जस्ता और यशदीकरण
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जस्ता और यशदीकरण के बीच अंतर
जस्ता vs. यशदीकरण
जस्ता या ज़िन्क एक रासायनिक तत्व है जो संक्रमण धातु समूह का एक सदस्य है। रासायनिक दृष्टि से इसके गुण मैगनीसियम से मिलते-जुलते हैं। मनुष्य जस्ते का प्रयोग प्राचीनकाल से करते आये हैं। कांसा, जो ताम्बे व जस्ते की मिश्र धातु है, १०वीं सदी ईसापूर्व से इस्तेमाल होने के चिन्ह छोड़ गया है। ९वीं शताब्दी ईपू से राजस्थान में शुद्ध जस्ता बनाये जाने के चिन्ह मिलते हैं और ६ठीं शताब्दी ईपू की एक जस्ते की खान भी राजस्थान में मिली है। लोहे पर जस्ता चढ़ाने से लोहा ज़ंग खाने से बचा रहता है और जस्ते का प्रयोग बैट्रियों में भी बहुत होता है। . thumb यशदीकरण (अंग्रेजी:Galvanization) या गैल्वानीकरण या यशदलेपन एक धातुकार्मिक प्रक्रम है जिसमें इस्पात या लोहे के उपर जस्ते की परत चढ़ा दी जाती है। इससे इन धातुओं का क्षरण (विशेषत: जंग लगना) रूक जाता है। यद्यपि यशदीकरण की प्रक्रिया स्वयं एक गैर-विद्युतरासायनिक प्रक्रिया है किन्तु फिर भी यह प्रक्रिया एक विद्युतरासायनिक उद्देश्य की पूर्ति करती है। यह प्रकिया अधिकांश यूरोपीय भाषाओं मे गैल्वेनाइजेशन कहलाती है और इसका यह नाम इतालवी वैज्ञानिक लुईगी गैल्वानी के नाम पर पड़ा है। इस्पात को पिघले हुए जस्ते में डुबाकर संरक्षित करने की प्रक्रिया १५० वर्ष से भी अधिक पुरानी है। इस प्रक्रिया का आविष्कार सन १८३७ में पेरिस के मोसियर स्तैनिस्लास सोरेल (Monsieur Stanislas Sorel) ने किया था। .
जस्ता और यशदीकरण के बीच समानता
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संदर्भ
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