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ख़ितानी लोग

सूची ख़ितानी लोग

ख़ितानी लोग शिकार के लिए पालतू चीलों का इस्तेमाल करते थे चंगेज़ ख़ान के मंगोल साम्राज्य से पहले १३वीं सदी में यूरेशिया के स्थिति - कारा-ख़ितान राज्य नक़्शे में दिख रहा है ख़ितानी लोग (मंगोल: Кидан, किदान; फ़ारसी:, ख़िताई; चीनी: 契丹, चिदान) ४थी सदी ईसवी से मंगोलिया और मंचूरिया में बसने वाले एक मंगोल जाति के लोग थे। १०वीं सदी तक उन्होंने उत्तरी चीन के एक बड़े इलाक़े पर अपनी धाक जमा ली थी और लियाओ राजवंश स्थापित कर लिया था। सन् ११२५ में यह राजवंश ख़त्म हो गया और ख़ितानी पश्चिम की ओर कूच कर गए जहाँ उन्होंने कारा-ख़ितान नाम का राज्य बनाया। फिर सन् १२१८ में उनकी टक्कर मंगोल साम्राज्य से हुई जिसने उनका राज हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।, Michal Biran, Cambridge University Press, 2005, ISBN 978-0-521-84226-6 .

13 संबंधों: तातार लोग, नायमन लोग, पाँच राजवंश और दस राजशाहियों का काल, मनास की दास्तान, लियाओ राजवंश, शानहाइगुआन, जिन राजवंश (१११५–१२३४), जुरचेन लोग, जीलिन, ख़ितानी भाषा, कारा-ख़ितान ख़ानत, काराख़ानी ख़ानत, किरगिज़ लोग

तातार लोग

दिनारा सफीना रूस के लिए टेनिस खेलती हैं और नस्ल से तातार हैं रुसलन चाग़ायेव उज़बेकिस्तान के लिए मुक्केबाज़ी करते हैं और एक तातार हैं तातार या ततार (तातार: ततरलार; रूसी: Татар; अंग्रेज़ी: Tatar) रूसी भाषा और तुर्की भाषाएँ बोलने वाली एक जाति है जो अधिकतर रूस में बसती है। दुनिया भर में इनकी आबादी ७० लाख अनुमानित की गई है, जिनमें से ५५ लाख रूस में रहते हैं। रूस के तातारस्तान प्रांत में २० लाख तातार रहते हैं। रूस के बाहर तातार समुदाय उज़बेकिस्तान, पोलैंड, काज़ाख़स्तान, युक्रेन, ताजिकिस्तान, किर्गिज़स्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाए जाते हैं।, Global Vision Publishing Ho, 2005, ISBN 978-81-8220-062-3,...

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नायमन लोग

चंगेज़ ख़ान के मंगोल साम्राज्य से पहले १३वीं सदी में यूरेशिया के स्थिति - नायमन (Naiman) राज्य नक़्शे में दिख रहा है नायमन या नायमन तुर्क या नायमन मंगोल (मंगोल: Найман ханлиг, नायमन ख़ानलिग) मध्य एशिया के स्तेपी इलाक़े में बसने वाली एक जाति का मंगोल भाषा में नाम था, जिनके कारा-ख़ितान के साथ सम्बन्ध थे और जो सन् ११७७ तक उनके अधीन रहे। मंगोल नाम होने के बावजूद, नायमानों को एक मंगोल जाति नहीं बल्कि एक तुर्की जाति माना जाता है।, René Grousset, Rutgers University Press, 1970, ISBN 978-0-8135-1304-1,...

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पाँच राजवंश और दस राजशाहियों का काल

९२३ ईसवी में (उत्तरकालीन लियांग राजवंश के अन्तकाल में) चीन का राजनैतिक नक़्शा पाँच राजवंश और दस राजशाहियाँ (五代十国, 五代十國, वुदाई शीगुओ, Five Dynasties and Ten Kingdoms) चीन के इतिहास में सन् ९०७ ईसवी से ९७९ ईसवी तक चलने वाला एक दौर था। यह तंग राजवंश के पतन के बाद शुरू हुआ और सोंग राजवंश के उभरने पर ख़त्म हुआ। इस काल में चीन के उत्तर में एक-के-बाद-एक पाँच राजवंश सत्ता में आये। चीन भर में और ख़ासकर दक्षिणी चीन में, १२ से अधिक स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो गए। इनमें से इतिहास में १० राज्यों का वर्णन अधिक होता है, इसलिए यह काल 'पाँच राजवंश और दस राजशाहियों' के नाम से जाना जाता है। इसी काल में मंचूरिया-मंगोलिया क्षेत्र में ख़ितानी लोगों का लियाओ राजवंश भी स्थापित हुआ। .

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मनास की दास्तान

किरगिज़ मनासची मनास की दास्तान (किरगिज़: Манас дастаны, मनास दास्तानी; अंग्रेज़ी: Epic of Manas) मध्य एशिया के किरगिज़ लोगों की एक शौर्य काव्य-गाथा है। यह १८वीं सदी में लिखी गई थी लेकिन हो सकता है कि इसकी कहानी उस से पहले से प्रचलित हो। मनास किरगिज़ लोगों का एक ऐतिहासिक महानायक था। मनास कथा में उसे बहुत बहादुर बताया गया है और बतलाया जाता है कि कैसे उसने किरगिज़ लोगों के बहुत दुश्मनों से टक्कर लेकर उन्हें हराया, जैसे कि ख़ितानी, ओइरत लोग, उईग़ुर और अफ़ग़ान​। मनास-दास्तान किरगिज़ भाषा की सब से महत्वपूर्ण साहित्य-कृति मानी जाती है। किर्गिज़स्तान में यह वीर-कथा रस्मी रूप से गाकर सुनाई जाती है और मनास-दास्तान सुनाने वाले को 'मनासची' (Манасчы, Manaschi) कहा जाता है। मनास गाथा में क़रीब ५ लाख पंक्तियाँ हैं जो महाभारत से ढाई गुना है (हालाँकि महाभारत शब्दों के हिसाब से अधिक लम्बी है)। इस कथा के कुछ रूपों में मनास को नोगाई ख़ान बताया गया है। १९९५ में किर्गिज़स्तान की सरकार ने मनास की १००० वीं जन्म जयंती का राष्ट्रोत्सव मनाया।, Dilip Hiro, Penguin, 2009, ISBN 978-1-59020-221-0,...

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लियाओ राजवंश

सन् ११११ ईसवी में लियाओ राजवंश का क्षेत्र (गुलाबी रंग में) लियाओ राजवंश (चीनी: 遼朝, लियाओ चाओ; ख़ितानी: मोस जैलुत; अंग्रेजी: Liao Dynasty) जिसे ख़ितानी साम्राज्य (契丹國, चिदान गुओ, Khitan Empire) भी कहा जाता है पूर्वी एशिया का एक साम्राज्य था जो मंगोलिया, कज़ाख़स्तान के कुछ भागों, रूस के सुदूर पूर्वी भागों और उत्तरी चीन पर विस्तृत था। इसकी स्थापना चीन में तंग राजवंश के पतन के दौरान ख़ितानी लोगों के महान ख़ान अबाओजी ने की थी। यह साम्राज्य ९०७ ईसवी से ११२५ ईसवी तक चला। सन् ११२५ ई में जुरचेन लोगों के जिन राजवंश (१११५–१२३४) ने लियाओ राजवंश का नाश कर दिया।, Frederick W. Mote, Harvard University Press, 2003, ISBN 978-0-674-01212-7,...

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शानहाइगुआन

200px शानहाइ दर्रा (Shanhai Pass) या शानहाइगुआन (山海關, Shanhaiguan), जिसे यू दर्रा (榆關, Yu Pass) भी कहते हैं, चीन की विशाल दीवार में बना एक प्रमुख दर्रा है, जिसके ज़रिये दीवार को पार किया जा सकता है। यह दीवार के सुदूर पूर्वी छोर के पास स्थित है, जो दीवार के बोहाई सागर के किनारे अंत हो जाने से थोड़ा पहले पड़ता है। प्रशासनिक दृष्टि से शानहाइगुआन चीन के हेबेई प्रान्त के चिनहुआंगदाओ (秦皇岛, Qinhuangdao) शहर के शानहाइगुआन विभाग में पड़ता है। .

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जिन राजवंश (१११५–१२३४)

सन् ११४१ ईसवी में जिन राजवंश के साम्राज्य का नक़्शा (आसमानी नीले रंग में) जिन राजवंश (जुरचेन: अइसिन गुरून; चीनी: 金朝, जिन चाओ; अंग्रेजी: Jin Dynasty), जिसे जुरचेन राजवंश भी कहा जाता है, जुरचेन लोगों के वानयान (完顏, Wanyan) परिवार द्वारा स्थापित एक राजवंश था जिसने उत्तरी चीन और उसके कुछ पड़ोसी इलाक़ों पर सन् १११५ ईसवी से १२३४ ईसवी तक शासन किया। यह जुरचेन लोग उन्ही मान्छु लोगों के पूर्वज थे जिन्होनें ५०० वर्षों बाद चीन पर चिंग राजवंश के रूप में राज किया। ध्यान दीजिये की इस जिन राजवंश से पहले एक और जिन राजवंश आया था जिनका इस वंश से कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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जुरचेन लोग

चंगेज़ ख़ान के मंगोल साम्राज्य से पहले १३वीं सदी में यूरेशिया के स्थिति - पूर्वोत्तर में पीले रंग में जुरचेनों के जिन राजवंश का इलाक़ा दिख रहा है एक जुरचेन योद्धा जुरचेन लोग (जुरचेनी: जुशेन; चीनी: 女真, नुझेन) उत्तर-पूर्वी चीन के मंचूरिया क्षेत्र में बसने वाली एक तुन्गुसी जाति थी।, Willard J. Peterson, Cambridge University Press, 2002, ISBN 978-0-521-24334-6,...

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जीलिन

चीन में जीलिन प्रांत (लाल रंग में) जीलिन (चीनी: 吉林, अंग्रेज़ी: Jilin, मान्छु: ᡤᡳ᠍ᡵᡳ᠌ᠨ ᡠᠯᠠ) जनवादी गणराज्य चीन के सुदूर पूर्वोत्तर में स्थित एक प्रांत है जो ऐतिहासिक मंचूरिया क्षेत्र का भाग है। 'जीलिन' शब्द मान्छु भाषा के 'गीरिन उला' (ᡤᡳ᠍ᡵᡳ᠌ᠨ ᡠᠯᠠ, Girin Ula) से आया है जिसका मतलब 'नदी के साथ' होता है। इसके चीनी भावचित्रों का अर्थ 'शुभ वन (जंगल)' है और इसका संक्षिप्त एकाक्षरी चिह्न '吉' (जी) है। जीलिन प्रान्त की सीमाएँ पूर्व में रूस और उत्तर कोरिया को लगती हैं। इस प्रान्त का क्षेत्रफल १,८७,४०० वर्ग किमी है, यानि भारत के कर्नाटक राज्य से ज़रा ज़्यादा। सन् २०१० की जनगणना में इसकी आबादी २,७४,६२,२९७ थी जो लगभग भारत के पंजाब राज्य के बराबर थी। जीलिन की राजधानी चांगचून शहर है। .

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ख़ितानी भाषा

कोरिया से मिला एक आइना जिसमें छोटी ख़ितानी लिपि में लिखावट है सन ९८६ की ऐक शिला जिसमें बड़ी ख़ितानी लिपि में लिखावट है ख़ितानी भाषा मध्य एशिया में बोले जाने वाली एक विलुप्त भाषा थी जिसे ख़ितानी लोग बोला करते थे। यह भाषा सन् ३८८ से सन् १२४३ तक ख़ितानी राज्य व्यवस्था के लिए प्रयोगित थी। भाषा-परिवार के नज़रिए से इसे मंगोल भाषा-परिवार का सदस्य माना जाता है, हालांकि जब यह बोली जाति थी तब आधुनिक मंगोल भाषा अस्तित्व में नहीं थी। यह भाषा पहले ख़ितानियों के लियाओ राजवंश और फिर कारा-ख़ितान की राजभाषा रही। किसी ज़माने में कुछ भाषावैज्ञानिक समझते थे कि इसका मंगोल भाषा होने कि बजाए एक तुन्गुसी भाषा होना अधिक संभव है, लेकिन वर्तमान युग में लगभग सभी विद्वान इस एक मंगोल भाषा मानते हैं। क्योंकि यह भाषा काफ़ी अरसे तक उईग़ुर जैसी तुर्की भाषाओँ के संपर्क में रही, इसलिए इनमें शब्दों का आपसी आदान-प्रदान होता रहा। .

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कारा-ख़ितान ख़ानत

सन् १२०० में कारा-ख़ितान ख़ानत (हरे रंग में) कारा-ख़ितान ख़ानत (मंगोल: Хар Хятан, ख़ार ख़ितान; चीनी: 西遼, शी लियाओ; अंग्रेजी: Kara-Khitan Khanate), जिसे पश्चिमी लियाओ साम्राज्य भी कहा जाता है, मध्य एशिया में स्थित ख़ितानी लोगों का एक साम्राज्य था जो सन् ११२४ ईसवी से १२१८ ईसवी तक चला। ख़ितानियों का लियाओ राजवंश उत्तरी चीन पर राज करा करता था लेकिन जुरचेन लोगों के आक्रमण से वे पश्चिम की ओर चले गए और वहाँ लियाओ राजघराने के वंशज येलू दाशी (耶律達實, Yelü Dashi) ने कारा-ख़ितान नाम की ख़ानत शुरू करी।, Barbara A. West, Infobase Publishing, 2009, ISBN 978-0-8160-7109-8,...

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काराख़ानी ख़ानत

१००० ईसवी में काराख़ानी ख़ानत अर्सलान ख़ान द्वारा ११२७ में आज़ान के लिए बनवाई गई बुख़ारा की कलयन मीनार काराख़ानी ख़ानत (Kara-Khanid Khanate) मध्यकाल में एक तुर्की क़बीलों का परिसंघ था जिन्होंने मध्य एशिया के आमू-पार क्षेत्र और कुछ अन्य भूभाग में ८४० से १२१२ ईसवी तक अपनी ख़ानत (साम्राज्य) चलाई। इसमें कारलूक, यग़मा, चिग़िल​ और कुछ अन्य क़बीले शामिल थे जो पश्चिमी तियान शान और आधुनिक शिनजियांग इलाक़ों के रहने वाले थे। काराख़ानियों ने मध्य एशिया में ईरानी मूल के सामानी साम्राज्य का ख़ात्मा कर दिया और इसके बाद मध्य एशिया में तुर्की-भाषियों का अधिक बोलबाला रहा। काराख़ानी दौर में ही महमूद काश्गरी ने अपनी प्रसिद्ध 'दीवान-उ-लुग़ात​-उत-तुर्क' नामक तुर्की भाषा के कोष की रचना की।, Rafis Abazov, pp.

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किरगिज़ लोग

काराकोल में एक मनासची कथाकार पारम्परिक किरगिज़ वेशभूषा में एक किरगिज़ परिवार किरगिज़ मध्य एशिया में बसने वाली एक तुर्की-भाषी जाति का नाम है। किरगिज़ लोग मुख्य रूप से किर्गिज़स्तान में रहते हैं हालाँकि कुछ किरगिज़ समुदाय इसके पड़ौसी देशों में भी मिलते हैं, जैसे कि उज़्बेकिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, अफ़्ग़ानिस्तान और रूस। .

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