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मन्दाकिनी और सॅफ़ॅई परिवर्ती तारा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

मन्दाकिनी और सॅफ़ॅई परिवर्ती तारा के बीच अंतर

मन्दाकिनी vs. सॅफ़ॅई परिवर्ती तारा

समान नाम के अन्य लेखों के लिए देखें मन्दाकिनी (बहुविकल्पी) जहाँ तक ज्ञात है, गैलेक्सी ब्रह्माण्ड की सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं। एनजीसी ४४१४ एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष व्यास की गैलेक्सी है मन्दाकिनी या गैलेक्सी, असंख्य तारों का समूह है जो स्वच्छ और अँधेरी रात में, आकाश के बीच से जाते हुए अर्धचक्र के रूप में और झिलमिलाती सी मेखला के समान दिखाई पड़ता है। यह मेखला वस्तुत: एक पूर्ण चक्र का अंग हैं जिसका क्षितिज के नीचे का भाग नहीं दिखाई पड़ता। भारत में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, स्वर्नदी, सुरनदी, आकाशनदी, देवनदी, नागवीथी, हरिताली आदि भी कहते हैं। हमारी पृथ्वी और सूर्य जिस गैलेक्सी में अवस्थित हैं, रात्रि में हम नंगी आँख से उसी गैलेक्सी के ताराओं को देख पाते हैं। अब तक ब्रह्मांड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग ऐसी ही १९ अरब गैलेक्सीएँ होने का अनुमान है। ब्रह्मांड के विस्फोट सिद्धांत (बिग बंग थ्योरी ऑफ युनिवर्स) के अनुसार सभी गैलेक्सीएँ एक दूसरे से बड़ी तेजी से दूर हटती जा रही हैं। ब्रह्माण्ड में सौ अरब गैलेक्सी अस्तित्व में है। जो बड़ी मात्रा में तारे, गैस और खगोलीय धूल को समेटे हुए है। गैलेक्सियों ने अपना जीवन लाखो वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और धीरे धीरे अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया। प्रत्येक गैलेक्सियाँ अरबों तारों को को समेटे हुए है। गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बाँध कर रखता है और इसी तरह अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ में रहती है। प्रारंभ में खगोलशास्त्रियों की धारणा थी कि ब्रह्मांड में नई गैलेक्सियों और क्वासरों का जन्म संभवत: पुरानी गैलेक्सियों के विस्फोट के फलस्वरूप होता है। लेकिन यार्क विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्रियों-डॉ॰सी.आर. सॅफ़ॅई परिवर्ती तारा एक विशेष प्रकार के परिवर्ती तारे को कहा जाता है जिसकी (निरपेक्ष कान्तिमान) चमक बहुत अधिक हो। इन तारो की चमक के तीखेपन और उसमें आने वाले बदलावों के काल में सीधा सम्बन्ध होता है, जिस वजह से इन्हें हमारी गैलेक्सी के लम्बे फ़ासले और गैलेक्सियों के बीच की दूरियों को मापने के लिए मानक समझा जाता है। इस श्रेणी का नाम वृषपर्वा तारामंडल में स्थित डॅल्टा सॅफ़ॅ​ई तारे पर पड़ा है जिसकी पृथ्वी से देखी जाने वाली चमक (सापेक्ष कान्तिमान) ५.३६६३४१ दिनों के काल +३.४८ से +४.३७ मैग्निट्यूड के बीच बदलती रहती है। इस तारे के अध्ययन से सन् १७८४ में यह परिवर्ती ज्ञात हुआ था और अपनी श्रेणी का यह पहला ज्ञात तारा था।de Zeeuw, P. T.; Hoogerwerf, R.; de Bruijne, J. H. J.; Brown, A. G. A.; Blaauw, A. (1999).

मन्दाकिनी और सॅफ़ॅई परिवर्ती तारा के बीच समानता

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संदर्भ

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