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क्षीर सागर

सूची क्षीर सागर

विष्णु पुराण के अनुसार यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। ये सातों द्वीप चारों ओर से सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। दुग्ध का सागर या क्षीर सागर शाकद्वीप को घेरे हुए है। इस सागर को पुष्करद्वीप घेरे हुए है।हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी,क्षीरसागर में निवास करते है। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:सप्त सागर श्रेणी:विष्णु पुराण श्रेणी:हिन्दू कथाएं श्रेणी:हिन्दू इतिहास.

14 संबंधों: देवशयनी एकादशी, नारोमुरार, नाग (हिन्दू धर्म), नागराज, श्रीभार्गवराघवीयम्, शेष, शेषनाग, सप्त सागर, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, वारुणी, कालिंजर दुर्ग, कालकूट, कुम्भ मेला, कूर्म अवतार

देवशयनी एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। .

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नारोमुरार

नारोमुरार वारिसलीगंज प्रखण्ड के प्रशाशानिक क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग 31 से 10 KM और बिहार राजमार्ग 59 से 8 KM दूर बसा एकमात्र गाँव है जो बिहार के नवादा और नालंदा दोनों जिलों से सुगमता से अभिगम्य है। वस्तुतः नार का शाब्दिक अर्थ पानी और मुरार का शाब्दिक अर्थ कृष्ण, जिनका जन्म गरुड़ पुराण के अनुसार विष्णु के 8वें अवतार के रूप में द्वापर युग में हुआ, अर्थात नारोमुरार का शाब्दिक अर्थ विष्णुगृह - क्षीरसागर है। प्रकृति की गोद में बसा नारोमुरार गाँव, अपने अंदर असीम संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए है। यह भारत के उन प्राचीनतम गांवो में से एक है जहाँ 400 वर्ष पूर्व निर्मित मर्यादा पुरुषोत्तम राम व् परमेश्वर शिव को समर्पित एक ठाकुर वाड़ी के साथ 1920 इसवी, भारत की स्वतंत्रता से 27 वर्ष पूर्व निर्मित राजकीयकृत मध्य विद्यालय और सन 1956 में निर्मित एक जनता पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय का उद्घाटन श्रीकृष्ण सिंह के समय बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा की गयी थी। .

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नाग (हिन्दू धर्म)

नाग शब्द संस्कृत और पालि का शब्द है जो भारतीय धर्मों में महान सर्प का द्योतक है (विशेषतः नागराज (सांप)। .

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नागराज

नागराज एक संस्कृत शब्द है जो कि नाग तथा राज (राजा) से मिलकर बना है अर्थात नागों का राजा। यह मुख्य रूप से तीन देवताओं हेतु प्रयुक्त होता है - अनन्त (शेषनाग), तक्षक तथा वासुकि। अनन्त, तक्षक तथा वासुकि तीनों भाई महर्षि कश्यप, तथा उनकी पत्नी कद्रु के पुत्र थे जो कि सभी साँपों के जनक माने जाते हैं। मान्यता के अनुसार नाग का वास पाताललोक में है। सबसे बड़े भाई अनन्त भगवान विष्णु के भक्त हैं एवं साँपों का मित्रतापूर्ण पहलू प्रस्तुत करते हैं क्योंकि वे चूहे आदि जीवों से खाद्यान्न की रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में योगनिद्रा में होते हैं तो अनन्त उनका आसन बनते हैं तथा उनकी यह मुद्रा अनन्तशयनम् कहलाती है। अनन्त ने अपने सिर पर पृथ्वी को धारण किया हुआ है। उन्होंने भगवान विष्णु के साथ रामायण काल में राम के छोटे भाई लक्ष्मण तथा महाभारत काल में कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया। इसके अतिरिक्त रामानुज तथा नित्यानन्द भी उनके अवतार कहे जाते हैं। छोटे भाई वासुकि भगवान शिव के भक्त हैं, भगवान शिव हमेशा उन्हें गर्दन में पहने रहते हैं। तक्षक साँपों के खतरनाक पहलू को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनके जहर के कारण सभी उनसे डरते हैं। गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के थानगढ़ तहसील में नाग देवता वासुकि का एक प्राचीन मंदिर है। इस क्षेत्र में नाग वासुकि की पूजा ग्राम्य देवता के तौर पर की जाती है। यह भूमि सर्प भूमि भी कहलाती है। थानगढ़ के आस पास और भी अन्य नाग देवता के मंदिर मौजूद है। देवभूमि उत्तराखण्ड में नागराज के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नागराजा कहा जाता है। सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध नागतीर्थ है। यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर डाण्डा नागराज पौड़ी जिले में है। तमिलनाडु के जिले के नागरकोइल में नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर मान्नारशाला मन्दिर केरल के अलीप्पी जिले में है। इस मन्दिर में अनन्त तथा वासुकि दोनों के सम्मिलित रूप में देवता हैं। केरल के तिरुअनन्तपुरम् जिले के पूजाप्पुरा में एक नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। यह पूजाप्पुरा नगरुकावु मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर की अद्वितीयता यह है कि इसमें यहाँ नागराज का परिवार जिनमें नागरम्मा, नागों की रानी तथा नागकन्या, नाग राजशाही की राजकुमारी शामिल है, एक ही मन्दिर में रखे गये हैं। .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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शेष

शेष से निम्नलिखित व्यक्तियों या संकल्पनाओं का बोध होता है-.

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शेषनाग

'''शेष-शायी विष्णु''' (शेष पर शयन करते विष्णु) कद्रू से उत्पन्न कश्यप के पुत्र जो नागों में प्रमुख थे। इनके सहस्र (हजार) फणों के कारण इनका दूसरा नाम 'अनंत' है। यह सदा पाताल में ही रहते थे और इनकी एक कला क्षीरसागर में भी है जिसपर विष्णु भगवान शयन करते हैं। अपनी तपस्या द्वारा इन्होंने ब्रह्मा से संपूर्ण पृथ्वी धारण करने का वरदान प्राप्त किया था। लक्ष्मण जी शेषनाग के ही अवतार माने जाते हैं।.

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सप्त सागर

विष्णु पुराण के अनुसार यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। जम्बुद्वीप इन सब के मध्य में स्थित है। सप्त सागर इस प्रकार से हैं:-.

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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वारुणी

वारुणी का सामान्य अर्थ मदिरा से लिया जाता है। हिन्दू मिथकों में वर्णित समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर निकली मदिरा को वारुणी कहा गया। आख्यानों के अनुसार यह देवी के रूप में समुद्र से निकली मदिरा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। इसे देवता वरुण की पत्नी के रूप में माना जाता है और अन्य नाम वरुणानी भी उद्धृत किया जाता है। .

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कालिंजर दुर्ग

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .

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कालकूट

कालकूट अथवा हलाहल हिन्दू मिथकों में वर्णित वह विष है जो समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर से निकला था। .

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कुम्भ मेला

हरिद्वार के कुंभ मेले (2010) के दौरान गंगा किनारे स्नान घाट पर श्रद्धालु २००१ के प्रयाग कुम्भ मेले का दृष्य कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। २०१३ का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशी में और वृहस्पति, मेष राशी में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन माना जाता है। .

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कूर्म अवतार

कूर्म अवतार कूर्म अवतार को 'कच्छप अवतार' (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था। नरसिंहपुराण के अनुसार कूर्मावतार द्वितीय अवतार है जबकि भागवतपुराण (१.३.१६) के अनुसार ग्यारहवाँ अवतार। शतपथ ब्राह्मण (७.५.१.५-१०), महाभारत (आदि पर्व, १६) तथा पद्मपुराण (उत्तराखंड, २५९) में उल्लेख है कि संतति प्रजनन हेतु प्रजापति, कच्छप का रूप धारण कर पानी में संचरण करता है। लिंगपुराण (९४) के अनुसार पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छपरूप में अवतार लिया। उक्त कच्छप की पीठ का घेरा एक लाख योजन था। पद्मपुराण (ब्रह्मखड, ८) में वर्णन हैं कि इंद्र ने दुर्वासा द्वारा प्रदत्त पारिजातक माला का अपमान किया तो कुपित होकर दुर्वासा ने शाप दिया, तुम्हारा वैभव नष्ट होगा। परिणामस्वरूप लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। पश्चात् विष्णु के आदेशानुसार देवताओं तथा दैत्यों ने लक्ष्मी को पुन: प्राप्त करने के लिए मंदराचल की मथानी तथा वासुकी की डोर बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन करते समय मंदराचल रसातल को जाने लगा तो विष्णु ने कच्छप के रूप में अपनी पीठ पर धारण किया और देवदानवों ने समुद्र से अमृत एवं लक्ष्मी सहित १४ रत्नों की प्राप्ति करके पूर्ववत् वैभव संपादित किया। एकादशी का उपवास लोक में कच्छपावतार के बाद ही प्रचलित हुआ। कूर्मपुराण में विष्णु ने अपने कच्छपावतार में ऋषियों से जीवन के चार लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) की वर्णन किया था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

दुग्ध का सागर, क्षीरसागर

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