लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

खामोश (1985 फ़िल्म)

सूची खामोश (1985 फ़िल्म)

खामोश 1985 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। .

9 संबंधों: नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, सदाशिव अमरापुरकर, सुषमा सेठ, सोनी राज़दान, कुंदन शाह, अमोल पालेकर, अजीत वाच्छानी, अवतार गिल

नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया। मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म 'हम पांच' से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी। हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार 'जाने भी दो यारों' में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया। नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म 'कर्मा' ने। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट "दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। 1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।' 2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी। नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।' साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी। बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी। नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और नसीरुद्दीन शाह · और देखें »

शबाना आज़मी

शबाना आज़मी (जन्म: 18 सितंबर, 1950) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और शबाना आज़मी · और देखें »

सदाशिव अमरापुरकर

सदाशिव अमरापुरकर हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। 2014 में उनका फेफड़ों में संक्रमण के कारण निधन हो गया। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और सदाशिव अमरापुरकर · और देखें »

सुषमा सेठ

सुषमा सेठ भारतीय सिनेमा, टीवी व रंगमंच की जानीमानी अभिनेत्री हैं। अपने अभिनय सफर की शुरुवात उन्होंने 70 के दशक में की। उन्होंने सबसे अधिक हिन्दी फिल्मों में नायक के माँ के किरदार निभाये। प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली, चाँदनी, दीवाना, कभी खुशी कभी गम और कल न न हो जैसी चर्चित फिल्मों में उन्होंने काम किया है। सुषमा ने कई टीवी धारावाहिकों में भी काम किया जैसे कि हम लोग व देख भाई देख। 80 के पूर्वार्ध में दूरदर्शन पर प्रसारित पहले सोप ओपेरा हम लोग में उनके द्वारा निभाया दादी का किरदार बेहद लोकप्रिय रहा। दादी को गले के कैंसर से पीड़ित दिखाया गया था, वे मृत्यु की कगार पर थीं पर यह सुषमा की लोकप्रियता ही थी जिसके कारण इस किरदार की उम्र को दर्शकों की माँग पर बढ़ाना पड़ा। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और सुषमा सेठ · और देखें »

सोनी राज़दान

सोनी राज़दान हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और सोनी राज़दान · और देखें »

कुंदन शाह

कुंदन शाह (मृत्यु: 7 अक्तूबर 2017) एक भारतीय फिल्म निर्देशक और लेखक थे। वह अपनी कॉमेडी फ़िल्म जाने भी दो यारों (1983) और 1985-86 की टीवी श्रृंखला नुक्कड़ के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। उन्होंने भारतीय फिल्म और टेलिविज़न संस्थान से निर्देशन सीखा। '‘जाने भी दो यारो’' फिल्म के लिये पहला और एकमात्र राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने ने 2015 में राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिया था। 1988 में उन्होंने हास्य धारावाहिक वागले की दुनिया का निर्देशन किया। यह कॉर्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के आम आदमी के किरदार पर आधारित था। उन्होंने 1993 में शाहरुख खान अभिनीत कभी हां कभी न के साथ मुख्यधारा की फ़िल्मों में वापसी की। 2000 में आई उनकी प्रीति जिंटा और सैफ अली खान अभिनीत फिल्म क्या कहना टिकट खिड़की पर सफल रही थी। इसके बाद बॉबी देओल और करिश्मा कपूर अभिनीत हम तो मोहब्बत करेगा (2000) और रेखा, प्रीति और महिमा चौधरी अभिनीत दिल है तुम्हारा (2002) सफल नहीं रही। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और कुंदन शाह · और देखें »

अमोल पालेकर

अमोल पालेकर अमोल पालेकर (जन्म: 24 नवंबर, 1944) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। अपने अभिनय से सभी का दिल बहलाने के बाद आजकल वे एक निर्देशक के रूप मे कही ज्यादा सक्रिय हैं। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और अमोल पालेकर · और देखें »

अजीत वाच्छानी

अजीत वाच्छानी हिन्दी फ़िल्मों के एक चरित्र अभिनेता एवं दूरदर्शन कलाकार थे। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और अजीत वाच्छानी · और देखें »

अवतार गिल

अवतार गिल हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। .

नई!!: खामोश (1985 फ़िल्म) और अवतार गिल · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »