उसे उस तत्व या यौगिक की दहन-उष्मा (Heat of combustion) कहते हैं। दहन ऊष्मा का मान निम्नलिखित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है-.

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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नोवियाल

नोवियाल का ध्वज नोवियाल (Novial) एक कृत्रिम भाषा है, जिसे १९२८ में ओटो येस्पर्सन नामक एक डैनिश भाषाविद् ने निर्मित किया था। यह शब्द "nov" (नया) और "ial" (अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषा) से बना है। .

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पटाख़ा

फटता हुआ पटाख़ा पटाख़ा एक छोटी-सी विस्फोटक आतिशबाज़ी है जो मुख्यत: भारी आवाज या शोर उत्पन्न करने के उद्देश्य से बनायी जाती है। पटाख़ों का आविष्कार चीन में हुआ।, Eiichiro Ochiai, Springer, 2011, ISBN 978-3-642-20272-8,...

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पर्यावरण अभियांत्रिकी

औद्योगिक वायु प्रदूषण के स्रोत पर्यावरण इंजीनियरिंग पर्यावरण (हवा, पानी और/या भूमि संसाधनों) में सुधार करने, मानव निवास और अन्य जीवों के लिए स्वच्छ जल, वायु और ज़मीन प्रदान करने और प्रदूषित स्थानों को सुधारने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों का अनुप्रयोग है। पर्यावरण इंजीनियरिंग में शामिल हैं जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण, पुनरावर्तन, अपशिष्ट निपटान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे और साथ ही साथ पर्यावरण इंजीनियरिंग कानून से संबंधित ज्ञान.

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पाताल का द्वार

देरवेज़े का 'पाताल का द्वार', सन् २०११ दूर से दृश्य पाताल का द्वार (अंग्रेज़ी: Door to Hell) तुर्कमेनिस्तान के आख़ाल प्रान्त के देरवेज़े गाँव में एक प्राकृतिक गैस का क्षेत्र है। यहाँ पर ज़मीन में बने एक बड़े छेद से निकलती हुई गैस सन् १९७१ से लगातार जल रही है। इससे पैदा होने वाली गंधक (सल्फ़र​) की गंध मीलों दूर तक पूरे क्षेत्र में फैली रहती है। .

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पादप पोषण

पादप पोषण (Plant Nutrition) के अन्तर्गत पादपों के विकास के लिए आवश्यक रासायनिक तत्त्वों एवं यौगिकों का अध्ययन किया जाता है। सत्रह (17) अत्यावश्यक पादप-पोषक तत्व हैं। कार्बन, आक्सीजन, तथा जल के अलावा निम्नलिखित खनिज तत्त्व आवश्यक हैं-.

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प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

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प्रोटीन संरचना

प्रोटीन, जैविक स्थूलअणुओं के एक महत्वपूर्ण वर्ग हैं जो सभी जैविक अवयवों में मौजूद होते हैं और मुख्य रूप से कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन और सल्फर तत्वों से बने होते हैं। सभी प्रोटीन, अमीनो एसिड के बहुलक हैं। अपने भौतिक आकार द्वारा वर्गीकृत किए जाने वाले प्रोटीन, नैनोकण हैं (परिभाषा: 1-100 nm).

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पेट्रोलियम उत्पाद

ग्रेंगमोउथ, स्कॉटलैंड में एक पेट्रोकेमिकल्स रिफाइनरी. पेट्रोलियम उत्पाद, तेल रिफाइनरियों में संसाधित कच्चे तेल (पेट्रोलियम) से प्राप्त होने वाली उपयोगी सामग्रियों को कहते हैं। कच्चे तेल की संरचना और मांग के अनुसार रिफाइनरियां पेट्रोलियम उत्पादों को विभिन्न मात्राओं में उत्पादित कर सकती हैं। तेल उत्पादों का सबसे अधिक मात्रा में उर्जा वाहकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि इंधन तेल तथा गैसोलीन (पेट्रोल) के विभिन्न प्रकार.

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पोटैशियम

पोटैशियम पोटैशियम (Potassium) एक रासायनिक तत्व है। इसका प्रतीक 'K' है। यह आर्वत सारणी के प्रथम मुख्य समूह का तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३९ और ४१) ज्ञात हैं। एक अस्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ४०) प्रकृति में न्यून मात्रा में पाया जाता है। इनके अतिरिक्त तीन अन्य समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३८, ४२ और ४३) कृत्रिम रूप से निर्मित हुए हैं। .

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पोषक तत्व

सागर में पोषण चक्रएक पोषक तत्व या पोषकतत्व वह रसायन होता है, जिसकी आवश्यकता किसी जीव के उसके जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है और जिसे वो अपने वातावरण से ग्रहण करता है।Whitney, Elanor and Sharon Rolfes.

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पीली आंधी

चीन को पार कर कोरिया और जापान की ओर बढ़ते धूल के बादल। पीली आंधी या धूल भरी आंधी एक मौसम संबंधी घटना है जो ग्रीष्म ऋतु के महीनों के दौरान पूर्व एशिया के कई हिस्सों को बहुत प्रभावित करती है। यह धूल मंगोलिया, उत्तरी चीन और कज़ाकस्तान के रेगिस्तानों से उत्पन्न होती है जिसे रेगिस्तान में बहने वाली उच्च गति की सतही हवायें और प्रचंड अंधड़, महीन धूल के सघन बादलों में परिवर्तित कर देते हैं। स्थानीय हवायें इन बादलों को पूर्व की ओर धकेलती हैं और यह बादल चीन, उत्तरी और दक्षिण कोरिया, जापान, के साथ रूस के सुदूर पूर्व के कुछ हिस्सों के ऊपर से गुजरते हैं। कभी कभी, यह हवाई कण बह कर संयुक्त राज्य अमेरिका तक पहुँच कर वहां की हवा में मिल कर उसकी गुणवत्ता को खराब करते हैं। पिछले कई दशकों में यह एक विकराल समस्या बन कर उभरी है जिसका मुख्य कारण धूल के कणों में समाहित औद्योगिक प्रदूषकों की मात्रा में हुई वृद्धि है। इसके साथ पिछले कुछ दशकों में चीन में हुआ व्यापक मरुस्थलीकरण भी पीली आधियों की घटनायों में हुई वृद्धि का प्रमुख कारण है। अन्य कारणों में कज़ाकस्तान और उज़्बेकिस्तान के अरल सागर का सूखना भी है क्योंकि एक सोवियत कृषि कार्यक्रम के चलते इसमें विसर्जित होने वाली दो मुख्य नदियों अमू और सीर का मार्गपरिवर्तित कर उनके जल को कपास की खेती के लिए मध्य एशियाई रेगिस्तान की सिंचाई करने में इस्तेमाल किया जा रहा है। .

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फास्फोरस

‎भास्वर (फ़ॉस्फ़ोरस) एक रासायनिक तत्व है जिसका संकेत या P है तथा परमाणु संख्या 15। यह शब्द ग्रीक (यूनानी) भाषा के फॉस (प्रकाश) तथा फोरस (धारक) से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ प्रकाश का धारक। ये फॉस्फेट चट्टानों में पाया जाता है। इसकी संयोजकता 1, 3 और 5 होती है। तत्वों की आवर्त सारणी में ये भूयाति के समूह में आता है। ‎फ़ॉस्फ़ोरस एक अभिक्रियाशील तत्व है इसकारण ये मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता है। कुछ खनिजों में धातुओं के फॉस्फेट मिलते हैं। पशुओं की हड्डियों में 56% कैल्शियम फॉस्फेट पाया जाता है। जन्तुओं तथा पौधों के लिए यह एक अनिवार्य तत्व है। इसका अस्तित्व कई जैव अवयवों में मिलता है। .

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बायोडीजल

भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (DRDO) द्वारा रतनजोत (जत्रोफा) से निर्मित बायोडीजल बायोडिजल जैविक स्रोतों से प्राप्त तथा डीजल के समतुल्य इंधन है जो परम्परागत डीजल इंजनों को बिना परिवर्तित किये ही चला सकता है। भारत का पहला बायोडीजल संयंत्र आस्ट्रेलिया के सहयोग से काकीनाड़ा सेज (KSEZ) में स्थापित किया गया है .

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बारूद

बारूद एक विस्फोटक रासायनिक मिश्रण है। इसे गन पाउडर (gunpowder) या अपने काले रंग के कारण काला पाउडर (black powder) भी कहते हैं। बारूद गंधक, कोयला एवं शोरा (पोटैसिअम नाइट्रेट या साल्टपीटर) का मिश्रण होता है और यह मानव इतिहास का सर्वप्रथम निर्मित विस्फोटक था। बारूद का प्रयोग पटाखों एवं नोदक (प्रोपेलन्ट) के रूप में अग्निशस्त्रों (firearms) में किया जाता है। बारूद चिंगारी पाकर तेजी से जलता है जिससे भारी मात्रा में गैस एवं गरम ठोस पैदा होता है। आधुनिक काल में बारूद एक "कमजोर विस्फोटक" (low explosive) के रूप में जाना जाता है क्योंकि विस्फोट होने पर यह अपश्रव्य तरंगें (subsonic) पैदा करता है न कि पराश्रव्य तरंगें (supersonic)। इसलिये बारूद के जलने से उत्पन्न गैसे इतना ही दाब पैदा कर पाती हैं जो गोली को आगे फेंकने में सहायक होती है किन्तु बन्दूक की नली को क्षति नहीं पहुंचा पाती। किसी चट्टान के विध्वंस या किसी किले को तोडने के लिये बारूद का प्रयोग उपयुक्त नहीं होता बल्कि इनके लिये "टी एन टी" आदि अच्छे रहते हैं। वर्तमान समय में बारूद के मानक मिश्रण में ७५% शोरा, १५% कोमल लकड़ी का कोयला तथा १०% गंधक होता है। .

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ब्राहुई भाषा

ब्राहुई (Urdu: براہوی) या ब्राहवी (براوی) एक द्रविड़ भाषा है। यह भाषा पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के ब्राहुई लोगों द्वारा तथा क़तर, संयुक्त अरब अमीरात, इराक़ व ईरान के आप्रवासी समुदायों द्वारा बोली जाती है। यह अपनी निकटतम द्राविड़-भाषी जनसंख्या से १५०० किमी से भी अधिक की दूरी से विलग है। .

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ब्रेल पद्धति

ब्रेल पद्धति में देवनागरी लिपि फ्रेंच शब्द ''प्रिमिअर'' (प्रथम) का ब्रेल पद्धति में रूप ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार १८२१ में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १ फ़रवरी २०१०। सौरभ सुमन ब्रेल के नेत्रहीन होने पर उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। इस विद्यालय में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के लिये आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली "नाइट राइटिंग" या "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में व्याख्यान दिया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी और इसमें १२ बिंदुओं को ६-६ की दो पंक्तियों को रखा जाता था, पर इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि नहीं होते थे। ब्रेल को वहीम से यह विचार आया। लुई ने इसी लिपि पर आधारित किन्तु १२ के स्थाण पर ६ बिंदुओं के उपयोग से ६४ अक्षर और चिह्न वाली लिपि बनायी। उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है।। वेबदुनिया। अलकनंदा साने लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र १५ वर्ष के थे। सन् १८२४ में पूर्ण हुई यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है। इसमें प्रत्येक आयताकार सेल में ६ बिन्दु यानि डॉट्स होते हैं, जो थोड़े-थोड़े उभरे होते हैं। यह दो पंक्तियों में बनी होती हैं। इस आकार में अलग-अलग ६४ अक्षरों को बनाया जा सकता है। सेल की बांई पंक्ति में उपर से नीचे १,२,३ बने होते हैं। इसी तरह दांईं ओर ४,५,६ बनी होती हैं। एक डॉट की औसतन ऊंचाई ०.०२ इंच होती है। इसको पढ़ने की विशेष तकनीक होती है। ब्रेल लिपि को पढ़ने के लिए अंधे बच्चों में इतना ज्ञान होना आवश्यक है कि वो अपनी उंगली को विभिन्न दिशाओं में सेल पर घुमा सकें। वैसे विश्व भर में इसको पढ़ने का कोई मानक तरीका निश्चित नहीं हैं। ब्रेल लिपि को स्लेट पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके अलावा इसे ब्रेल टाइपराइटर पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है। आधुनिक ब्रेल स्क्रिप्ट को ८ डॉट्स के सेल में विकसित कर दिया गया है, ताकि अंधे लोगों को अधिक से अधिक शब्दों को पढ़ने की सुविधा उपलब्ध हो सके। आठ डॉट्स वाले ब्रेल लिपि सेल में अब ६४ की बजाय २५६ अक्षर, संख्या और विराम चिह्नें के पढ़ सकने की सुविधा उपलब्ध है। ब्रेल पद्धति को वर्णमाला के वर्णों को कूट रूप में निरूपित करने वाली सबसे प्रथम प्रचलित प्रणाली कह सकते हैं, किन्तु ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के पढ़ने और लिख सकने के उपाय का प्रथम प्रयास अध्याय नहीं है। इससे पहले भी १७वीं शताब्दी में इटली के जेसूट फ्रांसिस्को लाना ने नेत्रहीनों के लिखने-पढ़ने को लेकर काफी कोशिशें की थीं। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बृहस्पति का वायुमंडल

बृहस्पति पर सन् २००० में बादल प्रतिमान. बृहस्पति का वायुमंडल सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रहीय वायुमंडल है। एक मोटे सौर अनुपात में यह मुख्य रूप से आणविक हाइड्रोजन और हीलियम से बना है; अन्य रासायनिक यौगिकों की केवल छोटी मात्रा मौजूद हैं, जिसमें मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और जल शामिल हैं। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि पानी वायुमंडल की गहराई में मौजूद है, इसके सीधे मापन की संभावना बहुत कम है। बृहस्पति के वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर और अक्रिय गैस की प्रचुरता लगभग तीन कारक के सौर मूल्यों से अधिक है बृहस्पति के वायुमंडल में एक स्पष्ट न्यूनतम सीमा का अभाव है और ग्रह के अंदरूनी तरल पदार्थ में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है। निम्नतम से लेकर उच्चत्तर, वायुमंडलीय परतें क्रमशः क्षोभ मंडल, समताप मंडल, तापमंडल और बहिर्मंडल हैं। प्रत्येक परत की विशेषता तापमान ढलान है। निम्नतम परत यानि क्षोभ मंडल, बादलों और कुंहरों की एक जटिल प्रणाली है, जो अमोनिया, अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड और पानी की परतों से बना है। बृहस्पति के सतह पर दिखाई देने वाले अमोनिया के ऊपरी बादल भूमध्यरेखा के समानांतर एक दर्जन क्षेत्रीय धारीयों में एकीकृत हुए है और यह शक्तिशाली आंचलिक वायुमंडलीय प्रवाहों (वायु) से घिरे हुए है। रंग में एकांतर धारियाँ: गहरी धारीयों को पट्टियां कहा जाता है, जबकि हल्की धारीयों को क्षेत्र कहा जाता है। क्षेत्र, जो पट्टियों से ठन्डे होते है, उमड़ने के अनुरूप होते है, जबकि पट्टियाँ उतरती हवा की निशानी है | क्षेत्रों के हल्के रंग का परिणाम अमोनिया बर्फ से माना जाता है, जबकि पट्टियाँ स्वयं को गहरे से गहरा रंग किससे देती है यह निश्चितता के साथ नहीं ज्ञात हुआ है। धारीदार संरचना और प्रवाहों की उत्पत्तियों की अच्छी समझ नहीं हैं, हालांकि दो मॉडल मौजूद हैं: उथला मॉडल मानता है कि वे सतही घटना है जो एक स्थिर आंतरिक भाग ढंकती है, गहरे मॉडल में, धारियाँ और प्रवाहें बृहस्पति के आणविक हाइड्रोजन के आवरण में गहरी परिसंचरण की महज सतही अभिव्यक्तियां है, जो अनेकों लठ्ठों में एकत्रित हुए है। बृहस्पति वायुमंडल, एक विस्तृत श्रृंखला की सक्रिय घटना सहित धारी अस्थिरता, भेंवर (चक्रवात और प्रतिचक्रवात) तूफान और बिजली प्रदर्शित करता है। भेंवर बड़े लाल, सफेद या भूरे रंग के धब्बों (अंडो) के रूप में खुद को प्रकट करते हैं। सबसे बड़े दो लाल धब्बे ग्रेट रेड स्पॉट (GRS) और ओवल बीए हैं। ये दोनों और ​​अन्य अधिकतर बड़े धब्बे प्रतिचक्रवातीय है। छोटे चक्रवात सफेद हो जाते हैं। भेंवर गहराई के साथ अपेक्षाकृत उथले संरचनाओं के माने जाते है, कई सौ किलोमीटर से अधिक नहीं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित GRS, सौरमंडल में सबसे बड़ा ज्ञात भंवर है। यह कई पृथ्वीयों को निगल गया है और कम से कम तीन सौ सालों के लिए अस्तित्व में हो सकता है। GRS के दक्षिण में स्थित ओवल बीए, GRS की एक तिहाई आकार का एक लाल धब्बा है जो सन् २००० में तीन सफेद अंडो के विलय से बना था। बृहस्पति पर शक्तिशाली तूफान है और यह वायुमंडल में नम संवहन का एक परिणाम हैं जो पानी के वाष्पीकरण और संघनन से जुड़ा हुआ है। वे हवा के मजबूत उर्ध्व गति के स्थल रहे हैं, जो उज्ज्वल और घने बादलों की रचना का नेतृत्व करते है। तूफ़ान मुख्यतः पट्टी क्षेत्रों में बनते है। बृहस्पति पर बिजली की गरज, पृथ्वी पर की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं। हालांकि, बिजली की गतिविधि का औसत स्तर पृथ्वी पर की तुलना में कम होता है। .

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भारतीय रसायन का इतिहास

भारतीय धातुकर्म का एक नमूना है। भारत में रसायन शास्त्र की अति प्राचीन परंपरा रही है। पुरातन ग्रंथों में धातुओं, अयस्कों, उनकी खदानों, यौगिकों तथा मिश्र धातुओं की अद्भुत जानकारी उपलब्ध है। इन्हीं में रासायनिक क्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले सैकड़ों उपकरणों के भी विवरण मिलते हैं। वस्तुत: किसी भी देश में किसी ज्ञान विशेष की परंपरा के उद्भव और विकास के अध्ययन के लिए विद्वानों को तीन प्रकार के प्रमाणों पर निर्भर करना पड़ता है-.

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माक्षिक

माक्षिक माक्षिक या पाइराइट (Pyrite) एक खनिज है जो लौह और गंधक का यौगिक (Fe S2) है। इसे 'मूर्खों का सोना' (fool's gold) भी कहते हैं। इसमें लौह की मात्रा ४६.६ प्रतिशत रहती है। लौह खनिज होते हुए भी पाइराइट का उपयोग लौह उद्योग में नहीं होता, क्योंकि इसमें विद्यमान गंधक की मात्रा लोहे के लिए बड़ी हानिकारक होती है। पाइराइट का महत्व इस खनिज से उपलब्ध गंध के कारण है। गंधक से गंधक का अम्ल तैयार किया जाता है, जो वर्तमान युग के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण रसायन है। .

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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मृत सागर

मृत सागर के तट पर नमक का जमाव मृत सागर समुद्र तल से ४०० मीटर नीचे, दुनिया का सबसे निचला बिंदु कहा जाने वाला सागर है। इसे खारे पानी की सबसे निचली झील भी कहा जाता है। ६५ किलोमीटर लंबा और १८ किलोमीटर चौड़ा यह सागर अपने उच्च घनत्व के लिए जाना जाता है, जिससे तैराकों का डूबना असंभव होता है। मृत सागर में मुख्यत: जॉर्डन नदी और अन्य छोटी नदियाँ आकर गिरती हैं। इसके उच्च घनत्व के कारण इसमें कोई मछली जिंदा नहीं रह सकती, लेकिन इसमें जीवाणुओं की ११ जातियाँ पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त मृत सागर में प्रचुर मात्रा में खनिज पाए जाते हैं। ये खनिज पदार्थ वातावरण के साथ मिल कर स्वास्थ्य के लिए लाभदायक वातावरण बनाते हैं। मृत सागर अपनी विलक्षणताओं के लिए कम से कम चौथी सदी से जाना जाता रहा है, जब विशेष नावों द्वारा इसकी सतह से शिलाजीत निकालकर मिस्रवासियों को बेचा जाता था। यह चीजों को सड़ने से बचाने, सुगंधित करने के अलावा अन्य दूसरे कार्यों के उपयोग में आता था। इसके अतिरिक्त मृत सागर के अंदर की गीली मिट्टी को क्लेयोपेट्रा की खूबसूरती के राज से भी जोड़ा जाता है। यहाँ तक कि अरस्तू ने भी इस सागर के भौतिक गुणों का जिक्र किया है। हाल के समय में इस जगह को हेल्थ रिज़ॉर्ट के तौर पर विकसित किया गया है। आम पानी की तुलना में मृत सागर के पानी में २० गुना ज्यादा ब्रोमीन, ५० गुना ज्यादा मैग्नीशियम और १० गुना ज्यादा आयोडीन होता है। ब्रोमीन धमनियों को शांत करता है, मैगनीशियम त्वचा की एलर्जी से लड़ता है और श्वासनली को साफ करता है, जबकि आयोडीन कई ग्रंथियों की क्रियाशीलता को बढ़ाता है। सौंदर्य और स्वास्थ्य के लिए मृत सागर के गुणों की सिद्धि की वजह से ही कई प्र कंपनियां मृत सागर से ली गईं चीजों पर आधारित सौंदर्य प्रसाधन बनाती हैं। इसके गर्म सल्फर सोते और कीचड़ कई बीमारियों के इलाज में अहम भूमिका निभाते हैं, खासकर आर्थराइटिस और जोड़ों से संबंधित बीमारियों के इलाज में। लेकिन पिछले कुछ सालों से मृत सागर तेज़ गति से सिमट रहा है। पिछले ४० सालों में इसके पानी का तल २५ मीटर कम हो गया है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि २०५० तक शायद यह पूरी तरह गायब हो जाएगा। .

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रत्न

रत्न प्रकृति प्रदत्त एक मूल्यवान निधि है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न सुवासित, चित्ताकर्षक, चिरस्थायीव दुर्लभ होने तथा अपने अद्भुत प्रभाव के कारण भी मनुष्य को अपने मोहपाश में बाँधे हुए हैं। रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। रत्नों में चिरस्थायित्व का ऐसा गुण है कि ये ऋतुओं के परिवर्तन के कारण तथा समय-समय पर प्रकृति के भीषण उथल-पुथल से तहस-नहस होने के कारण भी प्रभावित नहीं होते। .

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रस चिकित्‍सा

पारा और गंधक के साथ काष्‍ठादिक औषधियों के योग से बनने वाली दवाओं को रसौषधि कहते हैं। रसौषधियों से रोगों की चिकित्‍सा जब की जाती है तब इसे रस चिकित्‍सा कहते हैं। .

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रासायनिक तत्वों की सूची

नीचे परमाणु क्रमांक के बढते हुए क्रम में रासायनिक तत्वों की सूची दी गयी है। अलग-अलग प्रकार के तत्वों को अलग-अलग रंगों से चिन्हित किया गया है। इस सूची में प्रत्येक तत्व का नाम, उसका रासायनिक प्रतीक, आवर्त सारणी में उसका समूह एवं पिरियड, रासायनिक श्रेणी, तथा परमाणु द्रब्यमान (सबसे स्थायी समस्थानिक का) दिये गये हैं। .

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रासायनिक उद्योग

रासायन उत्पादक कारखाना रासायनिक उद्योग (chemical industry) में वे सब उद्योग आते हैं जो औद्योगिक रसायनों का उत्पादन करते हैं। रासायनिक उद्योग संसार की वर्तमान अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। ये उद्योग कच्चे माल (जैसे तेल, प्राकृतिक गैस, वायु, जल, धातुएं, खनिज आदि) को ७०,००० से भी अधिक विभिन्न उत्पादों में परिवर्तित करते हैं। .

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लहसुन

लहसुन (Garlic) प्याज कुल (एलिएसी) की एक प्रजाति है। इसका वैज्ञानिक नाम एलियम सैटिवुम एल है। इसके करीबी रिश्तेदारो में प्याज, इस शलोट और हरा प्याज़ शामिल हैं। लहसुन पुरातन काल से दोनों, पाक और औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जा रहा है। इसकी एक खास गंध होती है, तथा स्वाद तीखा होता है जो पकाने से काफी हद तक बदल कर मृदुल हो जाता है। लहसुन की एक गाँठ (बल्ब), जिसे आगे कई मांसल पुथी (लौंग या फाँक) में विभाजित किया जा सकता इसके पौधे का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला भाग है। पुथी को बीज, उपभोग (कच्चे या पकाया) और औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां, तना और फूलों का भी उपभोग किया जाता है आमतौर पर जब वो अपरिपक्व और नर्म होते हैं। इसका काग़ज़ी सुरक्षात्मक परत (छिलका) जो इसके विभिन्न भागों और गाँठ से जुडी़ जड़ों से जुडा़ रहता है, ही एकमात्र अखाद्य हिस्सा है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलिसिन, ऐजोइन इत्यादि। लहसुन सर्वाधिक चीन में उत्पादित होता है उसके बाद भारत में। लहसुन में रासायनिक तौर पर गंधक की अधिकता होती है। इसे पीसने पर ऐलिसिन नामक यौगिक प्राप्त होता है जो प्रतिजैविक विशेषताओं से भरा होता है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन, एन्ज़ाइम तथा विटामिन बी, सैपोनिन, फ्लैवोनॉइड आदि पदार्थ पाये जाते हैं। .

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शिलांग

शिलांग भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय की राजधानी है। भारत के पूर्वोत्तर में बसा शिलांग हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसे भारत के पूरब का स्कॉटलैण्ड भी कहा जाता है। पहाड़ियों पर बसा छोटा और खूबसूरत शहर पहले असम की राजधानी था। असम के विभाजन के बाद मेघालय बना और शिलांग वहां की राजधानी। लगभग 1695 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस शहर में मौसम हमेशा सुहावना बना रहता है। मानसून के दौरान जब यहां बारिश होती है, तो पूरे शहर की खूबसूरती और निखर जाती है और शिलांग के चारों तरफ के झरने जीवंत हो उठते है। .

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शुक्र

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है। ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है। चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है। चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है। शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है। 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते हैलेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |B.M. Jakosky, "Atmospheres of the Terrestrial Planets", in Beatty, Petersen and Chaikin (eds), The New Solar System, 4th edition 1999, Sky Publishing Company (Boston) and Cambridge University Press (Cambridge), pp.

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समावयवता

विभिन्न प्रकार के समाववी यौगिक रासायनिक यौगिकों का जब सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया, तब देखा गया कि यौगिकों के गुण उनके संगठन पर निर्भर करते हैं। जिन यौगिकों के गुण एक से होते हैं उनके संगठन भी एक से ही होते हैं और जिनके गुण भिन्न होते हैं उनके संगठन भी भिन्न होते हैं। बाद में पाया गया कि कुछ ऐसे यौगिक भी हैं जिनके संगठन, अणुभार तथा अणु-अवयव एक होते हुए भी, उनके गुणों में विभिन्नता है। ऐसे विशिष्टता यौगिकों को समावयवी (Isomer, Isomeride) संज्ञा दी गई और इस तथ्य का नाम समावयवता (Isomerism) रखा गया। .

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सल्फर डाइऑक्साइड

सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur dioxide), एक रासायनिक यौगिक है। इसका रासायनिक सूत्र SO2 है। यह तीव्र गंध युक्त, एक तीक्ष्ण विषैली गैस है, जो कई तरह की औद्योगिक प्रक्रियाओं में तथा ज्वालामुखियों द्वारा छोड़ी जाती है। .

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सल्फर हेक्साफ्लोराइड

सल्फर हेक्साफ्लोराइड (Sulfur hexafluoride (SF6) एक अकार्बनिक गैस है। यह रंगहीन, गंधहीन, अज्वलनशील गैस है। यह गैस अत्यन्त उच्च गुणवत्ता वाली विद्युत इंसुलेटर है और उच्च वोल्टता के उपकरणों में इसका उपयोग होता है (जैसे, SF6 सर्किट ब्रेकर में)। यह एक ग्रीनहाउस गैस है। SF6 का अणु अष्टफलकीय (octahedral) होता है। इसके केन्द्र में सल्फर परमाणु होता है जिसके चारों ओर ६ फ्लोरीन परमाणु जुड़े होते हैं। यह एक अध्रुवी (nonpolar) गैस है जो जल में बहुत कम विलेय है किन्तु अध्रुवीय कार्बनिक विलायकों में विलेय है। इसे प्रायः द्रवीकृत संपीडित गैस के रूप में लाया-ले जाया जाता है। इसका सामान्य ताप और दाब पर घनत्व 6.12 g/L है जो वायु के घनत्व (1.225 g/L) से काफी अधिक है। .

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साबुन

तरह-तरह के सजावटी साबुन साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र C17H35COOK एवं कठोर साबुन का सूत्र C17H35COONa है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। .

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सिक्किम

(या, सिखिम) भारत पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक पर्वतीय राज्य है। अंगूठे के आकार का यह राज्य पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। अंग्रेजी, नेपाली, लेप्चा, भूटिया, लिंबू तथा हिन्दी आधिकारिक भाषाएँ हैं परन्तु लिखित व्यवहार में अंग्रेजी का ही उपयोग होता है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। गंगटोक राजधानी तथा सबसे बड़ा शहर है। सिक्किम नाम ग्याल राजतन्त्र द्वारा शासित एक स्वतन्त्र राज्य था, परन्तु प्रशासनिक समस्यायों के चलते तथा भारत से विलय के जनमत के कारण १९७५ में एक जनमत-संग्रह के अनुसार भारत में विलीन हो गया। उसी जनमत संग्रह के पश्चात राजतन्त्र का अन्त तथा भारतीय संविधान की नियम-प्रणाली के ढाचें में प्रजातन्त्र का उदय हुआ। सिक्किम की जनसंख्या भारत के राज्यों में न्यूनतम तथा क्षेत्रफल गोआ के पश्चात न्यूनतम है। अपने छोटे आकार के बावजूद सिक्किम भौगोलिक दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। कंचनजंगा जो कि दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है, सिक्किम के उत्तरी पश्चिमी भाग में नेपाल की सीमा पर है और इस पर्वत चोटी चको प्रदेश के कई भागो से आसानी से देखा जा सकता है। साफ सुथरा होना, प्राकृतिक सुंदरता पुची एवं राजनीतिक स्थिरता आदि विशेषताओं के कारण सिक्किम भारत में पर्यटन का प्रमुख केन्द्र है। .

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स्नेहक

लूब्रिकेंट (जिसे कभी-कभी "लूब" के रूप में संदर्भित किया जाता है) एक ऐसा पदार्थ है (अक्सर तरल) जो दो गतिशील सतहों के बीच लगाया जाता है ताकि उनके बीच घर्षण कम हो, कार्यकुशलता में सुधार हो और जल्दी घिस ना जाए.

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स्कैण्डिनेवियाई देश

स्केंडिनेविया प्रायद्वीप में उत्तरी यूरोप के आने वाले देशों को स्कैंडिनेवियाई देश कहते हैं इनमें नॉर्वे, स्वीडन व डेनमार्क आते हैं। इनके अलावा फिनलैंड, आइसलैंड एवं फैरो द्वीपसमूह के संग ये नॉर्डिक देश भी कहलाते हैं। .

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स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप

उत्तरी यूरोप के स्कैण्डिनेविया प्रायद्वीप का रिलीफ़ मानचित्र स्कैन्डिनेवियाई प्रायद्वीप (Skandinaviska halvön; Den skandinaviske halvøy; Skandinavian niemimaa; ?; Скандинавский полуостров, Skandinavsky poluostrov) उत्तरी यूरोप महाद्वीप का एक प्रायद्वीप है, जिसमें मुख्यतः स्वीडन की मुख्यभूमि, नॉर्वे की मुख्यभूमि (रूस के सीमावर्ती कुछ तटीय क्षेत्रों को छोड़कर) एवं फिनलैंड का उत्तर-पश्चिमी भाग आते हैं। इनके साथ साथ ही रूस के पेचेंग्स्की जिले के पश्चिम का एक संकर भाग भी इस में माना जाता है। इनके अलावा फिनलैंड, आइसलैंड एवं फैरो द्वीपसमूह के संग ये देश नॉर्डिक देश भी कहलाते हैं। इस प्रायद्वीप का नाम स्कैंडिनेविया, डेनमार्क, स्वीडन एवं नॉर्वे के सांस्कृतिक क्षेत्र से व्युत्पन्न किया गया है। इस नाम का मूल प्रायद्वीप के दक्षिणतम भाग स्कैनिया से आया है जो एक लम्बे अन्तराल से डेनमार्क के अधिकार में रहा है, किन्तु वर्तमान में स्वीडन अधिकृत है। ये लोग मूल रूप से उत्तर जर्मनिक भाषाएं बोलते हैं जिनमें से प्रमुख भाषाएं हैं: डेनिश भाषा, नॉर्वेजियाई भाषा एवं स्वीडिश भाषा। वैसे इनके अतिरिक्त फ़ारोईज़ एवं आइसलैण्डिक भाषा भी इसी समूह के अधीन आती है, किन्तु उनके बोले जाने वाले क्षेत्र को स्कैंडिनेविया में नहीं गिना जाता है। स्कैण्डिनेवियाई प्रायद्वीप यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा प्रायद्वीप है एवं यह बल्कान प्रायद्वीप, आईबेरियाई प्रायद्वीप एवं इतालवी प्रायद्वीपों से भी बड़ा है। हिम युग के समय अंध महासागर का जलस्तर इतना गिर गया कि बाल्टिक सागर एवं फिनलैंड की खाड़ी गायब ही हो गये थे एवं उन्हें घेरे हुए वर्तमान देशों जैसे, जर्मनी, पोलैंड एवं अन्य बाल्टिक देश तथा स्कैंडिनेविया की सीमाएं सीधे-सीधे एक दूसरे से मिल गयी थीं। .

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सूरजमुखी

पूरा बीज (दाएं) और कर्नेल बिना छिलके के (बाएं) सूरजमुखी या 'सूर्यमुखी' (वानस्पतिक नाम: हेलियनथस एनस) अमेरिका के देशज वार्षिक पौधे हैं। यह अनेक देशों के बागों में उगाया जाता है। यह कंपोजिटी (Compositae) कुल के हेलिएंथस (Helianthus) गण का एक सदस्य है। इस गण में लगभग साठ जातियाँ पाई गई हैं जिनमें हेलिएंथस ऐमूस (Helianthus annuus), हेलिएंथस डिकैपेटलेस (Helianthus decapetalus), हेलिएंथिस मल्टिफ्लोरस (Helianthus multiflorus), हे.

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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सेलेनियम

सेलेनियम (Selenium, संकेत Se) एक रासायनिक तत्त्व है जिसका परमाणु क्रमांक ३४ है। प्रकृति में यह अपने तत्त्व रूप में बहुत कम पाया जाता है। इसकी खोज १८१७ में बर्जीलियस ने किया था। .

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हाइड्रो़जन सल्फाइड

यह हाइड्रोजन और सल्फर के रासायनिक संयोग से बना सह संयोजी बंधन वाला अकार्बनिक योगिक है। श्रेणी:आधार श्रेणी:अकार्बनिक यौगिक.

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हाइड्रोजन

हाइड्रोजन पानी का एक महत्वपूर्ण अंग है शुद्ध हाइड्रोजन से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हाइड्रोजन (उदजन) (अंग्रेज़ी:Hydrogen) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी का सबसे पहला तत्व है जो सबसे हल्का भी है। ब्रह्मांड में (पृथ्वी पर नहीं) यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। तारों तथा सूर्य का अधिकांश द्रव्यमान हाइड्रोजन से बना है। इसके एक परमाणु में एक प्रोट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन होता है। इस प्रकार यह सबसे सरल परमाणु भी है। प्रकृति में यह द्विआण्विक गैस के रूप में पाया जाता है जो वायुमण्डल के बाह्य परत का मुख्य संघटक है। हाल में इसको वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सकने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं। यह एक गैसीय पदार्थ है जिसमें कोई गंध, स्वाद और रंग नहीं होता है। यह सबसे हल्का तत्व है (घनत्व 0.09 ग्राम प्रति लिटर)। इसकी परमाणु संख्या 1, संकेत (H) और परमाणु भार 1.008 है। यह आवर्त सारणी में प्रथम स्थान पर है। साधारणतया इससे दो परमाणु मिलकर एक अणु (H2) बनाते है। हाइड्रोजन बहुत निम्न ताप पर द्रव और ठोस होता है।।इण्डिया वॉटर पोर्टल।०८-३०-२०११।अभिगमन तिथि: १७-०६-२०१७ द्रव हाइड्रोजन - 253° से.

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हाइड्रोजन पेरॉक्साइड

'हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) एक बहुत हल्का नीला, पानी से जरा सा अधिक गाढ़ा द्रव है जो पतले घोल में रंगहीन दिखता है। इसमें आक्सीकरण के प्रबल गुण होते हैं और यह एक शक्तिशाली विरंजक है। इसका इस्तेमाल एक विसंक्रामक, रोगाणुरोधक, आक्सीकारक और रॉकेट्री में प्रणोदक के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड की आक्सीकरण क्षमता इतनी प्रबल होती है कि इसे आक्सीजन की उच्च प्रतिक्रिया वाली जाति समझा जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड जीवों में आक्सीकरण चयापचय के उपोत्पाद के रूप में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है। लगभग सभी जीवित वस्तुओं (विशेषकर, सभी आब्लिगेटिव और फेकल्टेटिव वातापेक्षी जीव) में परॉक्सिडेज नामक एन्ज़ाइम होते हैं जो बिना हानि पहुंचाए और उत्प्रेरण द्वारा उदजन परूजारक की छोटी मात्राओं को पानी और आक्सीजन में विघटित करते हैं। .

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होम्योपैथी

thumb होम्योपैथी, एक चिकित्सा पद्धति है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के जन्‍मदाता डॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान है। यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके। होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोगलक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करनेवाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है। होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श (Êfunctional norm) को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है। औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है। औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुशपरिणाम नहीं होते। रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था (monophasic) प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है। विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं। .

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हींग

हींग (अंग्रेजी: Asafoetida) सौंफ़ की प्रजाति का एक ईरान मूल का पौधा (ऊंचाई 1 से 1.5 मी. तक) है। ये पौधे भूमध्यसागर क्षेत्र से लेकर मध्य एशिया तक में पैदा होते हैं। भारत में यह कश्मीर और पंजाब के कुछ हिस्सों में पैदा होता है। हींग एक बारहमासी शाक है। इस पौधे के विभिन्न वर्गों (इनमें से तीन भारत में पैदा होते हैं) के भूमिगत प्रकन्दों व ऊपरी जडों से रिसनेवाले शुष्क वानस्पतिक दूध को हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है। कच्ची हींग का स्वाद लहसुन जैसा होता है, लेकिन जब इसे व्यंजन में पकाया जाता है तो यह उसके स्वाद को बढा़ देती है। इसे संस्कृत में 'हिंगु' कहा जाता है। हींग दो प्रकार की होती हैं- एक हींग काबूली सुफाइद (दुधिया सफेद हींग) और दूसरी हींग लाल। हींग का तीखा व कटु स्वाद है और उसमें सल्फर की मौजूदगी के कारण एक अरुचिकर तीक्ष्ण गन्ध निकलता है। यह तीन रूपों में उपलब्ध हैं- 'टियर्स ', 'मास ' और 'पेस्ट'। 'टियर्स ', वृत्ताकार व पतले, राल का शुध्द रूप होता है इसका व्यास पाँच से 30 मि.मी.

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जल (अणु)

जल पृथ्वी की सतह पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला अणु है, जो इस ग्रह की सतह के 70% का गठन करता है। प्रकृति में यह तरल, ठोस और गैसीय अवस्था में मौजूद है। मानक दबावों और तापमान पर यह तरल और गैस अवस्थाओं के बीच गतिशील संतुलन में रहता है। घरेलू तापमान पर, यह तरल रूप में हल्की नीली छटा वाला बेरंग, बेस्वाद और बिना गंध का होता है। कई पदार्थ, जल में घुल जाते हैं और इसे सामान्यतः सार्वभौमिक विलायक के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस वजह से, प्रकृति में मौजूद जल और प्रयोग में आने वाला जल शायद ही कभी शुद्ध होता है और उसके कुछ गुण, शुद्ध पदार्थ से थोड़ा भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे कई यौगिक हैं जो कि अनिवार्य रूप से, अगर पूरी तरह नहीं, जल में अघुलनशील है। जल ही ऐसी एकमात्र चीज़ है जो पदार्थ की सामान्य तीन अवस्थाओं में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है - अन्य चीज़ों के लिए रासायनिक गुण देखें. पृथ्वी पर जीवन के लिए जल आवश्यक है। जल आम तौर पर, मानव शरीर के 55% से लेकर 78% तक का निर्माण करता है। .

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जलगैस

जलगैस प्रतिक्रिया का समीकरण। मोटे अक्षरजलगैस (Water gas) एक कृत्रिम गैस (synthesis gas) है। इसमें कार्बन मोनोआक्साइड और हाइड्रोजन मिश्रित होती है। कोयला गैस के साथ मिलाकर जलगैस ईंधन में काम आती है। इससे बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन तैयार होती है और पेट्रोलियम तथा मेथिल ऐलकोहल का संश्लेषण भी होता है। यह बहुत उपयोगी है किन्तु इसके प्रयोग में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि जलगैस कार्बन मोनोक्साइड के कारण प्रबल विषाक्त होती है। कोई गंध न हेने के कारण विष की भयंकरता बढ़ जाती है। इसकी ज्वाला बड़ी गरम होती है। ताप 1,600 डिग्री सें.

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जैव ईंधन

गन्ने की खोई और पत्तियों का उपयोग ईंधन के रूप में करके बिजली उत्पादन किया जाता है। रतनज्योत (जत्रोफा) के फल जिनसे बायोडीजल बनता है फसलों, पेडों, पौधों, गोबर, मानव-मल आदि जैविक वस्तुओं (बायोमास) में निहित उर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। इनका प्रयोग करके उष्मा, विद्युत या गतिज ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। धरातल पर विद्यमान सम्पूर्ण वनस्पति और जन्तु पदार्थ को 'बायोमास' कहते हैं। जैव ईंधन का प्रयोग सरल है। यह प्राकृतिक तौर से नष्ट होने वाला तथा सल्फर तथा गंध से पूर्णतया मुक्त है। पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा सौर उर्जा को जैव ऊर्जा में बदलते हैं। यह जैव ऊर्जा, विभिन्न प्रक्रियायों से गुज़रते हुए विविध ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन करती है। उदाहरण के लिए पशुओं को चारा, जिसके बदले हमें गोबर प्राप्त होता है, कृषि अवशेष के द्वारा खाना पकाना आदि। यद्यपि कोयला एवं पेट्रोलियम भी पेड-पौधों के परिवर्तित रूप हैं, किन्तु इन्हे जैव-ऊर्जा के स्रोत की तरह नहीं माना जाता है क्योंकि ये प्रक्रिया हजारों वर्ष पहले हुई होगी। .

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जैवाणु

मानव का हीमोग्लोबिन एक जैव अणु है। इसके प्रोटीन भाग के दोनो उप इकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखलाया गया है। उन सभी अणुओं को जैवाणु कहते है जो किसी भी जीव (living organisms) में पाये जाते हैं। ये जटिल कार्बनिक अणु होते हैं। इनका निर्माण सजीवों के शरीर में होता है। ये सजीवों के शरीर के विकास तथा रखरखाव के लिए आवश्यक होते हैं। कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए प्रमुख जैवाणु हैं। कार्बनिक यौगिको की तरह इनका निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन से होता है, कभी-कभी फॉस्फोरस तथा सल्फर आदि तत्व भी अल्प मात्रा में हो सकते हैं। .

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वल्कनीकरण

वल्कनीकरण की प्रक्रिया से प्राप्त रबर की गेंद वल्कनीकरण (Vulcanization या vulcanisation) एक रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें गंधक या इसी प्रकार का कोई दूसरा पदार्थ मिला देने से रबर या संबंधित बहुलकों को अपेक्षाकृत अधिक टिकाऊ पदार्थ में बदल दिया जाता है। इन पदार्थों के मिलाने से रबर में मौजूद बहुलक शृंखलाएं परस्पर 'क्रॉसलिंकित' (क्रॉसलिंक्ड) हो जाती हैं। वल्कित पदार्थ कम चिपचिपा होता है एवं इसके यांत्रिक गुण अधिक श्रेष्ठ होते हैं। टायर, जूतों के 'सोल', होज पाइप, हॉकी पक एवं अनेकों सामान वल्कित रबर के ही बनते हैं। 'वल्कन' नाम रोम के 'आग के देवता' का नाम है। रबर का वल्कनीकरण महत्व का प्रक्रम है। इससे शुद्ध रबर के अनेक दोषों का निराकरण हो जाता है, जिससे रबर को उपयोगिता बढ़ जाती है। वल्कनीकरण के लिए कच्चे रबर को गंधक के साथ लगभग १४०° सें.

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वान डर वाल्स त्रिज्या

किसी तत्व की ठोस अवस्था में उसके दो समीपवर्ती परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी के आधे को उस तत्व की वान्डरवॉल त्रिज्या कहते हैं | .

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वियतनामी लिपि

300px वियतनामी लिपि (वियतनामी भाषा: chữ Quốc ngữ; शाब्दिक अर्थ- राष्ट्र भाषा लिपि) वियतनामी भाषा को लिखने के लिये प्रयुक्त आधुनिक लिपि है। यह लैटिन लिपि पर आधारित है, और विशेष रूप से पुर्तगाली वर्णमाला पर। इसमें कुछ डाइग्राफ तथा ऐक्सेंत चिह्न जोड़कर यह लिपि बनी है जिसमें चार का प्रयोग अतिरिक्त ध्वनि के लिये किया जाता है जबकि अन्य पाँच का उपयोग प्रत्येक शब्द का 'टोन' (tone) बताने के लिये किया जाता है। वियतनामी वर्णमाला अपनी डायट्रिक्स की अधिकता (और प्रायः एक ही वर्ण पर दो डायट्रिक्स) के कारण आसानी से पहचानी जाती है। .

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वॉयेजर द्वितीय

वायेजर द्वितीय एक अमरीकी मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर १ से पहले २० अगस्त १९७७ को अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। यह काफी कुछ अपने पूर्व संस्करण यान वायेजर १ के समान ही था, किन्तु उससे अलग इसका यात्रा पथ कुछ धीमा है। इसे धीमा रखने का कारण था इसका पथ युरेनस और नेपचून तक पहुंचने के लिये अनुकूल बनाना। इसके पथ में जब शनि ग्रह आया, तब उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण यह युरेनस की ओर अग्रसर हुआ था और इस कारण यह भी वायेजर १ के समान ही बृहस्पति के चन्द्रमा टाईटन का अवलोकन नहीं कर पाया था। किन्तु फिर भी यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला प्रथम यान था। इसकी यात्रा में एक विशेष ग्रहीय परिस्थिति का लाभ उठाया गया था जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है। यह विशेष स्थिति प्रत्येक १७६ वर्ष पश्चात ही आती है। इस कारण इसकी ऊर्जा में बड़ी बचत हुई और इसने ग्रहों के गुरुत्व का प्रयोग किया था। .

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खनिज

विभिन्न प्रकार के खनिज खनिज ऐसे भौतिक पदार्थ हैं जो खान से खोद कर निकाले जाते हैं। कुछ उपयोगी खनिज पदार्थों के नाम हैं - लोहा, अभ्रक, कोयला, बॉक्साइट (जिससे अलुमिनियम बनता है), नमक (पाकिस्तान व भारत के अनेक क्षेत्रों में खान से नमक निकाला जाता है!), जस्ता, चूना पत्थर इत्यादि। .

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खनिज जल

खनिज जल (Mineral water) वह जल है जिसमें कुछ उपयोगी खनिज भी मिले हों। खनिज की उपस्थिति से पानी का स्वाद बदल जाता है। इसका औषधीय महत्व भी है। खनिज जल प्रायः किसी प्राकृतिक खनिजयुक्त झरने या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाता है। खनिज जल में सल्फर एवं अन्य अनेकानेक लवण घुले होते हैं। .

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खनिजों का बनना

खनिजों का बनना (formation) अनेक प्रकार से होता है। बनने में उष्मा, दाब तथा जल मुख्य रूप से भाग लेते हैं। निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों से खनिज बनते हैं: (१) मैग्मा का मणिभीकरण (Crystallization from magma) - पृथ्वी के आभ्यंतर में मैग्मा में अनेक तत्व आक्साइड एवं सिलिकेट के रूपों में विद्यमान हैं। जब मैग्मा ठंडा होता है तब अनेक यौगिक खनिज के रूप में मणिभ (क्रिस्टलीय) हो जाते है और इस प्रकार खनिज निक्षेपों (deposit) को जन्म देते हैं। इस प्रकार के मुख्य उदाहरण हीरा, क्रोमाइट तथा मोनेटाइट हैं। (२) ऊर्ध्वपातन (Sublimation)- पृथ्वी के आभ्यंतर में उष्मा की अधिकता के कारण अनेक वाष्पशील यौगिक गैस में परिवर्तित हो जाते हैं। जब यह गैस शीतल भागों में पहुँचती है तब द्रव दशा में गए बिना ही ठोस बन जाती है। इस प्रकार के खनिज ज्वालामुखी द्वारों के समीप, अथवा धरातल के समीप, शीतल आग्नेय पुंजों (igneous masses) में प्राप्त होते हैं। गंधक का बनना उर्ध्वपातन क्रिया द्वारा ही हुआ है। (३) आसवन (Distillation) - ऐसा समझा जाता है कि समुद्र की तलछटों (sediments) में अंतर्भूत (imebdded) छोटे जीवों के कायविच्छेदन के पश्चात्‌ तैल उत्पन्न होता है, जो आसुत होता है और इस प्रकार आसवन द्वारा निर्मित वाष्प पेट्रोलियम में परिवर्तित हो जाता है अथवा कभी-कभी प्राकृतिक गैसों को उत्पन्न करता है। (४) वाष्पायन एवं अतिसंतृप्तीकरण (Vaporisation and Supersaturation) - अनेक लवण जल में घुल जाते हैं और इस प्रकार लवण जल के झरनों तथा झीलों को जन्म देते हैं। लवण जल का वाष्पायन द्वारा लवणों का अवशोषण (precipitation) होता है। इस प्रकार लवण निक्षेप अस्तित्व में आते हैं। इसके अतिरिक्त कभी कभी वाष्पायन द्वारा संतृप्त स्थिति आ जाने पर घुले हुए पदार्थों मणिभ पृथक हो जाते हैं। (५) 'गैसों, द्रवों एवं ठोसों की पारस्परिक अभिक्रियाएँ - जब दो विभिन्न गैसें पृथ्वी के आभ्यंतर से निकलकर धरातल तक पहुँचती हैं तथा परस्पर अभिक्रिया करती हैं तो अनेक यौगिक उत्पन्न होते है उदाहरणार्थ: इसी प्रकार गैसें कुछ विलयनों पर अभिक्रिया करती हैं। फलस्वरूप कुछ खनिज अवक्षिप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब हाइड्रोजन सल्फाइड गैस ताम्र-सल्फेट-विलयन से पारित होती है तब ताम्र सल्फाइड अवक्षिप्त हो जाता है। कभी ये गैसें ठोस पदार्थ से अभिक्रिया कर खनिजों को उत्पन्न करती हैं। यह क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनेक खनिज सिलिकेट, आक्साइड तथा सल्फाइड के रूप में इसी क्रिया द्वारा निर्मित होते हैं। किसी समय ऐसा होता है कि पृथ्वी के आभ्यंतर का उष्ण आग्नेय शिलाओं से पारित होता है एवं विशाल संख्या में अयस्क कार्यों (ore bodies) को अपने में विलीन कर लेता है। यह विलयन पृथ्वी तल के समीप पहुँच कर अनेक धातुओं को अवक्षिप्त कर देता है। स्वर्ण के अनेक निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए हैं। कुछ अवस्थाओं में इस प्रकार के विलयन पृथ्वीतल के समीप विभिन्न शिलाओं के संपर्क में आते हैं तथा एक एक करके कणों का प्रतिस्थापन (replacement) होता है, अर्थात्‌ जब शिला के एक कण का निष्कासन होता है तो उस निष्कासित कण के स्थान पर धात्विक विलयन के एक कण का प्रतिस्थापन हो जाता है। इस प्रकार शिलाओं के स्थान पर नितांत नवीन धातुएँ मिलती हैं, जिनका आकार और परिमाण प्राचीन प्रतिस्थापित शिलाओं का ही होता है। अनेक दिशाओं में यदि शिलाओं में कुछ विदार (cracks) या शून्य स्थान (void or void spaces) होते हैं तो पारच्यवित विलयन (percolating solution) उन शून्य स्थानों में खनिज निक्षेपों को जन्म देते हैं। यह क्रिया अत्यंत सामान्य है, जिसने अनेक धात्विक निक्षेपों को उत्पन्न किया है। (६) जीवाणुओं (bacteria) द्वारा अवक्षेपण - यह भली प्रकार से ज्ञात है कि कुछ विशेष प्रकार के जीवाणुओं में विलयनों से खनिज अवक्षिप्त करने की क्षमता होती है। उदाहरणार्थ, कुछ जीवाणु लौह को अवक्षिप्त करते हैं। ये जीवाणु विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के निक्षेपों का निर्माण करते हैं। (७) कलिलीय निक्षेपण (Collodial Deposition) - वे खनिज, जो जल में अविलेय हैं, विशाल परिमाण में कलिलीय विलयनों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा जब इनसे कोई विद्युद्विश्लेष्य (electroyte) मिलता है तब ये विलयन अवक्षेप देते हैं। इस प्रकार कोई भी धातु अवक्षिप्त हो सकती है। कभी कभी अवक्षेपण के पश्चात्‌ अवक्षिप्त खनिज मणिभीय हो जाते हैं, किंतु अन्य दशाओं में ऐसा नहीं होता। (८) ऋतुक्षारण प्रक्रम (Weathering Process) - यह ऋतुक्षारण शिलाओं के अपक्षय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है उसी प्रकार जो विलयन बनते हैं उनमें लौह, मैंगनीज तथा दूसरे यौगिक हो सकते हैं। ये यौगिक, विलयनों द्वारा सागर में ले जाए जाते हैं और वहीं वे अवक्षिप्त हो जाते हैं। लौह तथा मैगनीज के निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए। ऋतुक्षारण या तो पूर्ववर्ती (pre-existing) शिलाओं से अथवा पूर्ववर्ती खनिज निक्षेपों से हो सकता है। कुछ दशाओं में किसी शिला में कुछ अधोवर्ग (low grade) के विकिरित खनिज (disseminated minerals) होते हैं। तलीय जल शिलाओं के साधारण अवयवों को विलीन कर लेता है और अवशिष्ट भाग को मूल विकीरित खनिजों से समृद्ध करता है। अनेक अयस्क निक्षेप, अवशिष्ट उत्पाद के रूप में पाए जाते हैं, जैसे बाक्साइट। कुछ शिलाएँ, जैसे ग्रैनाइट (कणाश्म), वियोजन (disintegration) के पश्चात्‌ काइनाइट जैसे खनिजों को उत्पन्न करती हैं। (९) उपरूपांतरण (Metamorphism)-कुछ निक्षेप पूर्ववर्ती तलछटों के उपरूपांतरणों द्वारा निर्मित होते हैं। उदाहरण के लिए, चूना पत्थर संगमरमर को तथा कुछ मृत्तिकाएँ और सिलिका निक्षेप सिलोमनाइट को उत्पन्न करते हैं। .

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खाद्य पूरक

मानव शरीर के लिए कई प्रकार के खाद्य पूरक होते हैं। इनमें से मुख्य इस प्रकार से हैं:-.

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गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

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ऑक्सीजन

ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक (Oxygen) रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधरहित गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे.

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आनुभविक सूत्र

रसायन विज्ञान में किसी यौगिक का आनुभविक सूत्र (प्रयोगाधारित सूत्र / मूलानुपाती सूत्र / empirical formula) वह सूत्र है जो बताता है कि उस यौगिक के अणु में कौन-कौन से परमाणु हैं तथा उन परमाणुओं की संख्या का सरलतम अनुपात क्या है। उदाहरण के लिये हेक्सेन का प्रयोगाधारित सूत्र C3H7 है जबकि उसका अणुसूत्र C6H14 है। प्रयोगाधारित सूत्र या 'इम्पिरिकल फॉर्मूला' नाम इसलिये पड़ा है कि जिस विधि से ये सूत्र ज्ञात किये जाते हैं वह प्रयोग पर आधारित है और इसमें अणु में परमाणुओं का सापेक्षिक अनुपात ही पता चल पाता है, परमाणुओं की वास्तविक संख्या का पता नहीं चलता (जिसे किसी अन्य विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है)। बेंजीन अणु का '''आनुभविक सूत्र''' (1), आणविक सूत्र (2) तथा अन्य निरूपण: (3) केकुले संरचना (अनुनादी समावयी); (4) समतल षटकोणीय संरचना, जिसमें आबन्ध की लम्बाई और कोण भी लिखे गये हैं; (5) sp2 संकर ऑर्बिटल के बीच सिगमा आबन्ध; (6) परमाणविक कक्षक; (7) Molecular orbital delocalized pi; (8) बेंजीन रिंग .

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आयनन ऊर्जा

किसी विलगित (आइसोलेटेड) गैसीय अवस्था वाले परमाणु के सबसे शिथिलतः बद्ध (लूजली बाउण्ड) इलेक्ट्रान को परमाणु से अलग करने के लिये आवश्यक ऊर्जा, आयनन ऊर्जा (ionization energy (IE)) या 'आयनन विभव' या 'आयनन एन्थैल्पी' कहलाती है। \ A_ + E_ \to A^+_ \ + e^-.

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आयो (उपग्रह)

आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो। सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है। .

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आहारीय खनिज

आहारीय खनिज वे खनिज होते हैं, जो आहार के संग शरीर को मिलते हैं एवं पोषण करने में सहाय्क होते हैं। शरीर के लिए पांच महत्त्वपूर्ण तत्त्व कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ़ास्फ़ोरस, पोटाशियम और सोडियम अत्यावश्वक होते हैं। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण किंतु सूक्ष्म मात्रिक तत्व हैं, क्रोमियम, तांबा, आयोडिन, लोहा, मैगनीज और जस्ता। इसके अतिरिक्त सेलेनियम भी अच्छे स्वास्थ्य बनाये रखने में एक उपयोगी है। अन्य सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों में सल्फ़र, निकल, कोबाल्ट, फ़्यूरीन, आंक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन भी हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। ये सब मिलकर आहारीय खनिज कहलाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने विटामिन इत्यादि। लौह रक्त के लिए और कैल्शियम हडिडयों के लिए सम्पूरक के रूप में गर्भावस्था में महत्वपूर्ण है। आयोडिन की कमी गलगण्ड और मन्दबुद्धि, तथा मैग्नेशियम की कमी कैन्सर का कारण बन सकती है। मैगनीज और क्रोमियम का भी हृदय-रोग से संबध है। सामान्य रक्त-शर्करा के स्तरों को बनाए रखने के लिए क्रोमियम की आवश्यकता है। पाचन-तंत्र में जस्ते की कमी से गंजापन, भूख न लगना और यौन-दुष्क्रिया के परिणाम हो सकते है। एक ७० किलों भार वाले मनुष्य के लिए खनिजांश और उसके दैनिक औसत अन्नग्रहण की आवश्यकताओं का अनुमान निम्न प्रकार से है-.

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आइएसडीएन (ISDN)

आइएसडीएन (ISDN) टेलीफोन एकीकृत सेवा डिजिटल नेटवर्क (आइएसडीएन (ISDN)), पब्लिक स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क के परंपरागत परिपथों पर आवाज़, वीडियो, डाटा और अन्य नेटवर्क सेवाओं के समकालीन डिजिटल संचरण के संचार के मानकों का एक सेट है। आइएसडीएन (ISDN) से पहले, फोन सिस्टम को डाटा के लिए उपलब्ध कुछ विशेष सेवाओं के साथ आवाज़ के परिवहन के एक तरीके के रूप में देखा जाता था। आइएसडीएन (ISDN) की प्रमुख विशेषता यह है कि यह बातचीत और डाटा को उसी तर्ज पर एकीकृत करता है लेकिन इसके साथ कुछ ऐसी सुविधाओं को भी शामिल करता है जो पारंपरिक टेलीफोन सिस्टम में उपलब्ध नहीं थे। आइएसडीएन (ISDN) के एक्सेस अंतराफलक के कई प्रकार हैं जिन्हें मूल दर अंतराफलक (बीआरआई (BRI)), प्राथमिक दर अंतराफलक (पीआरआई (PRI)) और ब्रॉडबैंड आइएसडीएन (ISDN) (बी-आईएसडीएन (B-ISDN)) के रूप में परिभाषित किया जाता है। आइएसडीएन (ISDN) एक परिपथ-स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क सिस्टम है, जो पैकेट स्विच्ड नेटवर्कों में भी एक्सेस प्रदान करता है, जिसे साधारण टेलीफोन के तांबे के तारों पर आवाज़ और डाटा के डिजिटल संचरण की अनुमति प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप यह एक एनालॉग फोन की अपेक्षा संभावित रूप से बेहतर आवाज़ गुणवत्ता प्रदान करता है। यह 64 kilobit/s (किलोबिट/से) की वृद्धि में परिपथ-स्विच्ड कनेक्शन (या तो आवाज़ के लिए या डाटा के लिए) और पैकेट-स्विच्ड कनेक्शन (डाटा के लिए) प्रदान करता है। कुछ देशों में आइएसडीएन (ISDN) का एक प्रमुख बाज़ार अनुप्रयोग इंटरनेट एक्सेस है, जहां आइएसडीएन (ISDN) मिसाल के तौर पर अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों दिशाओं में अधिक से अधिक 128 kbit/s (किलोबिट/से) प्रदान करता है। बृहत्तर डाटा दर को प्राप्त करने के लिए आइएसडीएन (ISDN) के B-चैनलों को जोड़ा जा सकता है, मिसाल के तौर पर 3 या 4 बीआरआई (BRI) (6 से 8 64 kbit/s चैनल) को जोड़ा जाता है। आइएसडीएन (ISDN) को विशेष प्रोटोकॉल, जैसे Q.931 जिससे आइएसडीएन (ISDN) ओएसआई (OSI) मॉडल के सन्दर्भ में नेटवर्क, डाटा-लिंक और भौतिक परतों के रूप में कार्यरत है, के साथ इसके प्रयोग के लिए गलत नहीं समझना चाहिए। एक व्यापक अर्थ में आइएसडीएन (ISDN) को ओएसआई (OSI) मॉडल के परत 1, 2 और 3 पर मौजूद डिजिटल सेवाओं का एक समूह माना जा सकता है। आइएसडीएन (ISDN) को आवाज़ और डाटा सेवाओं में एक साथ एक्सेस प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। बहरहाल, सामान्य प्रयोग ने आइएसडीएन (ISDN) को Q.931 और संबंधित प्रोटोकॉलों में सीमाबद्ध किये जाने के लिए इसमें कमी की गई है, जो परिपथ स्विच्ड कनेक्शनों की स्थापना करने और तोड़ने के लिए और उपयोगकर्ता के लिए उन्नत कॉल सुविधाओं के लिए प्रोटोकॉलों का एक सेट है। उनकी शुरुआत 1986 में की गई। एक वीडियोकॉन्फ्रेंस में आइएसडीएन (ISDN) व्यक्तिगत डेस्कटॉप वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग सिस्टमों और समूह (कक्ष) वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग सिस्टमों के बीच एकसाथ आवाज़, वीडियो और पाठ संचरण प्रदान करता है। .

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इन्सुलिन

issn .

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इस्पात निर्माण

लौह अयस्क से इस्पात बनाने की प्रक्रिया का दूसरा चरण इस्पात निर्माण (Steelmaking) है। कच्चे लोहे से इस्पात बनाने के लिये कच्चे लोहे में उपस्थित अतिरिक्त कार्बन तथा गंधक, फॉस्फोरस आदि अशुद्धियों को निकाला जाता है और मैगनीज, निकिल, क्रोमियम तथा वनाडियम (vanadium) आदि तत्व मिलाये जाते हैं ताकि वांछित प्रकार का इस्पात बनाया जा सके। .

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कल्लर भूमि

कल्लर भूमि तीन प्रकार की होती है-.

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कहरुवा

मालाओं में लगे कहरुवे कहरुवा या तृणमणि (जर्मन: Bernstein, फ्रेंच: ambre, स्पेनिश: ámbar, अंग्रेज़ी: amber, ऐम्बर) वृक्ष की ऐसी गोंद (सम्ख़ या रेज़िन) को कहते हैं जो समय के साथ सख़्त होकर पत्थर बन गई हो। दूसरे शब्दों में, यह जीवाश्म रेजिन है। यह देखने में एक कीमती पत्थर की तरह लगता है और प्राचीनकाल से इसका प्रयोग आभूषणों में किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल सुगन्धित धूपबत्तियों और दवाइयों में भी होता है। क्योंकि यह आरम्भ में एक पेड़ से निकला गोंदनुमा सम्ख़ होता है, इसलिए इसमें अक्सर छोटे से कीट या पत्ते-टहनियों के अंश भी रह जाते हैं। जब कहरुवे ज़मीन से निकाले जाते हैं जो वह हलके पत्थर के डले से लगते हैं। फिर इनको तराशकर इनकी मालिश की जाती है जिस से इनका रंग और चमक उभर आती है और इनके अन्दर झाँककर देखा जा सकता है। क्योंकि कहरुवे किसी भी सम्ख़ की तरह हाइड्रोकार्बन के बने होते हैं, इन्हें जलाया जा सकता है।, Faya Causey, Getty Publications, 2012, ISBN 978-1-60606-082-7,...

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कार्बनिक रसायन

कार्बनिक रसायन रसायन विज्ञान की एक प्रमुख शाखा है, दूसरी प्रमुख शाखा है - अकार्बनिक रसायन। कार्बनिक रसायन का सम्बन्ध मुख्यतः कार्बन और हाइड्रोजन के अणुओं वाले रासायनिक यौगिकों के संरचना, गुणधर्म, रासायनिक अभिक्रियाओं एवं उनके निर्माण (संश्लेषण या सिन्थेसिस एवं अन्य प्रक्रिया द्वारा) आदि के वैज्ञानिक अध्ययन से है। कार्बनिक यौगिकों में कार्बन और हाइड्रोजन के अतिरिक्त अन्य अणु भी हो सकते हैं, जैसे- नाइट्रोजन (नत्रजन), ऑक्सीजन, हैलोजन, फॉस्फोरस, सिलिकॉन, गंधक (सल्फर) आदि।.

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किलनी

किलनी किलनी (Tick) छोटे वाह्य परजीवी जानवर हैं जो स्तनधारियों, पक्षियों और कभी-कभी सरीसृपों एवं उभयचरों के शरीर पर रहकर उनके खून चूसकर जीते हैं। इन्हें 'कुटकी' और 'चिचड़ी' भी कहते हैं। ये बहुत से रोगों के वाहक भी हैं जैसे लाइम रोग (Lyme disease), Q-ज्वर, बबेसिओसिस, आदि। .

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क्रिस्टलकी

क्रिस्टलकी (Crystallography) या मणिविज्ञान एक प्रायोगिक विज्ञान है जिसमें ठोसों में परमाणों के विन्यास (arrangement) का अध्ययन किया जाता है। पहले क्रिस्टलिकी से तात्पर्य उस विज्ञान से था जिसमें क्रिस्टलों का अध्ययन किया जाता है। एक्स-किरण के डिफ्रैक्सन द्वारा क्रिस्टलोंके अध्ययनके पहले क्रिस्टलोंका अध्ययन केवल उनकी ज्यामिति (आकार-प्रकार) देखकर की जाती थी। किन्तु आजकल विविध-प्रकार के किरण-पुंजों (एक्स-किरण, एलेक्ट्रान, न्यूट्रान, सिन्क्रोट्रान आदि) के डिफ्रैक्सन से किया जाता है। .

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केके के गाये गीतों की सूची

निम्न सूची केके द्वारा गाये गए सभी गीतों की है: .

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कोयला

कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का ३५% से ४०% भाग कोयलें से पाप्त होता हैं। विभिन्न प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा अलग-अलग होती है। कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त किया जाता है। ऊर्जा के अन्य स्रोतों में पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद का नाम सर्वोपरि है। .

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कीट नियंत्रण

एक क्रॉप डस्टर कम कीटनाशक की मात्रा वाले चारे का इस्तेमाल करता है, जिससे वेस्टर्न कॉर्न रूटवर्म से निजात पाने में मदद मिलती है कीट नियंत्रण से आशय कीट के रूप में परिभाषित प्रजाति के नियंत्रण या प्रबंधन से है, क्योंकि आमतौर पर उन्हें व्यक्तियों के स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी या अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक माना जाता है। कीट नियंत्रण का इतिहास भी लगभग उतना ही पुराना है जितना कि कृषि का क्योंकि फसलों को हमेशा से ही कीट मुक्त रखने की आवश्यकता रही है। खाद्य पदार्थों के उत्पादन को अधिकतम करने के लिए फसलों को पौधों की प्रतिस्पर्धी प्रजातियों के साथ-साथ मनुष्यों के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले शाकाहारी पशु-पक्षियों से बचाना भी लाभप्रद होता है। सबसे पहले संभवतः पारंपरिक तरीकों का ही इस्तेमाल किया जाता था, क्योंकि घास-फूस को जलाकर या जुताई करके उन्हें जमीन के अंदर करके; और कौवों तथा बीज-भक्षण करने वाले अन्य पक्षियों जैसे बड़े शाकाहारी पशु-पक्षियों को नष्ट करना अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा आसान होता है। फसल आवर्तन, सहयोगी फसल-रोपण (जिसे अंतर-फसल या मिश्रित फसल-रोपण भी कहा जाता है) और कीट प्रतिरोधी फसलों के चयनित प्रजनन का एक लंबा इतिहास रहा है। कई कीट मनुष्य की प्रत्यक्ष गतिविधियों की वजह से ही एक समस्या के रूप में उभरे हैं। इन गतिविधियों के संशोधन द्वारा कीट संबंधी समस्याओं पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, रैकून नामक एक जानवर अक्सर बोरियों को फाड़ दिया करते थे जो कि एक बड़ी समस्या थी। कई लोगों ने अपने घरों में उनको पकड़ने वाले डिब्बों को रखना शुरु कर दिया जिससे उनका उत्पात में कमी आई.

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अधातु

अधातु (non-metals) रासायनिक वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है। आवर्त सारणी का प्रत्येक तत्व अपने रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर धातु अथवा अधातु श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। (कुछ तत्व जिनमें दोनों के गुण पाये जाते हैं उन्हें उपधातु (metaloid) की श्रेणी में रखा जाता है।) आवर्त सारणी में ये १४वें (XIV) से लेकर १८वें (XVIII) समूह में दाहिने-ऊपरी कोने में स्थित हैं। इसके अलावा प्रथम समूह में सबसे उपर स्थित उदजन भी अधातु है। हाइड्रोजन के अलावा जारक, प्रांगार, भूयाति, गंधक, भास्वर, हैलोजन, तथा अक्रिय गैसें अधातु मानी जाती हैं। प्रायः आवर्त सारणी के केवल 18 तत्व अधातु की श्रेणी में गिने जाते हैं जबकि धातु की श्रेणी में 80 से भी अधिक तत्व आते हैं। फिर भी पृथ्वी के गर्भ का, वायुमण्डल और जलमण्डल का अधिकांश भाग अधातुएँ ही हैं। जीवों की संरचना में भी अधातुओं का ही अधिकांशता है। .

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अपरूपता

हीरा और ग्रेफाइट, कार्बन के दो प्रमुख अपरूप हैं; ये दोनो एक ही तत्व के शुद्ध रूप होने के बावजूद, संरचना में अलग-अलग होते हैं। जब एक ही तत्व कई रूपों में मिलता है तो तत्व के इस गुण को अपरूपता (एलॉट्रोपी) कहते हैं और उसके विभिन्न रूपों को उस तत्व का घन संरचना (austenite)अपरूप कहते हैं। जैसे कार्बन के विभिन्न अपरूप हीरा (डायमंड), ग्रेफाइट, कोयला (कोल), कोक, चारकोल या काष्ठकोयला, अस्थिकोयला (बोनब्लैक), काजल, कार्बन ब्लैक, गैस कार्बन और पेट्रोलियम कोक, तथा चीनी कोयला, इत्यादि हैं। कार्बन के अतिरिक्त आक्सीजन, गंधक, फॉस्फोरस आदि भी अपरूपों में पाए जाते हैं। अपरूप एक ही तत्व के विभिन्न संरचनात्मक रूप हैं और काफी अलग भौतिक गुणों और रासायनिक व्यवहार का प्रदर्शन कर सकते हैं। बहुरूपी रूपों के बीच परिवर्तन कुछ विशेष कारकों अर्थात दाब, प्रकाश व ताप के प्रभाव से शुरू होता है। इसलिए, विशेष अपरूपों की स्थिरता विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, काय केंद्रित घन संरचना (फेराइट) से लोहे का परिवर्तन कर फलक केंद्रित घन संरचना (ऑस्टेनाइट) मे करने के लिए 906 डिग्री सेल्सियस से ऊपर और टिन का परिवर्तन धात्विक टिन से अर्धचालक टिन मे करने के लिए उसे 13.2 डिग्री सेल्सियस से नीचे लाना पड़ता है। विभिन्न रासायनिक व्यवहार वाले अपरूपों का एक उदाहरण ओजोन (O3) है जो अपने अपरूप डाई आक्सीजन(O2) की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली ऑक्सीकारक है। .

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अमेथिस्ट

अमेथिस्ट बैंगनी क़िस्म का स्फटिक है जिसका अक्सर गहनों में इस्तेमाल किया जाता है। इसका नाम प्राचीन यूनानी ἀ a- ("नहीं") और μέθυστος methustos ("मादकता") से आया है, इस विश्वास के संदर्भ में कि रत्न नशे से अपने मालिक की रक्षा करता है; प्राचीन यूनानी और रोमवासी अमेथिस्ट पहना करते थे और इस विश्वास के साथ उनसे मद्य पात्र बनाते थे कि वह मदहोशी को रोकेगा.

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अर्धचालक पदार्थ

सुचालक, अर्धचालक तथा कुचालक के बैण्डों की तुलना अर्धचालक (semiconductor) उन पदार्थों को कहते हैं जिनकी विद्युत चालकता चालकों (जैसे ताँबा) से कम किन्तु अचालकों (जैसे काच) से अधिक होती है। (आपेक्षिक प्रतिरोध प्रायः 10-5 से 108 ओम-मीटर के बीच) सिलिकॉन, जर्मेनियम, कैडमियम सल्फाइड, गैलियम आर्सेनाइड इत्यादि अर्धचालक पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं। अर्धचालकों में चालन बैण्ड और संयोजक बैण्ड के बीच एक 'बैण्ड गैप' होता है जिसका मान ० से ६ एलेक्ट्रान-वोल्ट के बीच होता है। (Ge 0.7 eV, Si 1.1 eV, GaAs 1.4 eV, GaN 3.4 eV, AlN 6.2 eV).

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अंग्रेजी वर्णमाला

आधुनिक अंग्रेजी वर्णमाला एक लातिन आधारित वर्णमाला है जिसमें २६ वर्ण हैं। .

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उर्वरक

खाद डालते हुए; खाद एक जैविक उर्वरक है। उर्वरक (Fertilizers) कृषि में उपज बढ़ाने के लिए प्रयुक्त रसायन हैं जो पेड-पौधों की वृद्धि में सहायता के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। पानी में शीघ्र घुलने वाले ये रसायन मिट्टी में या पत्तियों पर छिड़काव करके प्रयुक्त किये जाते हैं। पौधे मिट्टी से जड़ों द्वारा एवं ऊपरी छिड़काव करने पर पत्तियों द्वारा उर्वरकों को अवशोषित कर लेते हैं। उर्वरक, पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की तत्काल पूर्ति के साधन हैं लेकिन इनके प्रयोग के कुछ दुष्परिणाम भी हैं। ये लंबे समय तक मिट्टी में बने नहीं रहते हैं। सिंचाई के बाद जल के साथ ये रसायन जमीन के नीचे भौम जलस्तर तक पहुँचकर उसे दूषित करते हैं। मिट्टी में उपस्थित जीवाणुओं और सुक्ष्मजीवों के लिए भी ये घातक साबित होते हैं। इसलिए उर्वरक के विकल्प के रूप में जैविक खाद का प्रयोग तेजी से लोकप्रीय हो रहा है। भारत में रासायनिक खाद का सर्वाधिक प्रयोग पंजाब में होता है। .

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उल्का

आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

S, सल्फर, सल्फ़र

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