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नाभादास और रामचन्द्र शुक्ल

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

नाभादास और रामचन्द्र शुक्ल के बीच अंतर

नाभादास vs. रामचन्द्र शुक्ल

भक्तिकाल के कवियों में स्वामी अग्रदास के शिष्य नाभादास का विशिष्ट स्थान है। अंतस्साक्ष्य के अभाव में इनकी जन्म तथा मृत्यु की तिथियाँ अनिश्चित हैं। मिश्रबंधु, डॉ॰ श्यामसुंदरदास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ॰ दीनदयालु गुप्त, आचार्य क्षितिमोहन सेन आदि ने इस संबंध में जो तिथियाँ निर्धारित की हैं उनमें पर्याप्त अंतर है। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ 'भक्तमाल' की टीका प्रियादास जी ने संवत्‌ 1769 में, सौ वर्ष बाद, लिखी थी। इस आधार पर नाभादास का समय 17वीं शताब्दी के मध्य और उत्तरार्ध के बीच माना जाता है। नाभादास के जन्मस्थान, माता पिता, जाति आदि के संबंध में भी प्रमाणों के अभाव में अधिकारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। 'भक्तनामावली' के संपादक श्री राधाकृष्णदास ने किंवदंती के आधार पर लिखा है कि नाभादास जन्मांध थे और बाल्यावस्था में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय देश में अकाल की स्थिति थी, अत: माता इनका पालनपोषण न कर सकीं और इन्हें वन में छोड़कर चली गईं। संयोगवश श्री कील्ह और अग्रदास जी उसी वन में होकर जा रहे थे, उन्होंने बालक को देखा और उठा ले आए। बाद में उन्हीं महात्माओं के प्रभाव से नाभादास ने आँखों की ज्योति प्राप्त की और अग्रदास जी ने इन्हें दीक्षित किया। परंपरा के अनुसार नाभादास डोम अथवा महाराष्ट्रीय ब्राह्मण जाति के थे। टीकाकार प्रियादास ने इन्हें हनुमानवंशीय महाराष्ट्रीय ब्राह्मण माना है। टीकाकार रूपकला जी ने इन्हें डोम जाति का मानते हुए लिखा है कि डोम नीच जाति नहीं थी, वरन्‌ कलावंत, ढाढी, भाट, डोम आदि गानविद्याप्रवीण जातियों के ही नाम हैं। मिश्रबंधुओं ने भी इन्हें हनुमानवंशी मानते हुए लिखा है कि मारवाड़ी में हनुमान शब्द 'डोम' के लिए प्रयुक्त होता है। . आचार्य रामचंद्र शुक्ल (४ अक्टूबर, १८८४- २ फरवरी, १९४१) हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिंदी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार संबंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की। .

नाभादास और रामचन्द्र शुक्ल के बीच समानता

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नाभादास और रामचन्द्र शुक्ल के बीच तुलना

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संदर्भ

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