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केदारनाथ अग्रवाल

सूची केदारनाथ अग्रवाल

केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल १९११ - २०००) प्रमुख हिन्दी कवि थे। .

10 संबंधों: भारतीय कवियों की सूची, समस्त रचनाकार, साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी, हिन्दी साहित्य का इतिहास, हिन्दी कवि, हिन्दी कवियों की सूची, हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद, केदार सम्मान, अपूर्वा, अग्रवाल

भारतीय कवियों की सूची

इस सूची में उन कवियों के नाम सम्मिलित किये गये हैं जो.

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समस्त रचनाकार

अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.

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साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी

साहित्य अकादमी पुरस्कार, सन् १९५४ से प्रत्येक वर्ष भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों को दिया जाता है, जिसमें एक ताम्रपत्र के साथ नक़द राशि दी जाती है। नक़द राशि इस समय एक लाख रुपए हैं। साहित्य अकादेमी द्वारा अनुवाद पुरस्कार, बाल साहित्य पुरस्कार एवं युवा लेखन पुरस्कार भी प्रतिवर्ष विभिन्न भारतीय भाषाओं में दिए जाते हैं, इन तीनों पुरस्कारों के अंतर्गत सम्मान राशि पचास हजार नियत है। .

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हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य पर यदि समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ० हरदेव बाहरी के शब्दों में, हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही हिन्दी है। इस भाषा का दुर्भाग्य रहा है कि युग-युग में इसका नाम परिवर्तित होता रहा है। कभी 'वैदिक', कभी 'संस्कृत', कभी 'प्राकृत', कभी 'अपभ्रंश' और अब - हिन्दी। आलोचक कह सकते हैं कि 'वैदिक संस्कृत' और 'हिन्दी' में तो जमीन-आसमान का अन्तर है। पर ध्यान देने योग्य है कि हिब्रू, रूसी, चीनी, जर्मन और तमिल आदि जिन भाषाओं को 'बहुत पुरानी' बताया जाता है, उनके भी प्राचीन और वर्तमान रूपों में जमीन-आसमान का अन्तर है; पर लोगों ने उन भाषाओं के नाम नहीं बदले और उनके परिवर्तित स्वरूपों को 'प्राचीन', 'मध्यकालीन', 'आधुनिक' आदि कहा गया, जबकि 'हिन्दी' के सन्दर्भ में प्रत्येक युग की भाषा का नया नाम रखा जाता रहा। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश-अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य-रचना प्रारम्भ हो गयी थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या 'प्राकृताभास हिन्दी' में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था। .

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हिन्दी कवि

हिन्दी साहित्य राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी कविता परम्परा बहुत समृद्ध है। .

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हिन्दी कवियों की सूची

हिन्दी कविता की परम्परा बहुत लम्बी है। कुछ विद्बान सरहपाद को हिन्दी का पहला कवि मानते हैं। सरहपाद और उनके समवर्ती व परवर्ती सिद्धों ने दोहों और पदों के रूप में अपनी स्फुट रचनाएं प्रस्तुत कीं। रासोकाल तक आते-आते प्राचीन हिन्दी का रूप स्थिर हो चुका था। अपभ्रंश और शुरुआती हिन्दी परस्पर घुली-मिली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे हिन्दी में परिष्कार होता रहा और अपभ्रंश भाषा के पटल से लुप्त हो गई।.

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हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद

मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्य में प्रगतिवाद के रूप में उदय हुआ। यह समाज को शोषक और शोषित के रूप में देखता है। प्रगतिवादी शोषक वर्ग के खिलाफ शोषित वर्ग में चेतना लाने तथा उसे संगठित कर शोषण मुक्त समाज की स्थापना की कोशिशों का समर्थन करता है। यह पूँजीवाद, सामंतवाद, धार्मिक संस्थाओं को शोषक के रूप में चिन्हित कर उन्हें उखाड़ फेंकने की बात करता है। हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद का आरंभ १९३६ से माना जा सकता है। इसी वर्ष लखनउ में प्रगतिशील लेखक संघ का पहला सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की। इसके बाद साहित्य की विभिन्न विधाओं में मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित रचनाएँ हुई। प्रगतिवादी धारा के साहित्यकारों में नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, आदि प्रमुख हैं। श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

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केदार सम्मान

केदार सम्मान प्रगतिशील हिंदी कविता के शीर्षस्थ कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में केदार शोध पीठ की ओर से प्रति वर्ष दिया जाने वाला एक प्रमुख साहित्य सम्मान है। यह साहित्य सम्मान सृजन की उत्कृष्टता को रेखांकित करने के लिए केदार की परम्परा में लोकतांत्रिक, प्रगतिशील, आधुनिक, विवेकसम्मत, वैज्ञानिक चिंतन के पक्षधर, सृजन धर्मियों को प्रदान किया जाता है। यह सम्मान मुख्यत: हिन्दी कविता के लिए हैं, जिसमें १९६० के बाद जन्मे रचनाकार के पिछले ५ वर्षों में प्रकाशित संकलन-विशेष को चयन करते समय रचनाकार के कृतित्व के समग्र योगदान को ध्यान में रखा जाता है। पुस्कार का निर्णय एक चयन तथा निर्णायक समिति द्वारा किया जाता है। प्रतिवर्ष अगस्त के महीने में आयोजित एक भव्य समारोह में यह सम्मान प्रदान किया जाता है। .

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अपूर्वा

अपूर्वा हिन्दी के विख्यात साहित्यकार केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अग्रवाल

प्राचीन भारतीय राजवंश | अग्रेयवंशी क्षत्रिय ही वर्तमान में अग्रवाल नाम से जाने जाते हैं। इनकी एक शाखा राजवंशी भी कहलाती है। युनानी बादशाह सिकंदर के आक्रमण के फलस्वरूप अग्रेयगणराज्य का पतन हो गया और अधिकांश अग्रेयवीर वीरगति को प्राप्त हो गये। बचे हुवे अग्रेयवंशी अग्रोहा से निष्क्रमण कर सुदूर भारत में फैल गये और आजीविका के लिये तलवार छोड़ तराजू पकड़ ली। आज इस समुदाय के बहुसंख्य लोग वाणिज्य व्यवसाय से जुड़े हुवे हैं और इनकी गणना विश्व के सफलतम उद्यमी समुदायों में होती है। पिछले दो हजार वर्षों से इनकी आजीविका का आधार वाणिज्य होने से इनकी गणना क्षत्रिय वर्ण होने के बावजूद वैश्य वर्ग में होती है और स्वयं अग्रवाल समाज के लोग अपने आप को वैश्य समुदाय का एक अभिन्न अंग मानते हैं। इनके १८ गोत्र हैं। संस्थापक: महाराजा अग्रसेन वंश: सुर्यवंश एवं नागवंश (इस वंश की अठारह शाखाओं में से १० सुर्यवंश की एवं ८ नागवंश की हैं) गद्दी: अग्रोहा, प्रवर: पंचप्रवर, कुलदेवी: महालक्षमी, गोत्र: १८:- गर्ग, गोयन,गोयल, कंसल, बंसल, सिंहल, मित्तल, जिंदल, बिंदल, नागल, कुच्छल, भंदल, धारण, तायल, तिंगल, ऐरण, मधुकुल, मंगल| .

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